Advanced Cultivation of Spinach : आपको बता दे की पालक की खेती नगदी फल के रूप में की जाती है ,पालक जल्दी तैयार होने वाली फसलों में से एक है। पालक कई तरह से प्रयोग में लिए जाता है। इसमें अनेक पोषक तत्व पाए जाते है। इस फसल को उगाकर किसानो द्वारा अच्छा लाभ लिया जाता है ,इस फसल को जल्दी प्राप्त कर सकते है ,जिस वजह से इसकी फसल में कीट और रोग भी नहीं दिखाई देते है ,पालक का सेवन मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है। अगर पालक की खेती बरसात के मौसम में की जाये तो इसकी खेती में पानी की आवश्यकता नहीं होती है।
आपको बता दे की पालक की खेती को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है इसको पश्चिमी एशिया में उगाया जाता है ,इसकी खेती सम्पूर्ण विश्व में की जाती है ,जो सदाबहार सब्जी होती है। भारत में इसकी खेती कई जिलों में की जाती है ,जैसे – केरल ,तमिलनाडु ,कर्णाटक ,महाराष्ट ,गुजरात ,पश्चिम बंगाल ,आंध्रा प्रदेश, तेलंगना आदि राज्यों में की जाती है।
पालक की सब्जी बनाई जाती है। इसकी खेती हरी सब्जी के रूप में की जाती है। पालक की सब्जी मानव बड़े चाव से खाते है ,और इसका लाभ भी बहुत होता है। पालक में आयरन की मात्रा मिलती है। जो शरीर में रक्त की पूर्ति करती है पालक का प्रयोग सर्दियों के मौसम में अधिक किया जाता है। पालक से सरसो की सब्जी ,इतना ही नहीं पनीर के साथ ही इसकी सब्जी बनाई जाती है। इसकी खेती से किसानो को अच्छा मुनाफा मिलता है। इसकी पत्तियों को बचकर किसान अच्छी कमाई कर सकते है। अगर आप भी इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते है तो आइये जानते है ,पालक की खेती के सम्पूर्ण जानकारी –
पालक की खेती में आवश्यक तापमान ,और जलवायु
आपको बता दे की पालक के पोधो के लिए सामान्य तापमान होना चाहिए ,सामान्य तापमान में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है ,पालक के पोधो को अधिकतम 30 डिग्री और न्यूमतम 5 डिग्री की आवश्यकता होती है। बीज अंकुरण के लिए 20 डिग्री तापमान अच्छा होता है ,जिससे फसल में पैदावार अच्छी होती है।
पालक की खेती के लिए जलवायु को भी अधिक महत्व होता है जलवायु के आधार पर फसल पैदावार देती है। सर्दियों में इसके पोधो पर पला गिरता है ,जिसको यह पौधे आसानी से सहन कर सकता है। और अच्छे से विकसित होते है।
पालक की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी और सिचाई
आपको बता दे की मिट्टी के अनुसार भी फसल कई अच्छे पैदावार देती है। इसके पौधे के लिए मिट्टी को PH मान 6 से 7 से आस – पास होना आवश्यक है। इसके अलावा पालक की खेती जलभराव वाली भूमि में की जानी चाहिए।
पालक की खेती के लिए अधिक मात्रा में सिचाई की जरूरत होती है ,अधिक सिचाई पर पालक के पौधे अच्छी पैदावार देते है। इसके लिए बीज की बुआई से पहले खेत में पानी से पलेव करना चाहिए ,उसके बाद खेत में बीजो की रोपाई करनी चाहिए। आरम्भ में पालक के बीजो में 5 से 7 दिनों तक सिचाई करनी चाहिए। और वर्षा होने पर इसकी खेती में आवश्यकता के अनुसार ही सिचाई करनी चाहिए।
खेत की तैयारी और बीज रोपाई
पालक की खेत के लिए सबसे पहले खेत को अच्छे से तैयार करना चाहिए ,उसके लिए आप पुराणी फसल को पूरी तरह से नष्ट करे और फिर खेत की जुताई करे। उसके बाद खेत में पानी से पलेव करना चाहिए। जब खेत की मिट्टी कुछ सुख जाये तब फिर से जुताई करनी चाहिए। जिससे खेत की मिट्टी अच्छे सर भुरभुरी हो जाये। उसके बाद आप खेत में गोबर की खाद भी डाल सकते है ,और उसको मिट्टी में जुताई की सहायता से मिलाये। उसके बाद खेत को समतल करे। परन्तु खेत में जल भराव की स्थिति न होने दे।
आपको बता दे की पालक की खेती सेप्टेम्बर और अक्टूबर के महीने में करनी चाहिए। इसके साथ ही बारिश के मौसम में में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। पालक की रोपाई मेड़ो पर की जाती है। पालक के बीजो की रोपाई के लिए खेत में क्यारियों को तैयार करे। ध्यम रहे की क्यारियों के बीच एक फ़ीट की दुरी रखे। पालक के बीजो को 2 से 3 फ़ीट की गहराई में लगाना चाहिए। जिससे बीज अच्छे से अंकुरित होंगे। इसके साथ ही बीजो को क्यरियो में छिड़क दे और दराती की सहायता से बीजो को भूमि में दबा दे।
खरपतवार नियंत्रण
आपको बता दे की पालक की खेती में खरपतवार की अधिक आवश्यकता होती है। क्योकि इसके पौधे छोटे – छोटे होते है। इसकी फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकर्तिक और रसायनिक तरिके से भी खरपतवार को नियंत्रित कर सकते है। प्राकृतिक तरिके से खेत की निराई गुड़ाई करनी चाहिए और रसायनिक तरिके से खेत में पेंडीमेथिलीन की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
उन्नतशील किस्मे –
- IIHR 10 और IIHR 8 किस्म
- ऑल ग्रीन
- जोबनेर ग्रीन किस्म
- पूसा ज्योति किस्म
- पूसा भारती
- हाइब्रिड एफ 1
- पंजाब ग्रीन
- लाल पत्ती पालक
- आस्ट्रेलियन
- अर्ली स्मूथ लीफ
कीट और रोग और रोकथाम के उपाय
धब्बा रोग
पालक में यह रोग पत्तियों पर लगता है जिससे पत्तिया सुख जाती यही ,और इस रोग से पत्तियों पे छोटे और गोलाकार रूप में धब्बे हो जाते है ,जो पत्तियों को पूरी तरह नष्ट कर देते है। इस रोग के रोकथाम के लिए बीज की बुआई से पहले उनको उपचारित कर बोना चाहिए।
चेपा कीट रोग
यह रोग आपको गर्मियों के मौसम में अधिक देखने को मिलेगा। यह रोग पोढ़े की पत्तियों को रास चूसता है ,उनको नष्ट कर देता है। इस रोग के लग जाने से पत्तिया पिले रंग की हो जाती है और टूटकर जमीन पर गिर जाती है। इस रोग से बचने के लिए मैलाथियान की उचित मात्रा का घोल तैयार कर पोधो पर छिड़काव करना चाहिए।
कटाई और पैदावार
आपको बता दे की पालक की फसल जल्दी पकने वाली फ़स्ल है ,जो बीज रोपाई के 20 से 30 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पत्तिया अच्छे से पक जाये तब दराती के द्वारा ऊपर से इसकी कटाई करनी चाहिए। पालक के पोधो को 7 बार से अधिक बार की जा सकती है। उसक बाद साफ – साफ पालक की पत्तियों को छाँटकर उनका बण्डल बना ले ,उसके बाद बाजार में बेचने के लिए भेज दे।
आपको बता दे की पालक की 4 से 7 बार कटाई की जाती है। जिस पर आप 25 से 27 टन की पैदावार प्राप्त कर सकते है ,और इसमें आप 10 किवंटल तक बीजो को प्राप्त कर सकते है। इसके बाजारी भाव की बात करे तो इसका बाजारी भाव 10 रूपये किलो होता है ,जिसमे किसान काफी लाभ प्राप्त कर सकता है।