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किसानों के लिए समस्या बना सरसों की फसलों में सफेद रतुआ का प्रकोप, किसान ऐसे करें तुरंत समाधान

किसानों को इसकी खेती के समय में कई अलग अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है और इस समय सरसों की फसल में सफ़ेद रतुआ रोग का प्रकोप किसानों के लाइट समस्या बन चुका है। सफ़ेद रतुआ रोग को अंग्रेज़ी में White Rust Disease के नाम से भी जाना जाता है और ये रोग सरसों की फसल में  अल्ब्यूगो कैंडिडा (Albugo candida) नामक फफूंद की वजह से फैलता है। 
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white rust in mustard crops

White Rust in Mustard Crops: सरसों की फसल को भारत में नगदी फसल के रूप में भी देखा जाता है और ये किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण फसल होती है। सरसों से कई प्रकार के उत्पाद भी बनाये जाते है जैसे इसके तेल का उपयोग खाने में किया जाता है और साथ में सरसों को कई मसलों में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके आलावा पशुओं के लिए भी इसका बहुत अधिक उपयोग होता है। 

किसानों को इसकी खेती के समय में कई अलग अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है और इस समय सरसों की फसल में सफ़ेद रतुआ रोग का प्रकोप किसानों के लाइट समस्या बन चुका है। सफ़ेद रतुआ रोग को अंग्रेज़ी में White Rust Disease के नाम से भी जाना जाता है और ये रोग सरसों की फसल में  अल्ब्यूगो कैंडिडा (Albugo candida) नामक फफूंद की वजह से फैलता है। इस रोग के चलते किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि इस रोग से किसानों की पैदावार पर काफी असर पड़ता है। चलिए जा के इस आर्टिकल में आपको इस रोग के लक्षण और इसके उपाय के बारे में जानकारी देते है। 

सरसों में सफेद रतुआ रोग के प्रमुख लक्षण

किसान भाई अपने सरसों के खेत में इस रोग के लक्षणों को देखकर ही पहचान कर सकते है की आपकी फसल में इसका कितना प्रकोप है। आपकी सरसों की फैसला में इस रोग का प्रकोप जब होता है तो सबसे पहले पत्तियों की निचली सतह पर हल्के सफ़ेद या पीले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। बाद में ये धब्बे उभरे हुए सफ़ेद फफूँद के रूप में दिख सकते हैं। सरसों के पौधों की ये पत्तियां मुड़ने लगती हैं और धीरे धीरे सभी में झुर्रियां पड़ने लग जाती है। सरसों में इसकी वजह से फ़ोटोसिंथेसिस क्षमता का काफी कम हो जाती है। 

जब किसानों की सरसों की फसल में इसका प्रकोप अधिक बढ़ जाता है तो सरसों के डंठल और कलियों पर भी ये रोग फ़ैल जाता है। पूरी कलियों पर सफ़ेद रंग के चकते पड़ जाते है जिसकी वजह से फूल और कलियाँ सही से नहीं बन पाती है। जब सफ़ेद रतुआ बहुत अधिक सरसों में फैलने लगता है तो फिर पौधे की वृद्धि भी सही से नहीं हो पाती है और फलियों में भी ग्रोथ सही से नहीं होती। जब फलियां सही से ग्रोथ नहीं करती है तो सरसों के दाने काफी छोटे छोटे ही रह जाते है। 

सफेद रतुआ रोग से बचाव के उपाय

किसान भाई अपनी सरोसन की फसल में इस रोग से बचाव के उपाय कर सकते है ताकि उनको पैदावार पर अधिक असर ना पड़ें। अगर किसान भाई बुआई के समय में ही कुछ जरुरी कदम उठा लेते है तो फिर आगे चलकर इस रोग के प्रकोप से फसल को बचाया जा सकता है। किसानों को समय पर बुवाई करके इस रोग से काफी हद तक फसल को बचाया जा सकता है। समय पर फसल की बुवाई करने से सफ़ेद रतुआ का प्रकोप सरसों में काफी काम देखने को मिलता है। 

बुआई से पहले अगर सरसों के बीज को उपचारित किया किया जाए तो भी इससे बचा जा सकता है। प्रमाणित फफूँदनाशी (Fungicide) या जैविक उपचार करके सफ़ेद रतुआ के प्रकोप को काफी कम किया जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाइयों को अपने खेत में संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर आपके खेत में जलभराव की समस्या है तो उसका भी समय रहते आप समाधान करके इस रोग से सरसों की फसल को आसानी के साथ में बचा सकते है। 

अंतरवर्ती फसल चक्र का करें उपयोग 

किसान भाइयों को एक ही खेत में हर साल सरसों की फसल नहीं लेनी चाहिए और इस बार अगर सरसों की फसल की बुआई की है तो अगले साल इस खेत में अन्य फसल की बुवाई करनी चाहिए। इसको अंतरवर्ती फसल चक्र कहते है तो ये देखा गया है की जब भी किसान अंतरवर्ती फसल चक्र का इस्तेमाल करता है तो मिट्टी में मौजूद रोगकारक जीवों की संख्या का फि हद तक कम हो जाती है। 

सफ़ेद रतुआ को लेकर कृषि वैज्ञानिकों की सलाह 

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि सफेद रतुआ रोग का फैलाव आमतौर पर नमी और ठंडे मौसम में तेज़ी से होता है। इसलिए सभी किसान भाइयों को मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार अपने खेत की निगरानी करते रहना चाहिए और अगर कुछ दिनों से मौसम ठंडा और नम है तो फसल में रोग के लक्षण जल्द देख लें और यदि हल्के धब्बे भी दिखें तो तत्परता से उपचार प्रारंभ करें। अगर किसान भाइयों को अपनी फसल में ठीक से रोग के लक्षण पहचानने में परेशानी हो रही है तो अपने क्षेत्र के कृषि संस्थान से सम्पर्क करके कृषि वैज्ञानिकों की सलाह जरूर लेनी चाहिए। 

सफ़ेद रतुआ से सरसों की फसल में कितना नुकसान हो सकता है?

सफ़ेद रतुआ रोग के लक्षण और इसके उपाय के बारे में तो हमने जानकारी ले ली है लेकिन अब बात आती है की इस रोग से फसल में कितना नुकसान हो सकता है। देखिये पैदावार के मामले में देखा गया है की ये रोग 20 से 30 फीसदी तक नुकसान कर सकता है। इसके अलावा आपकी जो पैदावार होती है उसकी गुणवत्ता पर भी ये काफी असर डालता है। सरसों के दानों में तेल की गुणवत्ता काफी प्रभावित होती है क्योंकि दाने काफी छोटे होते है और सही से ग्रोथ नहीं कर पाते। इससे किसानों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान हो सकता है। जो किसान कई एकड़ सरसों की फसल की बुवाई कर चुके है उनको इस रोग के चलते भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। 

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