केले की खेती करेगी मालामाल , जानिए उन्नत तकनीक, किस्मे एवं वातावरण की पूर्ण जानकारी

by Saloni Yadav
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Banana Farming

Banana Farming : केला पौष्टिकता से भरपूर होता है। इसमें फास्फोरस और कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है। हमारे देश में केले का प्रमुख स्थान है। भारत में केले को आम के बाद महत्वपूर्ण फसल माना जाता है। यह फल सभी लोगो का पसंदीदा फल है। भारत में केले की खेती लोकप्रिय फल के रूप में की जाती है। केले में अनेक पोषक तत्व मौजूद होते है ,जो मानव शरीर के लिए अधिक उपयोगी होता है।

केले की खेती पुरे वर्ष किसी भी मौसम में की जा सकती है। बाजार में भी केले की बहुत मांग होती है। केले का उपयोग खाने के अलावा आटा, सब्जी और चिप्स केला प्यूरी, जैम, जैली, जूस आदि बनाने में किया जाता है।

इसके अलावा भी केले की रस्सी और अच्छी क्वालिटी के पेपर जैसे उत्पाद केले के व्यर्थ पदार्थ से तैयार किये जाते है।

केले को महाराष्ट में अधिक उत्पादित किया जाता है ,इसके अलावा कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों में भी केले का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता है। भारत केले उत्पादन में प्रथम स्थान पर है ,और फल उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। और अब तो गुजरात और आसाम में भी केले को उत्पादित किया जाता है।

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केला में मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट और विटामिन, विशेष कर विटामिन बी का उच्च स्त्रोत पाया जाता है , केले से शरीर में अनेक बीमारियों को कम किया जा सकता है ,जैसे दिल की बीमारी के खतरे को कम करता है ,इसके अलावा गठिया, उच्च रक्तचाप, अल्सर, गैस्ट्रोएन्टराइटिस और किडनी के विकारों से संबंधित रोगियों को रोगो से मुक्ति देता है।

केले के फाइबर से अनेक उत्पाद बनाये जाते है जैसे – बैग, बर्तन और वॉली हैंगर जैसे आदि उत्पाद बनाये जाते है। केले के पौधे से निकलने वाले पत्तियों का आकार 2 मीटर लम्बा और अधिक चौड़ा होता है। इस वजह से इनके पत्तों पर भोजन किया जाता है। इसके पोधो को सजाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है

अगर आप भी केले की खेती (Banana Farming ) करना चाहते है तो आज हम आपको केले की खेती कैसे करे ?,उपयुक्त जलवायु ,तापमान ,मिट्टी और उपज की सम्पूर्ण जानकारी आपको देंगे।

केले की खेती (banana Farming ) के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान

केले की खेती में जलवायु का अधिक महत्व होता है। केले के पौधे का अच्छे विकास के लिए उष्ण कटिबंधीय जलवायु के आवश्यकता होती है। केले की खेती के लिए बारिश का मौसम अच्छा माना जाता है लेकिन खेत में पानी का जमाव नहीं होने दे। अधिक वृद्धि में भी पौधे का विकास रुक जाता है।

केले के पौधे को अधिकतम 40 डिग्री और न्यूनतम 14 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। बारिश के मौसम में केले की खेती अधिक वृद्धि करती है। हम आप को बता दे की जलगांव में 47 डिग्री तापमान चला जाता है ,जिससे केले के पौधे जलने लग जाते है। उसके बाद अधिक पानी का नियोजन किया जाता है। अधिक तापमान में केले के पौधे को नुकसान होता है और अधिक सर्दी में इसके फसल पर पाले का प्रकोप रहता है।

केले की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

केले की खेती के लिए गहरी गाद चिकनी, दोमट और उच्च दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। केले की खेती के लिए भूमि का PH मान 6 से 7.5 उपयुक्त होता है। केला उगने के लिए अच्छे निकास वाली, पर्याप्त उपजाऊ और नमी की क्षमता वाली मिट्टी का उपयोग करना चाहिए।

केले की खेती में उच्च स्तर की पोटाश वाली मिट्टी ,नाइट्रोजन युक्त मिट्टी,पर्याप्त फासफोरस वाली मिट्टी में अच्छी उपज होती है। केले की खेती रेतली, नमक वाली, कैल्शियम युक्त और अत्याधिक चिकनी मिट्टी नहीं करनी चाहिए

केले की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई

केले की फसल एक इसी फसल है जिसमे केले की जड़ो को पानी की जरूरत होती है क्योकि केले की जड़े अधिक गहराई तक नहीं जाती है जिससे यह जमीन में से पानी नहीं ले सकता है

इसलिए अधिक पानी के जरूरत होती है। केले की खेती में सर्दियों के मौसम में 7 से 8 दिनों के अंतराल पर सिचाई की आवश्यकता होती है और गर्मियों के मौसम में 4 से 5 दिनों के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए। खेत में पानी का जमाव नहीं होने देना चाहिए ,पानी को निकल देना चाहिए।

केले की उन्नत किस्मे

बतीसा

केले की यह किस्म सब्जी के लिए सबसे अधिक उगाई जाती है। तथा इसके पौधे में 250 से 300 फलिया पाई जाती है और इनके लिए घेरो की लम्बाई अधिक पाई जाती है।

कुठिया

यह किस्म सब्जी और फल दोनों के लिए उगाया जाता है इसके फलो में अधिक स्वाद होता है। इसके फल का आकार सामान्य होता है ,इनके पौध को अधिक सिचाई की जरूरत होती है। केले के घेरे का वजन 25 KG तक होता है।

रोवेस्टा

यह किस्म अधिक समय तक भंडारित किया जा सकता है। इसके पौधे 3 से 4 मीटर लम्बे होते है। इस किस्म में 200 से अधिक फलिया पाई जाती है। इसके घेरे का वजन लगभग 25 से 30 KG तक होता है। इस किस्म के अंदर चमकीला और पीले रंग का फल निकलता है।

इसके अलावा दूसरे राज्यों की किस्मे पाई जाती है जो इस प्रकार है – रेड बनाना ,रोबस्टा ,रास्थली ,नंदराम ,न्याली और पूवन आदि किस्मे मुख्य रूप से पाई जाती है।

केले के खेत की तैयारी कैसे करे ?

केले की खेती के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई की जानी चाहिए ,इसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें, जिससे खेत को धूप लग सके। उसके बाद खेत की फिर से जुताई के जानी चाहिए और उसमे गोबर की खाद का प्रयोग नहीं कर सकते है उसके बाद गोबर को मिट्टी में अच्छे से मिलाने के लिए उसकी गहरी जुताई की जानी चाहिए फिर उसमे पानी का पलेव करना चाहिए। जिसके बाद मिट्टी में पाटा लगवाकर मिट्टी को भुरभुरी कर देना होता है ,उसके बाद आप उसमे पौध रोपाई के लिए गड्डो को तैयार कर लिया जाता है |

गड्डो को पंक्तियों में तैयार किया जाता है।गड्डे से गड्डे की दुरी डेढ़ मीटर होनी चाहिए। उसके बाद गड्डो में उचित मात्रा में उवर्रक देना चाहिए। उसके बाद आप उसमे गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिलाना चाहिए। इस्सके बाद इसकी सिचाई करनी चाहिए। गड्डो को एक महीने पहले तैयार कर लेना चाहिए। एक महीने के बाद खेत में गड्डो में छोटा सा गड्डा बनाकर पोधो की रोपाई कर दी जाती है।

पौध रोपाई के एक महीने बाद 60 GM नाइट्रोजन की मात्रा पौधों को देनी चाहिए , उसके बाद जब पौध पर फुल आने लगे इस समय 60 GM नाइट्रोजन की मात्रा पौधों को देनी चाहिए।

केले के पौधे की रोपाई

केले की पौध रोपाई की जाती है। पौध को नर्सरी से खरीद लेना चाहिए | उसके बाद पौध की रोपाई करनी चाहिए। 15 मई से 15 जुलाई तक पौध की रोपाई कर सकते है। आप जून में भी पौध के रोपाई कर सकती है। बारिश के मौसम में केले की फसल अधिक विकास करती है। इनके पोधो को लगाने से पहले बीज को बाविस्टीन से उपचारित कर लिया जाता है। इसके बाद पौध की रोपाई की जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

केले की खेती में खरपतवार नियंत्रण जरूरी होती है। इसके लिए प्राकृतिक तरीके से खरपतवार को नियंत्रण किया जाता है। केले के पौधे को अधिक गुड़ाई की जरूरत होती है। खेत में पौध रोपाई के एक महीने के बाद गुड़ाई करनी चाहिए ,फिर उसके बाद अगर खरपतवार दिखाई दे तब भी आप गुड़ाई कर सकते है।

केले के पौधे में लगने वाले रोग और रोकथाम

लेस विंग बग

यह रोग पौधे की पत्तियों पर अधिक दिखाई देता है। यह पत्तियों पर आक्रमण करके पौधे को कमजोर कर देता है। इस रोग से पौधे की पत्तिया पीले रंग की दिखाई देती है। यह रोग पत्तियों की निचली सतह पर रस चूस कर पौधे को हानि पहुँचता है।

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

थ्रिप्स

इस किस्म का रोग पौधे को अधिक हानि पहुँचता है। केले का ऊपरी हिस्सा खराब हो जाता है ,जिससे फल भददा दिखाई देता है।

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

लीफ स्पाट

यह रोग सिगाटोका नाम से भी जाना जाता है। यह रोग पौधे की पत्तियों को चूस लेता है ,जिस कारण से पौधे में क्लोरोफिल की मात्रा कम हो जाती है। और पत्तिया हरे रंग से भूरी हो जाती है। और इस रोग का प्रकोप अधिक होने से पत्तिया काली हो जाती है।

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए केले के पौधों पर प्रोपिकोनाजोल, बाविस्टीन या डाइथेन एम-45 में से एक का छिड़काव करना चाहिए।

केले के फलो की तुड़ाई कैसे करे ?

केले को दो तरीके से तोडा जाता है पहले फल की तुड़ाई कच्चे रूप में की जाती है ,जिससे आटा, और सब्जी बनाई जाती है। और दूसरी तुड़ाई फल के पकने पर की जाती है ,जिसका उपयोग फलो को खाने में ,और जूस में और अन्य चीजों को बनाने में किया जाता है। केले की तुड़ाई करके उनको बाजार में बेच सकते है।

केले की खेती से पैदावार व् लाभ

केले की खेती एक हेक्टैयर के क्षेत्र में 60 से 70 टन की पैदावार करती है। केले का बाजारी भाव 20 से 30 रूपये प्रति किलो होती है। जिससे एक हेक्टैयर के क्षेत्र में किसानो को 7 लाख तक की कमाई कर अच्छा लाभ मिल सकता है।

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