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आरबीआई की नीति घोषणा से पहले ब्याज दरों पर चर्चा तेज, 25 या 50 बीपीएस कटौती की उम्मीद

Published on: June 4, 2025 8:55 AM IST
Discussion on interest rates intensifies before rbi policy announcement, 25 or 50 bps cut expected

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) की बैठक से पहले देशभर के अर्थशास्त्रियों के बीच एक नई बहस छिड़ गई है। इस बार सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि आरबीआई रेपो रेट (Repo Rate) में कितनी कटौती करेगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कटौती 25 आधार अंक (25 Basis Points) की होगी, वहीं कुछ 50 आधार अंक (50 Basis Points) की उम्मीद जता रहे हैं। यह फैसला देश की अर्थव्यवस्था, खासकर होम लोन (Home Loan) और पर्सनल लोन (Personal Loan) जैसी ब्याज दरों पर बड़ा असर डाल सकता है।

रेपो रेट में बदलाव का क्या होगा असर?

रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को उधार देता है। जब रेपो रेट में कटौती होती है, तो बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता हो जाता है, जिसका सीधा फायदा आम लोगों को मिलता है। इसका सबसे बड़ा असर उन लोगों पर पड़ता है, जो होम लोन, वाहन लोन (Vehicle Loan) या अन्य तरह के कर्ज लेना चाहते हैं। अप्रैल 2025 में आरबीआई ने रेपो रेट को 25 आधार अंक घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया था, जिसके बाद बैंकों ने भी अपनी ब्याज दरों में कमी की थी। अब अगर फिर से रेपो रेट में कटौती होती है, तो यह कर्ज लेने वालों के लिए और राहत लेकर आ सकता है।

इसके अलावा, रेपो रेट में बदलाव का असर अर्थव्यवस्था में मांग और निवेश (Investment) पर भी पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि रेपो रेट कम होने से बाजार में नकदी (Liquidity) बढ़ती है, जिससे लोग ज्यादा खर्च करते हैं और अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। हालांकि, कुछ अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि अगर कटौती ज्यादा हुई, तो इससे महंगाई (Inflation) बढ़ने का खतरा भी हो सकता है।

अर्थशास्त्रियों के बीच क्यों है मतभेद?

आरबीआई की नीति घोषणा से पहले अर्थशास्त्रियों के बीच मतभेद की वजह मौजूदा आर्थिक स्थिति है। एक तरफ वैश्विक स्तर पर आर्थिक अनिश्चितताएं (Global Economic Uncertainties) बढ़ रही हैं, तो दूसरी तरफ देश में महंगाई को नियंत्रित करने की जरूरत है। अप्रैल 2025 में आरबीआई ने महंगाई दर (CPI Inflation) को 4.8 प्रतिशत पर अनुमानित किया था, जो अभी भी उसके लक्ष्य से थोड़ा ज्यादा है। ऐसे में कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई सतर्क रुख अपनाएगा और रेपो रेट में ज्यादा कटौती से बचेगा।

वहीं, कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अर्थव्यवस्था को तेजी देने के लिए बड़ी कटौती की जरूरत है। उनका तर्क है कि वैश्विक व्यापार (Global Trade) में कमी और अमेरिकी टैरिफ (US Tariffs) जैसे फैसलों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। ऐसे में रेपो रेट में 50 आधार अंक की कटौती से निवेश और मांग को बढ़ावा मिल सकता है।

आम लोगों पर क्या होगा प्रभाव?

अगर आरबीआई रेपो रेट में कटौती करता है, तो इसका सीधा असर बैंकों की ब्याज दरों पर पड़ेगा। इससे न केवल नए कर्ज सस्ते होंगे, बल्कि पुराने कर्ज की ईएमआई (EMI) भी कम हो सकती है। हालांकि, यह कटौती कितनी होगी, यह आरबीआई की नीति घोषणा के बाद ही साफ हो पाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि आरबीआई इस बार अपनी नीति को और उदार (Accommodative Stance) बनाने की दिशा में कदम उठा सकता है, ताकि अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सके।

फिलहाल, सभी की नजरें आरबीआई की बैठक पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्रीय बैंक इस बार कौन सा रास्ता चुनता है और इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है।

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