हरियाणा राज्य के किसान जो ढेंचा की बुआई अपने खेतो में करते है उनके लिए सरकार ने बड़ा निर्णय लिए है। इन किसानो को सरकार की तरफ से प्रति एकड़ आर्थिक मदद देने की घोषणा की गई है। हरियाणा के कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने इसके संबंधत में पूर्ण जानकारी दी है। हरियाणा के कई जिले ऐसे है जहा पर बड़ी मात्रा में किसान ढेंचा की खेती करते है। जिससे खेतो में प्राकृतिक रूप से हरी खाद मिलती है। खेतो में नाइट्रोज़न की मात्रा बढ़ती है। जिससे फसलों की उत्पादन क्षमता में भी इजाफा होता है। इससे रासायनिक खादों पर निर्भरता भी कम होती है। हरियाणा राज्य सरकार की तरफ से किसानो को ढेंचा की खेती पर आर्थिक मदद दी जाती है। जो की अब 1000 रु प्रति एकड़ दी जाने वाली है।
हरियाणा के किसानो को ढेंचा की खेती के लिए 1000 रु की आर्थिक मदद
प्रदेश में खेतो की उर्वरा क्षमता में बढ़ावा एवं रासायनिक उर्वरको पर निर्भरता कम करने के लिए ढेंचा की खेती को लेकर सरकार की तरफ से योजना पुरे प्रदेश में लागु की गई है। जिसके लिए किसानो को आर्थिक मदद मिलेगी। हालाँकि ये लाभ केवल उन किसानो को ही मिलेगा, जिन्होंने इसके लिए हरियाणा के मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर पंजीकरण इस योजना के लिए किया हुआ है। राज्य में सरकार लगातार किसानो को खेती के प्रति जागरूकता एवं आर्थिक रूप से शसक्त बनाने के लिए प्रयास कर रही है। जिससे किसानो को अधिक फसल उत्पादन के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है। किसानो को 1000 रु प्रति एकड़ की दर से राशि दी जाने वाली है।
ढेंचा की खेती से काफी फायदे
किसानो को अपने खेतो में ढेंचा की खेती जरूर करनी चाहिए। इसका फायदा ये है की ये कम समय में होती है और खेतो में पोषक तत्वों की जो कमी होती है वो पूर्ण हो जाती है। खासकर नाइट्रोज़न की मात्रा को तेजी के साथ बढ़ाता है। आपको बता दे की एक हेक्टेयर ढैंचा की फसल से 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन मिट्टी को मिल जाती है। जो अन्य फसलों के उत्पादन को तेजी के साथ बढ़ाता है। इसके साथ साथ मिटटी में पानी सोचने की क्षमता और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ती है। जिससे धीरे धीरे खेतो की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ने लगती है।
कम मेहनत में अधिक फायदा
ढेंचा की फसल ऐसे समय में बोई जाती है जब ना खरीफ का सीजन होता है और ना ही रबी का सीजन होता है। यानि की खाली समय में इस फसल को उगाया जाता है। और ये रबी सीजन के शुरू होने से पहले तैयार भी हो जाता है। इसमें मेहनत कम होती है लेकिन फायदा काफी अधिक होता है। फसल में कटाई या निराई , गुड़ाई की जरुरत नहीं होती है। और इस फसल के पकने या उससे पहले ही खेतो में हैरो द्वारा मिटटी में मिला दिया जाता है। जिससे कार्बनिक खाद के साथ साथ नाइट्रोज़न की मात्रा मिटटी में बढ़ जाती है। ढेंचा की जड़ो में नाइट्रोज़न उत्पादन करने वाली गांठे होती है। जिससे भूमि में उर्वरा क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है।