Grapes Cultivation : भारत को विश्व का सर्वोच्च अंगूर उत्पादक कहा जाता है।भारत में अंगूर की खेती पिछले 6 दशकों से की जा रही है। आज महाराष्ट में सबसे अधिक खेती की जाती है। महाराष्ट उत्पादन की दृष्टि से अग्रणी देश है। भारत में अंगूर की अच्छी पैदावार होती है। इससे शराब,बियर, सिरका, किशमिश, और अन्य कई प्रोडक्ट बनाये जाते है।
अंगूर की खेती फ्रांस, यू.एस.ए, टर्की, दक्षिण अफ्रीका, चीन, पुर्तगाल, अर्जेनटीना, इरान, इटली और चाइल आदि देशो में की जाती है।
अंगूर की खेती एक मुलायम व् रेशेदार मीठे फल के रूप में की जाती है। अंगूर के अनेक रंग होते है हरे ,काले ,लाल अंगूर आदि नाम सुनते ही लोगो के मुँह में पानी आ जाता है इसलिए किसानो के लिए भी अंगूर की खेती उतना ही पसंद है जितना इसका स्वाद है। अंगूर से शरीर में अनेक फायदे होते है ,अंगूर में कैलोरी, फाइबर और विटामिन सी आदि तत्व पाए जाते है। अंगूर का स्वाद मीठा होता है। आयुर्वेद में अंगूर को सेहत के लिए खजाना माना जाता है।अंगूर में मिठास के साथ स्वास्थ्य के लिए हितकारी भी होता है। चलिए आपको आज अंगूर की खेती करने का पूरा तरीका बताते है ताकि आप इसकी खेती करके आसानी के साथ में मोटा पैसा कमाई कर सकें। किसान भाईओं आर्टिकल को आखिर तक जरूर पढ़ना और इसको शेयर भी जरूर करना।
मिट्टी, सिचाई, उपयुक्त जलवायु,तापमान
अंगूर की खेती पूरे देश में की जाती है अंगूर के खेती के लिये गर्म व् शुष्क जलवायु आवश्यक होती है। अंगूर की खेती के लिए अधिक तापमान नहीं होना चाहिए क्योकि अधिक ताप इस खेती की पैदावार कम कर देती है। अधिक तापमान में रोग लग सकते है फल का विकास ,उसकी बनावट और गुण जलवायु पर निर्भर करता है। फलो के पकते समय वर्षा अधिक होने से फल के फटने का डर होता है। इससे अंगूर के पैदावार में असर पड़ता है। दाने फटने से गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है।
अंगूर की जड़ काफी मजबूत होती है। इसलिए यह कंकरीली,रेतीली से चिकनी और उथली से लेकर गहरी मिट्टियों में आसानी से पनप जाता है। अंगूर की खेती के लिए उचित मिट्टी
रेतीली, दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास हो अच्छी मानी जाती है। अंगूर की खेती चिकनी मिट्टी में नहीं करे क्योकि अंगूर की खेती कुछ हद तक ही खारेपन को सहन कर सकती है तथा मिट्टी में अधिक खारापन इसकी फसल के लिए अच्छा नहीं होता है इससे इसकी पैदावार कम होती है।
हम आप को बता दे की इस पौधे की रोपाई नवम्बर से दिसंबर के महीने में की जाती है। जिस कारण से इसके पौधे को अधिक सिचाई की जरूरत नहीं होती है। जब पौधे में फल लगे तब इसकी अच्छी पैदावार के लिए सिचाई की आवश्यकता होती है। अगर अंगूर के पौधे को पानी नहीं मिल पाता है तो इससे फल की पैदावार कम हो सकती है। अगर तापमान के हिसाब से जरूरत होने पर पौधे की सिचाई करनी चाहिए।
अंगूर की खेती के लिए खेत को तैयार करना
अगर आप को अंगूर की अच्छी पैदावार प्राप्त करनी है तो पोधो को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छे से तैयार करे। इसके बाद खेत की जुताई करनी चाहिए ,इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए वैसे ही रहने दे। जिस धूप लग सके। इसके बाद खेत में पानी लगा देना चाहिए। फिर खेत सूखा दिखाई देगा ,उसमे फिर जुताई करनी चाहिए ,जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। फिर खेत को समतल कर देना चाहिए।
समतल खेत में जलभराव की समस्या नहीं होती है यह पौधा अधिक मात्रा में पोषक तत्वों को अवशोषित करता है, जिस वजह से खेत में उर्वरकता का होना जरूरी है ,इसके बाद खेत में गोबर की खाद अच्छे से डालनी चाहिए। फिर से एक बार गोबर की खाद डालने के बाद जुताई करनी चाहिए। इससे खाद मिट्टी में मिल जाता है। आप रासायनिक खाद का भी उपयोग कर सकते है ,इसके रूप में आप 500 GM नाइट्रोजन, 700 GM म्यूरेट ऑफ पोटाश, 700GM पोटेशियम सल्फेट भी डाल सकते है।
अंगूर के पौधे की रोपाई कैसे करे ?
हम आप को बता दे की कलम के रूप में अंगूर के पौधे की रोपाई की जाती है। सबसे पहले कलमों को खेत में लगाने से पहले गड्ढो को तैयार करना चाहिए। गड्डो को तैयार करके उसमे उवर्रक की सही मात्रा देनी चाहिए। इसके साथ गोबर की खाद के साथ 30 GM क्लोरिपाईरीफास, 1 KM सुपर फास्फेट और 500 GM पोटेशीयम सल्फेट को मिट्टी में मिलकर भर देना चाहिए कलन को लगाने के बाद सिचाई करनी चाहिए। ध्यान रहे की कलम एक वर्ष पुरानी होनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
अंगूर की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है जिससे अच्छी पैदावार अच्छी होती है। खरपतवार के लिए प्राकृतिक तरीके का इस्तेमाल करना चाहिए ,जिससे अच्छी पैदावार होगी ,इसलिए पोधो को निराई -गुड़ाई करके खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए।
अंगूर की किस्मे
बैंगलोर ब्लू किस्म के अंगूर
इस किस्म के पौधे को कर्नाटक में उगाया जाता है इसकी पत्तिया आकार में छोटी और पतली होती है। इसमें सुगंधित TTS की मात्रा लगभग 16-18% पाई जाती है। यह किस्म उत्तम फल देता है। इसका उपयोग शराब बनाने में किया जाता है। इसके फल हरे बैंगनी रंग और अंडाकार भी होते है।
भोकरी
इस किस्म को अधिक तमिलनाडु में उगाया जाता है ,इस किस्म का पौधा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 35 टन की पैदावार दे सकता है। इनका आकार माध्यम होता है। इसके फल अच्छी किस्म के होते है ,इसमें फल का रंग हल्का पीला होता है।
अनब-ए-शाही किस्म के अंगूर
इस किस्म को पंजाब, हरियाणा,आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में अधिक उगाया जाता है। इसका रास मीठा होता है ,तथा TTS की मात्रा 14-16% होती है। इस किस्म की पैदावार 35 टन से अधिक पाई जाती है। अंगूर के रास में निकलने वाला जूस बिलकुल साफ़ होता है।
गुलाबी
यह पौधा अत्यधिक संवेदनशील होता है। इस पौधे में TTS की मात्रा 18 – 20 तक पायी जाती है। इसका आकार देखने में गोल होता है ,इस फसल की पैदावार औसतन 10-12 टन
होती है। यह किस्म अच्छी क्वालिटी की होती है।
काली शाहबी
इस किस्म को महाराष्ट और आंध्रप्रदेश में मुख्य रूप से उगाई जाती है। इसमें TTS की मात्रा 22 % होती है। और औसतन उपज 10 से 12 टन होती है। यह किस्म तालिका उद्देश्य हेतु उपयुक्त होती है। इसकी बेरिया लंबी और लाल बैगनी व् बेलनाकार होती है।
शरद सीडलेस
यह रूस की स्थानीय किस्म मानी जाती है। इसका स्वाद मीठा होता है। इसमें TTS की मात्रा 24 % तक मानी जाती है।
थॉम्पसन सीडलेस
इस किस्म को तमिलनाडु ,महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में उगाई जाती है ,इस किस्म की बेरिया लम्बी ,सुनहरी ,होती है। इसमें TTS की मात्रा 20 -25 % पाई जाती है। इसकी औसतन पैदावार 20 -25 टन होती है। इसका उपयोग किसमिस बनाने में किया जाता है।
इसका रंग भूरा होता है व् इस किस्म का फल भी मीठा होता है।
परलेटी
यह किस्म ठोसपन होने के कारण उपयुक्त नहीं है। इसकी औसतन पैदावार 35 टन होती है यह किस्म अच्छी क्वालिटी की होती है। इसमें TTS की मात्रा 16 से 18 % पाई जाती है। यह किस्म पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के राज्यों में मुख्य रूप से उगाई जाती है। इसका आकार गोल और रंग पीला होता है।
अरका राजसी
इसकी बेरिया गहरी भूरे रंग की होती है इसकी औसतन उपज 38 टन/हेक्टेयर होती है। इस किस्म की अच्छी निर्यात सम्भवनाए होती है। इसमें TTS की मात्रा 18 से 20 % होती है। यह किस्म एनथराकनोज के प्रति सहिष्णु होते है।
अरका कृष्णा
इस किस्म की बेरिया बीजरहित व् काले रंग की होती है। इसका आकार अंडाकार गोल होता है। इसमें TTS की मात्रा 20-21 % होती है। यह किस्म जूस बनाने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसकी औसतन उपज 33 टन /हेक्टेयर मानी जाती है।
अरका श्याम
इस किस्म की बेरिया मध्य लम्बी ,काली ,चमकदार और हल्के स्वाद की होती है। यह एंथराकनोज के प्रति प्रतिरोधक मानी जाती है।यह किस्म शराब बनाने में काम आती है।
इसके अलावा अंगूर की अन्य किस्मे भी पाई जाती है जो इस प्रकार है –पूसा नवरंग,शरद सीडलेस, परलेट ,पूसा नवरंग आदि किस्मे है।
अंगूर के कलम की कटाई कैसे करे ?
- जनवरी की महीने में काट -छांट से निकली गई टहनियों में से कलम बनाई जाती है।
- कलम बनाने के लिए पूर्ण पकी टहनियों का प्रयोग करना चाहिए।
- 4 से 6 गाठो वाली 23 से 45 cm लम्बी कलमों का इस्तेमाल करे।
- अंगूर की कलम में तिरछा कट होना चाहिए।
- कलमों को जड़ सहित निकलकर खेत में लगाए।
- कलमों को जमीन से उचाई पर लगाए।
अंगूर की फसल में खाद और उर्वरक की मात्रा
अंगूर की खेती मिट्टी से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों को ग्रहण करती है। इसलिए मिट्टी में समय -समय पर गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहे। और अंगूर की पैदावार अच्छी प्राप्त हो।
अंगूर की फसल की तुड़ाई कैसे करे ?
उत्तरी क्षेत्र में आम तौर से अक्टूबर और अगस्त में कीजाती ही तथा दक्षिणी क्षेत्र में फरवरी और अप्रैल में की जाती है। अंगूर को पौधे से थोड़ी से डाली सहित तोडा जाता है। और साफ़ स्थान पर रखा जाता है। तुड़ाई के बाद इसको बाजार में बेच दिया जाता है।
अंगूर की खेती में कमाई व् लागत
अंगूर की खेती में कलम की लागत ,खाद ,रोग निवारण के लिए दवाई खर्च और तैयार के लिए विभिन खर्च आते है। देश में अंगूर की पैदावार 30 टन प्रति हेक्टैयर होती है। जो विश्व में सबसे अधिक होती है। वैसे तो उपज किस्म ,मिट्टी ,जलवायु और परिस्तिथियों पर निर्भर करती है। परन्तु लगभग 30 से 50 टन की पैदावार होती है। कमाई की बात करे तो इस बात पर निर्भर है की अंगूर का भाव क्या है ,वैसे तो बाजार में कम से कम 50 रुपए माने और औसतन पैदावार 30 टन प्रति हेक्टेयर होती है। फिर भी किसानो का अत्यधिक मुनाफा होता है।