Turmeric Cultivation : बिहार की प्रमुख फसल हल्दी है। बिहार हल्दी उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। हल्दी का उपयोग भोजन में ,धार्मिक कार्यो में तो इसका उपयोग बहुत किया जाता है। हल्दी ओषधीय के रूप में काफी गुणकारी है। हल्दी के कंद में कुरकमिन पाया जाता है। एलियोरोजिन को भी हल्दी में से निकला जाता है।
हल्दी को भारतीय केसर भी कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण पदार्थ होता है। इसके रंग पीला होता है और इसका प्रयोग दवाइयों को बनाने में भी क्या जाता है। वैसे तो इसके विकास के लिए राइजोमास का प्रयोग किया जाता है। इसके पत्ते लम्बे ,चौड़े ,और गहरे होते है।
इसके फूल हल्के पीले होते है। हिन्दू समाज में हल्दी का प्रयोग धार्मिक रीति- रिवाजो और शादी -विवाह के माहौल में हल्दी की रस्मे मुख्य रूप से निभाई जाती है। हल्दी में कुछ खास गुण पाए जाते है ,जिससे यह बहुत काम की चीज होती है। इसको उपयोग रसोई में सब्जी में डालने के लिए किया जाता है। हल्दी में स्टार्च की मात्रा अधिक पाई जाती है।
इसके अलावा हल्दी में वसा, पानी, कार्बोहाइड्रेट, रेशा और खनिज लवण और प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है। दूध के साथ हल्दी का सेवन करने से गहरी से गहरी चोट जल्दी से ठीक हो जाती है। हल्दी ने आयुर्वेदिक उपचार में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है।
हल्दी एक सदाबहार बूटी होती है ,हल्दी में कैंसर और विषाणु विरोधी तत्व पाए जाते है जो बीमरियों के लिए लाभदायक है। हल्दी की डिमांड बाजार में अधिक होती है क्योकि इसके अंदर अनेक गुण पाए जाते है ,जिससे फायदे दिखाई देते है।
हल्दी को दक्षिण एशिया में भारती केसर कहा जाता है। हल्दी के निर्यात से भारत को करोड़ो रूपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त है। भारत में हल्दी की खेती आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों व्यापक स्तर की जाती है। हल्दी की खेती से लगभग 100 से 150 किवंटल प्रति एकड़ की पैदावार होती है और जिससे अच्छी कमाई की जा सकती है।
अगर आप भी हल्दी की खेती करने का मन बना रहे है तो आज हम आपको हल्दी की खेती कैसे करे?,उन्नत किस्मे ,तापमान ,जलवायु ,मिट्टी और पैदावार की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
हल्दी की खेती उष्ण कटिबंधीय जलवायु में की जाती है। लेकिन उर्वराशक्ति से भरपूर दोमट, जलोढ़ और लैटेराइट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। हल्दी के पोधो को गर्म और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है इसकी खेती में अधिक गर्म और अधिक ठंडी जलवायु हानिकारक होती है।
इसकी खेती में पोधो के विकास के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है हल्दी के के बीजो को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है । इसके लिए अधिक और कम तापमान भी हानिकारक होता है ,इसलिए सामान्य तापमान में हल्दी की खेती करनी चाहिए ,जिससे अच्छी पैदावार हो सके।
हल्दी के पौधे की सिचाई कैसे करे ?
हल्दी के बीजो की रोपाई मार्च में की जाती है। आरम्भ में इसके पौधे को अधिक सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है। हल्दी की खेती में 4 से 5 सिचाई की जाती है बारिश के न होने पर सिचाई आवश्यक होती है। बारिश होने पर सिचाई बारिश पर निर्भर करती है। जब अधिक मात्रा में बारिश हो तो पोधो में पानी की कोई जरूरत नहीं होती है अगर बारिश कम मात्रा में हो तो 25 दिनों के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए।
हल्दी के खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
इसकी खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है और उचित जल निकास वाली बलुई मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। हल्दी की खरति के लिए भूमि का PH मान 5.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए। हल्दी की फसल खड़े पानी को सहन करने योग्य नहीं है।
हल्दी की खेती की उन्नत किस्मे
सोरमा
इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 7 महीने बाद पैदावार देना शुरू करते है यह एक पौधा प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 350 से 400 किवंटल की पैदावार देता है इसके कंदो में 9 % पीलापन होता है।
राजेन्द्र सोनिया
इस किस्म के कंदो का रंग 8 से 8.5 प्रतिशत तक पीला पाया जाता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 400 से 450 किवंटल की पैदावार देती है इस किस्म का पौधा 3 फ़ीट तक लम्बा होता है। और इस किस्म को तैयार होने में 7 से 8 महीने लगते है।
आरएच 13/90
हल्दी की इस किस्म के पौधे की लम्बाई 4 फ़ीट तक होती है। और इस किस्म को तैयार होने में 7 महीने लगते है। इसके कंदो में 7 % पीलापन पाया जाता है। और यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 500 किवंटल की पैदावार देती है
सगुना
इस किस्म के पौधे शाखाए लिए सामान्य लम्बाई के होते है। यह किस्म 7 महीने के बाद पैदावार देती है। इसके साथ एक हेक्टैयर के क्षेत्र में लगभग 600 किवंटल की पैदावार देती है ,इसमें निकलने वाले कंदो का रंग 6 % पीलापन लिए होता है।
आर.एच. 5
इस किस्म के पौधे का आकार 3 फ़ीट का होता है ,जिसको तैयार होने में 7 महीने का समय लगता है। इसके कंदो का रंग 7 % पीलापन लिए होता है। यह एक हेक्टैयर के खेत में 500 किवंटल की पैदावार देता है।
पंजाब हल्दी 1
इसके पत्ते लम्बे तथा छोटे होते है इनके छिलके का रंग भूरा होता है। यह किस्म 215 दिनों में पकती है। और औसतन पैदावार 108 किवंटल होती है
पंजाब हल्दी 2
यह लम्बी और चौड़े हरे पत्तो की होती है। इसके छिलके का रसंग भी पीला होता है। यह किस्म 240 दिनों के बाद पककर तैयार होती है। इसकी औसतन पैदावार 108 किवंटल प्रति एकड़ होती है।
इसके अलावा इसकी अन्य किस्मे भी होती है जो इस प्रकार है – अमलापुरम ,आर्मर ,डिंडिगम,कोदूर ,कृष्णा ,सालेम ,सांगली ,यूरमेरिक ,और राजपुरी आदि किस्मे है जो दूसरे राज्यों की है।
हल्दी के खेत की तैयारी और खाद का प्रयोग
हल्दी की खेती के लिए सबसे पहले खेत को अच्छे से साफ़ करना चाहिए यानि खेत में पुरानी फसल के अवशेषो को नष्ट कर देना चाहिए। फिर उसमे अच्छे से जुताई की जननी चाहिए। उसके बाद आप खेत को कुछ समय के लिए खाली छोड़ देना ,फिर उसमे गोबर की खाद को डालना चाहिए। गोबर की खाद डालने के बाद उस खेत की जुताई फिर से की जानी चाहिए। फिर खेत में पानी दे ,जब खेत का पानी सूख जाये तब फिर से उसकी जुताई की जानी चाहिए ,जिससे मिट्टी भुरभुरी हों जाये और पौधे अच्छे से विकास कर सके। उसके बाद खेत में पाटा लगवाकर खेत को समतल कर दे ,जिससे जलभराव की समस्या नहीं हो सके।
हल्दी के खेत में गोबर की खाद के अलावा रासायनिक उर्वरक का प्रयोग भी कर सकते है ,या दोनों भी कर सकते है। रासायनिक खाद के लिए 100 KG नाइट्रोजन, 80 KG पोटाश, 40 KG फास्फोरस और 25 KG जिंक की मात्रा का छिड़काव आखरी जुताई के समय की जानी चाहिए। इसके बाद जब बीज निकलने लगे तब एन. पी. के. की मात्रा का तीन बार छिड़काव करे।
हल्दी रोपाई का सही समय और तरीका
हल्दी के बीज रोपाई दो तरीको से की जाती है। एक तरीका बीजो को खेत के मेड पर 20 कम की दुरी पर लगाए ,एक हेक्टेयर में लगभग 7 से 8 किवंटल बीज लगते है। बीज रोपाई के दूसरे तरीके के लिए सबसे पहले बीज को समतल भूमि में 15 से 20 cm की दुरी पर लगाए और हल की सहायता से उनको मिटटी से ढक दे। बीजोपचार के लिए रोपाई से पहले मैंकोजेब और कार्बेन्डाजिम का घोल बनाकर उसमे 30 मिनट तक रखकर उपचारित कर ले और उपचारित बीजो को अच्छे से सुखकार रोपाई करे।
हल्दी के बीज रोपाई के लिए मई का महीना लाभदायक माना जाता है। बीजो को जून के प्रथम सप्ताह में भी लगा सकते है ,इस महीने में बारिश होती है ,जो बीजो का विकास करने में तापमान मिल सकेगा।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार को फसल से निकलना जरूरी होता है क्योकि खरपतवार पोधो में अनेक रोग
उतपन्न कर देता है जिससे फसल की पैदावार में कमी आती है। खरपतवार को प्राकृतिक तरीके से नष्ट करे ,यानि निराई -गुड़ाई करके नष्ट करना चाहिए। हल्दी के खेती में 3 से 4 निराई -गुड़ाई करनी चाहिए। फसलों की देखरेख से ही पैदावार अधिक हो सकती है इसलिए खरपतवार पर नियंत्रण जरूरी होता है।
हल्दी में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
झुलस रोग और पत्तों पर धब्बे
- इस रोग से पत्तो पर बड़े -बड़े धब्बे हो जाते है जिससे पौधे को काफी नुकसान होता है और पोधो की पत्तिया सुखकर गिर जाती है
- इस रोग के रोकथाम के लिए मैनकोज़ेब 30 ग्राम या कार्बेनडैज़िम 30 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में डालकर 15-20 दिनों के फासले पर स्प्रे करनी चाहिए।
जड़ गलन
- इसके रोकथाम के लिए बीज के 30 ,60 दिनों के बाद मैनकोज़ेब 3 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करनी चाहिए।
पत्तों पर बड़े धब्बे
- इससे पत्तो पर भूरे रंग के धब्बे हो जाते है जो पत्तो की विकास के लिए बाधक बनते है
- इसके रोकथाम के लिए मैनकोज़ेब 20 ग्राम या कॉपर आक्सीक्लोराइड 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करनी चाहिए।
मुरझाना रोग
- इससे पत्ते पूरी तरह मुरझा जाते है और सूख भी जाते है। जिससे पौधा विकास की उम्र में ही सूखकर गिर जाता है
- इसके रोकथाम के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी के हिसाब से मिलकर स्प्रै करनी चाहिए।
हल्दी में होने वाली कीट और रोकथाम के उपाय
रस चूसने वाले कीड़े
- यह कीट पत्तियों का रस चूसकर उनको कमजोर बना देते है
- इसके रोकथाम के लिए नीम से बने कीटनाशक अझाडीराक्टीन 0.3 ई सी 2 मि.ली. को पानी में मिलकर स्प्रै करनी चाहिए।
शाख का छेदक
- यह कीट पौधे के तने में लगता है इसका रंग सफेद होता है।
- इसके रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 250 मि.ली. या क्विनलफॉस 250 मि.ली. प्रति 150 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रै करनी चाहिए।
राईज़ोम मक्खी
- यह भी एक प्रकार का कीट होता है। इसकी टाँगे बड़ी -बड़ी होती है यह भी पत्तियों को नुकसान पहुँचता है।
- इसके रोकथाम के लिए एसीफेट 75 एस पी 600 ग्राम. 100 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रै करनी चाहिए ,15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रै करे।
हल्दी की कटाई
हल्दी की कटाई तब करे जब पत्ते सूख जाये और पीले हो जाये ,तब कटाई करे। इसमें गाठो को बाहर निकले और साफ़ करे। उसके बाद 2 से 3 दिनों के लिए छाया में सूखने के लिए छोड़ दे। इससे छिलका सख्त हो जाता है ,और आसानी से भी उबला जा सकता है।
गाठो को बड़े बर्तनो का प्रयोग करे। अच्छी किस्म के लिए गाठो को तब तक उबाले जब तक उसमे से महक आने ,झाग बनने ,भाफ निकलने लग जाये। फिर इसको 15 से 20 दिनों तक अच्छे से सुखाओ। उसके बाद उसको पीसकर बेच दे।
हल्दी की खेती से पैदावार
किस्मो के आधार पर एक हेक्टैयर के क्षेत्र में 250 से 600 किवंटल का उत्पादन होता है। जिसको सूखने के बाद 20 से 25 % रह जाता है। बाजार में हल्दी का भाव 10 से 12 हजार रूपये प्रति किवंटल होता है। इससे एक हेक्टैयर के खेत में किसानो को अच्छी कमाई हो सकती है