बांग्लादेश में बढ़ता तनाव: इस्लामिक कट्टरपंथियों ने दी मोहम्मद यूनुस को धमकी, नोबेल पुरस्कार वापस लेने की मांग

ढाका, 3 मई 2025: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को इस्लामिक कट्टरपंथी पार्टियों ने धमकी दी है। कट्टरपंथी समूहों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने महिला सुधार आयोग की सिफारिशों को लागू करने की कोशिश की, तो उन्हें “भागने के लिए 5 मिनट भी नहीं मिलेंगे।” इसके साथ ही, मोहम्मद यूनुस से उनका नोबेल पुरस्कार वापस लेने की मांग भी उठने लगी है।
महिला सुधार आयोग की सिफारिशें बनीं विवाद का कारण
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पिछले साल नवंबर में महिला मामलों के सुधार आयोग का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता मानवाधिकार कार्यकर्ता शिरीन परवीन हक ने की थी। आयोग ने 19 अप्रैल को अपनी 433 सिफारिशें सरकार को सौंपीं, जिनमें लैंगिक नीतियों में बड़े बदलावों का प्रस्ताव है। हालांकि, इन सिफारिशों को इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों ने “इस्लाम-विरोधी” करार दिया है।
हेफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश जैसे संगठनों ने दावा किया है कि इन सिफारिशों को लागू करने से “वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता” मिलेगी और यह महिलाओं के लिए “अभिशप्त जीवन” को बढ़ावा देगा। संगठन ने 3 मई तक आयोग को भंग करने की मांग की थी, जिसके बाद धमकियों का सिलसिला तेज हो गया।
5 मिनट भी नहीं मिलेंगे भागने के लिए
कट्टरपंथी पार्टियों ने मोहम्मद यूनुस की सरकार को सख्त चेतावनी दी है। एक इस्लामिक समूह ने कहा, “जिस तरह शेख हसीना को देश छोड़ने के लिए 45 मिनट मिले थे, वैसे आपको 5 मिनट भी नहीं मिलेंगे।” यह बयान बांग्लादेश में कट्टरपंथी समूहों की बढ़ती ताकत और आत्मविश्वास को दर्शाता है।पिछले साल अगस्त में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद से बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों का प्रभाव बढ़ा है। हिजबुत तहरीर और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन लगातार अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।
नोबेल पुरस्कार वापस लेने की मांग
मोहम्मद यूनुस, जिन्हें 2006 में माइक्रोलेंडिंग के क्षेत्र में योगदान के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, अब विवादों के घेरे में हैं। कट्टरपंथी समूहों ने उनकी नीतियों को “पश्चिमी एजेंडे” का हिस्सा बताते हुए उनके नोबेल पुरस्कार को वापस लेने की मांग की है।
यूनुस, जिन्हें “गरीबों का बैंकर” कहा जाता है, ने ग्रामीण बैंक की स्थापना की थी और लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद की थी। हालांकि, उनकी अंतरिम सरकार पर लगातार अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्ष आबादी की सुरक्षा में नाकाम रहने का आरोप लग रहा है।
अंतरिम सरकार पर बढ़ता दबाव
मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार को सेना का समर्थन प्राप्त है, लेकिन कट्टरपंथी समूहों के बढ़ते प्रभाव ने उनकी स्थिति को कमजोर किया है। शेख हसीना के इस्तीफे और देश छोड़ने के बाद पिछले साल अगस्त में यूनुस को अंतरिम सरकार का नेतृत्व सौंपा गया था। उनकी सरकार को देश में शांति और स्थिरता बहाल करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन आलोचकों का कहना है कि वह इस मोर्चे पर विफल रहे हैं।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि यूनुस की सरकार को कट्टरपंथी समूहों के साथ सत्ता साझा करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे देश में धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर
बांग्लादेश में बढ़ते तनाव पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी नजर है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर स्थिति को नियंत्रित नहीं किया गया, तो बांग्लादेश सीरिया और इराक की तरह इस्लामिक कट्टरपंथियों का नया ठिकाना बन सकता है।इस बीच, यूनुस की सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। यह देखना बाकी है कि अंतरिम सरकार इस संकट से कैसे निपटती है और क्या वह कट्टरपंथी समूहों के दबाव में अपनी नीतियों में बदलाव करेगी।