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भिंडी की खेत की सम्पूर्ण जानकारी : उन्नत किस्मे ,तापमान ,जलवायु और मिट्टी

Written By Saloni Yadav
Lady Finger Farming
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Lady Finger Farming : भिंडी एक सब्जी है ,जिसका सब्जियो में एक प्रमुख स्थान है। जिसे कई तरह की सब्जियो के साथ बनाया जाता है ,भिंडी को अंग्रेजी में लेडी फिंगर (Lady Finger ) भी कहा जाता है। और ऐसे ओकरा भी कहा जाता है। भिंडी में आयोडीन की मात्रा अधिक पाई जाती है। भिंडी कब्ज रोगी के लिए अधिक गुणकारी होती है। भिंडी की फसल पूरे वर्ष उगाई जाती है भिंडी का मूल स्थान इथिओपिया है। भिंडी मुख्य रूप से उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके सूख छिलके का प्रयोग कागज उद्योग और फाइबर निकालने के लिए किया जाता है भिंडी की खेती विशेष रूप से हरे फल के रूप में की जाती है।

भिंडी में मुख्य रूप से विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम और अन्य खनिजों तत्व पाए जाते है। भिंडी की बाजार में अच्छे भाव से मांग की जा रही है ,किसान भिंडी की खेती उन्नत तरीके से करके अच्छा मुनाफा कमा रहे है। किसान बाजार के भाव से समय पर भिंडी की अच्छे तरीके से खेती कर सकता है। भिंडी में विटामिन A ,B ,और C प्रचुर मात्रा में मिलता है। जो मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है। भिंडी के सेवन से पेट से जुडी बीमारियों से छुटकारा मिलता है।

भारत में भिंडी की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा में की जाती है। अगर आप भी भिंडी की खेती करने का मन बना रहे है तो आज हम आप को भिंडी की खेती कैसे करे ?,भिंडी की उन्नत किस्मे ,उपयुक्त जलवायु ,तापमान ,मिट्टी ,और पैदावार के सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व् तापमान

 

भिंडी की खेती ग्राम जलवायु में की जाती है ,भिंडी के बीज रोपाई कम तापमान में की जाती है लेकिन इसका फल पैदावार हल्की गर्म जलवायु में में विकास करता है। भारत में भिंडी की फसल बारिश के मौसम में की जाती है। इसकी फसल की लिए न तो अधिक गर्मी अच्छी होती है और न ही अधिक सर्दी अच्छी होती है ,सर्दियों में गिरने वाला पाला भिंडी की खेती को नुकसान पहुँचता है।

भिंडी की खेती क लिए कम से कम तापमान की बात करे तो 15 डिग्री C और और अधिक तापमान की बात करे तो 20 से 25 डिग्री C तापमान उचित माना जाता है। भिंडी की अगेती किस्म की बुवाई अधिक तापमान में नहीं कर नई चाहिए। अंकुरित पौधे को 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। और पौधे के विकास के लिए 27 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।

भिंडी के पोधो की सिचाई

 

भिंडी के बीजो की आद्रता युक्त मिट्टी में रोपाई की जाती है। इसलिए बीज की रोपाई के तुरंत बाद सिचाई की जनि चाहिए उसके बाद पोधो ककी सिचाई 10 से 15 दिनों के अंतराल पर की जाती है। अधिक गर्मी के मौसम में सप्ताह में 2 सिचाई अवश्य करनी होती है। और वर्षा के मौसम में आवश्यकता होने पर ही सिचाई करनी चाहिए।।

भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

 

भिंडी की खेती के लिए जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है इसके लिए भूमि का PH मान 8 के मध्य में होना चाहिए। वैसे इसे काफी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। जिस मिट्टी में जैविक तत्व भरपूर मात्रा में पाया जाता है। नमक वाली या घटिया निकास वाली मिट्टी और खारी मिट्टी में इसकी खेती लाभदायक नहीं होती है।

भिंडी की उन्नत किस्मे

भिंडी की अनेक किस्मे पाई जाती है जो जलवायु ,तापमान और मिट्टी के हिसाब से पैदावार देते है भिंडी की कुछ किस्मे इस प्रकार है –

भिंडी की पंजाब-7 किस्म ( Punjab -7 variety of lady finger )

यह बिंदी की उन्नंत किस्म होती है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा तैयार किया गया था। भिंडी की यह किस्म 45 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार होती है। इसके पौधे में 15 से 20 दिनों के बाद फूल निकलते है। यह किस्म एक हेक्टैयर के हिसाब से 10 से 15 तन की पैदावार दे सकता है।

परभनी क्रांति

इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 दिनों के बाद तुड़ाई की जाती है। यह किस्म पीतरोग रहित होती है। इस किस्म के में लगने वाली फलिया हरे गहरे और 15 से 20 सैंटीमीटर लम्बे होते है। इसके पौधे में 10 से 12 तन की उपज होती है।

अर्का अनामिका

भिंडी की यह किस्म की फसल अधिक गहरी और लम्बी होती है। इसके फूल की पखुड़िया जामुनी रंग की होती है ,यह प्रति हेक्टैयर की हिसाब से 20 टन की पैदावार देती है। यह पौधे दोनों ऋतुओ में उगाये जाते है

वी. आर. ओ. – 6 (VRO -6 )

यह भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा तैयार की गयी किस्म है ,इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है। यह किस्म पौध रोपाई के 45 दिनों के बाद फलियों को तोड़ने के लिए तैयार हो जाते है। इस किस्म के पौधे बारिश के मौसम में अधिक वृद्धि करते है।

हिसार उन्नत

इस किस्म का निर्माण चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा किया गया था। यह किस्म 15 टन प्रति हेक्टैयर के हिसाब से पैदावार देती है। यह बीज रोपाई के 45 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार होती है। इस किस्म को दोनों ऋतुओ में उगाया जा सकता है। यह किस्म पंजाब और हरियाणा में सबसे अधिक उगाई जाती है।

पूसा ए – 4 किस्म की भिंडी

भिंडी के यह किस्म उन्नत किस्म है ,जिसको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा तैयार किया गया था ,इस किस्म के बीज अंकुरित होने के 20 दिनों के बाद यह पैदावार देती है। यह प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 10 से 15 टन की पैदावार देती है।

आजाद 3

यह किस्म आजाद कृष्णा के नाम से भी जानी जाती है। इस किस्म की फलिया 15 कम लम्बे होते है। इसके फसल आने पर लाल रंग का होता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के ही साब से 10 से 15 टन की पैदावार देता है।

साक्षी एफ 1

भिंडी की यह किस्म भी उन्नत होती है। जिसको फसल की अधिक उपज के लिए तैयार किया जाता है। इसकी उपज प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 20 टन के आस -पास होती है। यह गहरे हरे रंग की होती है। इस किस्म की पौध रोपाई के 40 से 50 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार होती है।

भिंडीकी अन्य किस्म भी पाई जाती है जो इस प्रकार है -वर्षा उपहार किस्म के पौधें,पंजाब 8 ,पंजाब 7 ,पूसा महाकाली ,आदि किस्मे होती है।

भिंडी की खेती के लिए खेत को तैयार करना

 

भिंडी के खेती को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेती की जुताई की जाती है उसके बाद पुराणी फसल के अवशेषों को नष्ट किया जाता है इसके बाद गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला देते है, फिर खेत में पानी से पलेव कर दिया जाता है। फिर थोड़ी देर में खेत की मिट्टी थोड़ी सुख जाये तब फिर से जुताई करके खेत में पाटा लगवाकर समतल कर दिया जाता है।

उसके बाद खेत में गड्डे खोदे फिर उसमे गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे में मिलाए फिर उसमे बीज को बो दिया जाता है ,बीज रोपाई के तुरंत बाद सिचाई करनी चाहिए।

भिंडी के पौध रोपाई का उचित समय

 

भिंडी के बीज को सीधे खेत में बोया जाता है ,बीज की रोपाई मौसम के आधा पर की जाती है इसके बीजो को बोन के लिए उचित समय फरवरी से मार्च को माना जाता है। जुलाई के महीने में भी बारिश के समय इसकी बीज रोपाई की जाती है। इसकी बीज रोपाई मशीनों और हाथो से मोड़ो पर की जाती है।

इसकी फसल की रोपाई के लिए बीज से बीज की दूरी एक फ़ीट होनी चाहिए और पौधे से पौधे की दुरी 15 cm होनी चाहिए। इस फसल की बाज रोपाई बारिश के मौसम में भी की जाती है।

भिंडी के पौधे में उर्वरक की मात्रा

 

भिंडी की खेती के लिए मिट्टी में उर्वरक की मात्रा का होना जरूरी होती है। उर्वरक की मात्रा में आप गोबर की खाद का प्रयोग कर प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालनी चाहिए। फिर उसको मिट्टी में अच्छे से मिला दे।

इसके अलावा आप रासायनिक खाद का प्रयोग भी का सकते है इसके लिए N.P.K की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए। इसके बाद 20 किलो यूरिया की खाद को सिचाई के समय देनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

 

इस फसल में आप खरपतवार को दो तरीके से नियंत्रित कर सकते है इसके लिए बीज रोपाई के पहले फ्लूक्लोरेलिन की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा आप प्राकृतिक तरीके का इस्तेमाल कर सकते है। जैसे निराई -गुड़ाई करनी चाहिए। इसके बीज रोपाई के 20 से 25 दिनों के बाद गुड़ाई करनी चाहिए।

इसके अलावा रासायनिक तरीके का प्रयोग भी कर सकते है। पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ या ऐक्लोर 1.6 लीटर प्रति एकड़ डालनी चाहिए।

भिंडी की खेत में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय

 

लाल मकड़ी रोग

यह रोग पौधे पर तेजी से बढ़ता है यह झुण्ड में पौधे पर आक्रमण करता है। और पौधे की पत्तियों का रस चूस लेते है और पौधे को कमजोर कर देता है। इनकी पत्तिया पीली हो जाती है। ज्यादा प्रकोप होने पर पूरा पौधा ही पीला पड़ जाता है।
इसके रोकथाम के लिए डाइकोफॉल या गंधक की उचित मात्रा का छिड़काव कर रोग को कम किया जा सकता है

फल छेदक रोग

भिंडी की खेती नमी वाली भूमि में की जाती है इसलिए यह रोग नमी के मौसम में अधिक होता है इसके प्रभाव से पौधे पर अधिक हानि होती है। यह रोग पौधे के तने पर दिखाई देता है ,और यह पौधे में लगी भिंडी को अंदर से खाकर नष्ट कर देता है। इसके पौधे पर लगी भिंडी मुड़कर खराब हो जाती है
इसके रोकथाम के लिए प्रोफेनोफॉस या क्विनॉलफॉस का उचित मात्रा में छिड़काव पौधे पर करना चाहिए।

पत्तों पर सफेद धब्बे

इस रोग से पत्तियों पर सफेद धब्बे हो जाते है ,यह रोग अधिक होने पर फल विकास के समय ही नष्ट हो जाते है। इस रोग से फल की पैदावार भी कम हो जाती है और फल आकार में छोटा होता है।
इसके रोकथाम के लिए ट्राइडमॉर्फ 5 मि.ली. या पैनकोनाज़ोल 10 मि.ली. प्रति 10 लीटर की स्प्रे करनी चाहिए।

जड़ गलन

इस रोग से जड़े गहरे भूरे रंग की हो जाती है ,और रोग के अधिक होने पर पौधा मर जाता है। इसके लिए खेत में फसल चक्र अपनाना चाहिए।
इसके रोकथाम के लिए मिट्टी में कार्बेनडाज़िम घोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रै करनी चाहिए।

चितकबरा रोग

इस रोग से पत्तियों पर पीली धारिया हो जाती है इससे पौधे का विकास बंद हो जाता है और साथ ही फल भी पीले दिखाई देते है। इनके फल आकार में छोटे होते है और 80 % उपज को कम कर देते है
इसके रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 300 मि.ली. प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करनी चाहिए।

फसल की कटाई

फसल की तुड़ाई बीज बोन के 60 से 70 दिनों के बाद की जाती है इसमें भिंडी की तुड़ाई कच्चे फलो की ही करनी चाहिए। तुड़ाई देरी से करने पर भिंडी में रेसा भर जाता है और भिंडी का स्वाद भी चला जाता है।

कटाई के बाद भिंडी को स्टोर करके नहीं रखा जाता है भिंडी को ज्यादा देर स्टोर नमी में रखा जाता है। पास बाजार में भिंडी को तोड़कर जुट की बोरियो में भरकर बेच दिया जाता है। जिससे भिंडी खराब नहीं हो सके।

भिंडी की खेती कर किसानो को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है। अच्छी पैदावार कर किसान अधिक पैसे कमा सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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About Author

Saloni Yadav

मीडिया के क्षेत्र में करीब 3 साल का अनुभव प्राप्त है। सरल हिस्ट्री वेबसाइट से करियर की शुरुआत की, जहां 2 साल कंटेंट राइटिंग का काम किया। अब 1 साल से एन एफ एल स्पाइस वेबसाइट में अपनी सेवा दे रही हूँ। शुरू से ही मेरी रूचि खेती से जुड़े आर्टिकल में रही है इसलिए यहां खेती से जुड़े आर्टिकल लिखती हूँ। कोशिश रहती है की हमेशा सही जानकारी आप तक पहुंचाऊं ताकि आपके काम आ सके।

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