Black Pepper Farming : काली मिर्च की खेती मसाले के रूप में की जाती है। यह विश्व में लोकप्रिय मसाले की खेती है। काली मिर्च का पौधा बेल या लताओं के रूप में बढ़ता है। काली मिर्च की रोपाई गर्मी के समय मार्च से अप्रैल और बरसात के समय जून से जुलाई में करनी चाहिए। काली मिर्च की खेती व्यापारिक तरीके से की जाये तो इससे किसानो को अधिक मुनाफा होता है। काली मिर्च दुनिया का सबसे महंगा और लोकप्रिय मसाला है ,काली मिर्च को पेपर कॉर्न नाम से भी जाना जाता है ,काली मिर्च का पौधे लता और बेल के रूप में बढ़ता है इसलिए इसके बीज को उगना काफी कठिन होता है। काली मिर्च का प्रयोग रसोई में किये जाने के साथ-साथ आयुर्वेद चिकित्सा में भी किया जाता है ,काली मिर्च को का प्रयोग मसाला बनाकर ओषधि को बनाने में किया जाता है। भारत में इसका उत्पादन 55 से 60 हजार टन होता है। विश्व में काली मिर्च का प्रमुख उत्पादक, उपभोक्ता एवं निर्यातक भारत देश में किया जाता है।
कली मिर्च को मसालों की फसल का राजा कहा जाता है।घरेलू मांग को पूरा करने के लिए कुछ काली मिर्च को बाजार में बेचने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भारत में उत्पादित कुल काली मिर्च में से 98 प्रतिशत का उत्पादन अकेले केरल राज्य में किया जाता है। इसके बाद दूसरा कर्नाटक और तमिलनाडु का स्थान है.दुर्लभ काली मिर्च की खेती महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में मुख्य रूप से की जाती ही। इसकी खेत करके किसान अच्छी कमाई का सकते है। इस मिर्च का प्रयोग कड़ी, आचार, चटनी और अन्य सब्जियों में मुख्य तौर से किया जाता है। मिर्च में कड़वापन कैपसेसिन नाम के तत्व से होता है।
काली मिर्च का वैज्ञानिक नाम पाइपर नाइग्रम है। काली मिर्च उगने वाले प्रमुख देश इस प्रकार है -भारत, चीन, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कोरिया, तुरकी, श्रीलंका आदि हैं। अफ्रीका में नाइज़ीरिया, घाना, टुनीशिया और मिस्र आदि है। यूरोप में यूगोसलाविया, स्पेन, रोमानिया, बुलगारिया, इटली, हंगरी आदि। दक्षिण अमेरिका में अर्जेनटीना, पेरू, ब्राज़ील आदि है। इसके बाद भी चीन और पकिस्तान में भी इसकी खेती की जाती है।
भारत में काली मिर्च के प्रमुख राज्य है –आंध्र प्रदेश, महांराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, तामिलनाडू, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान आदि राज्य है। अगर आप भी काली मिर्च की खेती करना चाहते है तो हम आपको काली मिर्च की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
भारत में काली मिर्च के स्थानीय नाम
- Black Pepper (अंग्रेजी)
- काली मिर्च (हिंदी)
- मिरियालु (तेलुगु)
- करुप्पु (तमिल )
- कला मीर (मराठी )
- करुत्त कुरुमुलगु (मलयालम)
- गोलमोरिच ( बंगाली )
- काला मारीच (उड़िया)
- कारी मेनसु (कन्नड़ )
- काली मिर्च (पंजाब )
काली मिर्च के लिए उपयुक्त जलवायु
उष्णकटिबंधीय गर्म और आर्द्र जलवायु काली मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसकी खेती के लिए 200 cm वर्षा की आवश्यकता होती है। काली मिर्च की खेती के लिए जलवायु की आवश्यकता होती है। आर्द्र जलवायु में काली मिर्च की खेती अच्छी पैदावार देती है ,इसकी खेती छायादार जगह पर की जानी चाहिए।
जलवायु के साथ इसकी खेती के लिए तापमान भी इसके अनुकूल होना चाहिए। इसकी खेती के लिए 25 से 28 डिग्री तापमान आवश्यक होता है। काली मिर्च की यह खेती ज्यादा से ज्यादा 40 डिग्री सेल्शियस तापमान की आवश्यकता होती है। 10 डिग्री तापमान इसकी फसल को नष्ट कर देता है इस लिए इसकी खेती को अधिक ज्यादा और अधिक कम तापमान में नहीं करनी चाहिए।
काली मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
काली मिर्च के लिए लाल और लेटेराइट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी साथ ही इसकी मिट्टी का PH मान 5.0-6.5 के बीच होना चाहिए। और इसके अलावा इसकी मिट्टी कार्बनिक पदार्थो से भरपूर व् उच्च जल निका वाली होनी चाहिए। इसके अलावा इसकी खेती चिकनी और रेतीली मिट्टी में भी की जा सकती है। उच्च जल निकास वाली भूमि में इसकी खेती अच्छी पैदावार देती है।
काली मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
काली मिर्च की खेती में सिचाई की अधिक आवश्यकता होती है। समय -समय पर इसकी सिचाई करनी आवश्यक मानी जाती है ,गर्मियों के मौसम काली मिर्च की 2 दिनों के अंतराल पर सिचाई की जानी चाहिए। और सर्दियों के मौसम में 1 सप्ताह में एक सिचाई आवश्यक करनी चाहिए। काली मिर्च की फसल में नमी का होना आवश्यक होता है। इसके अलावा बारिश के मौसम में आवश्यक होने पर ही सिचाई करनी चाहिए।
काली मिर्च की खेती में खरपतवार नियंत्रण
कोई भी फसल हो उसके साथ खरपतवार होते है जिसको नियंत्रित करना चाहिए,क्योकि यह खेती की पैदावार को कम कर देती है। इसलिए इसको नियंत्रित करना आवश्यक होता है। खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक तरीके का प्रयोग करना चाहिए ,इसके लिए खेत की निराई -गुड़ाई की जानी चाहिए। इसकी पहली गुड़ाई मई और जून में और दूसरी गुड़ाई अक्टूबर और नवंबर में की जानी चाहिए ,इसके अलावा भी आवश्यकता अनुसार खेत की निराई -गुड़ाई कर सकते है।
काली मिर्च में उर्वरक और खाद की मात्रा
काली मिर्च की कही में गोबर की खाद का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके अलावा रसायनिक खाद भी डाले इसके लिए 5 किलो यूरिया ,सिंगल सुपर फासफेट 75 किलो ,म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलो को प्रति हेक्टैयर के हिसाब से डालनी चाहिए। और फसल की अच्छे पैदावार के लिए टहनिया निकलने के 40 दिनों बाद पोधो पर अमोनियम फासफेट की 75 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलकर स्प्रै करनी चाहिए।
काली मिर्च की उन्नत किस्मे
- पन्नियूर 1:
- पन्नियुर 2:
- पन्नियुर 3
- पन्नियुर 4
- पन्नियुर 5
- पूर्णमनी
- श्रीकारा
इसके अलावा इसकी अन्य किस्मे भी होती है ,जो इस प्रकार है – अर्का मेघना,कशी अर्ली ,कशी सुर्ख ,पूसा सदाबहार ,आदि किस्मे होती है।
काली मिर्च की खेती के लिए खेत को तैयार करना और बुआई का समय
इसकी खेती के लिए खेत के की 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए । उसके बाद खेत में गोबर की खाद को डालनी चाहिए। फिर खेत में गहरी जुताई करनी चाहिए। उसके बाद खेत में पानी से पलेव करना चाहिए। फिर खेत की गहरी जुताई कर और खेत को अच्छे से तैयार करना ले।
बीजो को नर्सरी में तैयार करने के लिए अक्टूबर से नवंबर तक बीजो की रोपाई की जानी चाहिए। इनके बीजो को छाव में लगाना चाहिए। पनीरी पौधे तो फरवरी और मार्च में तैयार हो जाते है। और तब इसकी कटाई भी का सकते है।
काली मिर्च के बीज लगाने की विधि
- खेत की मिट्टी को अच्छे से तैयार करे।
- सबसे पहले खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
- मिट्टी में 2 से 3 मिर्च के बीजो को डेढ़ इंच की गहराई पर बोनी चाहिए।
- मिट्टी में नमी बनाये रखनी चाहिए।
- काली मिर्च के बीज से बीज की दुरी 3 इंच होनी चाहिए।
- उसके बाद खेत में बीजो को लगा देना चाहिए।
काली मिर्च के पोधो में लगने वाले रोग व् रोकथाम के उपाय
फल छेदक
यह रोग फल के पत्तो को खाती है ,जिससे पैदावार को काफी नुकसान हो जाता है। और पौधा कमजोर होकर सूख जाता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पोधो पर क्लोरपाइरीफॉस + साइपरमैथरिन 30 मि.ली.+टीपोल 0.5 मि.ली. को 12 लीटर पानी में डालकर पावर स्प्रेयर से स्प्रे करनी चाहिए।
मकौड़ा जुंएं
यह रोग सभी फसल पर होता है जैसे -आलू, मिर्चें, दालें, नर्मा, तंबाकू, कद्दू, अरिंड, जूट, कॉफी, निंबू, संतरे, उड़द, काली मिर्च, टमाटर, शकरकंदी, आम, पपीता, बैंगन, अमरूद आदि को नुकसान पहुँचता है। यह अधिक मात्रा में होने पर पत्तो को झड़ना ,सूखना और टहनियों का टूटना आदि कार्य शुरू हो जाते है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए खेत में पोधो पर स्पाइरोमैसीफेन 22.9 एस सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ प्रति 180 लीटर पानी की स्प्रे करनी चाहिए। यह खतरनाक रोग होता है ,और यह फसल को 80 % नुकसान पहुँचता है।
चेपा
यह रोग भी कई फसलों में देखने को मिल जाता है ,यह सर्दियों में फसल के पकने पर पोधो के पत्तो पर शहद जैसा पदार्थ छोड़ता है। यह काले रंग की फगस पोधो की पत्तियों में बनी फलियों पर छोड़ता है। यह फसल की पैदावार को 40 % नुकसान पहुँचता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए खेत में पौधे पर एसीफेट 75 एस पी 5 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करनी चाहिए।
पत्तों पर सफेद धब्बे
यह रग पत्तो के नीचे सफेद रंग के धब्बे कर देता है। और पौधे को खाकर नष्ट कर देता है। जिससे पौधा कम जोर हो जाता है। इसका अधिक हमला पौधे को अधिक नुकसान पहुँचता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए खेत में हैक्साकोनाज़ोल को स्टिकर 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर स्प्रे करनी चाहिए।
एंथ्राक्नोस
कोलैटोट्रीचम पीपेराटम और सी कैपसिसी नाम फगस की कारण यह बीमारी होती है। यह रोग तापमान और अधीक नमी के कारण बढ़ता है। इसके प्रभावित भागो पर धब्बे होते नजर आते है ,जिससे पौधा कम विकास करता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल या हैक्साकोनाज़ोल 1 मि.ली प्रति लीटर पानी की स्प्रे करनी चाहिए।
चितकबरा रोग
इस रोग से पौधे पर हल्के हरे रंग के धब्बे पड़ जाते है ,जिससे यह पौधा वकास नहीं कर पाता है ,इसके कारण पत्तो ,फलो पर गहरे धब्बे बन जाते है। बुआई के समय स्वस्थ पोधो का प्रयोग करना चाहिए ,
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर एसीफेट 75 एस पी 1 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करनी चाहिए।
फसल की कटाई
मिर्च को पूरी तरह पकने पर ही तोड़नी चाहिए। मिर्च को पकने पर आने वाला रंग उसकी किस्म पर निर्भर करता है ,पेकिंग के लिए मिर्च को पकने और लाल रंग होने पर तोड़नी चाहिए ,सूखने के बाद उपयोग में ली गयी मिर्च को अच्छे से सूखने पर ही तोड़नी चाहिए। उसके बाद पेकिंग करके बाजार में बेचने के लिए भेज देनी चाहिए।
फसल की उपज
इसकी खेती करके किसानो को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है। यह बाजार में अच्छे भाव से बेचीं जाती है और किसानो को अच्छी पैदावार देकर अच्छी कमाई करती है।