मटर की खेती की सम्पूर्ण जानकारी : उन्नत किस्मे ,जलवायु और तापमान
मटर की खेती भारत में 7.9 लाख हेक्टेयर भूमि पर की जाती है। इसका वार्षिक उत्पादन 8.3 लाख टन होता है उतरप्रदेश में मुख्य रूप से मटर की खेती की जाती है। उतरप्रदेश में 4.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मटर का उत्पादन किया जाता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में २.7 लाख हे., उड़ीसा में 0.48 लाख., बिहार में 0.28 लाख के क्षेत्र में मटर की खेती की जाती है। अगर आप भी मटर की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको मटर की खेती कैसे करे ?,जलवायु ,तापमान,मिट्टी और उपज की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
Pea Farming : मटर की खेती सब्जी फसल के लिए की जाती है। इसे व्यापारिक दलहनी फसल भी कहा जाता है। यह लैग्यूमिनसियाइ फैमिली से संबंधित है। यह फसल कम समय में अधिक पैदावार देती है ,मटर में राइजोबियम जीवाणु पाया जाता है जो भूमि को उपजाऊ बनाने में मदद करता है मटर के दानो को सुखकर अधिक समय तक रख सकते है ,मटर में अनेक प्रकार के पोषक तत्व ,विटामिन, आयरन और फास्फोरस की मात्रा पायी जाती है मटर का सेवन मानव शरीर के लिए लाभदायक होता है। हरे मटर सब्जी बनाने में और सूखे मटर दाल बनाने में उपयोग में लिए जाते है इसका उपयोग पशुओ के चारे के लिए किया जाता है इसमें प्रोटीन और अमीनो एसिड का अच्छा स्त्रोत होता है।
फसल चक्र के अनुसार अगर खेती की जाये तो यह भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होती है यदि नवंबर और अक्टूबर में अगेती किस्मो की खेती के जाये तो अधिक पैदावार के साथ अधिक मुनाफा भी कमाया जा सकता है। मटर की मांग बाजार में बनी रहती है। मटर को हम कच्चे भी खा सकते है। मटर का पौधा एक द्विबीजपत्री पौधा होता है ,इसकी लम्बाई लगभग 1 मीटर की होती है
मटर की खेती भारत में 7.9 लाख हेक्टेयर भूमि पर की जाती है। इसका वार्षिक उत्पादन 8.3 लाख टन होता है उतरप्रदेश में मुख्य रूप से मटर की खेती की जाती है। उतरप्रदेश में 4.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मटर का उत्पादन किया जाता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में २.7 लाख हे., उड़ीसा में 0.48 लाख., बिहार में 0.28 लाख के क्षेत्र में मटर की खेती की जाती है। अगर आप भी मटर की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको मटर की खेती कैसे करे ?,जलवायु ,तापमान,मिट्टी और उपज की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
मटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
मटर की खेती के लिए समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है। भारत में इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है ताकि ठंडी जलवायु में इसके पौधे अच्छे से विकास कर सके। मटर की खेती में सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके लिए हानिकारक होता है।
मटर के पौधे को सामान्य तापमान की जरूरत होती है।अधिक गर्मी में भी इसके पौधे अच्छे से वृद्धि नहीं कर पाते है ,सामान्य तापमान में मटर की खेती अच्छे से विकास करती है। मटर का पौधा अधिकतम 25 डिग्री और न्यूनतम 5 डिग्री तापमान को ही सहन कर पाता है। मटर के पौधे में फलियों को बनने में कम तापमान की आवश्यकता होती है।
मटर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
मटर की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए भूमि का PH मान 6 से 7.5 मध्य होना चाहिए। इसके अलावा क्षारीय गन वाली मिट्टी में इसकी खेती उपयुक्त नहीं मानी जाती है। मटर की खेती में गहरी दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है ,जिससे खेती के पैदावार अधिक होती है।
मटर के खेती के लिए पोधो की सिचाई
मटर के लिए भूमि नम होनी चाहिए ,इसके बाद बीज रोपाई के तुरंत बाद पोधो की सिकाई आवश्यक होती है। मटर के पौधे अधिक नमी वाली भूमि में अधिक विकसित होते है। फिर मटर की दूसरी सिचाई 15 से 20 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।
सर्दियों में इसकी खेती में 2 से 3 सिचाई और गर्मियों के मौसम में 5 से 6 सिचाई की जरूरत होती है। एक बात का विशेष ध्यान रखे कि मटर कि फसल में हल्की सिचाई करे और पानी को खेत में नहीं रहने दे।
मटर कि उन्नत किस्मे
लिंकन
इस किस्म के पौधे कम लम्बे होते है यह किस्म बीज रोपाई के 80 दिनों बाद उत्पादन देना शुरू करता है। इस किस्म में मटर पर लगने वाली फलिया हरी और सिरे की ऊपरी सतह थोड़ी मुड़ी हुई होती है ,इसकी एक फली से 9 से 10 दाने होते है। इस किस्म के मटर के दाने स्वाद में मीठे होते है ,इस किस्म को पहाड़ी क्षेत्रों में उगने से अच्छी पैदावार होती है।
बोनविले
इस किस्म के निकलने वाले पौधे सामान्य आकर के होते है इसकी फलियों का रंग हल्का हरा और उसमे निकलने वाले बीजो का रंग गहरा हरा होता है। यह बीज मीठे होते है। यह किस्म एक हेक्टेयर के क्षेत्र में लगभग 100 से 120 किवंटल की उपज देता है। इसके पके हुए दानो का उत्पादन 12 से 20 किवंटल के आस -पास होता है।
पंजाब 89
इस किस्म के पौधे में फलिया जोड़े में लगती है। यह किस्म 80 से 90 दिनों के बाद तोड़ने के लिए तैयार होती है ,इसमें निकलने वाली फलिया गहरे हरे रंग की होती है। इनकी फलियों में 55 % दाने की मात्रा पाई जाती है। इसकी किस्म प्रति हेक्टैयर में 160 किवंटल की पैदावार देती है।
वी एल 7
यह किस्म एक अगेती किस्म की होती है इस किस्म के पौधे कम ठंड में अधिक विकास करते है। यह किस्म रोपाई के 100 से 120 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार होती है। इनकी फली का रंग हरा और दानो का रंग भी हरा होता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 70 से 80 किवंटल की पैदावार होती है।
पंत 157
यह एक संकर किस्म होती है इस किस्म को तैयार होने में 125 से 130 दिनों का समय लगता है। इस पौधे में फली छेदक रोग नहीं लगता है यह प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 70 किवंटल की उपज होती है।
पूसा प्रभात
यह मटर की उन्नत किम होती है ,जो कम समय में अधिक उत्पादन देती है यह किस्म रोपाई के 100 से 120 दिनों के बाद तैयार होती है। यह किस्म उत्तर भारत और पूर्वी भारत के राज्यों में उगाई जाती है यह प्रति हेक्टेयर की हिसाब से 50 से 60 किवंटल के पैदावार देती है।
मालवीय मटर – 2
यह किस्म पूर्वी मैदानों में अधिक पैदावार देती है। यह किस्म सफ़ेद फफूंद और रतुआ रोग से रहित होती है। यह प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 25 से 30 किवंटल की पैदावार देती है। यह किस्म 130 से 140 दिनों के बाद उपज देती है।
आर्केल
इस पौधे की उचाई डेढ़ फ़ीट होती है इसके बीज झुर्रीदार होते है। मटर की यह किस्म ह्री फली और अच्छी पैदावार के लिए उगाई जाती है। इसकी फली में 6 से 8 दाने होते है ,इसके मटर को पकने में 55 से 60 दिनों का समय लग जाता है।
इसके अलावा अन्य किस्म भी है जो इस प्रकार है –हिसार हरित ,लिंकन ,बोन्नेलिल्ले ,एसओजी ,अलास्का ,पंत माता ,PG 3 ,फील्ड पी 48 आदि किस्मे है जिसमे से कुछ अगेती किस्म की है।
मटर के खेत की तैयारी
इसकी खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की अच्छी पैदावार देती है ,इसलिए सबसे पहले खेत की जुताई की जाती है। ऐसा करने पर खेत में पुरानी फसल के अवशेष नष्ट हो जाते है ,खेत की जुताई करने के बाद खेत को कुछ देर के लिए खुला छोड़ देना चाहिए। ताकि खेत को धूप लग सके। खेत की जुताई के बाद आप उसमे गोबर की खाद भी डाल सकते है ,जिससे खेत में उपज अच्छी होती है।
उसके बाद फिर से जुताई की जाती है जिससे गोबर की खाद अच्छे से मिल सके। इसके बाद खेत में पानी देना चाहिए फिर जब खेत की मिट्टी सुख जाये तो उसमे फिर से जुताई कर देनी चाहिए जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये। उसके बाद खेत में पाटा लगवाकर खेत को समतल कर देना चाहिए ,ताकि जलभराव की समस्या नहीं हो सके।
इसके अलावा आप खेत में रासायनिक खाद का भी प्रयोग कर सकते हो। इसके लिए आप खेत में एन.पी.के. की मात्रा का छिड़काव खेत की आखरी जुताई करने के समय करना चाहिए। और बीज रोपाई के दौरान 25 KG यूरिया की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सिचाई करनी चाहिए।
मटर के बीज की रोपाई का सही समय और तरीका
मटर की खेती के लिए अगेती पछेती किस्मो के अनुसार अलग -अलग समय पर लगाए जाते है। अगेती किस्मो के लिए नवंबर और अक्टूबर महीना उपयुक्त माना जाता है। और पछेती किस्मो के लिए पौध की रोपाई नवंबर के अंत में की जाती है।
मटर की बीज रोपाई के लिए ड्रिल विधि का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद खेत में पंक्तियों को तैयार कर लेना चाहिए। इसके बाद एक फ़ीट की दूरी पर पंक्तिया तैयार कर ले जाती है ,इन पंक्ति में बीजो की दुरी 5 से 7 CM रखनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
मटर की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण में प्राकृतिक और रासायनिक विधि का प्रयोग करना चाहिए। रासायनिक तरीके से बीज रोपाई के बाद लिन्यूरान की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा आप प्राकृतिक रूप से भी निराई -गुड़ाई कर सकते है। इसके लिए बीज रोपाई के 25 दिन बाद खेत की निराई -गुड़ाई करनी चाहिए। मटर के पौधे को 3 से 4 निराई -गुड़ाई के जरूरत हॉट है।
मटर के पौधे में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
चूर्णी फफूंदी
यह रोग पोधो पर नीचे से ऊपर की और आक्रमण करता है इस रोग के होने पर पत्तियों पर सफेद धब्बे हो जाते है जिससे पौधे के पत्ते सूख जाते है। यह रोग अधिक बढ़ जाने पर पूरा पौधा विकास करना बंद कर देता है।
इसके रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए
तुलासिता
यह रोग पौधे की पत्तियों पर दोनों तरफ से आक्रमण करता है ,इस रोग से पत्ती पर पीले
रंग की धब्बे हो जाते है। और निचली सतह पर रुई जैसे फफूंद लग जाती है। इस रोग के हो जाने से पौधा विकास करना बंद कर देता है।
इसके रोकथाम के लिए मैन्कोजेब या जिनेब की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
फली छेदक रोग
इस किस्म को रोग खतरनाक होता है ,जो फसल की पैदावार को अधिक हानि देता है। यह रोग फली में घुसकर मटर के बीजो को नष्ट कर खा जाता है। जिससे फल के दान खराब हो जाते है।
इस रोग के रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफास का छिड़काव करना चाहिए।
चेपा
इस रोग को महू नाम से भी जाना जाता है। इसमें हरे और पीले रंग के कीट होते है ,यह रोग समूह के रूप में पौधे पर आक्रमण करते है। यह रोग पौधे का रस चूसकर उसके विकास को रोक देते है।
इस रोग से बचने के लिए मोनोक्रोटोफास का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए ,
रतुआ
यह रोग भी पौधे की पत्तियों पर होता है ,इस रोग के होने पर पत्ती पर पीले रंग के फफोले दिखाई देते है। कुछ समय बाद ही यह पौधा नष्ट हो जाता है पौधे की सम्पूर्ण पत्तिया पीली पढ़ जाती है।
इसके रोकथाम के लिए नीम के तेल या काढ़े का छिड़काव करना चाहिए।
मटर के खेत में फसल की कटाई
मटर की खेती 130 से 140 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार होती है। मटर के पौधे से फली को काटकर सूखे दानो को निकल दिया जाता है ,दानो को निकलने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है।
मटर की कटाई के बाद एक हेक्टैयर के क्षेत्र में लगभग 20 से 25 किवंटल की उपज होती है। मटर का बजरी भाव दो से तीन हजार रूपये प्रति हेक्टेयर होता है। ,जिससे किसानो को एक बार की फसल से 70 से 85 हजार तक का मुनाफा प्राप्त होता है। मटर की पैदावार से किसानो को इससे भी अधिक मुनाफा प्राप्त हो सकता है यानि इससे भी अधिक कमा सकते है।