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मूली की खेती (Radish Farming ) में उन्नत किस्मो की सम्पूर्ण जानकारी

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मूली की खेती (Radish Farming ) में उन्नत किस्मो की सम्पूर्ण जानकारी
Radish Farming : मूली को सब्जी के रूप में उगाया जाता है। मूली को कच्चे रूप में भी खा सकते है ,इसकी खेती सब्जी के रूप में भी की जाती है। इसका इस्तेमाल सलाद में भी किया जाता है। मूली को अन्य फसल जैसे आलू, सरसों, गन्ना, मेथी और गेहू के फसल के साथ भी उगा सकते है। मूली की फसल बीज रोपाई के दो महीने बाद पककर तैयार हो जाती है। मूली की फसल कम समय में कम लागत देती है कच्ची मूली के सेवन से पेट से संबंधित बीमारियों से छुटकारा मिलता है। मूली खाद्य जड़ो वाली सब्जी है इसको स्वाद भी तीखा होता है। मूली में विटामिन के साथ खनिज तत्व अधिक मात्रा में मिलते है। इसके सेवन करने से पीलिया और लिवर जैसी बीमारी से छुटकारा मिलता है। मूली का वानस्पतिक नाम रेफेनस सेटिवस होता है। इसकी उत्पति यूरोप में मानी जाती है। मूली में स्पोरोफाइटिक स्व असंगति मौजूद होती है। मूली में विटामिन C प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। मूली आइसोथियोसाइनेट्स के कारण तीखी होती है। और एंथोसायनिन के कारण मूली लाल रंग की होती है। मूली की पूसा हिमानी किस्म को पूरे साल उगाया जाता है। गर्मी के मौसम में इसकी खेती करके अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। वर्तमान में मूली की खेती तेजी से विस्तार कर रही है। इसकी मांग बाजार में बढ़ रही है। भारत में मूली की खेती पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असम, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में मुख्य रूप की जाती है। इसके अलावा इसकी खेती अन्य राज्यों में भी की जाती है । अगर आप भी मूली की खेती करना चाहते है तो आज हम आप को मूली की खेती कैसे करे ?,जलवायु ,मिट्टी ,तापमान और पैदावार की सम्पूर्ण जानकारी के बारे में बतायेगे।

मूली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान

मूली की खेती पूरे वर्ष पैदावार देती है। इसके विकास के लिए कम आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती शांत जलवायु में शानदार फसल उत्पादन देती है। इसका तेजी से विकास के कारण व्यापक वितरण होता है। मूली के बीजो को अंकुरित होने में 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है ,और इसके विकास के लिए 10 से 15 डिग्री तापमान की जरूरत होती है इसका पौधा न्यूनतम 4 डिग्री और अधिकतम 25 डिग्री तापमान को सहन कर सकता है। अधिक तापमान में इसका पौधा अच्छी उपज नहीं देता है ,जिससे इसकी गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है। इसकी खेती को सामान्य ताप की जरूरत होती है।

मूली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

मूली की खेती अच्छे जलनिकास वाली भूमि में अच्छी होती है ,इसके अलावा बलुई दोमट मिट्टी में इसकी खेती अधिक विकास करती है। इसकी खेती के लिए भूमि का PH मान 6 से 7 के मध्य होनी चाहिए। सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती के लिए नुकसान नहीं पहुँचता है। इसके अलावा अच्छी जलनिकास वाली बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती अच्छी मानी जाती है।

मूली के पौधे की सिचाई

मूली के बीजो को रोपने के लिए नम भूमि के आवश्यकता होती है। बीज रोपाई के तुरंत बाद इसकी सिचाई करनी होती है। इसके पौधे को अधिक पानी के आवश्यकता नहीं होती है इसके लिए सामान्य पानी देना चाहिए। इसके बीजो को अंकुरित होने में पानी के जरूरत पड़ती है। मूली के पौधे की सिचाई गर्मी के मौसम में 2 से 3 बार की जाती है और बारिश के मौसम में इसकी सिचाई नहीं करनी होती है। अगर जरूरत हो तो ही इसके पोधो के सिचाई करे।

मूली की उन्नत किस्मे

बाजार में मूली की अनेक किस्मे पाई जाती है इसके साथ ही कई देशी और विदेशी किस्मे बाजार में पाई जाती है। जिसको कम से कम समय में अधिक पैदावार के लिए उगाया जाता है।

रेपिड रेड व्हाइट टिप्ड

मूली की इस किस्म को तैयार होने में 26 से 30 दिनों का समय लग जाता है। यह किस्म अधिक तेजी से पैदावार देती है। इसके फलो का रंग सफेद और लाल होता है इस किस्म के पौधे एक ही मौसम में अधिक पैदावार देते है।

हिसार न. 1

इस किस्म को भारत के उत्तरी मैदानी राज्यों में उगाने के लिए तैयार किया जाता है। इसके पौधे की जड़े सीधी और लम्बी होती है। इसका बाहरी छिलका चिकना और रंग में सफेद होता है। इसका स्वाद मीठा पाया जाता है। इसके पौधे 50 दिनों के बाद पैदावार देने के लिए तैयार होते है। इस किस्म का प्रति हेक्टैयर उत्पादन 250 किवंटल तक होती है

जापानी सफ़ेद

इस किस्म के पौधे को तैयार होने में 50 से 60 दिनों का समय लगता है यह स्वाद में तीखी होती है इसका पौधा एक फ़ीट तक लम्बा होता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 250 से 300 किवंटल की पैदावार होती है। इसके अलावा मूली की अन्य किस्मे भी होती है जो इस प्रकार है - व्हाईट लौंग, सकुरा जमा, के एन- 1, जौनपुरी मूली, फ्रेंच ब्रेकफास्ट , पूसा हिमानी, पूसा चेतकी, पूसा देशी, पूसा रेशमी, पूसा चेतकी, पंजाब पसंद, पंजाब अगेती, व्हाईट आइसीकिऔर स्कारलेट ग्लोबल, आदि किस्मे होती है।

मूली के खेत की तैयारी

मूली के खेती के लिए खेत की अच्छे से जुताई करनी चाहिए उसके बाद पुराणी फसल के अवशेषो को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए। उसके बाद खेत में गोबर की पुराणी खाद का प्रयोग करना चाहिए। उसके बाद फिर से खेत में जुताई करके गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिलानी चाहिए। फिर उसको पानी देकर खुला छोड़ देते है ,ताकि खेत में धूप लग सके। फिर जब मिट्टी थोड़ी सूख जाये तब उसमे जुताई करके पाटा लगवा देना चाहिए। जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये जिससे फसल की उपज अच्छी हो सके। पाटा लगवाकर खेती को समतल कर देना चाहिए जिससे खेत में जलभराव की समस्या नहीं होती है इसकी बाद खेती में मेड बनाकर उसमे बीजो को लगाना चाहिए। आप को डेढ़ फुट की दुरी रखते हुए मेड़ो को तैयार करना चाहिए। बीज रोपाई से पहले आप रासायनिक खाद का प्रयोग भी कर सकते है ,रासायनिक खाद के लिए बीज रोपाई से पहले 50 KG सुपर फास्फेट, 100 KG पोटाश और 100 KG नाइट्रोजन की मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब स्प्रै करनी चाहिए। इसके अलावा पौधों की जड़ो को बीज रोपाई के एक महीने बाद 20 से 25 KG यूरिया की मात्रा दे सकते है।

मूली के बीज बोन का सही समय

मूली को बोन के समय उत्तर भारत में इसको सितम्बर से जनवरी में बोई जाती है। और यूरोपीय किस्म को सितम्बर और मार्च के महीने में इसको बोया जाता है। और इसके अलावा इसको पहाड़ियों में मार्च और अक्टूबर में बोई जाती है। मूली की खेती पुरे वर्ष पैदावार देती है। इसकी बुआई इसकी किस्मो के आधार पर की जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

मूली के खेत में प्राकृतिक और रासायनिक दोनों तरीको का इस्तेमाल किया जाता है। प्राकृतिक तरीके से खेती के निराई -गुड़ाई की जाती है इसके साथ मूली के पौधे को 2 से 3 गुड़ाई के जरूरत होती है। इसकी पहली गुड़ाई 20 दिनों के बाद और तीसरी गुड़ाई 15 दिनों के बाद करनी चाहिए। इसके अलावा आप रासायनिक तरीके का प्रयोग भी कर सकते है। इसके लिए बीज रोपाई के बाद खेत में पेन्डीमिथालिन की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

मूली के पौधे में लगने वाले रोग व् रोकथाम के उपाय

बालदार सुंडी

यह रोग पौधे पर किसी भी अवस्था में लग जाता है ,जिससे पौधा विकास बंद कर देता है। यह रोग पौधे की पत्तियों को खाकर सूखा देता है ,और कुछ समय बाद यह पौधा कमजोर होकर गिर जाता है। इस रोग के रोकथाम के लिए क्विनालफॉस या सर्फ की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

काली भुंडी का रोग

यह रोग भी बालिदार रोग की तरह पोधो की पत्तियों को खाकर नष्ट कर देता है और पौधे को कमजोर कर देता है ,जिससे पौधे का विकास बंद हो जाता है। इस रोग के रोकथाम के लिए 10 से 12 दिन के अंतराल में मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव पौधे पर करना चाहिए।

झुलसा रोग

यह रोग जनवरी और मार्च के महीने में पौधे पर आक्रमण करता है जिससे पौधे पर काले रंग के गोल धब्बे हो जाते है ,और यह रोग पौधे की पूरी पत्तियों पे फैल जाता है जिससे पौधा कमजोर हो जाता है , इसके रोकथाम के लिए पौधे पर मैन्कोजेब या कैप्टन दवा की उचित मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मूली की खुदाई

मूली का पौधा बीज के बोन के बाद उत्पादन देने के लिए तैयार होता है। वैसे तो मूली के पौधे की खुदाई एक महीने पर कर सकते है परन्तु जब मूली अच्छे से पकी नहीं होती है। इस वजह से मूली के आकर को देखते हुए खुदाई करनी चाहिए खुदाई के बाद मूली को साफ़ पानी से अच्छे से धो लेना चाहिए। और फिर उसको बाजार में बेच देना चाहिए। मूली की पैदावार एक हेक्टैयर के क्षेत्र में 250 किवंटल होती है और बाजारी भाव की बात करे तो 10 से 20 रूपये होता है। इससे भी किसानो को अधिक पैदावार में अधिक मुनाफा प्राप्त होता है, और लगभग 1 से 2 लाख के कमाई कर सकता है
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