Cucumber Farming: भारत देश ककड़ी और खीरे के मामले में सबसे बड़ा निर्यातक देश ( World Largest Exporting Country) है। भारत देश ने सन 2021-22 में 114 मिलियन डॉलर के लगभग 1,23,846 मीट्रिक टन ककड़ी और खीरे का निर्यात (Cucumber Exporting Country) करके यह विश्व का सबसे बड़ा खीरा और ककड़ी निर्यातक देश (Cucumber Export) बन गया है। खीरे की खेती को विशेष तौर पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (contract farming) के अंदर शामिल किया गया है। पूरे भारत देश में उगाई जाने वाली कद्दूवर्गीय फसलों (cucurbit crops) में से खीरे की फसल मुख्य फसलों में से एक है।
खीरे की फसल का उत्पादन पूरे देश में सर्वाधिक किया जाता है। हर एक राज्य में इसे उगाया जाता है और इसका उपयोग सबसे ज्यादा भोजन में सलाद के साथ किया जाता है। इसे कच्चा एवं सब्जी बनाकर दोनों तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। खीरे का उपयोग गर्मियों में भी किया जाता है, क्योंकि यह गर्मियों के मौसम में पानी की कमी को पूरा करता है एवं शीतलता प्रदान करता है। खीरे की सबसे अधिक मांग गर्मीयों में होती है। इसके लिए इसकी बढ़ती मांगों को देखते हुए हम इसकी खेती को जायद के मौसम में कर सकते हैं और गर्मियों में इसका व्यापार करके अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
खीरे के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Important information about cucumber
यदि हम बात करें खीरे के वनस्पति वर्गीकरण के बारे में तो खीरे का वैज्ञानिक नाम (Scientific Name of Cucumber) कुकुमिस स्टीव्स (Cucumis Steves) है। यह एक बेल नुमा प्रजाति का पौधा है जिसके बेल के साथ खीरे आते हैं खीरे के पौधों का आकार बड़ा होता है और खीरे के पत्ते त्रिकोण आकार के और रोम वाले होते हैं। खीरे के फूल पीले रंग के होते हैं। खीरे में लगभग 96% पानी पाया जाता है। खीरे में प्रचुर मात्रा में विटामिन और मिनरल्स होते हैं। इसमें विशेष रूप से एम बी (मोलिब्डेनम) पाया जाता है। खीरा हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद माना होता है। इसका उपयोग हम त्वचा किडनी और दिल की समस्याओं के इलाज में करते हैं। इसे अलावा अल्कालाइजर (Alkalizer) के रूप में उपयोग किया जाता है।
खीरे की खेती के लिए भूमि एवं जलवायु – Land and climate for cucumber cultivation
खीरे की खेती हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है। विशेष रूप से जिन भूमि में जल निकासी का उच्चतम प्रबंध हो, उस भूमि में खीरे की खेती (kheera ki kheti) करना सबसे श्रेष्ठ रहता है। खीरे की खेती के लिए भूमि का पीएच मान लगभग 6 से 7 के मध्य होना चाहिए।
खीरे की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी, दोमट मिट्टी होती है। जिसमें जीवाश्म पदार्थ पाए जाते हैं। इसकी खेती जायद ऋतु और वर्षा ऋतु दोनों में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए उच्च तापमान हो तो श्रेष्ठ रहता है। क्योंकि यह फसल पाले को सहन करने में असमर्थ है। अधिक सर्दी में इसके पत्ते जल जाते हैं। इसलिए सर्दियों में इसकी खेती कर पाना संभव सा प्रतीत होता है।
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खीरे की खेती के लिए तापमान (Temperature for cucumber cultivation) 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तक रहना चाहिए और वर्षा के दिनों में 120 से 135 मिमी वर्षा वाले इलाकों में इसकी खेती की जा सकती है। खीरे की बुवाई के दौरान तापमान (sowing temperature) 22 से 30 डिग्री सेल्सियस तक रहना चाहिए और इसकी कटाई हेतु तापमान (harvesting temperature) 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तक रहना चाहिए।
खीरे की उन्नत किस्में – Improved varieties of cucumber
यदि आप खीरे की खेती (Cucumber farming) करना चाहते हो, तो खीरे की उन्नत किस्म (Kheera ki Variety), के बारे में जानना अति आवश्यक है। खीरे की उन्नत किस्मों में, सबसे पहले हम संकर किस्म के बारे में चर्चा करेंगे, उसके बाद हम जानेंगे ऐसी विदेशी किस्मों के बारे में जो काफी अच्छा उत्पादन प्रदान करती है।।
खीरे की संकर किस्में
खीरे की संकर किस्म में सबसे प्रमुख किस्म पंत संकर खीरा – 1, है । इसके अलावा पूसा संयोग भी खीरे की संकर किस्मों में उच्चतम है।
खीरे की विदेशी किस्में
खीरे की विदेशी किस्म (Kheera Ki variety) में भी तीन प्रमुख किस्म है। जिसमें पहली जापानी लौंग ग्रीन, दूसरी स्ट्रेट- 8 और पाइनसेट है।
जापानीज लौंग ग्रीन (Japanese Long Green)
यह किस्म (Kheera Ki variety) बुवाई के सबसे कम दिनों में खीरे (Kheera) देना शुरू कर देती है। इस किस्म की बुवाई के 45 दिन बाद हम फल प्राप्त कर सकते हैं। इस किस्म के फल लगभग 30 से 40 सेंटीमीटर लंबे और हरे रंग के होते हैं। इस किस्म को ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में उगाया जाता है।
स्ट्रेट ऐट (Straight Eight)
यह किस्म भी पहाड़ी इलाकों के लिए सबसे उपयुक्त किस्म है। इस किस्म (Kheera ki variety) के फलों का आकार मध्यम, गोल और हरे रंग का होता है।
खीरे की अन्य प्रमुख किस्में
पूसा उदय (Pusa Uday)
खीरे की इस किस्म के फल आकार में छोटे एवं 13 से 15 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। इसके फलो का रंग हल्का हरा होता है और यह किस्म लगभग 50 से 52 दिनों के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म की बुवाई के लिए एक एकड़ क्षेत्र में 1.45 किलोग्राम बीजों कि आवश्यकता होती है। इस किस्म के जरिए हम 1 एकड़ क्षेत्र से 65 क्विंटल खीरों की प्राप्ति कर सकते हैं।
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पूसा बरखा (Pusa Barkha)
खीरे की इस किस्म (Kheera ki variety) को खरीफ के मौसम में तैयार किया जाता है। यह किस्म उच्च मात्रा में नमी, उच्चतम तापमान और पत्तों पर धब्बे वाला रोग इन तीनों को सहन कर पाने में सक्षम है। पूसा बरखा (Pusa Barkha) के द्वारा एक एकड़ क्षेत्र से हम 78 क्विंटल खीरों का उत्पादन कर सकते हैं।
स्वर्ण शीतल (Swarna Sheetal)
स्वर्ण शीतल (Swarna Sheetal) किस्म की बुवाई एक हेक्टर क्षेत्र में करने पर हम इससे 25 से 30 टन खीरों की पैदावार कर सकते हैं। इसके अलावा यह किस्म 60 से 65 दिनों के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है। एवं इसके खीरों का आकार मध्यम लंबा होता है।
स्वर्ण पूर्णा (Swarna Poorna)
इस किस्म से हम प्रति हेक्टेयर 30 से 35 टन खीरों का उत्पादन कर सकते हैं। इस किस्म को पकाने में 55 से 60 दोनों का समय लगता है एवं स्वर्ण पूर्णा (Swarna Poorna) किस्म के खीरे हल्के हरे रंग के और मध्यम आकार एवं लंबे होते हैं।
हिमांगी (Himangi)
खीरे की इस किस्म को महात्मा फुले कृषी विद्यापीठ (कृषि विश्वविद्यालय) द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म के खीरे सफेद रंग के होते हैं और यह ब्रोंजिंग (bronzing) रोग से प्रतिरोधी खीरे होते हैं। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 19 टन खीरो का उत्पादन किया जा सकता है।।
Phule Shubhangi (फुले शुभांगी )
Phule Shubhangi (फुले शुभांगी ) किस्म को भी महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा ही विकसित किया गया है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 18 टन खीरे उत्पादित करती है और इस किस्म के फलों का तना हल्का हरा और फल हल्के हरे रंग के होते हैं। Phule Shubhangi (फुले शुभांगी ) किस्म के खीरे सतह से चिकने होते हैं।और इस किस्म को पकाने में 100 से 110 दोनों का समय लगता है
फुले प्राची (Phule Prachi)
इस किस्म की खेती अधिकतर पोलीहाउस या ग्रीन हाउस में की जाती है। इस किस्म के फल सफेद-पिले रंग के होते हैं। इस किस्म की बुवाई खरीफ ऋतु में जून जुलाई तक की जाती है। इस किस्म से हम प्रति हेक्टेयर लगभग 36 टन खीरों का उत्पादन कर सकते हैं। फुले प्राची (Phule Prachi) Kheera ki variety को पकाने में लगभग 90 दोनों का समय लगता है।
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खीरे की खेती बुवाई का समय – Cucumber cultivation sowing time
यदि आप खीरे की खेती (Kheera Ki Kheti) ग्रीष्म ऋतु में करते हो, तो इसके लिए फरवरी-मार्च महीना सबसे उपयुक्त रहता है। यदि आप वर्षा ऋतु में खीरे की खेती करते हो, तो आपको खीरे की बुवाई जून से जुलाई के मध्य में कर देनी चाहिए।। इसके अलावा पर्वतीय प्रदेशों के लिए खीरे की खेती (Cucumber farming) मार्च और अप्रैल महीने में करना सही रहता है।
खीरे की खेती के लिए खेत की तैयारी – Field preparation for cucumber cultivation
फसल चाहे कोई सी भी हो बुवाई करने से पहले खेत को तैयार करना आवश्यक है। इसके लिए निम्न बिंदुओं को पढ़ें।।
- खीरे की फसल से पूर्व खेत में मौजूद दूसरी फसलों के अवशेषों को जड़ से नष्ट करें, उसके बाद एक बार गहरी जुताई करें
- खेत में लगभग 1 से 2 साल पुरानी सड़ी हुई गोबर कि खाद डालें,
- गोबर खाद को मिलने के लिए एक बार फिर से गहरी जुताई करें, उसके बाद पाटा लगाकर का खेत को समतल बनाएं।।
- उसके बाद खेत में बुवाई के लिए लाइन या फिर क्यारियां बना दे, ध्यान रहे यदि आप गर्मी के मौसम में खीरे की खेती करते हो, तो लाइनों से लाइनों के बीच की दूरी 1.5 मीटर तक होनी चाहिए। क्योंकि इस ऋतु में खीरे कि बेलें ज्यादा नहीं फैलती है और वर्षा ऋतु में बेलें ज्यादा लंबी होती है। इसलिए लाइनों की दूरी को बढ़ाकर लगभग 2 मीटर तक कर देनी चाहिए और पौधे से पौधे की बीच की दूरी 1 मीटर कर दें।
खीरे की खेती के लिए बीज की मात्रा
यदि आप एक हेक्टर क्षेत्र में खीरे की खेती करते हो, तो इसकी बुवाई हेतु आपको 2 से 2.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी। बीजों में बुवाई से पहले 2 ग्राम कप्तान मिलकर बुवाई करें, इससे फसल की पैदावार अच्छी होती है।
खीरे की खेती खाद व उर्वरक
खीरे की खेती (Cucumber farming) करने के लिए जब आप खेत की तैयारी करते हो, तब पहली जुताई से पहले 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर (hectare) के हिसाब से सड़ी हुई गोबर का खाद डाल दें। उसके बाद खेत को 15 से 20 दिनों के लिए छोड़ दें । फिर पहले जुताई करें और खेत में अंतिम जुताई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश मिलाकर खेत की जुताई करें। फिर बुवाई करने के बाद जब पौधे बड़े हो जाए तब 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हैं। फसल में प्रयोग करें।।
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खीरे की खेती की सिंचाई
खीरे की खेती (Kheera Ki Kheti) में ज्यादातर सिंचाई की जरूरत सिर्फ गर्मियों के मौसम में होती है और वर्षा ऋतु में खीरे की फसल में ज्यादा सिंचाई नहीं करनी चाहिए।। खीरे की फसल को गर्मियों में लगभग 10 से 12 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बीज बुवाई से पहले की जाती है। उसके बाद दो से तीन दिनों के अंतराल पर लगातार सिंचाई करी जाती है। दूसरी सिंचाई को हमें बीज बुवाई के बाद 4 से 5 दिनों के अंतराल के पर करना चाहिए।।
खीरे की फसल में होने वाले प्रमुख रोग एवं उनकी रोकथाम – Major diseases occurring in cucumber crop and their prevention
खीरे की फसल (Crop) में कई प्रकार के रोग होते हैं। यदि इनकी समय पर रोकथाम नहीं की जाए, तो यह फसल को नष्ट कर सकते हैं। जिसके कारण हमें उत्पादन में कमी देखने को मिल सकती है। नीचे हमने खीरे की फसल में होने वाले प्रमुख रोगों के बारे में बताया है। यदि आपको आपकी फसल में भी निम्न बताए गए रोगों में से किसी भी प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। तो आपको तुरंत उपचार की आवश्यकता है।।
कीटो संबंधित रोग एवं रोकथाम
खीरे की फसल (Crop) में सबसे ज्यादा मक्खियों का प्रकोप देखने को मिलता है। यह मादा मक्खियां नये फल की परत के नीचे अंडे देकर, खीरे के गुद्दे को खाना शुरु करती है। जिसके कारण खीरा गलकर टूट कर गिर जाता है। इसकी रोकथाम के लिए आपको खीरे के पत्तों पर लगभग 3.0% नीम के तेल का स्प्रे करना चाहिए।।
खीरों के पत्तों पर सफेद धब्बे पड़ जाना
इस रोग के कारण खीरे के पत्तों पर सफेद पाउडर वाले धब्बे पड़ जाते हैं और इस बीमारी के कारण खीरे के पत्ते सूख जाते हैं। जिसके कारण उत्पादन में कमी आती है। इस रोग से बचाव हेतु, इस रोग की रोकथाम के लिए आपको दो ग्राम कार्बेन्डाजिम को 1 लीटर पानी में घोलकर खीरे की पत्तियों पर स्प्रे करना चाहिए, इसके अलावा आप क्लोरोथैलोनिल, बैनोमाइल या डिनोकैप के जैसी फंगसनाशी दवाओं का भी प्रयोग कर सकते हैं।।
चितकबरा रोग के उपचार – Treatment of spotted disease
यदि आपकी फसल में यह रोग है, तो इस रोग के कारण खीरे के पौधों का विकास रुक जाता है और इसके पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग के कारण खीरे का निचला हिस्सा पीला पड़ जाता है। यह सभी इस रोग के मुख्य लक्षण है।
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इस रोग से बचाव हेतु खेत में डियाज़ीनॉन (diazinon) डाली जाती है। इसके अलावा 10 लीटर पानी में इमिडाक्लोप्रिड कि 17.8 % मात्रा और ऐस एल की 7 मिलीलीटर मात्रा को मिलाकर पौधों पर स्प्रे किया जाता है।
एन्थ्राक्नोस – Anthracnose
इस रोग के कारण फल गलने लगता है। यह बीमारी खीरे के फल को पूरी तरह से खराब कर देती है। इस रोग के मुख्य लक्षण यह है कि इस रोग के कारण खीरे के पत्तों पर पीले रंग के धब्बे आ जाते हैं। और इसके अलावा खीरे के फल पर भी गोल धब्बे दिखाई देते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में फंगसनाशी को डालें।।
खीरे के पत्तों का मुरझाना – Wilting of Cucumber Leaves
यदि आपके खेत में खीरे के पत्ते मुरझाकर सुखने लग रहे हैं। तो समझ जाइए कि आपकी फसल में भी यह रोग है। इस रोग से बचाव हेतु पत्तों पर कीटनाशक दवाइयों का स्प्रे करना चाहिए।।
खीरे की फसल की कटाई – Cucumber Harvesting
खीरे को पकाने में लगा समय खीरे की किस्म पर निर्भर करता है। कई किस्में ऐसी होती है जो पकने में अधिक समय लेती है और कई किस्में ऐसी होती है। जो 45 से 50 दिनों के अंदर पैक कर तैयार हो जाती है अर्थात खीरे को पकाने में न्यूनतम 45 दोनों का समय लगता है। उसके बाद हम खीरे की फसल से 10 से 12 कटाई कर सकते हैं। खीरों की तुड़ाई जब खीरे पूरी तरह से हरे और खीरों पर छोटे-छोटे कांटे आ जाए तब करनी चाहिए।। खीरों की औसतन पैदावार 33 से 42 कुंतल प्रति एकड़ होती है।।
खीरा उत्पादन और कमाई – Cucumber Production and Earning
भारत में हर वर्ष औसतन एक किसान हर फसल से लगभग 4 मीट्रिक टन प्रति एकड़ खीरा का उत्पादन करता है और लगभग ₹40,000 की शुद्ध आय के साथ ₹80,000 की कमाई करता है। खीरे की अधिकतम 90 दिनों की फसल होती है और किसान हर साल में दो बार खीरे की खेती (kheera ki kheti) कर सकता है। इससे अधिक आमदनी प्राप्त होती है। और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निर्यात बढ़ता है।
खीरे का इतिहास – History of Cucumber
भारत सन 2021-22 में विश्व का सबसे बड़ा ककड़ी और खीरा निर्यातक देश बन गया है। भारत ने तकरीबन 1,23,846 मीट्रिक टन खीरों का निर्यात करके यह खिताब अपने नाम किया है। भारत में सबसे पहले खीरे की खेती, (First cultivation of cucumber in India), प्रोसेसिंग और निर्यात की शुरुआत काफी छोटे स्तर पर 1990 के दशक में कर्नाटक में हुई थी। उसके बाद धीरे-धीरे खीरे की खेती कर्नाटक के पड़ोसी राज्य तमिलनाडु आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी कि जाने लगी।।
वर्तमान समय में भारत में सबसे ज्यादा खीरा उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल है। जो भारत के कुल खीरे की आवश्यकता का 20.32 फीसदी खीरा उत्पादित करता है। उसके बाद भारत खीरा और ककड़ी की खेती में लगातार आगे बढ़ता चला गया और आज के समय में भारत विश्व में खीरे की कुल आवश्यकताओं का लगभग 15% खीरा उत्पादन (cucumber production) करता है। आज के समय में भारत खीरे को लगभग 20 से अधिक देशों में निर्यात करता है। जिसमें प्रमुख देश उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय देश, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, रूस, चीन, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, कनाडा, दक्षिण कोरिया, जापान बेल्जियम, श्रीलंका, इसराइल आदि है।
खीरे खाने के फायदे – Benefits of eating cucumbers
दैनिक जीवन में खीरे के बहुत ज्यादा उपयोग है। लोग इसे सलाद के रूप में खीरे को लेते हैं। इसके अलावा नियमित व्यायाम के बाद लोग हाइड्रेट रहने के लिए इसकी सलाद को अपनी डाइट में शामिल करते हैं। क्योंकि इसमें लगभग 96% पानी पाया जाता है। इसके कारण यह हमें हाइड्रेट रखने में मदद करता है। इसके अलावा खीरे खाने के बहुत सारे फायदे हैं। आईए जानते हैं।।
- खीरे का पानी, सलाद या फिर खीरे के जूस को खाली पेट लेने से शरीर हाइड्रेट रहता है। यह शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक है। इसे इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में लिया जाता है।
- खीरे को खाली पेट लेने से हमारा वजन घटता (weight loss) है। कई एक्सपर्ट वजन घटाने के लिए कुकुंबर ड्रिंक को पीने के लिए कहते हैं। खीरे के जूस (cucumber drink) को खाली पेट पीने से हमारा बहुत ज्यादा वजन कम होता है।
- खीरे में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर में कोशिकाओं के नुकसान से बचते हैं।
- खीरे के सेवन से हमारा रक्तचाप संतुलित (Blood pressure) होता है। क्योंकि खीरे में अधिक मात्रा में पोटेशियम शामिल होता है। जो हमारे रक्तचाप (Blood pressure) को संतुलित करता है। क्योंकि ब्लड प्रेशर का सबसे बड़ा कारण (The biggest cause of blood pressure), सोडियम की अधिकता और पोटेशियम की कमी है।
- खीरे का सेवन हमारी त्वचा (skin care) के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है। खीरे का रस हमारे शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलता है। जिससे हमारा रक्त साफ होता है एवं त्वचा संबंधित बीमारियां (skin related diseases) भी नष्ट होती है।
खीरे की खेती के बारे में पूछे जाने वाले सवाल – Questions asked about cucumber cultivation
खीरा कितने दिन में फल देता है?
Ans – खीरे की फसल लगभग 45 से 50 दिनों के अंदर पक्कर तैयार हो जाती है अर्थात सितंबर और जनवरी महीने में बोई जाने वाली फसल सबसे ज्यादा पैदावार देती है। जो ओसतन 304 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और जनवरी महीने में बोई जाने वाली फसल लगभग 370 क्विंटल प्रति एकड़ की पैदावार देती है।
खीरा में कौन सी खाद डालें?
Ans – खीरे की अच्छी पैदावार करने के लिए बुवाई के समय 1 साल पुरानी साड़ी हुई, गोबर की खाद को 6 टन प्रति एकड़ के हिसाब से डालें, इसके अलावा खीरे की खेती के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन की मात्रा, 12 किलोग्राम फास्फोरस की मात्रा, और 10 किलोग्राम पोटाश की मात्रा उचित रहती है।
खीरे की खेती कौन से महीने में करें?
Ans – खीरे की खेती (kheera ki kheti) 1 साल में दो बार की जा सकती है। गर्मी के मौसम में इसकी खेती फरवरी व मार्च के महीने में की जाती है। वहीं वर्षा ऋतु में जून-जुलाई में इसकी खेती करना उचित रहता है। यदि आप पहाड़ी वाले इलाकों में रहते हो, तो आप बुवाई मार्च-अप्रैल में भी कर सकते हो।
भारत में सबसे ज्यादा खीरे की खेती कहां होती है?
Ans – भारत में सबसे ज्यादा खीरे की खेती (Cucumber farming) पश्चिम बंगाल राज्य में की जाती है। पश्चिम बंगाल अकेला भारत का खीरा उत्पादन में लगभग 20 फीसदी हिस्सा रखता है।
विश्व में सबसे ज्यादा खीरा उत्पादन कौन करता है?
Ans – हमें यह कहते हुए गर्व है कि विश्व में सबसे ज्यादा खीरा उत्पादन करने वाला देश स्वयं भारत देश है। जिसने साल 2021-22 में तकरीबन 1,23,846 मीट्रिक टन खीरों का निर्यात करके विश्व का सबसे बड़ा ककड़ी और खीरा निर्यातक देश बन गया।
Conclusion
उम्मीद करता हूं, आपको पोस्ट पसंद आई होगी।। आज कि इस पोस्ट में हमने खीरे की खेती (Cucumber farming) से लेकर इसके इतिहास तक संपूर्ण जानकारी प्राप्त करी है। यदि अब भी आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप हमें कमेंट करके पूछ सकते हैं। हमने इस पोस्ट में खीरे से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्रदान करी है। और यदि आपको लगता है कि कुछ बाकी है। तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हो।।
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