सुप्रीम कोर्ट का फैसला : मदरसा बोर्ड अब संवैधानिक है, आखिर क्यों भारत में हिन्दू या गुरुकुल बोर्ड नहीं है जबकि हिन्दू सबसे ज्यादा हैं?

आज से कुछ महीने पहले की बात है जब 22 मार्च 2024 को उत्तरप्रदेश के इलाहबाद हाई कोर्ट की तरफ से उत्तरप्रदेश में चल रहे मदरसा बोर्ड को असंवैधानिक बताया गया था और साथ में ये भी कहा गया था की इनमे जो भी बच्चे पढाई करते है उनको जल्द से जल्द दूसरे शिक्षा बोर्डों में शिफ्ट किया जाये। अब इसके खिलाफ मदरसा बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में गया और वहां से 4 अप्रैल 2024 को इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी गई।
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आज सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक अहम फैसले लिया गया है और अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया है की यूपी में चल रहे मदरसा बोर्ड असंवैधानिक नहीं है और वे सभी संविधान के तहत मान्य है तथा चलते रहेंगे। अब आज का फैसला तो आ गया है और सब इसको मानेंगे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से फैसला लिया गया है।
यहां एक सवाल पैदा हो रहा है की जिस प्रकार से मदरसा बॉर्ड है ठीक वैसे ही क्या भारत में हिन्दू धर्म की शिक्षा के लिए या फिर गुरुकुल शिक्षा पद्धति के लिए भी कोई बोर्ड है या नहीं और अगर नहीं है तो उसका कारण क्या है। चलिए आज के आर्टिकल में इसको जानने की कोशिश करते है।
मदरसों को मिलते है हजारों करोड़ फंड
भारत के बहुत विशाल देश है और इस देश के अलग अलग धर्मों के लोग रहते है इसलिए भारत को धर्मनिरपेक्ष देश भी कहा जाता है लेकिन हिन्दू यहां पर सबसे अधिक रहते है। सरकार की तरफ से मदरसों को आर्थिक सहायता दी जाती है और ये सहायता इतनी बड़ी होती है की हजारों करोड़ में इसकी गिनती होती है। पश्चिमी बंगाल में तो 5000 करोड़ रूपए मदरसों के लिए जारी किये जाते है। मदरसा एक ऐसी जगह होती है जहां पर मुस्लिम धर्म की शिक्षा दी जाती है।
लेकिन अफ़सोस है की भारत में किसी भी बोर्ड के तहत गीता या फिर अन्य दूसरे धर्म ग्रन्थ हिन्दुओं को नहीं पढ़ाये जाते बल्कि किसी भी गुरुकुल को सरकार की तरफ से कोई भी आर्थिक मदद भी नहीं दी जाती। अब ये सच है और इसको कोई भी नकार नहीं सकता है।
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याद कीजिये वो दौर जब भारत में औरंगजेब का शासन हुआ करता था या फिर अंग्रेजों का शासन हुआ करता था। उन लोगों ने हिन्दुओं की शिक्षा निति पर प्रहार करने के लिए बहुत नियम कानून बनाये लेकिन को कसर बाकि रह गई थी वो हमारे देश के नेताओं ने पूरी कर दी। क्योंकि हमारे नेताओं ने संविधान में ऐसे ऐसे अनुच्छेद शामिल कर दिए है जिनके चलते हिन्दुओं को उनके धर्म की शिक्षा किसी भी स्कूल में नहीं दी जाती।
तो आखिर नेताओं ने क्या किया जिसके चलते आज भी गुरुकुल को कोई भी सरकारी मदद नहीं मिलती और मान्यता भी नहीं मिलती है। इसका जवाब हमारे संविधान में है। भारत के संविधान में दो अनुच्छेद ऐसे हैं जिनके चलते है ये सब हो रहा है। अनुच्छेद 28 और अनुच्छेद 30 तथा ये दोनों अनुच्छेद क्या कहते है इसकी जानकारी भी आपको दे देते है।
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संविधान का अनुच्छेद 28 क्या कहता है?
संविधान का अनुच्छेद 28 कहता है की भारत में मौजूद कोई भी स्कूल जिसको भारत सरकार या फिर राज्य सरकार की तरफ से सरकारी सहायता मिलती है उस स्कूल में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। अब इसमें जो कहा गया है उसके हिसाब से तो भारत में मौजूदा लगभग लगभग सभी स्कूल इसके दायरे में आ जाते है। लेकिन मदरसों को भी सरकारी सहायता मिलती है फिर भी वे लोग धार्मिक शिक्षा दे रहे है। ये कैसे हो रहा है ये सवाल आपके मन में आ रहा होगा। तो आपके इस सवाल के जवाब भारत के संविधान का अनुच्छेद 30 देता है।
संविधान का अनुच्छेद 30 क्या कहता है?
संविधान के संविधान का अनुच्छेद 30 कहता है की भारत में मौजूद सभी अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छा से अपने धर्म के अनुसार और अपनी पसंद के अनुसार शैक्षणिक संस्थान की स्थापना करने का और उस संस्थान पर प्रशासन करने का पूर्ण अधिकार होगा।
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साथ में इसमें ये भी कहा गया है की कोई भी राज्य अपने यहां से दी जाने वाली सरकारी सहायता में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा। राज्य ये नहीं देखेगा की वह शैक्षिक संस्थान की अल्पसंख्यक धर्म विदेश के अधीन है। उसको भी राज्य दूसरे स्कूलों की तरह ही सरकारी सहायता प्रदान करेगा। लेकिन तभी जब वो संस्थान अल्पसंख्यक के के अधीन है।
अब भारत में हिन्दुओं की आबादी सबसे अधिक है और वे अल्पसंख्यक की गिनती में शामिल नहीं किये जाते। बाकि के सभी धर्मों को अल्पसंख्यक समुदाय में शामिल किया गया है। इसका नतीजा आज ये है की देश के बड़े बड़े संस्थाओं को अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का कब्ज़ा है। हिन्दुओं की आबादी अधिक होने के चलते उनको कोई भी विशेष अधिकार नहीं दिए गए है।
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यही कारण है की देश में मदरसे अब संविधान के तहत जायज है क्योंकि वे एक विशेष अल्पसंख्यक समुदाय के द्वारा संचालित किये जाते है। इनको सरकारी सहायता भी ऐसी के चलते मिलती है। लेकिन गुरुकुल हिन्दू शिक्षा पद्धति पर आधारित होते है और हिन्दू बहु संख्यक होने के चलते इनको किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं दी जाती है।
लेखक : विनोद यादव