Marigold Farming : भारत में अनेक फूल की खेती की जाती है जैसे –कमल,गेंदा ,सूरजमुखी,लिली आदि फूलो की खेती की जाती है। भारत में यह आम रूप से उगाया जाता है। इसकी खेती अनेक राज्यों में की जाती है। यह बहुत ही सुन्दर फूल होता है। इसकी खुशबु बह अच्छी आती है। कीट को पकड़ने की लिए इस फूल की खेती की जाती है। गेंदे की फूल आकर में और रंग में बहुत ही सुन्दर होते है ,जिससे भारत के बहुत लोग प्रभावित होते है इस फसल की मांग अधिक होती है। यह फूल छोटा होता है ,लेकिन बहुत ही उपयोगी होता है। कम समय में कम लागत में इसकी फसल की जाती है,इसलिए यह देश के किसानो का लोकप्रिय बन गया है ,इसकी खेती आसानी से की जा सकती है इसलिए इसको अनेक किसानो ने अपनाया है। गेंदे की दो किस्म होती है ,जो रंग के आधार पर होती है ,जो इस प्रकार है पहली अफ्रीकी गेंदा और फ्रैंच गेंदा।
यह बहुत ही महत्वपूर्ण फसल होती है ,जिसको धार्मिक और सामाजिक कार्यो के प्रयोग में लिया जाता है। इसकी मांग बाजार में व्यापक रूप से की जाती है। इस फूल का उपयोग पूजा करने में और सामाजिक और धार्मिक कार्यो में किया जाता है और ऐसे ही अनेक कार्यो में भी इसका उपयोग किया जा सकता है और इसके अलावा भी ओषधियो को बनाने में किया जाता है। बाकी फूलों के मुकाबले गेंदा का फूल बेहद खास और महत्वपूर्ण है यह फूल काफी खास होता है। फूलो से जैविक रंगो का उत्पादन भी किया जाता है इसका उपयोग खाने ,कपड़ो की रगाई में किया जाता है। अगर इसके फूल दशहरा व दीपावली के अवसर पर उपलब्ध हों तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
गेंदा का वैज्ञानिक नाम टैजेटस स्पीशीज है। भारत में इसकी खेती महांराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्रा प्रदेश, तामिलनाडू और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है। गेंदे के फूल का उपयोग पूजा अर्चना के अलावा शादी-ब्याह, जन्म दिन, सरकारी एवं निजी संस्थानों में आयोजित विभिन्न समारोहों के अवसर पर पंडाल, मंडप-द्वार तथा गाड़ी, सेज आदि सजाने एवं अतिथियों के स्वागतार्थ माला, बुके, फूलदान सजाने में किया जाता है ,अगर आप भी गेंदे के फूलो की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको गेंदे की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
गेंदे फूल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
गेंदे की खेती शीतोष्ण जलवायु को छोड़कर अन्य जलवायु में की जा सकती है। इसकी खेती वर्ष भर की जाती है। जहाँ पर सूरज की खेती आसानी से आ जाये वहा इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। शतोष्ण जलवायु में केवल गर्मी के मौसम में ही इसकी खेती अच्छी पैदावार के लिए की जाती है छायादार क्षेत्रों में फूल की पैदावार कम होती है और इसकी गुणवत्ता भी घट जाती है।
गेंदे की खेती के लिए 25 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है इसके पौधे के विकास के लिये अधिक तापमान की आवश्यकता होती है अधिक तापमान में गेंदे के फूल अच्छे आते है और पैदावार में भी बढोतरी होती ही
गेंदे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
इसकी खेती मिट्टी की व्यापक किस्मो में की जाती है। इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि अच्छी मानी जाती है इसकी खेती जल जमाव वाली भूमि में स्थिर नहीं रह सकती है। खरी मिट्टी भी इसकी खेती के लिए अच्छी नहीं होती है। गेंदे की खेती के लिए भूमि का PH मान 6.5 से 7.5 होनी चाहिए। फ्रैंच गेंदे की किस्म हल्की मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। इसके अलावा अफ्रीकी गेंदे की किस्म उच्च जैविक खाद की मिट्टी उपयुक्त होती है।
गेंदे की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
गेंदे फूल की खेती की सिचाई पौध रोपाई के बाद सिचाई करनी चाहिए। गेंदे की खेती के लिए सिचाई की अधिक आवश्यकता होती है कली बनने से लेकर फूल आने तक इसके सिचाई करनी चाहिए। गेंदे की खेती के लिए सिचाई का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ,गेंदे के पोधो में अप्रैल के महीने में 4 से 5 दिनों के अंतराल पर सिचाई की जानी चाहिए। थोड़ी -थोड़ी सिचाई करते रहने से फूलो को पैदावार के साथ -साथ इसकी गुणवत्ता में भी प्रभाव पड़ता है।
खरपतवार नियंत्रण
फसल की अच्छी पैदावार के लिये खेत में खरपतवार को नियंत्रित करना आवश्यक होता है इसकी खेती के लिए प्राकृतिक तरीका अपनाया जाता है प्राकृतिक तरीके से खेत की समय -समय पर गुड़ाई करनी चाहिए। फूल की अधिक पैदावार के लिए पोधो की कटाई या गुड़ाई करनी आवश्यक होती है। इसके लिए खेत की पहले गुड़ाई 20 से 26 दिन बाद तथा दूसरी गुड़ाई 45 दिनों के बाद की जानी चाहिए।
गेंदे की उन्नत किस्मे
गेंदे की अनेक किस्मे पाई जाती है भारत में गेंदे की खपत अधिक होती है। इत्र और दवाईयां बनाने में भी देंगे के फूलों का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में होता है। गेंदे की किस्मे कुछ इस प्रकार है –
पूसा अर्पिता
इस किस्म को साल 2009 में भारतीय कृषि अनुसन्धान द्वारा विकसित किया गया था। पूसा अर्पिता किस्म को सितम्बर – अक्टूबर में बोया जाता है और इससे दिसम्बर – जनवरी में किसान को पैदावार मिलने लगती है। इसके फूल हल्के नारगी रंग के होते है ,जो देखने बहुत ही सुन्दर होते है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 85 किवंटल की पैदावार देती है।
पूसा बसंती गेंदा
इस किस्म की रोपाई भारत्त में कही भी की जा सकती है। इसका रंग पीला होता है ,इस किस्म के फूल देखने में काफी सुन्दर होते है। इस के पौधे के पत्ते गहरे रंग के होते है । यह किस्म प्रति हेक्टैयर की हिसाब से 100 किवंटल की पैदावार देती है। इस किस्म के फूल देखने में काफी अच्छे होते है।
पूसा नारंगी गेंदा
इस किस्म की नाम से ही पता चलता ही की यह नारंगी रंग की होती है। पूरा नारंगी गेंदे की किस्म के फूलों में कैरोटीनॉयड नाम का पदार्थ बहुत ही अधिक मात्रा में होता है इस कारण से दवाइयों और खाद्य पदार्थ बनाने में इसका उपयोग बहुतायत किया जाता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के क्षेत्र में 120 किवंटल की पैदावार देती है।
अफ्रीकन मेरीगोल्ड गेंदा
इस किस्म की फसल अधिक दिनों तक ज्यादा पैदावार देती है। गेंदे की F1 हाइब्रिड किस्म होती है और इस पर फूलों की संख्या भी अधिक रहती है। इसके फूल गहरे पिले रंग के पाए जाते है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 135 किवंटल की पैदावार देती है। इस किस्म का फूल अन्य फूलो से काफी अच्छा और गहरा होता है।
इसके आलावा इसकी अन्य किस्मे भी पाई जाती है जो इस प्रकार है –बोनान्जा गेंदा, लिटिल हीरो गेंदा, बौनतय गेंदा, हीरो ऑरेंज गेंदा, क्वीन सोफिए गेंदा, सफारी स्कारलेट गेंदा, सफारी टाँगेरिने गेंदा, टाइगर-आईज गेंदा, येलो जैकेट गेंदा, सफारी मिक्सचर गेंदा, सिग्नेट गेंदा, लेमन गेम गेंदा, स्पेनिश तारगोन गेंदा, पॉट गेंदा, आयरिश लास गेंदा, जेनिथ लेमन येलो गेंदा, जेनिथ रेड गेंदा, मेक्सिकन गेंदा आदि किस्म है। ये किस्मे भारत में अधिक उगाई जाती है।
गेंदे के पौधे में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
मिली बग
यह रोग पौधे की पत्तियों ,तनो ,और खासकर नए पत्तो पर दिखाई देता है ,यह पौधे पर शहद जैसा पदार्थ छोड़ता है। पदार्थ की जगह बाद में काले रंग के फगस हो जाते है ,जिसे सुटी मोल्ड कहा जाता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पोधो पर डाइमैथोएट 2 मिली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करनी चाहिए।
थ्रिप्स
यह रोग पौधे पर रंग बदलता है पेटो का मुडना ,टूटना ,गिरना इस रोक के कारण होता है ,जिससे पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए फिप्रोनिल 1.5 मि.ली. या आज़ार्डिरैक्टिन 3 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करनी चाहिए।
उखेड़ा रोग
यह रोग घटिया निकास वाली भूमि में अधिक पाया जाता है। यह मिट्टी में पाया जाता है। पौधे के तने पर धब्बे हो जाते है इसका हमला पौध को तैयार करते समय होता है और यह अन्य पोधो का भी नुकसान पहुँचता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पोधो की खलियो में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर डालनी चाहिए।
कैटरपिलर
यह एक प्रकार का कीट होता है जो हरा और भूरा होता है यह पोधो की पत्तियों ,टहनियों ,और क्लियो पर अधिक मात्रा के पाया जाता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए 1.5 मिलीलीटर इण्डोसल्फान या मैलाथियान एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|
खेत की तैयारी कैसे करे और पौध रोपाई
खेती में फूलो की अच्छी पैदावार के लिए खेत की अच्छे से जुताई करनी चाहिए। उसके बाद पुरानी फसल के अवशेषों को पुररी तरह से नष्ट कर खेत देना चाहिए ,उसके बाद खेती में गोबर की खाद को डालना चाहिए ,गोबर की खाद को डालने के बाद मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए ,यानि जुताई करके मिटटी में खाद को अच्छे से मिला सकते है। उठकर बाद खेत में पानी देना चाहिए और जब पानी थोड़ा सूख जाये तब खेत की फिर से अच्छे से जुताई करनी चाहिए। ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाये।
उसके बाद खेत में गड्डे खोदने चाहिए और पौध को गड्डो में लगा देना चाहिए। पौध को नर्सरी से खरीदना चाहिए। पौधे स्वस्थ और पुराने होने चाहिए। उसके बाद गड्डे में गोबर की खाद डाले या उसमे रासायनिक खाद का प्रयोग भी कर सकते है उसको गड्डे की मिट्टी में अच्छे से मिलाना चाहिए। फिर पौध को गड्डो में लगा देना चाहिए। उसके बाद उसके पोधो पर सिचाई कर देनी चाहिए।
गेंदे के फूलो की तुड़ाई
इसके फूलो की तुड़ाई जून माह में की जाती है। बारिश के मौसम में फूलो का उत्पादन सितम्बर से लेकर दिसम्बर तक और सर्दियों के मौसम में जन्वरी से लेकर मार्च तक लगातार पुष्प का उत्पादन की जाता है इसकी खेती पहाड़ी क्षेत्रों में सफलता पूर्वक की जाती है। फूलो की तुड़ाई सुबह या फिर शाम के समय की जानी चाहिए। फूलो की तुड़ाई की बाद फूलो को बाजार में बेच देना चाहिए।
फूलो से प्राप्त पैदावार
हम आपको बता दे की अफ्रीकन किस्म 200 से 300 किवंटल की पैदावार देता है और फ्रेंच किस्म 200 किवंटल की पैदावार देता है ,जिससे किसानो को अधिक मुनाफा होता है। इसके अलावा हाइब्रिड किस्म 350 किवंटल की पैदावार देती है। इसकी खेती कर किसान प्रति हेक्टैयर के हिसाब से अच्छी पैदावार लेकर अधिक मात्रा में उपज प्राप्त करता है।