Orange farming : संतरे के खेती (Santra Ki Kheti) नींबू फल के लिए की जाती है संतरा में खट्टा और मीठा दोनों स्वाद होता है ,यह रसदार फल होता है जिसकी खेती भारत में आम और केले के बाद ज्यादा की जाती है। संतरे को खाने के लिए प्रयोग किया जाता है लेकिन संतरे का जूस निकलकर भी पी सकते है। इसके जूस से जैम और जेली भी बना सकते है ,संतरे का जूस काफी लाभकारी होता है। संतरे का जूस शरीर के तनाव और थकान को दूर कर ताजगी महसूस करवाता है। यह कई बीमारियों में भी लाभकारी होता है। नींबूवर्गीय फलो में से 50 % संतरे की खेती की जाती है। संतरे को मेडेरिन भी कहा जाता है

इस फल को भारत में उगाया जाता है जो की एक नींबू वर्गीय फल है। भारत में इसकी खेती राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तर प्रदेशहरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात में मुख्य रूप से की जाती है। देश में संतरे का कुल क्षेत्रफल 4.28 लाख हेक्टेयर है जिसमे से 51.01 लाख टन उत्पादन किया जाता है। भारत में नागपुर किस्म की खेती मशहूर है। 80 % संतरा महाराष्ट में उत्पादित किया जाता है। संतरे की कई किस्मे भी विकसित की जा चुकी है जिससे अन्य राज्यों में भी इसकी खेती करने की संभावना बनी हुई है।

संतरे का वानस्पतिक नाम सिट्रस रिटीकुलेटा है। संतरे का रंग नारंगी होता है ,जो खाने में भी उतना स्वाद होता है ,जितना सेहतमंद होता है ,इसलिए संतरा किसानो की अच्छी कमाई करता है और इसमें औसधीय गन पाए जाते है ,जो स्वस्थ के लिए काफी लाभदायक होते है। अगर आप भी संतरे की खेती (Santra Ki Kheti) करने का मन बना रहे है तो आज हम आपको संतरे की खेती की सम्पूर्ण जानकारी के बारे में बतायेगे। आइये जानते है कैसे करे संतरे की खेती।

संतरा के फल खाने के फायदे

  • संतरे में विटामिन C उचित मात्रा में मिलता है इसमें फाइबर के गुण भी मिलते है ,जो आपको बार -बार भूख लगने में मदद करते है।
  • संतरा दातो को मजबूत बनाते है और हेल्दी बनाए रखते है।
  • संतरे में कैल्शियम की मात्रा अधिक पाई जाती है।
  • संतरे का रोज सेवन करने से जोड़ो के दर्द से राहत मिलती है।
  • संतरा के रोज सेवन से ब्लड प्रेशर को कम किया जा सकता है।
  • इसके सेवन से किडनी स्टोन की समस्या दूर होती है।
  • इसका रोज सेवन करने से स्किन को हेल्दी रख सकते है।

संतरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान

संतरे की फसल (Santra Ki Kheti) की पैदावार उसकी जलवायु पर निर्भर करती है ,जलवायु किसान की खेती के लिए अहम भूमिका निभाती है। इसकी खेती जलभराव वाली भूमि नहीं होनी चाहिए। संतरे की खेती उष्ण और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। जिस कारण इस खेती को वर्षा के अधिक जरूरत नहीं होती है सदियों में इसके पौधे पाले से अधिक प्रभावित होते है। संतरे के फल धूप में अधिक पकते है। इसकी पौध रोपाई के दौरान 20 से 25 डिग्री तापनाम और पौध विकास के समय 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। इसके पौधे अधिकतम 35 डिग्री और न्यूनतम 10 डिग्री तापमान को सहन कर सकते है।

संतरे की खेती के लिए उपुयक्त मिट्टी

संतरे को खेती (Santra Ki Kheti) बहुत तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसके विकास के लिए हल्की दोमट मिट्टी आवश्यक होती है। मिट्टी का PH मान 4.5 -8.0 हो,में हो तो अच्छा विकास होता है। फलो की खेती के लिए मिट्टी में उपजाऊपन होना बहुत जरूरी है।
पौध रोपाई से पहले मिट्टी का परीक्षण कर लेना चाहिए ताकि भविष्य में आने वाली समस्याओ से बचा जा सकता है। फलो की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी फसल के अनुकूल होनी चाहिए।

संतरे के पौधे की सिचाई

संतरे के पौधे को आरम्भ में अधिक सिचाई के आवश्यकता होती है। इसके लिए पोधो को उचित मात्रा में पानी देना चाहिए इसकी पहली सिचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में सप्ताह में एक बार सिचाई करनी चाहिए और सर्दियों में एक महीने के अंतराल पर सिचाई करे। वर्ष में 4 से 5 सिचाई आवश्यक होती है ,ताकि फल और फूल समय पर आ सके।

संतरे की किस्मे

संतरे की किस्मो (Santra Ki Kishme) की बात करे तो भारत के अलग -अलग राज्यों में अपने हिसाब से अलग किस्मे उगाई जाती है। जैसे की कर्नाटक में कुर्ग किस्म सबसे अच्छी किस्म माननी जाती है वही उत्तर प्रदेश में किन्नू अधिक उगाया जाता है। और हरियाणा, पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश में बुटबल किस्म को अधिक उगाया जाता है। कुल मिलाकर संतरे की 182 किस्मे होती है ,जिनमे से कुछ इस प्रकार है –

किन्नू किस्म

यह किन्नू की हाइब्रिड किस्म होती है ,यह किस्म मुख्य रूप से पंजाब में उगाई जाती है। इस किस्म के पौधे आकार में बड़े होते है। इसके पत्ते भी एक सामान होने के साथ घने और फैले हुए होते है। पकने पर इसके फलो का रंग पीला होता है। इसके फल रस से भरे होते है। संतरे की इस किस्म में 12 से 20 बीज होते है।

नागपुरी संतरा

इस किस्म के संतरे मीठे और स्वादिष्ट होते है इस किस्म का उत्पादन महाराष्ट्र के मराठवाडा, विदर्भ और पश्चिमी महाराष्ट्र में मुख्य रुक से किया जाता है। महाराष्ट में देश के कुल उत्पादन का 80 % संतरा उत्पादित किया जाता है। देश में इस किस्म के संतरे प्रसिद्ध है ,स्वास्थ के लिए इसका सेवन अच्छा होता है। इस किस्म की खेती अन्य राज्यों में भी की जाती है।

खासी संतरा

संतरे की इस किस्म को सिक्किम के नाम से भी जाना जाता है। व्यावसायिक रूप से इसकी खेती आसाम और मेघालय में की जाती है इसके फल का रंग गहरा संतरी होता है ,और नर्म भी होता है। एस्किसम के पेड़ बड़े आकार के होते है। इनके पत्ते घने और कटे वाले होते है।

कुर्ग संतरा

इस किस्म के संतरे को आराम से छिला जा सकता है। इनके फल चमकीले और बड़े होते है। इस किस्म का पेड़ घना होता है। इस किस्म के फल में 15 से 25 बीज होते है। यह फल काफी रसदार होते है।

दार्जिलिंग संतरा

इस किस्म के पेड़ दार्जिलिंग में पाए जाते है। यह अच्छा उत्पादन देते है इस किस्म के संतरे काफी रसीले और मीठे होते है।

इसके अलावा अन्य राज्यों के किस्मे इस प्रकार है –मुदखेड ,श्रीनगर ,बुटवल ,दानस्य ,और सीडलेस 182 आदि किस्मे भी होती है।

संतरे की पौध को तैयार करना

संतरे की पौध नर्सरी में तैयार की जाती है इसके लिए सबसे पहले संतरे के बीज को राख में मिलकर सूखा लिया जाता है उसके बाद बीजो को मिट्टी से भरी पॉलीथिन बैग में लगाकर रख देते है ध्यान रहे की एक बैग में 2 से 3 पौधे ही लगाने चाहिए।

जब बीज अंकुरित हो जाये तब कमजोर पोधो को नष्ट कर दे और स्वस्थ पोधो को रखे। फिर जब पौधा दो फ़ीट लम्बा हो जाये तब पौध रोपने के लिए तकनीक कस प्रयोग कर कलम से पौधा तैयार करे।

संतरे की खेती के लिए खेत की तैयारी

संतरे की खेती (Santra Ki Kheti) के लिए सबसे पहले खेत में पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए ,उसके बाद खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए जुताई के बाद उसमे पाटा लगवाना चाहिए ,जिससे खेत समतल हो जाये। उसके बाद उसमे 15 से 18 फ़ीट की दुरी पर गढ्ढा खोदे ,गड्डा पक्ति में होना चाहिए। जब गड्डे तैयार हो जाये तब मिट्टी में गोबर की खाद को मिलकर भर देना चाहिए। उसके बाद सिचाई कर देनी चाहिए। फिर इसको पुलाव से ढक देना चाहिए।

संतरे की पौध को रोपना

संतरे की पौध को तैयार करके तैयार गड्डो में लगाया जाता है सबसे पहले गड्डे में खुरपे से छोटा गड्डा कर ले फिर उसमे पौधे की पोलोथिन का हटाकर पौध लगा देनी चाहिए । फिर आप उसमे गोबर की खाद भी डाल सकते हो। उसके बाद आप गड्डे को मिट्टी से भर देना चाहिए।।

संतरे के पौधे में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय

सिटरस का कोढ़ रोग

  • यह रोग पौधे की पत्तियों ,तनो ,फूलो पर पानी रंग के धब्बे होते है ,इससे पौधे के नए पत्तो पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है। हवा के साथ यह रोग दूसरे पोधो में भी हो सकता है ,यह सिटरस कैंकर बैक्टीरिया होता है।
  • इस रोग के रोकथाम के लिए प्रभावित टहनी को काटकर फेक देना चाहिए ,और बॉर्डीऑक्स 1 % स्प्रे, एक्यूअस घोल 550 पी पी एम, स्ट्रैप्टोमाइसिन सल्फेट का छिड़काव करे।

पत्तों के धब्बा रोग

  • यह रोग पौधे की पत्तियो के ऊपर वाले भाग पर होता है जिससे पत्ते मूड जाते है और उसमे सफेद रंग का धब्बा हो जाता है ,जिससे उपज कम होती है। और पौधा कमजोर हो जाता है।
  • इसके रोकथाम के लिए प्रभावित भाग को निकाल देना चाहिए और कार्बेनडाज़िम की 20-22 दिनों के अंतराल पर तीन बार स्प्रे की चाहिए।

जिंक की कमी

  • यह सामान्य कमी होती है इसको पत्तो के मध्य में पीले भाग के रूप में दिखाई देती है ,इसके होने पर फल पीला ,लम्बा और छोटा हो जाता है।
  • इसकी कमी को पूरा करने के लिए खादों की उचित मात्रा देनी चाहिए। और जिंक सल्फेट को 10 लीटर पानी में 2 चम्मच मिलाकर पत्तो पर स्प्रै करनी चाहिए

काले धब्बे:

  • यह फगस वाली बीमारी होती है ,जिससे फल पर काले धब्बे हो जाते है।
  • इसके रोकथाम के लिए बसंत ऋतू में इनके पत्तो पर स्प्रै करनी चाहिए इसको 6 सप्ताह में दोबारा करनी चाहिए।

संतरे में लगने वाले कीट व् उसके उपचार

चेपा और मिली बग

  • यह कीट पौधे का रस चूस लेते है यह कीट पोधो को अपना भोजन बनाकर कमजोर कर देते है ,यह कीट पत्तो के अंदर पाया जाता है।
  • इसके रोकथाम के लिए पाइरीथैरीओड्स या कीट तेल का प्रयोग कर सकते है।

स्केल कीट

  • यह बहुत ही छोटा कीट होता है जो पौधे में लगने वाले फलो और फूलो का रस चूसता ही ,जिससे पौधा कमजोर हो जाता है यह कीट शहद की बून्द की तरह पदार्थ छोड़ता है।
  • इसके रोकथाम के लिए पैराथियोन 0.03% इमलसन, डाइमैथोएट 150 मि.ली. या मैलाथियोन 0.1% की स्प्रै करनी चाहिए।

सिटरस सिल्ला

  • यह भी रस चूसने वाला कीट होता है यह पौधे पर एक तरल पदार्थ छोड़ता है जिससे पौधे की पत्ते और फल के छिलके जल जाते है ,और पत्ते मूड जाते है और पकने से पहले ही गिर जाते है।
  • इसके उपचार के लिए मोनोक्रोटोफॉस 0.025% या कार्बरिल 0.1% की स्प्रे इसके लिए लाभदायक हो सकती है।

फल की कटाई का उचित समय

इसका उचित समय जनवरी से फरवरी माना जाता है ,इस महीने में फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है। कटाई उचित समय पर करनी चाहिए ,ऐसा नहीं करने पर फलो के गुणवत्ता प्रभावित होती है।

संतरे की खेती में पैदावार और कमाई

संतरे की पैदावार उसकी देख -रेख पर निर्भर करती है। जितनी अच्छी पौधे की देखरेख होगी उतनी ही फलो की पैदावार होगी हम आप को बता दे की एक विकसित पौधे से 100 से 150 किलोग्राम की उपज होती है
बाजार में संतरे का भाव 30 से 40 रूपये प्रति किलो के आस -पास होता है जिससे 4 लाख की कमाई एक खेत की होती है। इससे भी किसानो को अधिक मुनाफा होता है

मैं शुभम मौर्या पिछले 2 सालों से न्यूज़ कंटेंट लेखन...

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