Palak Ki Kheti: पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) पुरे भारत में बहुतायत की जाती है और पालक की मांग पुरे साल भार रहती है। पालक को सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी माना जाता है। पालक को कई चीजों में इस्तेमाल किया जाता है। पालक को पनीर के साथ, पालक के पकौड़े, पालक की भुज्जी, पालक की रोटी के अलावा दाल के साथ भी पालक को खूब बनाया जाता है। पालक खाने से शरीर में बहुत से लाभ मिलते है जिनके बारे में आगे चर्चा करेंगे।
अब सर्दियाँ आने वाली है और सर्दियों में पालक को बहुत अधिक इस्तेमाल किया जाता है। पालक में प्राकृतिक आयरन की मात्रा बहुत अधिक होती है जिसकी वजह से ये शरीर में खून को बढ़ने का काम बहुत तेजी के साथ करता है। पालक की उत्त्पत्ति की अगर बात करें तो इसकी उत्पत्ति ईरान से हुई मानी जा रही है।
किसान भाई पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) करके बहुत अधिक मुनाफा कमाई कर सकते है लेकिन उसके लिए आप सभी को पालन की खेती करने के बाए में पूरी जानकारी होना बहुत जरुरी है। पालक की खेती की जानकारी अच्छे से नहीं होगी तो फिर पालक की खेती तो हो जाएगी लेकिन गुणवत्ता वो नहीं मिल पायेगा जो होनी चाहिए। पालक की क्वालिटी और गुणवत्ता के आधार पर ही बाजार में भाव भी निर्धारित होते है।
यहाँ देखिये इस आर्टिकल में की पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) कैसे की जाती है और पालक खेती में किन किन बातों का ध्यान रखना होता है।
पालक की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी और जलवायु कैसी होनी चाहिए
आपने देखा होगा की पालक आपको बाजारों में सबसे अधिक सर्दियों में देखने को मिलती है। इसका कारन यही है की पालक की खेती सर्दियों की खेती है। पालक के पौधे 5 डिग्री तक का तापमान भी आसानी से सहन कर लेते है। पालक का पौधा सर्दियों में बहुत अच्छा विकाश करता है।
पालक की खेती के लिए मिटटी की अगर बात की जाए तो पालक के लिए सबसे उत्तम मिटटी बलुई दोमट होती है। लेकिन इसमें किसानो को ये ध्यान रखना है की खेत में जल भराव की समस्या नहीं होनी चाहिए। जिस खेत में पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) किसान भाई करना चाहते है उस खेत की मिटटी का pH मान 7 के आसपास रहना चाहिए तभी पालक की खेती से किसानो को ज्यादा पैदावार मिलती है। आमतौर पर पालक की खेती 5 डिग्री तापमान से लेकर 25 डिग्री तक का तापमान आसानी से सहन कर लेती है। पालक के बीजों को अनुकूरित होने के लिए उपयुक्त तापमान 15 डिग्री होता है जिसमे सभी बीज आसानी से अंकुरित हो जाते है।
पालक की उन्नत किस्मे कौन कौन सी हैं (Spinach Improved Varieties)
किस्म का नाम | संस्था | पैदावार प्रति एकड़ | बुवाई का समय |
ऑल ग्रीन | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली | 10-12 टन | अक्टूबर-मार्च |
अर्का अनुपमा | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली | 8-10 टन | अक्टूबर-मार्च |
पूसा ज्योति | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली | 8-10 टन | अक्टूबर-मार्च |
जोबनेर ग्रीन | कृषि अनुसंधान केंद्र, जोबनेर | 8-10 टन | अक्टूबर-मार्च |
हिसार सिलेक्शन 23 | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, हिसार | 6-8 टन | अक्टूबर-मार्च |
पंजाब ग्रीन | पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना | 6-8 टन | अक्टूबर-मार्च |
पूसा हरित | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली | 6-8 टन | अक्टूबर-मार्च |
पालक की ऑल ग्रीन किस्म – All green variety of spinach
ऊपर दी गई पालक की इन किस्मों में ऑल ग्रीन किस्म की पालक किसानो को प्रति एकड़ में लगभग 12 टन तक की पैदावार आसानी से दे देती है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विकसित किया है। पालक की इस किस्म की बुवाई के बाद ये किसानो को लगभग 30 से 35 दिनों में उपज देना शुरू कर देती है। पालक की ये किस्म कटाई के बाद बहुत तेजी से बढ़ती है और जल्द ही फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके अलावा पालक की ये किस्म खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होती है। बहुत से लोग तो इसको कच्चा खाते है और वैसे भी कच्चा पालक सेहत के लिए ज्यादा फायदे करता है।
पालक की अर्का अनुपमा किस्म – Arka Anupama variety of spinach
Spinach Farming in Hindi: किसान भाई अपने खेत में पालक की इस किस्म की बुवाई करके आसानी से 10 से 12 टन की उपज ले सकते है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विकसित किया है। पालक की ये किस्म एक संक्रमण किस्म है जिसको कृषि वैज्ञानिकों ने अधिक पैदावार के लिए तैयार किया है। पालक की अर्का अनुपमा किस्म बुवाई के 40 से 45 दिनों में किसानो का पैदावार देने लग जाती है।
पूसा ज्योति पालक की किस्म – Pusa Jyoti Spinach Variety
पालक की ये किस्म सबसे अधिक पैदावार देने वाली किस्मों में से एक है। पालक की ईएसएम किस्म को बुवाई करके किसान भाई आसानी से प्रति एकड़ में 8 से 10 टन की उपज प्राप्त कर सकते है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विकसित किया है। पालक की इस किस्म की बुवाई करने के 40 दिनों के बाद प्याज मिलनी शुरू हो जाती है और इस किस्म में कटाई के बाद तेजी से द्वारा बढ़ने की छमता भी मौजूद है। किसान भाई पूसा ज्योति किस्म की पालक से बड़े आराम से 8 से लेकर 10 कटाई प्राप्त कर सकते है।
पालक की जोबनेर ग्रीन किस्म – Jobner Green variety of spinach
पालक की ये किस्म देश के कुछ राज्यों में बोई जाती है। इस किस्म की खेती करने के लिए किसानो को पहले अभी भूमि की टेस्टिंग करवानी चाहिए क्योंकि इस किस्म को क्षारीय भूमि में बोन के बाद अधिक पैदावार मिलती है। इस किस्म को कृषि अनुसंधान केंद्र, जोबनेर ने विकसित किया है। बुवाई के 35 से 40 दिनों के बाद वैसे आसानी से किसान भाई उपज लेने लग जाते है। इस किस्म से किसानो को प्रति एकड़ में 8 से 10 टन की उपज मिल जाती है। कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा इस किस्म को क्षारीय भूमि के लिए विकसित किया है इसलिए इस किस्म को देश के सभी राज्यों में नहीं बोया जा सकता। मिटटी की अलग तरह के प्रकार में इससे किसानो को उपज कम प्राप्त होती है।
पालक की हिसार सिलेक्शन 23 किस्म – Hisar Selection 23 variety of spinach
पालक की हिसार सिलेक्शन 23 किस्म एक तरह की उन्नत किस्म है जिसको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, हिसार के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म के पत्ते बड़े आकार के होते है और इस किस्म से किसान भाइयों को आसानी से प्रति एकड़ में 6 से 8 टन की उपज मिल जाती है। पालक की इस किस्म में किसान भाई बुवाई के 30 से 35 दिनों के बाद ही उपज लेना शुरू कर सकते है।
पालक की पंजाब ग्रीन किस्म – Punjab Green variety of Spinach
जैसा की इस किस्म ने नाम से ही पता लगता है की ये किस्म पंजाब से सम्बंधित है इसलिए इस किस्म को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के द्वारा विकसित किया गया है। पालक की इस किस्म की पत्तियों का साइज बड़ा होता है और रंग गहरा हरा होता है। किसान भाई इसकी बुवाई करने के बाद इससे 30 से 35 दिनों के बाद उपज लेना शुरू कर सकते है। इस किस्म से किसानो को प्रति एकड़ 6 से 8 टन तक की उपज हो जाती है।
पूसा हरित पालक की किस्म – Pusa Green Spinach Variety
पालक की पूसा हरित किस्म किसानो के लिए वरदान साबित होती है क्योंकि इसको साल में कभी भी बोया जा सकता है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विकसित किया है और इसकी खेती से किसानो को आसानी से प्रति एकड़ में 6 से 8 टन की उपज मिल जाती है। इस किस्म को ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में बोया जाता है। इस किस्म की पत्तियों का आकार बड़ा और रंग गहरा हरा होता है। इस किस्म में पालक की खेती में लगने वाले रोग और कीटों के प्रति रोग प्रतिरोधक छमता है।
पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) के लिए खेत की तैयारी कैसे करें?
जैसा की हमने ऊपर इस आर्टिकल में बताया था की पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) के लिए बलुई दोमट मिटटी सबसे अच्छी मानी जाती है इसलिए खेत का चुनाव करते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना होता है। जिस खेत में पालक की खेती करनी है उस खेत में जल भराव की समस्या नहीं होनी चाहिए नहीं तो पालक की खेती ख़राब हो जाएगी।
सबसे पहले जिस खेत में पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) करनी है उस खेत में प्लेव करके पानी देना है ताकि खेत में नमी की मात्रा अच्छे से आ जाये। इसके बाद किसान भाइयों को खेत की जुताई करनी है और उसके बाद उसमे सड़े गोबर की खाद डालनी है। एक एकड़ में लगभग 200 क्विंटल तक खाद सही रहती है। खाद डालने के बाद इस खाद को पुरे खेत में अच्छे से बिखेरना है। खाद बिखेरने के बाद इस खेत की एक बार फिर से जुताई करनी है। ये काम पालक की बुवाई से 10 से 15 दिन पहले करना चाहिए ताकि खाद मिटटी में पूरी तरह से मिक्स होकर एक्टिव हो जाये।
किसान भाई चाहे तो इस खेत में रासायनिक खाद भी आखिरी बुवाई से ठीक पहले डाल सकते हैं। इसके बाद किसान भाइयों को खेत में एक बार फिर से जुताई करके पाटा मारना है ताकि खेत समतल हो जाये। इस बात का ध्यान रखें की खेत पूरी तरफ से समतल होना चाहिए नहीं तो जल भराव की दिक्कत आयेगी। इसके अलावा पाटा मारने से खेत में सिंचाई करते समय पानी सामान रूप से फैलता है।
पालक की खेती के लिए बीज की मात्रा और बुवाई का तरीका
किसान भाई अगर एक हैक्टेयर में पालक की खेती करना चाहते है तो उनको लगभग 22 से 25 किलोग्राम बीजों की जरुरत पड़ेगी। किसान भाइयों को हमेशा बीज ऐसी जगह से खरीदारी करने चाहिए जो भरोसेमंद जगह हो। अगर पालक के बीज सही क्वालिटी के नहीं है तो आपको पालक की फसल भी अच्छी गुणवत्ता वाली प्राप्त नहीं होगी। इसके अलावा किसान भाई अगर बीजों को बुवाई के कुछ घंटे पहले अगर पानी में भिगो दे तो इससे पालक के बीजों का अंकुरण अच्छे से हो जाता है लेकिन बिना गीले किये भी बीजों की बुवाई की जा सकती है।
पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) में बीजों की बुवाई दो तरीके से की जाती है जिसमे आमतौर पर किसान भाई छोडकाव विधि का इस्तेमाल करके पालक के बीजों की बुवाई करते है। लेकिन इसके अलावा किसान भाई पंक्ति में भी पालक के बीजों की बुवाई कर सकते है। पालन के बीजों को 2 से 3 सेमि गहराई में बोन से सभी बीजों का अंकुरण सही से होता है। इससे अधिक गहराई में बीज डालने पर सभी बीज बाहर नहीं निकल पाते।
पालक की बुवाई का सही समय अक्टूबर से फरवरी तक होता है लेकिन आजकल बहुत सी ऐसी किस्मे भी बाजार में उपलब्ध है जिनकी बुवाई आप साल में कभी भी कर सकते हैं। छिड़काव विधि में आपको ध्यान रखना है की बीजों को छिड़कने के बाद अच्छे से मिटटी में बड़ा देना चाहिए। जो बीज बाहर रह जाते है उनमे से ज्यादातर बीज ख़राब हो जाते है या फिर चींटियां आदि कीटों के द्वारा खा लिए जाते है।
पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) में खरपतवार नियंत्रण
पालक की खेती (Spinach Farming in Hindi) में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए आपको प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही तरीके अपनाने की जरुरत होती है। प्राकृतिक तरीके से आपको बीजों की बुवाई के 15 दिनों के बाद इसकी निराई गुड़ाई का काम करना चाहिए। इसके अलावा अगर आप रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रित करना चाहते है तो आपको पेंडीमेथिलीन नमक दवाई का पानी के साथ घोल बनाकर इसका छिड़काव बीजों की बुवाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए।
पालक की खेती में सिंचाई कैसे करनी चाहिए – How should irrigation be done in spinach farming?
पालक एक ऐसी सब्जी है जो हमेशा नमी को पसंद करती है और आपने देखा होगा की सर्दी के ममौसम में ही पालक की खेती की जाती है। पालक के पौधों की सिंचाई (Irrigation of Spinach Plants) नियमित रूप से और पर्याप्त मात्रा में करना बहुत जरुरी होता है। इसके लिए आप निचे दी गये समय और तरीकों का इस्तेमाल कर सकते है।
बीजों को बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई पालक के खेत में करनी बहुत जरुरी होती है। इससे बीजों को अंकुरित होने में सहायता मिलती है। इसके बाद जब भी आपको लगे की खेत (Spinach Farm) में नमी जा रही है तो तुरंत सिचाई करें। पौधों के बड़े होने पर आपको सप्ताह में दो बार सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई हमेशा सुबह या फिर शाम के समय करनी चाहिए।
पालक की कटाई करने के भी तुरंत बाद इसकी सिंचाई करनी जरुरी होती है ताकि दोबारा से पत्तों के आने में देरी ना हो। पालक के खेत में सिंचाई करने के कई तरीके होते है। साधारण तरीका तो ये है की खेत में शुरू में ही क्यारिया बना दी जाती है और फिर उन क्यारियों को पानी से भर दिया जाता है। इसके अलावा खेत में ड्रिप सिस्टम भी लगाया जा सकता है। इन दोनों तरीकों के अलावा खेत में आप फव्वारा सिस्टम (Sprinkler System) से भी पालक की फसल की सिंचाई कर सकते है। पालक के पौधों को समय रहते पानी देने से फसल बहुत अछ्छी होती है और पैदावार भी अधिक मिलती है।
पालक की फसल में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम – Diseases of spinach crop and their prevention
पालक की फसल में लगने वाला आर्द्रगलन रोग
पालक की फसल में लगने वाला आर्द्रगलन रोग जल भराव के कारण होता है। इससे पालक की पूरी की पूरी फसल जो जल भराव की चपेट में आई है वो ख़त्म हो जाती है। इस रोग से पालक की फसल को बचने के लिए ट्राइकोड्रमा से उपचारित करने के बाद ही बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
पालक की फसल में लगने वाला पत्ता धब्बा रोग
सर्कोस्पोरा बेटीकोला नामक फफुंद से पालक की फसल में ये रोग लगता है। इस रोग के कारण पालक के पत्तों पर वृताकार धब्बे नजर आने लगते है। इस रोग की रोकथाम के लिए डाइथेन Z – 78 का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
पालक की फसल में लगने वाला पर्ण चित्ती रोग
पालक की फसल में ये रोग फाइलास्पिक्ता फफूंद की वजह से होता है। इस रोग के कारण पालक के पत्तों पर पिले रंग के निशान उभर कर आते है। इससे पालक की फसल की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए किसान भाइयों को अपनी पालक की फसल में डाइथेन Z – 78 का 3 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
पालक की फसल में लगने वाला श्वेत किट्र रोग
पालक की फसल में लगने वाला ये रोग एलब्यूगो आक्सीडेन्टेलिस नाम के एक कवक के कारण पैसा होता है। इस रोग के कारण पालक के पौधों की पत्तियां पूरी तरह से ख़राब हो जाती है। धीरे धीरे कुछ समय के पश्चात पत्तियां सूखने लगती है। इस रोग से पालक की फसल को बचने के लिए किसान भाइयों को डाइथेन Z – 78 का 3 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
पालक की पत्ती खाने वाला कीट
पालक की फसल में ये एक किट होता है जो पालक की फसल में पौधों के पत्तों को खा जाता है। ये किट पत्तों में से हरे रंग के पदार्थ को पूरी तरह से खा जाता है।
पालक की फसल की कटाई
पालक की फसल की कटाई उसकी किस्म के आधार पर होती है। वैसे ज्यादातर किस्मे 35 से 45 दिनों में उपज देनी शुरू कर देती है। पालक की कटाई काने के लिए किसानो को दराती का उपयोग करना चाहिए। कटाई के बाद सूतली की मदद से पालक के पत्तों का बण्डल बनाकर तैयार करना चाहिए। पालक की फसल में में कितनी बार कटाई करनी है ये भी पालक की किस्म पर ही निर्भर करता है।