कृषि

चाय की उन्नत खेती कैसे करे ,जानिए चाय की उन्नत किस्मो की सम्पूर्ण जानकारी

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक है।असम घाटी और कछार असम के दो चाय उत्पादक क्षेत्र हैं।वित्त वर्ष 2020-21 के लिये भारत का कुल चाय उत्पादन 1,283 मिलियन किलोग्राम हो गया था। दुनिया भर के 25 से अधिक देशों में चाय का निर्यात करता है। 2021 में भारत से चाय निर्यात का कुल मूल्य लगभग 9 मिलियन अमेरिकी डॉलर माना गया है। भारत की असम, दार्जिलिंग और नीलगिरि चाय को दुनिया में बेहतरीन चाय में से एक माना जाता है। अगर आप भी चाय की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको चाय की खेती कैसे करे ,उपयुक्त जलवायु ,मिट्टी ,तापमान और पेड़वार की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

Tea Cultivation : वर्तमान समय में चाय की खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है। सन 1835 में सबसे पहले अग्रेजो ने असम के बागो में चाय लगाकर इसकी शुरुआत की थी। चाय की खेती पहले पहाड़ी भागो में की जाती थी ,लेकिन अब पहाड़ी से मैदानी भागो में पहुंच गयी है। चाय की खेती पेय पदार्थ के रूप में की जाती है ,अगर चाय का सेवन सिमित मात्रा में किया जाये तो ,इससे आपको कई फायदे भी होंगे। चाय को इस्तेमाल पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है। विश्व में भारत को चाय उत्पादन में तीसरा स्थान प्राप्त है। 11 % चाय उपभोग के लिए भारत सबसे बड़ा चाय उपभोगकर्ता है। भारत देश में चाय को सबसे अधिक पीया जाता है चाय में कैफीन की मात्रा अधिक पाई जाती है ,चाय को रंग मुख्य रूप से काला पाया जता है ,जिसको पोधो और पत्तियों से तैयार किया जाता है। अगर विश्व में पानी के बाद किसी पेय पदार्थ का उपयोग किया जाता है तो वह है ,चाय।

चाय झड़ी की सूखी पत्ती होती है इसमें दिन होता है ,चाय भारत की पाय फसलों में से एक है ,इसे चाय के नाम से जाना जाता है। भारत में चाय को सबसे अधिक पीया जाता है। चाय की खेती ग्राम जलवायु में अधिक विकास करती है। चाय सभी को अच्छी लगती है। लोग रोज सुबह चाय पीकर दिन की शुरुआत करते है। चाय की खेती करने में समय लगता है लेकिन चाय की खेती से किसानो को अधिक मुनाफा होता है। चाय की खेती के लिए सबसे पहले आपको इसको प्रोसेस समझना होगा जैसे इसकी खेती कैसे करे।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक है।असम घाटी और कछार असम के दो चाय उत्पादक क्षेत्र हैं।वित्त वर्ष 2020-21 के लिये भारत का कुल चाय उत्पादन 1,283 मिलियन किलोग्राम हो गया था। दुनिया भर के 25 से अधिक देशों में चाय का निर्यात करता है। 2021 में भारत से चाय निर्यात का कुल मूल्य लगभग 9 मिलियन अमेरिकी डॉलर माना गया है। भारत की असम, दार्जिलिंग और नीलगिरि चाय को दुनिया में बेहतरीन चाय में से एक माना जाता है। अगर आप भी चाय की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको चाय की खेती कैसे करे ,उपयुक्त जलवायु ,मिट्टी ,तापमान और पेड़वार की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

चाय पीने की स्वस्थ पर लाभ

  • चाय में कॉफी से कैफीन कम मात्रा में पाया जाता है।
  • चाय का सेवन कैंसर से बचा सकता है।
  • चाय दिल के दौरे और स्ट्रोक के जोखिम को कम करने में मदद करती है।
  • चाय में भरपूर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते है।
  • चाय का सेवन करना से शरीर में कोफ़ी के बजाय कम स्फूर्ति आती है।

चाय की खेती के लिए उपयुक्त तापमान और जलवायु

चाय के पौधे को आरम्भ में कम तापमान की जरूरत होती है। जब पौध विकास की करे तब इसको 30 से 40 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। चाय का पौधा न्यूनतम 15 डिग्री और अधिकतम 45 डिग्री तापमान सहन कर सकता है। 45 डिग्री से अधिक तापमान को यह पौधा सहन नहीं कर सकता है ,यह फसल सामान्य तापमान में अच्छे से विकास करती है।

चाय की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु को उपयुक्त मानी जाती है। चाय के पौधे को गर्मी के साथ बारिश की भी अधिक आवश्यकता होती है। चाय की खेती शुष्क और गर्म जलवायु में अधिक विकास करते है और फसल की पैदावार भी अधिक मात्रा में होती है। अचानक जलवायु में परिवर्तन इसकी फसल को नुकसान पहुंचा सकती है। छायादार जगह पर इसकी खेती लाभदायक होती है जिससे पौधे अच्छे से विकास की ओर बढ़ते है। इसलिए इसकी खेती के लिए सामान्य जलवायु अच्छी मानी जाती है।

चाय की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

चाय की खेती उच्च जल निकास की मिट्टी में अच्छे से विकास करती है और इसके लिए हल्की अम्लीय भूमि भी लाभदायक मानी जाती है ,हम आपको बता दे की चाय की खेत ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में की जाती है। जलभराव वाली जगह में इसकी फसल खराब हो सकती है। चाय की खेती के लिए भूमि का PH मान 5.4 से 6 के बीच अच्छा माना जाता है

चाय की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई

चाय की खेती करने के लिए पानी की व्यवस्था होनी चाहिए ,क्योकि चाय के पोधो को अधिक पानी की आवश्यकता होती है चाय की पौध रोपाई छायादार जगह पर करनी चाहिए। अगर बारिश हो रही है और अधिक मात्रा में बारिश होने पर पोधो को जरूरत के अनुसार पानी देना चाहिए। और कम मात्रा में बारिश होने पर सामान्य सिचाई करनी चाहिए। अगर तापमान अधिक हो तो पोधो में हल्की -हल्की सिचाई करनी चाहिए। चाय के पोधो को फव्वारा विधि से सिचाई करे।

खरपतवार नियंत्रण

चाय की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीका अपनाना चाहिए। प्राकृतिक विधि से खेत में निराई – गुड़ाई करनी चाहिए। पोधो में सबसे पहले गुड़ाई पौध रोपाई के 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाये तब भी खरपतवार दिखाई दे गुड़ाई करनी चाहिए। इसके साथ वर्ष में खेत की 3 से 4 गुड़ाई करनी चाहिए।

चाय की खेती के लिए उर्वरक की मात्रा

फसल की अच्छी पैदावार के लिए खेत की मिट्टी को उर्वरक की आवश्यकता होती है। इसकी खेती की अच्छे पैदावार के लिए खेती की जुताई के समय गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा खेत में रासायनिक तरीके का प्रयोग भी कर सकते है। इस लिए 90 KG नाइट्रोजन, 90 KG सुपर फास्फेट और 90 KG पोटाश की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में तैयार गड्डो में भर देनी चाहिए। इसके बाद पोधो को वर्ष में २ से 3 बार खाद देनी चाहिए।

चाय के प्रकार

सफेद चाय

यह साधारण किस्म की चाय होती है ,जो सभी घरो में मिल जाती है। इसके दानो का उपयोग किसी भी तरह की कही को बनाने में किया जाता है। किन्तु आमतौर से इसका उपयोग सभी जगह पर किया जाता है।

हरी चाय

इस किस्म की चाय को कच्ची पत्तियों से हरी चाय के लिए तैयार किया जाता है। इस किस्म की चाय एंटी-ऑक्सिडेंट की मात्रा सबसे अधिक होती है। इस किस्म की चाय से हरी चाय तैयार की जाती है।

काली या आम चाय

यह किस्म साधारण प्रकार की होती है। यह चाय मुख्य रूप से सभी घरो में बनाई जाती है। इस किस्म की चाय को तैयार करने में इसकी पत्तियों को तोड़कर कर्ल किया जाता है ,जिससे दानेदार बीज प्राप्त होते है।

चाय की उन्नत किस्मे

 

असमी जात

यह किस्म की चाय दुनिया में सबसे अच्छी चाय मानी जाती है। इस किस्म की पत्तियों का रंग हल्का हरा होता है। इसकी पत्तिया मुलायम और चमक दार होती है। इ किस्म को पुनः रोपाई के लिए नहीं काम में लिया जा सकता है।

चीनी जात

इस किस्म की चाय झाड़ीनुमा प्रकार की होती है। इस किस्म की चाय के बीजे बहुत जल्दी निकल आते है। इस किस्म की अच्छी पत्तियों का चुनाव किया जाये तो इस किस्म की चाय पत्ती उच्च गुणवत्ता वाली प्राप्त होती है ।

व्हाइट पिओनी

यह किस्म दुनिया की सबसे अच्छी किस्म मानी जाती है। इस किस्म की पत्तियों का रंग हरा होता है। पानी में डालने से इस चाय पत्ती का रंग हल्का हो जाता है। इस किस्म की चाय में हल्का कड़कपन होता है। इस किस्म की चायपत्ती को कोमल और बड्स के माध्यम से तैयार किया जाता है।

सिल्वर निडल व्हाइट

यह किस्म चाय की कलियों के माध्यम से तैयार की जाती है। इस किस्म की कलिया चारो ओर से रोये से ढक जाता है। इस किस्म का स्वाद मीठा और ताजा होता है ,

चाय में लगने वाले रोग व् रोकथाम के उपाय

चाय में कई प्रकार के रोग लग जाते जो पोधो को अधिक नुकसान पहुंचते है। अगर इन रोगो की रोकथाम समय पर नहीं की गयी तो यह विकराल रूप धारण कर लेते है। और फसल की पैदावार पर काफी असर पड़ता है। चाय के पौध में शैवाल, काला विगलन कीट रोग, शीर्षरम्भी क्षय, मूल विगलन, चारकोल विगलन, गुलाबी रोग, भूरा मूल विगलन रोग, फफोला अंगमारी, अंखुवा चित्ती, काला मूल विगलन और भूरी अंगमारी जैसे अनेक रोग देखने को मिलते है।

रोकथाम
इन रोगो के रोकथाम के लिए पोधो पर रासायनिक कीटनाशक का छिड़काव उचित मात्रा में किया जाना चाहिए।

चाय की खेती के लिए खेत को तैयार करना

चाय की खेती के लिए खेत की अच्छे से साफ़ -सफाई करनी चाहिए। और पुरानी फसल के मौजूद अवशेषो को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए। उसके बाद खेत की अच्छे से जुताई की जानी चाहिए। चाय की फसल अधिकतर पहाड़ी भागो में की जाती है, जहा दालु भूमि हो। उसके बाद खेत की भूमि में गड्डो को तैयार कर लेना चाहिए। गड्डे पंक्ति में बनाने चाहिए। गड्डे से गड्डे की दुरी होनी चाहिए। पंक्तियों के मध्य भी एक से डेढ़ मीटर की दूरी रखी जाती है |

चाय की पौध रोपाई का सही समय और तरीका

चाय की रोपाई पोधो के रूप में की जाती है। इसके पोधो को कलम विधि से तैयार किआ जाता है। पौध रोपाई से पहले खेत में तैयार गड्डो में खुरपी की सहायता से एक छोटा गड्डा तैयार कर लिया जाता है | इन गड्डो में पौधों को पॉलीथिन से निकालकर उनकी रोपाई कर दी जाती है। उसके बाद गड्डो को चारो ओर से मिट्टी से दबा देना चाहिए। इनके पोधो की रोपाई बारिश के मौसम के बाद भी कर सकते है।

चाय की पौध रोपाई के लिए अक्टूबर और नवंबर का महीना इसकी अच्छी पैदावार के लिए अच्छा माना जाता है। इन महीनो में रोपाई करने से पौधा विकास भी अच्छा करता है और फसल की तुड़ाई भी जल्दी आ जाती है।

चाय की खेती में हुई पैदावार

चाय का पौधा एक वर्ष में पत्तियों के तुड़ाई करने के लिए तैयार हो जाता है इसका पौधा एक वर्ष में 3 बार पैदावार देता है। इसकी पहली तुड़ाई मार्च महीने में की जाती है। और दूसरी व् तीसरी तुड़ाई 3 महीने के अंतराल पे की जाती है।

चाय की उन्नत किस्मो में प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 800 KG का उत्पादन होता है इस का बाजारी भाव काफी अच्छा होता है। जिससे किसानो को एक वर्ष की फसल से अच्छी कमाई हो जाती है। उनकी कमाई लगभग 2 से 3 लाख की कमाई होती है।

Saloni Yadav

प्रकृति के साथ में जुड़ाव रखना आज के समय में बहुत जरुरी है क्योंकि इसी से हम है। इसके रखवालों की मदद करने की जिम्मेदारी ली है तो इसको निभाने में चूक नहीं कर सकती। कृषि विषय से स्नातक की और अब घर रहकर ही किसान के लिए कलम उठाई है। उम्मीद है उनके जीवन में कुछ बदलाव जरुरी आयेगा।

Related Articles

Back to top button