भारत के कोने-कोने में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान जहां एक ओर आस्था का सागर उमड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर कुछ राज्यों में तनाव की लहरें भी देखने को मिलीं। इस ऐतिहासिक और भावनात्मक क्षण में, जहां एक ओर भक्तों की आस्था और समर्पण दिखाई दे रहा था, वहीं दूसरी ओर कुछ जगहों पर अशांति और उन्माद का माहौल भी बना हुआ था।
बिहार के दरभंगा जिले में, जहां शोभायात्रा के दौरान असामाजिक तत्वों ने उपद्रव मचाया, वहीं मुंबई के मीरा रोड उपनगर में भी समारोह से पहले दो समुदायों के बीच झड़प हो गई। इस तरह की घटनाएं न सिर्फ समाज के लिए चिंताजनक हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि किस प्रकार धार्मिक आयोजनों के दौरान भी शांति और सौहार्द्र कायम रखना एक बड़ी चुनौती है।
इस घटनाक्रम में पुलिस की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। उन्होंने त्वरित प्रतिक्रिया दिखाते हुए स्थिति को संभाला और अशांति फैलाने वाले तत्वों को नियंत्रित किया। बिहार के दरभंगा में, पुलिस ने शोभायात्रा पर हमला करने वालों को खदेड़ा और क्षतिग्रस्त वाहनों की सुरक्षा सुनिश्चित की।
मुंबई के मीरा रोड में भी पुलिस ने दोनों समुदायों के बीच शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तनावपूर्ण स्थिति में, पुलिस ने न केवल दोनों पक्षों को शांत करवाया, बल्कि संदिग्धों के खिलाफ कार्रवाई भी की।
इसके अलावा, कोलकाता के प्रतिष्ठित जादवपुर विश्वविद्यालय परिसर में भी तनाव का माहौल था। यहां पर छात्रों के दो गुटों के बीच नोकझोंक और विवाद हुआ, जिसे शिक्षकों और कर्मचारियों ने शांत कराने की कोशिश की।
गुजरात के वडोदरा में भी इसी प्रकार की घटना घटी, जहां शोभायात्रा पर पथराव किया गया। इस घटना में एक व्यक्ति घायल हो गया और पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए पथराव करने वालों की तलाशी अभियान शुरू किया।
इन सभी घटनाओं से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: क्या हम अपने धार्मिक और सामाजिक उत्सवों को शांति और सद्भाव के साथ मना सकते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर हम सभी को मिलकर ढूंढना होगा।
आज के इस आधुनिक युग में, जहां एक ओर तकनीकी प्रगति ने हमें जोड़ा है, वहीं दूसरी ओर हमें अपने सामाजिक और धार्मिक मतभेदों को पाटने की दिशा में भी काम करना होगा। ऐसे समय में, जब हम ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के आयोजनों का आनंद उठा रहे होते हैं, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी आस्था और परंपराएं शांति और सद्भाव को बढ़ावा दें, न कि विभाजन और तनाव का कारण बनें।
यह घटनाएं हमें यह सिखाती हैं कि आस्था और अराजकता के इस संगम में हमें अपनी संवेदनशीलता और समझदारी का परिचय देना होगा। हमें एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना होगा, जहां धार्मिक और सामाजिक समरसता का वातावरण हो। तभी हम अपने देश को सच्चे अर्थों में ‘भारत’ कह सकते हैं।