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गाजर की खेती कैसे करे | Carrot Farming in Hindi | गाजर की खेती का सही तरीका

Written By Vinod Yadav
Carrot Farming in Hindi
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पुरे भारत में गाजर को बड़े चाव के साथ में खाया जाता है। गाजर एक लोकप्रिय सब्जी ही नहीं बल्कि गाजर का अचार भी बहुत स्वादिष्ट होता है। गाजर अपने स्वादिष्ट और पौष्टिक गुणों के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है। गाजर में विटामिन ए, सी, और के भरपूर मात्रा में पाया जाता है। गाजर में फाइबर, पोटेशियम, और मैंगनीज भी होता है जो इंसानो के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है।

गाजर की खेती करना किसानो के लिए बहुत ही लाभ का सौदा होता है। गाजर की खेती (Carrot farming) में लगत बहुत काम लगती है और मुनाफा बहुत अधिक होता है। बाजार में गाजर की कीमत किसानो को काफी अच्छी मिल जाती है। गाजर के पत्तों का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। इसके ऊपरी भाग को पशु बड़े चाव के साथ खाते है। इससे पशुओं की दूध देने की छमता (Milk Yielding Capacity of Animals) में भी बढ़ौतरी होती है। गाजर के ऊपरी भाग का इस्तेमाल इन्शानो के द्वारा कई रूपों में किया जाता है।

गाजर का हलवा (Gajar Ka Halwa) तो पूरी दुनिया में मशहूर है। इसके अलावा गाजर का अचार, मुरब्बा, और सब्जी के अलावा इसके जूस के लिए भी किया जाता है। गाजर के जुड़ को पिने से शरीर में बहुत से फायदे मिलते है। इतने सारे गुणों वाली इस गाजर की खेती करने के बारे में आपको जरूर मालूम होना चाहिए। चलिए किसान योजना डॉट ओआरजी के इस आर्टिकल में आपको गाजर की खेती कैसे की जाती है इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी देते हैं।

गाजर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सबसे पहले जब बात गाजर की खेती करने की आती है तो ये देखा जाता है की जिस एरिया में आप गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) करना चाहते है उस एरिया की जलवायु कैसे है। इसके लिए आपको ये भी मालूम होना जरुरी है की आखिर गाजर की खेती के लिए कौन सी जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है।

गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है। गाजर की जड़ों को विकसित होने के लिए 15 से 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है। अगर वातावण का तापमान 15 डिग्री से काम होता है यानि की अधिक सर्दी होती है तो फिर गाजर का रंग हल्का और फीका हो सकता है। वैसे तो गाजर की खेती नमी वाली जगहों पर अच्छी होती है लेकिन जिस खेत में गाजर की खेती की जाती है उस खेत में पानी की निकासी का प्रबंध भी होना जरुरी है। खेत में पानी भराव होने के कारण गाजर का जमीं के अंदर का हिस्सा सड़ने लग जायेगा।

भारत में अगर गाजर की खेती करने की बात करें तो भारत में गाजर सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है। इस सब राज्यों की जलवायु गाजर की खेती के हिसाब से बिलकुल अनुकूल होती है। इन राज्यों में आदर जलवायु होती है जिसकी वजह से नमी बरक़रार रहती है जो गाजर की खेती के लिए सबसे जरुरी मानी जाती है।

गाजर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

गाजर की खेती (Carrot farming) में अधिक पैदावार खेत की मिटटी पर भी निर्भर करती है। गाजर की खेती के लिए दोमट या फिर चिकनी मिटटी बेहतरीन होती है। मिटटी में जल को धारण करने की छमता होनी जरुरी होती है। इसके साथ ही दोमट और चिकनी मिटटी में पानी की निकासी आसानी से हो जाती है। गाजर के पौधे की जड़ें काफी गहराई तक जाती है इसलिए जिस खेत में आप गाजर की खेती करना (Gajar Ki Kheti) चाहते है उसमे मिटटी की गहराई कम से कम 60 सेंटीमीटर होनी जरुरी है।

गाजर की खेती के लिए मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए। किसी खेत की मिटटी का pH मान 6.0 से कम है, तो किसान भाई उस खेत में मिटटी के अंदर चूना मिलाकर उसको आसानी से संतुलित कर सकते है। गाजर की खेती में बलुई मिट्टी (Loamy Soil), जिसमें जलधारण क्षमता कम होती है, भारी मिट्टी जिसमे जल निकासी सही से नहीं होती, क्षारीय मिट्टी, जिसका pH मान 7.0 से अधिक होता है सही नहीं मानी जाती।

इसलिए किसान भाइयों को गाजर की खेती करने से पहले अपने खेत की मिटटी की जाँच जरूर करवानी चाहिए। इससे किसान भाइयों को गाजर की खेती में उत्पादन (Production in carrot farming) अधिक मिलेगा और इससे लाभ भी अधिक होगा। गाजर की खेती करने से पूर्व खेत में अच्छे से जुताई करनी होती है और कोशिश करें की जुताई से पहले खेत में अच्छे से सड़े गोबर की खाद को अच्छे से छोडकाव कर दें। इसके बाद जुताई करने से गोबर की खाद अच्छे से मिटटी में मिल जाती है।

गाजर की खेती के लिए उन्नत किस्मे

गाजर की खेती (Carrot farming) में उन्नत किस्मों का चुनाव करना भी बहुत जरुरी होता है। अगर किसान भाई गाजर की खेती करने के समय उन्नत किस्मों का चुनाव नहीं करते है तो इससे कई प्रकार की समस्या आती है। सबसे बड़ी बात की पैदावार काम होती है और फसल की गुणवत्ता भी सही नहीं होती इससे बाजार में फसल का भाव भी सही नहीं मिल पता। इसलिए यहाँ देखिये गाजर की कुछ प्रमुख उन्नत किस्मों के नाम और उनके बारे में जानकारी।

  • हिसार चमकीली: इस किस्म की गाजर का रंग नारंगी होता है और ये मध्यम आकार की होती है। इसकी उत्पादन छमता की अगर बात करें तो एक हैक्टेयर में किसानो को लगभग 25 से लेकर 30 टन तक की पैदावार आसानी से मिल जाती है।
  • हिसार सुपर चमकीली: गाजर की ये किस्म देखने में तो लगभग हिसार चमकीली की तरह ही होती है लेकिन इसकी उत्पादन छमता अधिक होती है। इस किस्म के साथ बुवाई करके किसान भाई एक हैक्टेयर में आसानी से 30 से 35 टन तक का उत्पादन ले सकते है।
  • हिसार नारंगी: इस किस्म की गाजर का रंग भी गहरा नारंगी होता है और ये मध्यम आकार की होती है। इसकी उत्पादन छमता की अगर बात करें तो एक हैक्टेयर में किसानो को लगभग 25 से लेकर 30 टन तक की पैदावार आसानी से मिल जाती है।
  • हिसार लाल: जैसा की इसके नाम में ही प्रतीत हो रहा है की यह किस्म लाल रंग की होती है। इस किस्म के साथ गाजर की खेती करके किसान भाई एक हैक्टेयर में किसानो को लगभग 20 से लेकर 25 टन तक की पैदावार आसानी से मिल जाती है।
  • हिसार स्वीट: नाम के अनुसार ही गाजर की ये किस्म मिठास भरी होती है। इस किस्म की बुवाई सबसे अधिक की जाती है। इस किस्म की गाजर का जूस बड़ा ही स्वादिष्ट होता है। इस किस्म के साथ गाजर की खेती करके किसान भाई एक हैक्टेयर में किसानो को लगभग 20 से लेकर 25 टन तक की पैदावार आसानी से मिल जाती है।

इन गाजर की किस्मों के अलावा भारत में और भी बहुत सी किस्मों को भी बोया जाता है जो की अलग अलग क्षेत्र और अलग अलग जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए किसान भाइयों को हमेसा अपने एरिया के हिसाब से ही जलवायु का ध्यान रहते हुए गाजर की किस्म (Carrot Variety) का चुनाव करना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा कुछ किस्मे ऐसी भी तैयार की गई है जिनमे रोग प्रतिरोधक छमता (Immunity) बहुत अधिक होती है। इसलिए किसान भाई उन किस्मों के साथ भी अपने खेत में गाजर की खेती करके लाभ ले सकते है।

गाजर की उन्नत किस्मों का चुनाव (Selection of improved varieties of carrots) करके खेती करने से किसानो को प्रति हैक्टेयर अधिक उत्पादन मिलता है। इसके अलावा रोग लगने के चांस भी काफी काम हो जाते है। उन्नत किस्मे भेतरीन स्वाद और सुगंध के साथ में आती है जो की वजन में भी भारी होती है। गाजर की खेती में उन्नत किस्मों का उपयोग करने से किसानों को अधिक उत्पादन और लाभ दोनों ही प्राप्त होता है।

गाजर की खेती के लिए खेत की तैयारी

किसान भाई जब गाजर की खेती (Carrot farming) करने के लिए तैयारी करते है तो इसमें खेत को तैयार करना सबसे जरुरी हिस्सा होता है। खेती की तैयारी अगर अच्छे से की जाए तो फिर गाजर की फसल में गुणवत्ता और उत्पादन दोनों ही बहुत अच्छा होता है। इसलिए सबसे पहले खेत को मिटटी पलटने वाले हल की मदद से अच्छे से जुताई की चाहिए। इससे खेत की मिटटी भुरभुरी हो जाती है और उसमे हवा का सञ्चालन भी बढ़ जाता है।

इसके बाद खेत को समतल करके उसमे खाद डालना जरुरी होता है। किसान भाइयों को गाजर की अच्छी पैदावार और अच्छी गुणवत्ता के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में खाद डालना आवश्यक है। प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15-20 टन गोबर की खाद, 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटाश डालना चाहिए। खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए ताकि गाजर के बीजों की बुवाई से से पहले ये अच्छे से मिटटी के साथ में मिल जाए।

इसके बाद गाजर के बीजों की बुवाई (Sowing Carrot Seeds) करनी होती है। गाजर के बीजों को जायदा गहराई में नहीं डालना होता। बीज को 3-4 इंच की गहराई पर बोना चाहिए और बीजों की बुवाई करने के बाद हलकी सिंचाई करनी बहुत जरुरी है। गाजर के बीजों की बुवाई करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक माना जाता है। इस समय वातावरण का तापमान (Weather Temperature) 10 से 15 डिग्री के आसपास होता है जो की गाजर के बीजों को अंकुरित होने में मददगार साबित होता है।

गाजर की खेती के लिए खेत की तैयारी करते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना है की खेत में किसी भी प्रकार का कोई खरपतवार (Weed) नहीं होना चाहिए। इसके अलावा खेत में जल की निकासी का भी प्रबंध होना चाहिए और अगर जमीं में किसी भी प्रकार का रोग या फिर कीटों का प्रकोप है तो उसकी रोकथाम भी करनी जरुरी होती है।

गाजर की खेती के लिए बीजों की बुवाई

खेत की अच्छे से तैयारी होने के बाद बरी आती है खेत में बीजों की बुवाई करने की। इसके लिए वैसे तो इससे पहले बता दिया गया है लेकिन फिर भी कुछ पहलु है जिन पर किसान भाइयों को अच्छे से नजर रखनी है और उन्ही पहलुओं के बारे में यहाँ बताने जा रहे है।

गाजर की खेती (Carrot farming) की बुवाई आजकाल अक्टूबर से दिसंबर के अलावा अप्रैल से जुलाई के बीच में भी की जाती है। आपको बता दें की बीजों को ¼ इंच की गहराई में बोना चाहिए ताकि अंकुरण सही से हो सके और बुवाई के समय प्रत्येक छिद्र में 2 से 3 बीजों को डालना चाहिए।

बीजों की बुवाई करने के बाद में इनके ऊपर एक हलकी मिटटी की परत चढ़ा देनी चाहिए। ये तब किया जाता है जब किसान भाई छिड़काव विधि (Spraying Method) के द्वारा गाजर के बीजों की बुवाई करते है। इसके बाद तुरंत खेत में पानी देना चाहिए। आपको बता दें की गाजर के बीजों को अंकुरित होने में 2 सप्ताह का समय लग जाता है और जब सभी बीज अंकुरित हो जाए तो उनमे लगातार नमी बनाये रखने के लिए सिंचाई करते रहना चाहिए।

गाजर के बीजों की बुवाई करने से पहले बीजों को 24 घंटे के लिए पानी में भिगो कर रख देना चाहिए इससे सभी बीजों के अनुकृत होने की सम्भावना बढ़ जाती है। अंकुरित होने तक लगातार सिंचाई करते रहना चाहिए और खेत में किसी भी प्रकार का खरपतवार (Weed) नहीं होना चाहिए जो बीजों को अंकुरित होकर बहार निकलने में समस्या कर सकता है।

गाजर की खेती में खरपतवार नियंत्रण

गाजर की खेती में खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत ही जरुरी होता है। अगर ऐसा नहीं किया जाए तो ये गाजर की फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों पर ही अनुकूल असर डालते है। गाजर की फसल में पाए जाने वाले प्रमुख खरपतवारों में एकबीजपत्री खरपतवार, द्विबीजपत्री खरपतवार होते है।

एकबीजपत्री खरपतवार (Monocotyledon Weed) में जंगली गाजर, दूब, सनई, धतूरा, मक्की, मक्का आदि शामिल होते है। द्विबीजपत्री खरपतवार (Dicotyledon Weed) में गाजर घास, जंगली प्याज, जंगली मूली, बथुआ, दूधी आदि शामिल होते है। इन सभी खरपतवारों को अपने खेत से हटाने या फिर ख़त्म करने में ही किसान भाइयों की भलाई होती है।

किसान भाई खेत की जुताई (Plowing the field) के समय अगर इस बात पर ध्यान दें तो जुताई के समय ही इन सभी खरपतवारों को नष्ट किया जा सकता है। इसके अलावा खरपतवारनाशक (Weed Killer) का उपयोग करके भी किसान भाई इस समस्या से छुटकारा पा सकते है। खरपतवारनाशक का उपयोग करने से पहले किसान भाइयों को मिटटी की जाँच जरूर करवानी चाहिए ताकि मिट्टी की कवालिटी (Soil Quality) के हिसाब से ही खरपतवारनाशक का उपयोग किया जा सके। खेत में खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल करने से पहले कृषि विशेषज्ञों से सलाह करना बहुत जरुरी होता है।

इसके अलावा किसान भाई खेत में निराई गुड़ाई के जरिये भी इस समस्या से छुटकारा पा सकते है। निराई-गुड़ाई के लिए 3-4 बार हाथ से या हल के द्वारा जुताई की जाती है जिसमे खरपतवारों का नाश करने में मदद मिलती है। इसके अलावा गीली घास का उपयोग करके भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। गीली घास को गाजर के पौधों के चारों ओर फैला देने से खरपतवारों के अंकुरण को रोका जा सकता है।

गाजर की खेती में निराई गुड़ाई

गाजर की खेती में निराई-गुड़ाई (Weeding in carrot cultivation) का कार्य बहुत ही जरुरी होता है। खरपतवारों को नियंत्रित करने और गाजर के पौधों का अच्छे से विकाश करने के लिए बहुत ही जरुरी है और इसके अलावा खेत में फसल के लिए डाले गए उर्वरकों का लाभ केवल गाजर के पौधों को ही मिले इसके लिए भी निराई गुड़ाई बहुत जरुरी है।

गाजर की खेती में वैसे निराई गुड़ाई के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है क्योंकि ये इस बात पर निर्भर करेगा की खेत में खरपतवार कितनी जल्दी विकसित हो रहे है। आमतौर पर गाजर की खेती में पहली निराई-गुड़ाई (First weeding in carrot cultivation) बीजों की बुवाई के 20-25 दिनों के बाद की जाती है। इसके अलावा गाजर के खेत में दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 35-40 दिनों के बाद की जाती है।

गाजर की फसल में निराई गुड़ाई (Weeding in carrot crop) का काम हाथ से किया जाए तो सबसे बढ़िया होता है। लेकिन फिर भी आप मशीन का भी इस्तेमाल कर सकते है। गाजर की फसल में तीसरी और आखिरी निराई गुड़ाई का काम 50-55 दिनों के बाद किया जाता है।

गाजर की खेती में निराई-गुड़ाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह खरपतवारों को नियंत्रित करने और गाजर के पौधों को उचित विकास के लिए आवश्यक जगह और पोषक तत्व प्रदान करने में मदद करती है। मशीन से निराई-गुड़ाई करने के लिए एक रोटावेटर या हैरो का उपयोग किया जाता है।

निराई-गुड़ाई का काम खेतों में फसलों को पौषक तत्व प्रदान करने का काम करता है। इससे खेत में गाजर की पैदावार अधिक होती है। निराई-गुड़ाई को धीरे-धीरे और सावधानी से करें ताकि गाजर के पौधों को नुकसान न पहुंचे। यदि किसान भाई मशीन से गाजर की खेती वाले खेत की निराई-गुड़ाई कर रहे हैं तो ये अच्छे से मसझ लेना चाहिए कि मशीन की सेटिंग सही हो ताकि यह गाजर के पौधों को नुकसान न पहुंचाए।

गाजर की खेती में सिंचाई

जो किसान भाई गाजर की खेती (Carrot farming) कर रहे है उनको पहले से ही इस बात के बारे में अच्छे से पता होगा की गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) में पानी की जरुरत बहुत अधिक होती है। इसका कारन ये है की गाजर एक जड़ वाली फसल होने के कारण इसमें नमी की बहुत अधिक जरुरत होती है। खेत में नमी अगर सही से बानी रहती है तो गाजर की गुणवत्ता भी बहुत बेहतरीन होती है।

गाजर की खेती में सिंचाई करने के लिए किसान भाइयों को कई बताओं का ध्यान रखना होता है। वैसे आमतौर पर गाजर की खेती में हर सप्ताह में लगभग 1 से 2 इंच (2.5-5 सेमी.) पानी की की जरुरत होती है और इसी हिसाब से किसान भाइयों को करना चाहिए। लेकिन ये उस एरिया की जलवायु पर भी निर्भर करता है की जो मात्रा हर सप्ताह में गाजर के खेत में दी जाती है उसमे कितना बदलाव होना है।

किसान भाई गाजर की खेती (Carrot farming) में सिंचाई के लिए कई तरीकों को अपना सकते है। इन तरीकों में फव्वारा सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई, ड्रिप सिंचाई या फिर पानी बहाव वाली विधि आदि शामिल है। इनमे बहाव वाली विधि में क्यारी बनाकर खुला पानी दिया जाता है लेकिन ये थोड़े स्तर की खेती के लिए तो ठीक है लेकिन ज्यादा बड़ी मात्रा में खेती में इससे दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

गाजर के खेत में सिचाई हमेशा सुबह के समय या फिर शाम के समय करनी चाहिए क्योंकि ज्यादा धुप के समय सिचाई करने से इसका फसल पर प्रतिकूल असर पड़ता है। सिचाई को तभी करना चाहिए जब लगे की खेत में खुश्की आ रही है क्योंकि ज्यादा पानी देना भी गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) के लिए सही नहीं रहता है। अधिक सिंचाई से मिट्टी में जलभराव हो सकता है, जिससे फसल की जड़ें सड़ सकती हैं। इसके अलावा अधिक सिंचाई से मिट्टी में नमक की मात्रा बढ़ सकती है, जिससे फसल को नुकसान हो सकता है।

गाजर की खेती में खाद और उर्वरक

जैसा की आप सब जानते है की गाजर एक पौष्टिक सब्जी है तो इसी कारण से गाजर की खेती में पौषक तत्वों की अधिक मात्रा की जरुरत होती है। लेकिन इसके साथ ही आपको ये भी जरूर जान लेना चाहिए की गाजर की खेती में खाद और उर्वरकों को जमीन की गुणवत्ता और गाजर की किस्म के अनुसार भी दिया जाता है। गाजर की फसल में मुख्य रूप से गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, नत्रजनयुक्त उर्वरक, फास्फोरसयुक्त उर्वरक और पोटाशयुक्त उर्वरक का प्रयोग किया जाता है।

गोबर की खाद गाजर की खेती के लिए सबसे अच्छी खाद मानी जाती है। यह मिट्टी की उर्वरता शक्ति को बढ़ाती है और गाजर की फसल के विकास को भी बढ़ावा देती है। गोबर की खाद को खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए ताकि अच्छे से मिट्टी में मिलकर आपकी फसल को सही लाभ मिल सके। वही अगर बात नत्रजनयुक्त उर्वरको की की जाए तो ये फसल के विकाश में काफी महत्वपूर्ण योगदान देते है। किसानो को हमेशा बीजों की बुवाई के 25 से 30 दिनों के बाद अपने खेत में नत्रजनयुक्त उर्वरक को डालना चाहिए।

गाजर की फसल में पौधों की जड़ों की मजबूती के लिए फास्फोरसयुक्त उर्वरक डाले जाते है। आपको इस बात का ध्यान रखना होता है की फास्फोरसयुक्त उर्वरक हमेशा फसल की बुवाई के समय खेत में दिया जाता है। इसके अलावा अगर किसान भाई गाजर के रंग और उसके स्वाद को बढ़ाना चाहते है तो इसके लिए गाजर की बुवाई के समय ही अपने खेत में पोटाशयुक्त उर्वरक का प्रयोग करें।

गाजर की खेती में लगने वाले रोग और रोकथाम

खेती चाहे कोई भी हो उसमे रोग जरूर लगते है और उनकी रोकथाम करने के लिए किसान भाइयों को कुछ उपाय करने होते है। ठीक ऐसे ही गाजर की खेती में भी बहुत सारे रोग लग जाते है जो फसल को नुकसान पहुंचते है। इनमे मुख्य रूप से छाछ्या रोग (Black Rot), सर्काेस्पोरा पत्ता ब्लाइट (Cercospora Leaf Blight), आर्द्रगलन रोग (Wet Rot), जीवाणु मृदुगलन (Bacterial Soft Rot) और स्क्लेरोटीनिया विगलन (Sclerotinia Rot) शामिल हैं।

छाछ्या रोग (Black Rot): गाजर की खेती में यह रोग एक कवक के कारण होता है, जो पत्तियों, फूलों और जड़ों को प्रभावित करता है। किसान भाइयों को अपने गाजर के खेत में इस रोग के कारण पत्तियों पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और ये धब्बे बाद में बड़े हो जाते हैं और पत्तियों को गिरा देते हैं। इसके अलावा इस रोग के कारण फूलों और जड़ों पर भी काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो की गाजर की फसल को बुरी तरह से नुकसान पहुंचती है।

सर्काेस्पोरा पत्ता ब्लाइट (Cercospora Leaf Blight): गाजर की खेती में ये रोग भी एक कवक के कारण ही होता है जो के पौधों की पत्तियों को प्रभावित करता है। गाजर के पौधों पर इस रोग के कारण पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में फैल जाते हैं और पत्तियों को गिरा देते हैं। इससे पैदावार पर असर पड़ता है।

आर्द्रगलन रोग (Wet Rot): गाजर की खेती में ये रोग भी एक कवक के कारण ही होता है जो के पौधों की जड़ों को प्रभावित करता है। आर्द्रगलन रोग के कारण जड़ें सड़ जाती हैं और फसल बर्बाद हो जाती है।

जीवाणु मृदुगलन (Bacterial Soft Rot): गाजर की खेती में ये रोग एक जीवाणु के कारण होता है जो गाजर के पौधों की जड़ों को ख़राब कर देता है। इस रोग के कारण जड़ें नरम हो जाती हैं और सड़ जाती हैं।

स्क्लेरोटीनिया विगलन (Sclerotinia Rot): गाजर की खेती में ये रोग भी एक कवक के कारण ही होता है जो जड़ों को प्रभावित करता है। इस रोग के कारण गाजर के पौधों की जड़ों पर सफेद रंग के फफूंद दिखाई देते हैं जिनसे पौधों की जड़ें धीरे धीरे करके गल जाती है और पौधे सूखने लगते है। इसके कारण जमीन में अंदर गाजर पूरी तरह से ख़राब हो जाती है।

गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) में लगने वाले इन रोगों से बचाव के लिए किसानो को हमेशा रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए। गाजर की कई किस्में हैं जिनमें से कुछ रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोध होता है। इसके अलावा बुवाई से पहले गाजर के बीजों को उपचारित जरूर करना चाहिए ताकि रोग से ग्रषित बीजों के कारण फैलने वाले रोगों से फसल का बचाव किया जा सके। किसान भाई जरूरत पड़ने पर उचित समय पर कीटनाशकों का छिड़काव करके भी गाजर की फसल में रोगों की रोकथाम के उपाय कर सकते है।

गाजर की खेती की खुदाई का सही समय

किसान भाइयों को गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) में गाजर की खुदाई का काम हमेशा सुबह के समय करना चाहिए। सुबह जमीन में भी नमी की मात्रा अधिक होती है इसलिए इसकी खुदाई करने में आसानी हो जाती है। आमतौर पर बुवाई के 3 महीने बाद गाजर की फसल में गाजर पूरी तरह से बड़ी हो जाती है और खुदाई लायक हो जाती है।

गाजर की खुदाई के लिए किसान भाई कुदाल का भी इस्तेमाल कर सकते है और आजकल ट्रेक्टर के मध्यम से भी गाजर की खुदाई का काम किया जाता है। ट्रेक्टर मशीन से खुदाई करना महंगा है लेकिन काम को आसान कर देता है। इसके अलावा कुदाल से गाजर की खुदाई करना सस्ता है लेकिन इसमें समय अधिक लगता है।

गाजर की खुदाई के बाद सभी गाजरों को साफ पानी से अच्छे से सफी कर देनी चाहिए ताकि उन पर लगी साड़ी मिट्टी साफ़ हो जाए और वे बाजार में जाने को तैयार हो सके। गाजरों को धोने के बाद छाया वाली जगह पर सूखने के बाद ही थैलियों में भरना चाहिए।

गाजर की खेती में लगत और बचत

जैसा की हमने इस आर्टिकल की शुरुआत में ही आपको बताया था की गाजर की खेती एक सफल व्यवसाय है और इसमें खर्चा काम और मुनाफा अधिक होता है। गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और बिहार में की जाती है। गाजर की खेती में एक एकड़ में बीजों की मात्रा में लगभग 1000 रुपये का खर्चा आता है। ये भीजों की कीमत गाजर के बीजों की किस्म पर भी निर्भर करती है। इसके अलावा गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) में उर्वरकों का खर्चा भी होता है और कीट और रोग नियंत्रण के लिए कीट नाशकों का भी खर्चा होता है।

गाजर की खेती में इसके अलावा किसान को पानी भी देना पड़ता है जिसमे भी खर्चा होता है और किसान की म्हणत भी इसमें अलग से होती है। लेकिन बाजार में गाजर का भाव के अनुसार ये सब मिलकार भी बचत इससे कहीं अधिक होती है।

गाजर की खेती के सवाल और जवाब

प्रश्न: गाजर की खेती के लिए कौन सा मौसम उपयुक्त है?

उत्तर: गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) के लिए ठंडा और जमीन में नमी वाला मौसम सबसे अच्छा माना जाता है। भारत में गाजर की खेती अक्टूबर महीने से दिसंबर महीने के बीच की जाती है। इस समय में जमीन में भी नमी अच्छी होती है जो गाजर की खेती के लिए बहुत जरुरी होती है। हालाँकि इस समय कुछ नै किस्मे भी आ चुकी है जिनकी खेती गर्मियों में भी की जाती है लेकिन उनमे पानी की जरुरत अधिक पड़ती है।

प्रश्न: गाजर की खेती के लिए कौन सा मिट्टी उपयुक्त है?

उत्तर: गाजर की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है जिसमे खेती बहुत अधिक उत्पादन देती है। जिस खेत में गाजर की फसल की जाती है उस खेत की मिट्टी का pH 6.5 से 7.5 के बीच होना सही होता है।

प्रश्न: गाजर की खेती के लिए बीज की मात्रा कितनी होती है?

उत्तर: किसान भाइयों को एक एकड़ में गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) के लिए लगभग 2.5 किलो बीज की आवश्यकता होती है। वैसे ये मात्रा गाजर की किस्म पर भी निर्भर करती है।

प्रश्न: गाजर की खेती के लिए बीज की बुवाई कब और कैसे करें?

उत्तर: गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) के लिए गाजर की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर महीने के बीच की जाती है लेकिन आजकल कुछ उन्नत किस्मे भी बाजार में आ गई है जिनको गर्मी के मौसम में भी बुवाई किया जाता है। बीज को 2-3 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है। बीजों को सीड ड्रिल या हाथ से बोया जा सकता है।

प्रश्न: गाजर की खेती में सिंचाई कब और कैसे करें?

उत्तर: गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) में सिंचाई फसल की आवश्यकता के अनुसार की जाती है। आमतौर पर किसान भाइयों को गाजर की खेती में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई जरूर कर देनी चाहिए।

प्रश्न: गाजर की खेती में खाद और उर्वरक कब और कैसे डालें?

उत्तर: गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) में खाद और उर्वरक बुवाई के समय भी डाले जाते है और गाजर के पौधों की वृद्धि के दौरान भी डाले जाते हैं। गाजर की खेती की बुवाई के समय किसान भाइयों को प्रति एकड़ में 25 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फॉस्फोरस और 30 किलो पोटाश की मात्रा डालनी चाहिए जो की पौधों के लिए बढ़िया रहती है। इसके अलावा गाजर के पौधों की वृद्धि के दौरान प्रति एकड़ में 10 किलो नाइट्रोजन की मात्रा जरूर डालनी चाहिए।

प्रश्न: गाजर की खेती में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?

उत्तर: गाजर की खेती (Gajar Ki Kheti) में खरपतवार नियंत्रण के लिए सबसे बेहतरीन तरीका खेत में निराई-गुड़ाई करना होता है। गाजर की फसल में पहली निराई-गुड़ाई बीजों की बुवाई के 15-20 दिनों के बाद की जाती है। वही गाजर की फसल में दूसरी निराई-गुड़ाई बीजों की बुवाई के 30-40 दिनों के बाद की जाती है।

प्रश्न: गाजर की खेती में कटाई कब करें?

उत्तर: गाजर की कटाई 100-120 दिनों के बाद की जाती है। गाजर की जड़ें पूर्ण रूप से विकसित होने के बाद ही कटाई की जानी चाहिए।

प्रश्न: गाजर की खेती में उपज कितनी होती है?

उत्तर: किसान भाइयों को एक एकड़ की गाजर की फसल से 20-25 टन उपज आसानी से प्राप्त होती है।

डिस्क्लेमर: वेबसाइट पर दी गई बिज़नेस, बैंकिंग और अन्य योजनाओं की जानकारी केवल आपके ज्ञान को बढ़ाने मात्र के लिए है और ये किसी भी प्रकार से निवेश की सलाह नहीं है। कोई भी निवेश करने से पहले आप अपने सलाहकार से सलाह जरूर करें। बाजार के जोखिमों के अधिक योजनाओं में निवेश करने से वित्तीय घाटा हो सकता है।

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Vinod Yadav

I am Vinod Yadav, and I have been involved in news content writing for the past four years. Since May 2023, I have been associated with nflspice.com, where I have been consistently working on delivering news content. News writing is an art, and the most important aspect of this art is the ability to convey news accurately. I am constantly striving to refine this skill and enhance my writing.

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