Chickpea cultivation : चीकू एक छोटा फल होता है ,जिसका स्वाद मीठा होता है। चीकू की खेती मुख्य रूप से भारत में की जाती है। चीकू सपोटा कुल का पौधा है। भारत में चीकू अमेरिका के उष्ण कटिबन्धीय भाग से लाया जाता है । इसका फल छोटा होता है यह पौधा भी अनार की तरह एक बार लग जाने से कई वर्षो तक पैदावार देता है। चीकू की खेती एक स्वादिष्ट फल के लिए की जाती है। चीकू के पौधे में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा पाई जाती है। साथ ही इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, कैल्शियम, विटामिन ए, टेनिन, ग्लूकोज़ जैसे कई पोषक तत्व मिलते है , जिस वजह से इसका सेवन मानव शरीर के लिए लाभकारी होता है। इसे किसी भी बीमारी में खाया जा सकता है ,इसके सेवन से तनाव, एनीमिया, बवासीर और पेट संबंधित बीमारियों से छुटकारा मिलता है।चीकू का सेवन पुराणी खासी से राहत दिलाता है।
चीकू एक बागवानी फसल है ,आज के समय में चीकू का अधिक उत्पादन होता है। मध्य अमेरिका और मेक्सिको को चीकू उत्पत्ति का स्थान का स्थान कहा जाता है। आजकल भारत में भी चीकू का खूब उत्पादन किया जाता है। भारतं में चीकू की खेती केरल ,गुजरात ,कर्नाटक, तमिलनाडु, हरियाणा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश राज्यों मे की जाती है
चीकू में लेटेक्स की मात्रा अधिक पाई जाती है। अगर पौधे को अच्छा वातावरण मिल जाता है तो यह पौधा वर्ष में दो बार फल दे सकता है चीकू की खेती बहुत ही लाभकारी होती है। अगर आप भी चीकू की खेती करना चाहते है तो आज हम आप को चीकू की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
चीकू की खेती के लिए आवश्यक जलवायु और तापमान
चीकू की लिए उष्ण कटिबंधीय जलवायु में उगाया जाता है। यह फसल शुष्क जलवायु में एक ही फसल देता है इसकी खेती को सर्दियों में पीला से बचना चाहिए। ठंडी जलवायु में चीकू की खेती नहीं करनी चाहिए। इसकी खेती में 70 % आद्रता वाले मौसम की जरूरत होती है। इनके पौधे को वर्ष में 150 से 200 कम वर्षा की जरूरत होती है।
तापमान की बात करे तो इसके लिए सामान्य ताप की जरूरत होती है। इसके लिए अधिकतम ताप 40 और न्यूनतम ताप 10 डिग्री होना चाहिए। अधिक तापमान में भी यह पौधा अच्छी पैदावार नहीं देता है और अधिक तापमान में भी यह पौधा अच्छे से विकास नहीं कर पता है।
चीकू की लिए उपयुक्त मिट्टी
चीकू लवणीय और क्षारीय दोनों मिट्टी में पनप सकता है। इसके उचित विकास के लिए मिट्टी का PH मान 6 से 8 अच्छा होता है चीकू की खेती के लिए गहरी उपजाऊ तथा बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। इसकी खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है।
मिट्टी की खेती में सिचाई की आवश्यकता
चीकू की फसल को अधिक पानी के आवश्यकता नहीं होती है। जब चीकू का पौधा पूर्ण रूप से तैयार हो जाये तब 7 से 8 सिचाई की जनि चाहिए। इसके पौधे को पानी देने के लिए थाल बनाई जाती है जिसको पौधे के तने के चारो ओर रखा जाता है।
सर्दी के मौसम में 10 से 15 डीनो में सिचाई के जननी आवश्यक होती है। और गर्मी के मौसम में सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए। अगर चीकू को बलुई मिट्टी में रोपा जाये तो अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसके लिए गर्मी में सप्ताह में 2 बार पानी दिया जाता है। बारिश के मौसम में वर्षा नहीं होने पर ही पानी देना चाहिए।
चीकू की उन्नत किस्मे
बारहमासी
चीकू की इस किस्म को अधिक उतर भारत में उगाया जाता है। इस किस्म का पौधा पुरे वर्ष फल देता है। इसका उत्पादन 130 से 180 KG प्रति वृक्ष पाया जाता है ,और ये आकार में गोल दिखाई देते है।
पोट सपोटा
यह किस्म कम समय में भी फल देना शुरू कर देती है। इस किस्म के पौधे को गमले में भी उगा सकते है ,फिर भी यह फल दे सकता है। इस किस्म का फल छोटा और गोल होता है। इसके फल सुगंधित और मीठे भी होते है।
काली पत्ती
यह किस्म अधिक उपज देती है ,इस किस्म का निर्माण वर्ष 2011 में किया गया था। इसके बीज में 3 से 4 बीज और मिल जाते है तथा यह अच्छी पैदावार देता है। इसके पूर्ण विकसित पौधे में वार्षिक 150 KG का उत्पादन होता है। यह किस्म महाराष्ट और गुजरात में अधिक पाई जाती है।
क्रिकेट बाल
यह किस्म कोलकत्ता राउंड के नाम से भी जानी जाती है इस किस्म में फलो का रंग हल्का भूरा होता है और इनका आकार भी गोल होता है। इस किस्म का फल मीठा और पतले छिलके का पाया जाता है इस किस्म का विकसित पौधा 155 KG का उत्पादन दे सकता है। इस किस्म को काली पत्तीवाली किस्म के साथ तैयार किया जाता है।
भूरी पत्ती
यह किस्म सामान्य पैदावार देती है। इसके फल छोटे और मीठे होते है इसके फल अंडाकार भी होते है। इस किस्म का रंग दाल चीनी जैसा होता है। इसका छिलका भी पतला होता है। यह किस्म अन्य किस्मो से मीठी पाई जाती है।
पीकेएम 2 हाइब्रिड
यह सकर किस्म का पौधा होता है इसका निर्माण 2011 में किया गया था। इस पौधे की रोपाई के लगभग 3 से 4 वर्ष बाद पैदावार देता है। इसके फल मीठे और रसीले होते है और इनका छिलका भी पतला होता है। यह किस्म अधिक उत्पादन के लिए उगाई जाती है।
पीली पत्ती
चीकू की इस किस्म को पककर तैयार होने में समय लगता है यह किस्म सामान्य पैदावार देती है। इसके फल मीठे और स्वादिष्ट होते है। इसके फल का आकार समतल ,छोटा और गोलाकार होता है। इसका छिलका पतला होता है।
चीकू के पौधे की तैयारी
चीकू की पौध कलम और बीज से तैयार की जाती है। कलम के लिए दो तरीके है कलम रोपण और ग्राफ्टिंग। और बीज के लिए पौधे को नर्सरी में उर्वरक डालकर बीजो को उपचारित कर क्यारियों में लगते है।बीज से तैयार पौधे फल देने में अधिक समय लगते है। इसके साथ ही ग्राफ्टिंग विधि और कलम रोपण विधि से पौध तैयार का अधिक माना जाता है।
चीकू के खेत की तैयारी और रोपाई
चीकू की फसल के लिए सबसे पहले उसमे मौजूद पुरानी फसल को नष्ट कर देना चाहिए ,फिर बाद में खेत की जुताई कर देनी चाहिए और मिट्टी पलटने वाले हल चला देना चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाये ,फिर से उसमे जुताई करवा के खेत को समतल कर देना चाहिए ताकि बारिश के मौसम में जलभराव की समस्या नहीं हो सके।
चीकू की खेती के लिए गड्डे खोदे जाये फिर उसमे खाद का प्रयोग भी कर सकते है। फिर उसमे पौध को लगाकर गड्डे को मिट्टी से भर देना चाहिए। पौध लगाने के बाद सिचाई की जननी चाहिए। जिसमे पंक्ति से पंक्ति के मध्य 5 से 6 मीटर की दूरी होनी चाहिए। चीकू के पोधो का रोपाई के एक महीने पहले तैयार करना चाहिए।।
खरपतवार नियंत्रण
चीकू में खरपतवार नियंत्रण किया जाना चाहिए इसके लिए खेत में निराई -गुड़ाई से नियंत्रित करना चाहिए यानि प्राकृतिक तरीके का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसमें पौध रोपाई के 20 से 30 दिनों के बाद हल्की गुड़ाई की जननी चाहिए। वर्ष में कम से कम 3 से 4 निराई -गुड़ाई करनी चाहिए। इसके बाद खरपतवार को रोकने के लिए वर्षा की मिट्टी सूख जाने पर उसमे पावर टिलर से जुताई करनी चाहिए।
चीकू के फल में लगने वाले रोग व् रोकथाम के उपाय
पत्तों पर धब्बा रोग
- इसके धब्बे गहरे और जमुनी रंग के होते है और मध्य में सफेद होते है इसके धब्बे गहरे दिखाई देते है फल के तन और पखुडियो पर लंबे धब्बे होते है
- इसके रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को प्रति एकड़ को पौधे पर स्प्रै करनी चाहिए।
तने का गलना
- यह एक तरह की फगस की बीमारी है जिस कारण तने और शाखाए अंदर से गल जाती है।
- इसके उपचार के लिए कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम या Z- 78 को 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलकर स्प्रै करनी चाहिए।
एंथ्राक्नोस
- इस रोग का पौधे के तने और शखाऍ पर धब्बे होते नजर आते है
- इसके रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या एम-45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलकर स्प्रै करनी चाहिए।
सूटी मोल्ड
- यह कवक मिली कीट से मधु पर विकसित हो जाता है। और धीरे -धीरे पूरी पट्टी पर फैलता है और पौधे को नष्ट कर देता है।
- इसके रोकथाम के लिए 100 ग्राम स्टार्च या मैदा को 20 लीटर गरम पानी में मिला कर घोल बनाते फिर ठंडा करके स्प्रै करे। बादल में इसका छिड़काव से बचे।
चीकू की खेती में होने वाले कीट और रोकथाम के उपाय
पत्ते का जाला
- इस कीट के होने से पत्तो पर गहरे भूरे रंग के धब्बे हो जाते है जिस कारण पत्ते सुखकर गिर जाते है और इसके साथ पेड़ की टहनिया भी टूटकर सुख जाती है।
- इसके उपाय के लिए नै टहनिया बनते समय या तुड़ाई के समय कार्बरील 600 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 200 मि.ली. या क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के अंतराल पर पौधे पर छिड़काव करे।
बालों वाली सुंडी
- यह कीट नै टहनियों और पोधो को अपना भोजन बनाकर नष्ट कर देता है जिससे पौधे पर इस कीट का अधिक प्रभाव दिखाई देता है।
- इस कीट के रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करनी चाहिए।
कली की सुंडी
- इस कीट की सुन्डिया वनस्पति को खाकर नष्ट कर देती है। जिससे पौधे की पत्तिया सुखाकर गिर जाती है।
- इसके उपचार के लिए क्विनलफॉस 300 मि.ली. या फेम 20 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करनी चाहिए।
हैरी कैटरपिलर
- इस कीट का रंग पीला और भूरा होता है। इसके ऊपर काले व् लम्बे बाल होते है
- इसके उपचार के लिए क्लोरोपायरीफास 20 ई सी या क्यूनालफोस 25 ई सी या फोसेलॉन 35 ई सी की 2 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
इसके अलावा अन्य कीट भी पाए जाते है जिससे किसी की खेती में कम पैदावार हो सकती है जैसे -मिली बग ,फल छेदक आदि पाए जाते है।
चीकू के फल की तुड़ाई कैसे करे ?
चीकू पूरे वर्ष पैदावार दे सकता है परन्तु यह पौध नवंबर, दिसंबर महीने में फूल देता है और जो मई में तोड़े जाते है। फूल निकलने के 7 महीने बाद फल की पैदावार होती है। जब इनके फल हरे से भूरे हो जाये तब इनको तोड़कर बाजार में बेच दिया जाता है।
चीकू की पैदावार और कमाई
चीकू की खेती अधिक पैदावार वाली होती है। इसकी एक किस्म में एक वृक्ष से औसतन पैदावार 130 KG का वार्षिक उत्पादन होता है एक हेक्टेयर के क्षेत्र में 300 से अधिक पौधे लगाए जाते है। जिससे 20 तन के लगभग उत्पादन होता है बाजार में चीकू का भाव कम से कम 50 से 60 होता ही है
इस हिसाब से चीकू के खेत में एक बार की फसल से 6 लाख की कमाई हो सकती है। और जिससे किसान अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकता है।