Cumin Farming : जीरे की खेती मसाले के रूप में की जाती है ,इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। जीरे का प्रयोग ज्यादतर सब्जी में छौक लगाने में किया जाता है ,जिससे सब्जी का स्वाद बढ़ जाता है। जीरा हर जगह काम आता है ,मशालों में जीरे की मांग सबसे अधिक होती है ,और बाजार में इसकी मांग होने के कारण इसका दाम भी अधिक होता है। जीरा पेट की समस्या के लिए किसी रामबाण से कम नहीं है ,जीरे में कई औषधीय गुण पाए जाते है ,जीरे में आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीज, जिंक, मैगनीशियम जैसे कई मिनरल्स पाए जाते है ,जीरा एक ऐसी फसल है ,जिसका प्रयोग सभी घरो में किया जाता है ,जीरे का सबसे अधिक उत्पादन गुजरात और राजस्थान में ही किया जाता है ,इसकी मांग साल भर बनी रहती है जीरे की खेती में किसानो को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है।
जीरे का सेवन करने से कई बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है ,जीरे का पौधा शुष्क जलवायु वाला पौधा होता है लेकिंन कुछ लोग इससे भूनकर खाने में प्रयोग करते है ,जीरे के पौधे को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है। ,जीरे का प्रयोग कई तरह के व्यंजनों में खूसबू उत्पन करने के लिए किया जाता है। जीरा बिलकुल दिखने में सॉफ की तरह होता है ,कुछ लोग इसका पाउडर बनाकर खाने की चीजों में प्रयोग करते है ,इसके अलावा इसका उपयोग कई तरह से करते है।
पुरे देश में कुल 80 % जीरा उत्पादित किया जाता है। गुजरात में राजस्थन से भी अधिक पैदावार होती है। आजकल जीरे की उन्नत किस्मो को उगाकर उत्पादन को बढ़ाकर 50 % और बढ़ा दिया है । किसानो ने जीरे की उन्नत खेती को करके अच्छा लाभ कमा सकते है अगर आप भी जीरे की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको जीरे की खेती कैसे करे ,इसके लिए उपयुक्त जलवायु ,मिट्टी ,तापमान ,और उपज की सम्पूर्ण जानकारी बतायगे।
जीरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
जीरे की खेती सर्दी के मौसम में की जाती है। इसके पौधे को सामान्य तापमान की जरूरत होती है इसकी खेती के लिए अधिक गर्म जलवायु उपयुक्त नहीं होती है इसके पौधे को सामान्य बारिश की जरूरत होती है । इसके पौधे सर्द जलवायु में वृद्धि करते है
जीरे के पौधे को अधिकतम 30 डिग्री और न्यूनतम 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है जीरे के पौधे की रोपाई के बाद 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है ,पौधे की वृद्धि के लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है और पौधे की रोपाई के समय 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।
जीरे की मिट्टी के लिए उपयुक्त मिट्टी
जीरे की अच्छी पैदावार के लिए उच्च जल विकास वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है इसकी साथ बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके लिए भूमि का PH मान सामान्य होना चाहिए जीरे की फसल को रबी की फसल के साथ की जाती है। यह खेती
शांत, शुष्क और साफ मौसम पसंद में अधिक विकास करती है।
जीरे के खेत की तैयारी
जीरे की खेती के लिए सबसे पहले उसके खेत को अच्छे से तैयार कर लिया जाता है फिर खेत की मिट्टी को जुताई करके पलट दिया जाता है। जुताई के बाद खेत को खुल छोड़ दिया जाता है ताकि खेत को अच्छे से धूप मिल सके। उसके बाद खेत में गोबर की खाद भी डालनी चाहिए। ताकि खेत में मिट्टी की उर्वरक शक्ति बढ़ जाती है। उसके बाद खेत की मिट्टी में खाद को अच्छे से मिलाना चाहिए। उसके बाद खेत की 2 से 3 गहरी जुताई करनी चाहिए। खेत की जुताई के बाद उसमे पानी से पलेव कर देना चाहिए।
इसके बाद खेत की आखरी जुताई के समय 65 किलो डी.ए.पी. और 9 किलो यूरिया का छिड़काव करना चाहिए उसके बाद खेत में पाटा लगवाकर खेत को समतल कर देना चाहिए। समतल खेत में जलभराव की समस्या उत्पन नहीं होती है। इसके अलावा खेत में 20 KG यूरिया पौधे के विकास के दौरान डालना चाहिए।
जीरे की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
जीरे के पौधे को सामान्य सिचाई की आवश्यकता होती है। जीरे की पहली खेती बीज रोपाई के तुरंत बाद की जाती है लेकिन सिचाई को पानी के धीमे बहावके साथ करना होता है। इसके पौधे को 5 से 7 सिचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिचाई के बाद अन्य सिचाई 10 से 12 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।
इसके अलावा रासायनिक विधि से भी की जा सकती है। इस विधि के लिए बीज रोपाई के बाद आक्साडायर्जिल की उचित मात्रा को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लिया जाता है।
पौध रोपाई का सही तरीका और समय
जीरे की रोपाई बीज के रूप में होती है। बीज रोपाई के पहले बीज को कार्बनडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | छिड़काव विधि के माध्यम से खेत में 5 फ़ीट की दूरी पर क्यारिया को तैयार किया जाता है। क्यारियों में बीजो का छिड़काव करके बीजो को हाथ से निचे की और दबा दिया जाता है। इसके अलावा बीज की रोपाई ड्रिल विधि से भी कर सकते है।
जीरे की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है ,इसलिए इसके बीजो को नवंबर के महीने में लगाना उचित होती है।
खरपतवार नियंत्रण
जीरे के खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। प्राकृतिक तरीके से खेत में निराई -गुड़ाई की जान चाहिए। इसकी पहली गुड़ाई 20 से 25 दिनों के बाद की जानी चाहिए। तथा अन्य गुड़ाई 15 दिन के अंतराल पर की जानी चाहिए। इसके पौधे को 2 से 3 गुड़ाई की आवश्श्यकता होती है।
इसके अलावा रासायनिक विधि से भी की जा सकती है। इस विधि के लिए बीज रोपाई के बाद आक्साडायर्जिल की उचित मात्रा को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लिया जाता है।
जीरे की उन्नत किस्मे
जीरे की कई किस्मे पाई जाती है जो बाजार में मिलती है ,जिसको अलग -अलग जलवायु के हिसाब से अधिक उपज के लिए उगाया जाता है
जी. सी. 4
इस किस्म को गुजरती 4 नाम से भी जाना जाता है। यह किस्म 8 किवंटल प्रति हेक्टियरर के हिसाब से पैदावार देती है। पौधे की उचाई सामान्य होती है ,इसके जीरे के दानो का रंग गहरा भूरा होता है साथ ही इसके दाने चमकीले होते है यह किस्म बीज रोपाई के 110 दिनों के बाद पैदावार देती है।
जी.सी. 1
इस किस्म को गुजरात कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया था। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 7 किवंटल की पैदावार देती है। इस किस्म के पौधे 110 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार होती है। इसके पौधे में उख्टा रोग नहीं होता है।
आर. जेड. 209
इस किस्म के पौधे की लम्बाई अधिक होती है । यह किस्म बीज रोपाई के 130 दिनों के बाद कटाई के लिया तैयार हो जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 8 किवंटल की पैदावार देती है। तथा इस किस्म के दाने मोटे होते है। जीरे की इस किस्म में छछियारोग नहीं होता है।
आर. जेड. 19
यह फसल प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 10 किवंटल की पैदावार देती है। यह किस्म पौध रोपाई के 120 दिनों के बाद फसल तैयार होती है। इसका रंग गहरा भूरा और आकर्षक होता है। जीरे की इस कसिम में झुलसा रोग नहीं होता है।
जीरे के पौधे पर लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
दीमक
यह रोग पौधे की जड़ को काटकर अधिक नुकसान पहुँचती ही। और पौधे को पूरी तरह नष्ट कर देती है ,इस रोग के लगने से पौधा अच्छी उपज नहीं दे पता है। यह रोग सफेद रंग का पदार्थ पौधे की पत्तियों पर छोड़ता है। यह कीट जनित रोग होता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए फसल पर क्लोरोपाइरीफॉस कि 2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर कि दर से सिंचाई करनी चाहिए। इसके अलावा क्लोरोपाइरीफॉस की 2 मि.ली.मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
छाछया रोग
यह रोग जीरे के पौधे पर फफूंद की तरह आक्रमण करता है। यह पत्तियों पर सफेद रंग का पदार्थ छोड़ता है। इस रोग के अधिक हो जाने से पौधे की पत्तियों पूरी सफेद हो जाती है। इस रोग के होने पर पौधा प्रकाश का संश्लेषण प्राप्त नहीं कर पता है। और पौधा विकास करना भी बंद कर देता है। तथा पूरी तरह से नष्ट कर देता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर घुलनशील गंधक या कैराथेन का उचित मात्रा में गोल बनाकर
छिड़काव करना चाहिए।
मोयला
यह भी कीट जनित रोग होता है। जो जीरे के पौधे के कोमल भागो पर आकर्मण करता है और पौधे का रस चूसकर उसको नष्ट कर देता है। यह रोग पौधे पर फूल आने पर दिखाई देता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर मैलाथियान या डाईमेथोएट की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
चैंपा
यह रोग पौधे पर फूल आने पर अधिक दिखाई देता है । यह रोग कोमल भागो को चूसकर पौधे को नुकसान पहुँचता है। इससे पौधा पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौध पर एमिडाक्लोप्रिड की 0.5 लीटर या मैलाथियान 50 ई.सी. की एक लीटर या एसीफेट की 750 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रै करनी चाहिए।
उखटा रोग
इस रोग के होने से पौधा मुरझा जाता है। यह रोग प्रारंभ में ही अधिक हो जाता है। यह रोग फसल को अधिक नुकसान पहुँचता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर 2.50 कि.ग्रा.ट्राइकोडर्मा कि 100 किलो कम्पोस्ट के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
जीरे की फसल की तुड़ाई
जीरे की उन्नत खेती बीज रोपाई के 130 दिनों के बाद पैदावार देती है जब पौधे में लगे बीजो का रंग हल्का भूरा हो जाये तब जीरे की कटाई की जानी चाहिए। कटाई के बाद उसको खेत में ही 2 से 3 दिन के लिए सूख लिया जाता है। फिर अच्छे से बीज सूख जाये तब मशीन द्वारा दानो को निकल लिया जाता है।
जीरे की फसल से प्राप्त पैदावार
हम आप को बात की प्रति एक हेक्टैयर के हिसाब से जीरे की खेती 7 से 8 किवंटल की पैदावार प्राप्त होती है। जीरे का बाजारी भाव 200 रूपये प्रति किलो होती है। जिस हिसाब से किसानो को अधिक पैदावार से अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है।