Gooseberry Farming : आंवले को भारतीय गूज़बैरी और नेल्ली के नाम से जाना जाता है।आंवले से विभिन्न प्रकार की दवाइया तैयार की जाती है। और इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर, और मुंह पर लगाने वाली क्रीमें आंवला से तैयार की जाती है ,इसे औषधीय गुण से भी जाना जाता है। आंवले का वृक्ष मुलायम और बराबर शखाओ वाला होता है। इसके फूल हरे पीले रंग के होते है ,और ये दो प्रकार के होते है -एक तो नर फूल और दूसरा मादा फूल। आंवले की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में की जाती है। आंवले से बनी दवाइयों से अनीमिया, डायरिया, दांतों में दर्द, बुखार और जख्मों को ठीक किया जा सकता है
आँवला युफ़ोरबिएसी परिवार का पौधा है ,यह भारत में मूल फल है ,आंवले को अलग अलग क्षेत्रों में अलग नामो से जाना जाता है जैसे – हिंदी में ‘आँवला’, संस्कृत में ‘धात्री’ या ‘आमलकी’, बंगाली एवं उड़ीया में, ‘अमला’ या ‘आमलकी’, तमिल एवं मलयालम में, ‘नेल्ली’, तेलगु में ‘अमलाकामू, गुरुमुखी में, ‘अमोलफल’, तथा अंग्रेजी में ‘ऐम्बलिक’, ‘माइरोबालान’ या इंडियन गूजबेरी आदि नामो से इसे जाना जाता है। यह इसमें पोषक तत्वों के कारण भारतीय पौराणिक साहित्य जैसे वेद, स्कन्दपुराण, शिवपुराण, पदमपुराण, रामायण, कादम्बरी, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता में इसका वर्णन देखने को मिलत है ,आंवले को महर्षि चरक ने अमृत फल तथा कल्प वृक्ष के नाम दिया है आंवले की खेती भारत में महत्वपूर्ण फसल के रूप में जानी जाती है। आंवले को बहुत गुणकारी माना गया है। आंवले को खाने के अलावा औषधीय, शक्तिवर्धक तथा सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
आंवले के अंदर पोषक तत्व मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है ,और इसका पौधा देखने में झाड़ीदार होता है। यह पौधा एक बार तैयार हो जाने पर कई साल तक फल देता है। आंवले की खेती से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। अगर आप भी आंवले की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको आंवले की खेती कैसे करे ,उपयुक्त जलवायु ,मिट्टी ,तापमान और पैदावार की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
आंवले की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान ( Climate and Temperature)
आंवले की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसके पौधे अधिक गर्मी में अधिक तापमान अच्छे से विकास नहीं कर पाते है और गर्मियों के मौसम में इसके पौधे फल बनाने लग जाते है। सर्दियों के मौसम में गिने वाला पाला इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है। रत में इसकी खेती समुद्र तटीय क्षेत्रों से 1800 मीटर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। जाड़े में आँवले के नये बगीचों में पाले का हानिकारक प्रभावहोता है। वर्षा ऋतू में इसके पौधे शुष्क काल में अधिक गिरते है।
आंवले की पौधे के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। जब पौधे का विकास हो तब ज्यादातर सामान्य ताप की आवश्यकता होती है। इसके अलावा भी इसके पौधे को अधिक कम तापमान भी हानिकारक होता है आंवले की खेती को समुन्द्र ताल से 1800 मीटर की उचाई पर करना चाहिए।
आंवले की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
आंवले की खेती उपजाऊ मिट्टी में अच्छी होती है। खेत में जलभराव की समस्या होने से पोधो के नष्ट होने का खतरा होता है। इसके अलावा क्षारीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। और मिट्टी का PH मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए। आंवले की अच्छी देखभाल करने के लिए इसे किसी भी खेती में उगाया जा सकता है हल्की तेजाबी मिट्टी और नमकीन मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। इसके अलावा अच्छे जल निकास वाली भूमि भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
आंवले की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
आंवले की खेती में अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है जरूरत होने पर ही पानी दिया जाना चाहिए। आंवले की पहली सिचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए गर्मी के मौसम में सप्ताह में एक बार सिचाई की जानी चाहिए ,और सर्दियों के मौसम में 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए। एक बात का विशेष ध्यान रखे की पौधे पर फूल आने के समय सिचाई नहीं करनी चाहिए। और बारिश के मौसम से आवश्यकता होने पर ही सिचाई करनी चाहिए।
आंवले के पौधे में उर्वरक की मात्रा
आंवले की खेती में अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में उचित उर्वरक की आवश्यकता होती है। गड्डो को तैयार करने के बाद उसमे गोबर की पुरानी खाद ,50 ग्राम यूरिया तथा 70 ग्राम डी,ए.पी. और 50 ग्राम एम.ओ.पी. की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर अच्छे से गड्डो को भर देना चाहिए। इसके बाद जब पौधे विकास करने लगे तब भी 40 किलो गोबर की खाद, 1 kg नीम की खली, 100 gm यूरिया, 120 gm डी.ए.पी. तथा 100 gm एम.ओ.पी. की मात्रा में पौधे को देना चाहिए। इसके बाद गड्डो की सिचाई कर देनी चाहिए।
आंवले के पोधो में खरपतवार नियंत्रण
आंवले के पौधे को अच्छे विकास के लिए खरपतवार को नियंत्रित करना होता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल में निराई -गुड़ाई का प्रयोग करना चाहिए। इसके पौधे को 6 से 8 निराई -गुड़ाई की आवश्यकता होती है। इसकी पहली निराई -गुड़ाई पौध रोपाई के 18 से 20 दिनों के बाद करनी चाहिए। इसके अलावा समय -समय पर तब भी खरपतवार देखे तब खेत की निराई -गुड़ाई करनी चाहिए।
आंवले की उन्नत किस्मे
एन ए-4 किस्म का पौधा
इस किस्म के पौधे पर फल नवंबर महीने ने पकना शुरू करते है एस्किसम केफल देखने में सामान्य आकर के गोल तथा पीले होते है ,और इस किस्म के पोधो में मादा फूलो की संख्या अधिक होती है। तह एक हेक्टैयर के क्षेत्र में 110 किलो की पैदावार देता है। यह अधिक गूदेदार फल होता है।
कृष्णा किस्म का पौधा
इसके फलो का रंग हल्की लालिमा के साथ पीलापन लिए होता है यह किस्म अक्टूबर महीने में तैयार हो जाती है। यह किस्म पति हेक्टैयर के हिसाब से 120 किलो की पैदावार देती है। यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार देती है
चकईया किस्म के पौधे
इस किस्म के पौधे अधिक चौड़े होते है इस किस्म में भी अधिक मादा फूल पाए जाते है। इस किस्म का भंडारण अधिक समय तक किया जाता है। इस किस्म के फूल अधिक रस और गुद्देवाले होते है। इसलिए इस किस्म का प्रयोग अचार ओर मुरब्बे बनाने में किया जाता है।
फ्रान्सिस किस्म का पौधा
इस किस्म के फलो को अधिक समय तक भंडारित नहीं किया जा सकता है,और एस्किसम का पेड़ नीचे की ओर झुका होता है ,और इस किस्म के फलो का उपयोग मुरब्बे बनाने में किया जाता है यह किस्म नवंबर के महीने में फल देती है यानि फल का रंग देखने में पीला हो जाता है। इस किस्म के पोधो को तैयार होने में अधिक समय लग जाता है। इस किस्म को हाथी झूल के नाम से भी जाना जाता है।
बनारसी किस्म के पौधे
आंवले की यह किस्म अधिक पुरानी है। यह किस्म जल्दी तैयार हो जाती है इसके फल हल्के पीले और अंडाकार आकर के होते है। यह एक वर्ष में 80 किलो की पैदावार देता है।
एन.ए. 9 किस्म के पौधे
यह किस्म कम समय में पककर तैयार हो जाती है। इसके फल बड़ा ,छिलका पतला और मुलायम होता है। इस किस्म को उपयोग जैम, जैली और कैंडी को बनाने में करते है। इस किस्म का एक पौधा प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 115 किलो की पैदावार देता है। यह किस्म अक्टूबर के महीने में पैदावार देती है।
आंवले के पौधे में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
काला धब्बा रोग
यह रोग पौधे पर बोरोन की कमी के कारण होता है। इस रोग के संक्रमण से फलो पर धब्बे होने लगते है। अगर इसकी रोकथाम नहीं की जाती है तो यह फल की पैदावार और गुणवता को काफी प्रभावित करता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए बोरेक्स का छिड़काव पौधे की पत्तियों पर करना चाहिए।
गुठली भेदक
यह रोग पौधे को काफी प्रभावित करता है। तथा पोधो पर लगने वाले फल को नष्ट कर देता है। जिससे फल टूटकर नीचे गिर जाता है। इस को छेदक नाम से भी जाना जाता है। यह कीट अधिक शक्तिशाली होता है यह फलो छेद करते हुए गुठली तक पहुंच जाता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर कार्बारिल या मोनोक्रोटोफॉस का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए।
कुंगी रोग
इस किस्म के रोग के लग जाने से पत्तियों और फलो पर लाल रंग के धब्बे दिखाई देते है यह रोग पहले तो पत्तियों और फलो पर होता है ,फिर पुरे पौधे पर हो जाता है इस रोग के लगने से पौधा सूख जाता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे प| इंडोफिल एम-45 का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए।
आंवले की खेती के लिए खेत की तैयारी
आंवले की खेती के लिए सबसे पहले खेती की अच्छे से जुताई करनी चाहिए। उसके बाद पुरानी फसल के अवशेषो को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए। चूंकि आंवले का एक पौधा कई वर्षो तक पैदावार देता है | इसके लिए इसके खेत को अच्छे से तैयार करना चाहिए। जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ देना चाहिए। जिससे मिट्टी को अच्छे से धुप लग सके।
उसके बाद फिर से खेत की अच्छे से जुताई करनी चाहिए। उसमे गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। फिर खाद को अच्छे से मिट्टी में मिला देना चाहिए। उसके बाद खेत में पाटा लगवाकर खेत को समतल करना चाहिए। फिर खेत में चार मीटर की दूरी रखते हुए दो फ़ीट चौड़े तथा डेढ़ फिट गहरे गढ्ढे को तैयार कर ले तथा 12 से 15 फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियों में तैयार कर लेना चाहिए। उसके बाद गड्डो में जैविक खाद और रासायनिक खाद का मिट्टी में मिला देना चाहिए। गड्डो को पौध रोपाई के एक महीने पहले तैयार करना चाहिए।
आंवले के पौधे की रोपाई का सही तरीका और समय
आंवले के पोधो को नर्सरी में तैयार कर लिया जाता है | इसके बाद पौधों को तैयार किये गए गड्डो के बीच में एक छोटा सा गड्डा तैयार कर लगा दिया जाता है उसके बाद मिटटी को पौधे के चारो और अच्छे से दबा देना चाहिए।
आंवले के पौधे को सितम्बर के महीने में लगाया जाता है इस समय पौधे को लगाने से पौधे अच्छे से वृद्धि करते है और अच्छी पैदावार देते है।
आंवले के फलो की तुड़ाई
आंवले का पौधा लगभग 3 से 4 साल के बाद पैदावार देता है इसके फल फूल आने पर 5 से 6 साल में पककर तैयार हो जाते है। पहले इसके फल हरे होते है। फिर पकने के बाद पीले हो जाते है। फल के पीले होने पर फल की तुड़ाई करनी चाहिए। इस दौरन एक बार की खेती में 100 से 120 kg फल तैयार हो जाते है।
आंवले के फल से प्राप्त लाभ
प्रति हेक्टैयर के क्षेत्र में 180 पोधो को लगाया जाता है। जिसका कुल उत्पादन 20,000 किलो के आस-पास होता है। आँवले का बाजारी मूल्य गुणवत्ता के आधार पर 30 से 40 रूपये किलो होता है। इससे भी किसानो को अधिक मात्रा में मुनाफा होता है।