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लोकी की उन्नत खेती कैसे करे ,रोगो के उपाय और अच्छी पैदावार के तरीके

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Gourd Cultivation : सभी सब्जी में लोकी की सब्जी को महत्वपूर्ण रूप से जाना जाता है। लोकी दो प्रकार की होती है पहली गोल होती है ,जिसको पेठा के नाम से भी जाना जाता है और दूसरी लम्बी वाली ,जिसको घीया के नाम से भी जाना जाता है। लोकी की सब्जी बनाई जाती है ,इसके अलावा इसका उपयोग रायता ,हलवा ,और अनेक चीजों को बनाने में किया जाता है। लोकी की खेती को रबी ,खरीफ ,और जायद के सीजन में की जाती है , सर्दियों में लोकी की खेती पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लोकी मानव शरीर के लिए लाभदायक होती है लोकी की खेती लगभग सभी राज्यों में की जाती है। लोकी में प्रचुर मात्रा में विटामन बी, सी, आयरन,मैग्नीशियम, पोटैशियम और सोडियम पाया जाता है। लोकी में अनेक गुण पाए जाते है। यह बीमारियों में ओषधि की तरह काम करता है ,हरी सब्जियों में लोकी का नाम लिया जाता है ,इसके अनेक फायदे होते है। मानव शरीर के लिए लोकी अधिक लाभदायक होती है।

देश में सभी जगह पर लोकी की खेती की जाती है। इसकी खेती मौसम के अनुसार की जाती है। विभिन स्थानों पर अलग -अलग मौसम होता है जिस वजह से मौसम के अनुसार की जाती है लोकि की खेती को अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। लोकी को किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है ,परन्तु मिट्टी उच्च जल निकास वाली होनी चाहिए।
लोकी को केलाबाश नाम से भी जाना जाता है। इसके पौधे का फूल सफेद रंग का होता है। यह शुगर के स्तर को कम करता है। और पाचन प्रणाली को अच्छा रखता है । लोकी की खेती वार्षिक पैदावार देने वाली सब्जी है ,जो अधिक मात्रा में पैदावार देती है।

लोकी को खाने से अनेक फायदे होते है ,लोकी कुकुरबिटेशियाई फैमिली से संबंधित होती है। लोकी की खेती कर किसानो को अधिक मुनाफा होता है अगर आप भी लोकी की खेती करने का मन बना रहे है तो आज हम आपको लोकी की खेती कैसे करे ?,उपयुक्त जलवायु ,तापमान ,और मिट्टी व् उपज की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

लोकी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान

लोकी की खेती के लिए किसी खास जलवायु की जरूरत नहीं होती है , अच्छी पैदावार के लिए समशीतोष्ण वाले प्रदेशो में लोकी की खेती की जानी चाहिए। भारत में लोकी की खेती गर्मी और बारिश के मौसम में की जाती है। लेकिन सर्दियों में गिरने वाला पाला इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है। हम आपको बता दे की किसी भी खेती को करने के लिए जलवायु अति आवश्यक होती है।

लोकी की खेती में तापमान का भी अधिक महत्व होता है बीज के अंकुरण के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है और पौधे की वृद्धि के लिए 35 डिग्री तक के तापमान की आवश्यकता होती है। इसके लिए लोकी की खेती के लिए 30 डिग्री के आस -पास तापमान आवश्यक होता है अधिक तापमान भी किसी भी खेती के लिए अच्छा नहीं होता है ,ज्यादातर फसल अधिक तापमान होने पर वृद्धि करती है।

लोकी की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी

लोकी की खेती करने से पहले खेत की मिट्टी को उच्च उर्वरक वाली मिट्टी को तैयार करना चाहिए । उसके लिए खेत में उर्वरक खाद डालनी चाहिए ,क्योकि लोकी की खेती को उच्च उर्वरक क्षमता वाली दोमट मिट्टी मिट्टी की आवश्यकता होती है ,इसके अलावा इसे अच्छी जल निकास वाली किसी भी जगह पर उगाया जा सकता है। लोकी की खेती के लिए भूमि का PH मान 6 से 7 के आस-पास होना चाहिए।

लोकी की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई

लोकी की खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। अगर रोपाई बीज के रूप में की जाये तो बीज के अंकुरित होने तक खेत में नमी की आवश्यकता होती है। उसके बाद पौधे के विकास के समय सिचाई की जानी चाहिए। अगर पौध के रूप में की जाये तो पौध लगाने के तुरंत बाद की जानी चाहिए।

अधिक गर्मी में लोकी की खेती को सिचाई की अधिक जरूरत होती है। इसलिए गर्मी के मौसम में इसकी खेती को 3 से 4 दिनों के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए। उसके बाद पौधे में फल आने लगे तब फिर एक बार सिचाई करनी चाहिए।

लोकी की खेती में उर्वरक की मात्रा

लोकी की खेती के लिए उर्वरक की अति आवश्यकता होती है ,इसके लिए प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 200 से 250 किवंटल गोबर की खाद को अच्छे से मिट्टी में मिला देना चाहिए। या फिर N.P.K के दो बोरे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालनी चाहिए | इसमें से एक बोरे को खेत में तैयार की गयी नालियों में डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला देनी चाहिए , इसके बाद दूसरे बोर को पौधे पर सिचाई के रूप में करनी चाहिए। इसके बाद फूल आने के समय भी दोबारा इसका इस्तेमाल कर सकते हो।

लोकी की उन्नत किस्मे

आजकल लोकी की कई किस्मे देखने को मिलती है ,संकर किस्म की लोकी को अधिक पैदावार के लिए तैयार किया जाता है ,लोकी की कई किस्मे इस प्रकार है –

नरेंद्र रश्मि किस्म

इस किस्म के फल एक किलो के होते है। यह किस्म बीज रोपाई के 60 दिनों के बाद पैदावार देती है। इस किस्म के फल हल्के रंग के होते है। इस किस्म में लगभग 300 किवंटल का उत्पादन होता है।

काशी बहार(Kashi Bahar )

लोकी की यह किस्म संकर किस्म की होती है ,यह किस्म अधिक पैदावार देती है ,यह किस्म प्रति हेक्टैयर की हिसाब से 520 किवंटल की पैदावार देती है। यह किस्म गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में की जाती है। यह किस्म बीज रोपाई के 60 दिनों के बाद पैदावार देती है ,इस किस्म की लोकी का रंग हल्का हरा होता है।

अर्को बहार

लोकी की इस किस्म को बारिश और सर्दियों में उगाया जाता है। इस किस्म के फल सीधे और मध्यम आकार के होते है इस किस्म का रंग हल्के हरे जैसा होता है। बीज रोपाई के 60 दिनों के बाद पैदावार होती है ,यह किस्म लगभग 500 किवंटल की पैदावार देती है।

काशी गंगा (Kashi Ganga Gourd)

लोकी की यह किस्म अधिक पैदावार देती है यह लगभग 450 किवंटल की पैदावार देती है। यह किस्म बीज रोपाई के 50 दिनों के बाद पैदावार देना प्रारंभ करती है। इस किस्म में लगने वाले फल मध्यम आकार के होते है। यह लम्बाई में डेढ़ फीट तक होते है।

लोकी की खेती में लगने वाले रोग व् रोकथाम के उपाय

हम आपको बता दे की अन्य पोधो के तरह लोकी में भी अनेक प्रकार के रोग पाए जाते ही जो इस प्रकार है –

सफेद मक्खी रोग (White Fly)

यह रोग अन्य पोधो की पत्तियों में भी पाया जाता है यह सफेद रोग मक्खी जैसा होता है। यह रोग पोधो को अधिक हानि पहुंचाता है ,जिससे पौधे कमजोर हो जाते है। यह मक्खी पत्तियों के निचले हिस्से के रस को चूस लेती है ,जिससे पत्तिया पीली होकर सूख जाती है

रोकथाम
इस रोग के रोकथम के लिए इमिडाक्लोप्रिड या एन्डोसल्फान का छिड़काव पौधों पर उचित मात्रा में करना चाहिए |

चेपा रोग

यह रोग पोधो की पत्तियों को अधिक हानि पहुँचता है। यह रोग नारंगी रंग का होता है। यह पौधे को किसी भी समय हानि पहुंचा सकता है। यह पौधे में लगने वाले फलो को अधिक हानि पहुँचता है

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए एमामेक्टिन या कार्बेरिल का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए।

चितकबरा रोग

यह बीमारी जब पोधो को लग जाती है तो इसके कारण पौधा में होने वाली वृद्धि रुक जाती है और उपज में कमी आती है।

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 200-250 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करनी चाहिए।

लोकी के खेत की तैयारी कैसे करे ?

लोकिई के खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत में पुरानी फसल के अवशेषो को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए। उसके बाद खेत की अच्छे से जुताई की जानी चाहिए। फिर खेत में रोटावेटर को चलवा कर मिट्टी में मौजूद मिट्टी के ढेलो को तोड़ देना चाहिए। उसके बाद खेत में गोबर की खाद डालनी चाहिए ताकि मिट्टी को अच्छी पैदावार हो सके। उसके बाद गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिलाना चाहिए। उसके बाद खेत में पानी छोड़ देना चाहिए ,और उसके बाद मिट्टी जब कुछ तरह सूख जाये तब उसमे फिर से जुताई करनी चाहिए। उसके बाद खेत को समतल कर देना चाहिए ताकि जल भराव की समस्या नहीं हो सके।

उसके बाद खेत में लौकी के पौधों को लगाने के लिए क्यारियों बना लेनी चाहिए। क्यारी
10 से 15 फीट दी दूरी पर बनाये,उसके बाद क्यारियों में उचित गोबर की खाद डाले। और खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए। यह प्रकिया पौध रोपाई के 20 दिन पहले की जाती है।

लोकी के बीज रोपाई का तरीका और समय

तैयार की गयी क्यारियों को पानी से भर देना चाहिए। उसके बाद बीज की रोपाई कर देनी चाहिए। बीजो से बीज की दूरी दो से तीन फ़ीट की की होनी चाहिए। हम आप को बता दे की एक हेक्टैयर के क्षेत्र में दो किओल बीज की आवश्यकता होती है। समतल भूमि में भी लोकी की खेती के जा सकती है फिर लोकी जमीन पर बेल की तरह फैल जाती है। और जमीन से ऊपर की ओर चढ़ने में इसकी बेल को सहारे की आवश्यकता होती है। इसकी खेती में खेत में बॉस पर जाल बांधकर तैयार किया जाता है ,जिसमे लोधे को ऊपर चढ़ाया जाता है। यह विधि अधिकतर बारिश के मौसम में अपनायी जाती है।

बारिश में खेती के लिए इसकी रोपाई जून के महीने में करनी चाहिए। इसके अलावा इसकी रोपाई को पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च और अप्रैल के महीने के की जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

लोकी की खेती में खरपतवार पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए ,क्योकि खरपतवार के हो जाने से खेत में उर्वरक की मात्रा नहीं मिलती है। लोकी की खेती में खरपतवार नियंत्रण दो प्रकार से किया जा सकता है एक प्राकृतिक और दूसरा रासायनिक तरीके से। प्राकृतिक तरीके से खेत में खरपतवार हो जाने पर निराई -गुड़ाई की जानी चाहिए ,

इसके अलावा रासायनिक तरीके से भी खेती में खरपतवार को नियंत्रित की जा सकता है ,इसके लिए जमीन में बीज रोपाई से पहले ब्यूटाक्लोर का छिड़काव करना चाहिए

लोकी के फलो की तुड़ाई और पैदावार

बीज रोपाई के 50 दिनों के बाद लोकी के फल की तुड़ाई की जानी चाहिए। यानि जब फल सही आकार में दिखाई देने लगे तब लोकी की तुड़ाई की जानी चाहिए। लोकी को तोड़ते समय ध्यान दे की लोकी के डंठलों से कुछ दूरी पर कटाई की जनि चाहिए। लोकी की तुड़ाई के तुरंत बाद उसको बाजार में बेच देना चाहिए।

लोकि की खेती कम खर्च में अधिक पैदावार देती है। इसकी फसल दो महीने में तैयार हो जाती है। यह एक हेक्टैयर के हिसाब से 500 किवंटल की पैदावार देती है। लोकी का बाजारी भाव 10 से 20 रूपये किलो होता है ,जिससे किसान अच्छी कमाई कर सकता है।

Saloni Yadav

मीडिया के क्षेत्र में करीब 3 साल का अनुभव प्राप्त है। सरल हिस्ट्री वेबसाइट से करियर की शुरुआत की, जहां 2 साल कंटेंट राइटिंग का काम किया। अब 1 साल से एन एफ एल स्पाइस वेबसाइट में अपनी सेवा दे रही हूँ। शुरू से ही मेरी रूचि खेती से जुड़े आर्टिकल में रही है इसलिए यहां खेती से जुड़े आर्टिकल लिखती हूँ। कोशिश रहती है की हमेशा सही जानकारी आप तक पहुंचाऊं ताकि आपके काम आ सके।

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