Potato Cultivation : आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। आलू रबी फसलों की प्रमुख फसलों में से एक है। आलू को अकालनाशक फसल भी कहा जाता है। आलू की खेती सब्जी के रूप में की जाती है। विश्व में भारत को आलू उत्पादन में तीसरा स्थान प्राप्त है ,भारत में आलू की खेती सभी राज्यों में की जाती है ,लेकिन तमिलनाडु और केरल में नहीं की जाती है। आलू के सेवन से शरीर में लाभ मिलता है ,किन्तु इसके अधिक सेवन से शरीर में चर्बी बढ़ने जैसी समस्या हो जाती है। आलू में अनेक प्रकार के पोषक तत्व जैसे विटामिन सी, बी, मैंगनीज, कैल्शियम, फासफोरस और आयरन आदि मुख्य रूप से पाए जाते है। इसके अलावा आलू में पानी की मात्रा अधिक पाई जाती है।
भारत में आलू को अधिक पसंद किया जाता है ,यह एक ऐसी सब्जी होती है ,जिसको किसी भी सब्जी के साथ बनाया जा सकता है। आलू को खाने के अलावा खाने की ओर भी चीजे बनाई जाती है जिसमे से फ्रेंच फ्राइज, समोसा, पापड़, चाट,वड़ापाव, आलू भरी कचौड़ी, चिप्स, टिक्की और चोखा आदि चीजे बनाई जाती है। आलू को जमीन के अंदर से खोदकर निकला जाता है , भारत में आलू की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है। आलू भूमि के अंदर पाया जाता है जिस वजह से आलू को कार्बनिक तत्वों से भरपूर और उचित जल निकास वाली भूमि में उगाया जाता है।
आलू का वैज्ञानिक नाम सोलनम ट्यूबरोसम ) ( Solanum Tuberosum ) होता है। आलू की बाजार में मांग हर वर्ष बढ़ती है ,आलू की खेत करके किसानो को अधिक पैदावार मिलती है अगर आप भी आलू की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको आलू की खेती कैसे करे ?, और आलू की उन्नत किस्मो की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
आलू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
आलू की खेती समशीतोष्ण और उष्ण कटिबंधीय जलवायु में की जानी चाहिए। भारत में इसकी खेती सर्दियों के मौसम में की जाती है लेकिन सर्दियों में गिरने वाला पाला इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है। अधिक गर्म जलवायु में भी इसकी खेती खराब हो जाती है। जिस वजह से इसके पौधे को हल्की वर्षा की जरूरत होती है , लम्बे समय से बादलो का होना ,इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है ,इससे आलू की खेती में झुलसा रोग होने की संभावना होती है ,
आलू की खेती क लिए अधिकतम 30 डिग्री तापमान होना चाहिए। इसकी फसल के लिए दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री और रात का तापमान 15 से 20 डिग्री होना चाहिए। कंद बनने के समय 25 डिग्री के आस -पास तापमान होना चाहिए ,इससे अधिक तापमान होने पर कंदो का विकास रुक जाता है। आलू की खेती के लिए अधिक गर्म जलवायु अच्छी नहीं होती है ,जिस कारण इसकी खेती को हल्की -हल्की बारिश की आवश्यकता होती है।
आलू की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी
आलू की खेत के लिए जीवांश युक्त बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी का PH मान 5.2-6.4 होना चाहिए। आलू की खेती के लिए क्षारीय भूमि अच्छी मानी जाती है। इसके लिए भूमि उच्च जल निकास वाली होनी चाहिए ,तथा इसके लिए हल्की बलुई दोमट मिट्टी होनी चाहिए। वैसे तो आलू की खेती अनेक प्रकार के भूमि में की जा सकती है। क्योकि कंद भूमि में विकसित होते है ,इसलिए हल्की मिट्टी की आवश्यकता होती है।
आलू की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
आलू की खेती के लिए हल्की -हल्की सिचाई की जरूरत होती है इसकी फसल की सिचाई 10 से 20 दिनों के अंदर थोड़ी -थोड़ी करनी चाहिए ,इसके बाद भी 10 से 15 दिनों में सिचाई की आवश्यकता होती है। आलू की खेती में जल जमाव जैसे समस्या नहीं हों चाहिए। इसकी सिचाई थोड़ी -थोड़ी करते रहना चाहिए। जिससे पालक का विकास रुक नही सके।
आलू के रोपाई कंदो के रूप में करने पर खेत में नमी बनी होनी चाहिए। आलू की पहली सिचाई रोपाई के 5 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद जब पौधा विकास करने लगे तब 10 से 15 दिनों के अंतराल पर पानी देना चाहिए।
आलू की उन्नत किस्मे
लेडी रोसैट्टा
ईएसएस किस्म से निकलने वाले पौधे सामान्य आकर के होते है। जिसको तैयार होने में 120 दिनों का समय लगता है यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 68 टन के लगभग होती है। यह किस्म ज्यादातर गुजरात और पंजाब में उत्पादित की जाती है।
कुफरी चंद्रमुखी
यह किस्म अगेती फसल के रूप में उगाई जाती है। इस फसल की रोपाई के 90 दिनों के बाद पैदावार प्राप्त होती है ,इस किस्म में आलू का रंग हल्का भूरा होता है यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 200 से 250 किवंटल की पैदावार दे सकती है।
कुफरी ज्योति
आलू की इस किस्म को पहाड़ी भागो में उगाया जाता है। इसके कंद बीज रोपाई के 130 दिनों के बाद पैदावार देता है यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 150 से 250 किवंटल का उत्पादन देती है। इसको तैयार करने के लिए 80 दिनों का समय लग जाता है। इस किस्म को मैदानी भागो में तैयार किया जाता है।
कुफरी बहार
इस किस्म को 3792 के नाम से भी जाना जाता है इस किस्म को अगेती और पछेती फसल के लिए उगाया जाता है। इस किस्म में अगेती किस्म की रोपाई के 90 दिनों बाद और पछेती किस्म की बीज रोपाई के 130 दिनों के बाद पैदावार देना आरम्भ करती है। इसके कंदका रंग हल्के सफेद रंग का होता है।
जे एच- 222
इस किस्म को जवाहर नाम से भी जाना जाता है। आलू की यह किस्म संकर किस्म की होती है। इसको तैयार होने में 90 से 120 दिनों का समय लग जाता है ,इस किस्म के पौधे में झुलसा रोग नहीं होता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 300 किवंटल की पैदावार देती है।
जे. ई. एक्स. 166 सी.
यह किस्म भारत के उत्तरी राज्यों में अधिक पाई जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 300 किवंटल की पैदावार देती है। इस किस्म के पौधे को फसल उत्पादन में 90 दिनों का समय लग जाता है।
कुफरी अशोक
आलू की इस किस्म को मैदानी भागो में उगाया जाता है इसका प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 300 किवंटल का उत्पादन होता है। और फसल को तैयार होने में 90 दिन का समय लग जाता है।
कुफरी लवकर
इस किस्म को महाराष्ट में अधिक उगाया जाता है। इस के पौधे बीज रोपाई के 2 से 3 महीनो बाद उत्पादन देना शुरू करते है। इसके कंद का रंग सफेद होता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 250 किवंटल की पैदावार देती है।
खेत की तैयारी
खेत में बीज रोपाई से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लेनी चाहिए उसके बाद खेत को कुछ समय धूप लगने के लिए खुला छोड़ देना चाहिए। उसके बाद आप गोबर की खाद का इस्तेमाल करे। गोबर की खाद को डालने के बाद उसको मिट्टी में अच्छे से जुताई करके मिलनी चाहिए। खाद जब खेत में अच्छे से मिल जाती है उसके बाद खेत में पानी का पलेव कर देना चाहिए। जब मिट्टी ऊपर से कुछ सूख जाती है उसके बाद फिर से खेत के जुताई करनी चाहिए,जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये। आप खेत में रासायनिक तरीके का इस्तेमाल भी कर सकते है,इसके लिए खेती में रासायनिक खाद के रूप में डी.ए.पी. के दो बोरे खेत में डालकर जुताई करनी चाहिए।
खेत की मिट्टी को भुरभुरा करके उसमे पाटा लगवा देना चाहिए जिससे खेत समतल हो जाये और जल भराव की समस्या नहीं हो सके। उसके बाद बीज रोपाई के लिए मेड को तैयार कर लेना चाहिए। इसके अलावा खेत में यूरिया की सिचाई करनी चाहिए ।
आलू की बीज रोपाई और समय
आलू की रोपाई आलू के कंदो से की जाती है। कंदो के रोपाई से पहले कंदो को इंडोफिल की उचित मात्रा को पानी में डालकर 15 मिनट तक रखा जाता है उसके बाद इनकी खेत में रोपाई की जाती है एक हेक्टैयर के क्षेत्र में लगभग 30 किवंटल कंदो की जरूरत होती है। कंदो की रोपाई के लिए खेत में एक फ़ीट की दुरी बनाते हुए मेड़ो को तैयार करना चाहिए ,उसके बाद कंदो को 5 से 7 CM की गहराई में लगाया जाता है।
हम आप को बता दे की आलू की खेती रबी की खेती के साथ की जाती है। इसलिए आलू के बीज की रोपाई सर्दियों में की जाती है इसके कंदो की रोपाई के लिए अक्टूबर और नवम्बर महीना उचित माना जाता है।
खरपतवार नियंत्रण
इस खेती में खरपतवार को दो तरह से नियंत्रित किया जाता है। प्राकृतिक और रासायनिक तरीके का प्रयोग किया जाता है प्राकृतिक तरीके से खेत की निराई -गुड़ाई की जाती है ,इसकी पहले गुड़ाई बाज रोपाई के 20 से 25 दिनों के बाद की जानी चाहिए ,आलू की खेती को 2 से 3 गुड़ाई की जरूरत होती है
इसके अलावा हम खेत में रासायनिक तरीके को भी अपना सकते ही इसके लिए खेत में
पेंडामेथालिन की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई के पश्चात किया जाना चाहिए। ऐसा करने से खेत में खरपतवार कम मात्रा में होती है।
आलू के पौधे में लगने वाले रोग व् रोकथाम के उपाय
ब्लैक स्कर्फ
यह रोग पौधे पर बीज के अंकुरण के समय लगता है। इस रोग के होने पर पौधे पर काले रंग के धब्बे हो जाते है। यह रोग अधिक हो जाने पर पौधे पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से कंदो को उपचारित कर लेना चाहिए।
कटुआ कीट
यह रोग भी आलू के पौधे पर आक्रमण करता है यह रोग जमीन के पास पौधे के तने को पूरी तरह नष्ट कर देता है यह रोग पोधो पर रात के समय देखने को मिलता है।
रोकथाम
इस रोग के बचने के लिए पोधो पर मेटारीजियम की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
अगेती अंगमारी
यह रोग फसल पर विकास के दौरान होता है। यह रोग पौधे पर नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता है। यह रोग पौधे पर आक्रमण करके उसको सूखकर नष्ट कर देता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर इंडोफिल या फाइटोलान की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए ,
फलों का हरा होना
यह रोग फसल में अधिक तापमान होने से दिखाई देता है। इस रोग के हो जाने से कंद हरा रंग का हो जाता है
रोकथाम
इस रोक से बचने के लिए खुले कंदो को मिट्टी से ढक देना चाहिए और तापमान के अधिक होने पर खेत में पानी देना चाहिए।
आलू की खुदाई और पैदावार
आलू की उन्नत किस्मो को तैयार करने में 80 से 90 दिनों का समय लग जाता है अधिक तापमान होने पर कंदो को खोद कर निकल लेना चाहिए ,आजकल कंदो की खुदाई मशीनों से की जाती है। खुदाई के बाद आलू को अच्छे से धो लेना चाहिए फिर उसको बाजार में बेच देना चाहिए
हम आप को बता दे की एक हेक्टैयर के क्षेत्र में 250 किवंटल की पैदावार हो जाती है और आलू का बाजारी 600 से 1300 रूपये प्रति किवंटल के आस -पास होता है। इस प्रकार से आलू की खेती में किसानो को एक बार की फसल से लाखो तक की कमाई होती है और अधिक पैदावार होने पर अधिक मुनाफा प्राप्त होता है.