नई दिल्ली: Agriculture News – आम तौर पर आलू की फसल में झुलसा रोग होना एक आम बात है। इससे होने वाले नुकसान को कम करने के लिए किसानो को एक बेहतर उपाय के बारे में सोचना चाहिए। इस रोग से होने वाले नुकसान को  कम करने के लिए सही तकनीक और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। आलू की फसल में पिछेता झुलसा रोग की प्रकोप की संभावनाएं को देखते हुए समस्तीपुर के पूसा में स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने इस रोग से बचने के लिए सुझाव जारी किया है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉक्टर अमन तिग्गा ने जानकारी दी कि वर्तमान समय में बारिश के कारण आद्रता बनी हुई है।

वैज्ञानिक के अनुसार पिछेता झुलसा बीमारी नही दिखने वाले आलू की फसल में मैंकोजेब या प्रोपिनेब या क्लोरोथैलूनील युक्त फफूंदनाशक दवा का 0.2-0.25 प्रतिशत की दर से अर्थात 2.0-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

The real reason behind blight disease in potatoes, know the reason from the scientists of Pusa.
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वैज्ञानिक ने कहा कि बदल के साथ तापमान 09-24 डिग्री सेल्सियस के बीच रह रहा है। मौसम विभाग के अनुसार ऐसी स्थिति बने रहने की संभावना है। ऐसे में आलू की फसल में पिछेता रोग की बीमारी लग सकती है। इसके लिए किसानों को जागरुक होकर बचाव के लिए अपील करनी चाहिए। वही जिन खेतों में बीमारी आ चुकी है उसमें किसी भी प्रकार की सिस्टमिक फफूंदनाशक साईमोक्सानिल मेल्कोजेब या फेनोमिडोन मेकोजेब डाईमेथोमार्फ मेकोजेब का 3.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना फायदेमंद साबित होगा।

उन्होंने बताया कि फफूंदनाशक को 10 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है लेकिन बीमारी की तीव्रता के हिसाब से इसको घटाया या बढ़ाया भी जा सकता है। सही समय पर उपचार करने से किसान अपनी फसल को सुरक्षित रख सकता है और बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकता है जिससे किसान को काफी फायदा होगा।

वैज्ञानिक ने बताया कि फफूंदनाशक का बार-बार छिड़काव नहीं करना चाहिए जिससे फसलों को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा किसी भी परिस्थिति में खेत में पानी का जमाव लगेने नहीं देना चाहिए इससे फसल को हानि हो सकती है। आलू की खेती में पिछेता झुलसा रोग से बचाव के लिए उपरोक्त उपायों का पालन करना आवश्यक है।

मैं शुभम मौर्या पिछले 2 सालों से न्यूज़ कंटेंट लेखन...

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