Walnut Farming : अखरोट (Walnut ) की खेती ड्राई फ्रूट के रूप में की जाती है इसके अलावा सूखे मेव के रूप में भी इसकी खेती की जाती है। अखरोट में कई पोषक तत्व मौजूद होते है ,जो मानव के शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। अखरोट का प्रयोग खाने के अलावा कई चीजों को बनाने में किया जाता है। जैसे -अखरोट के फल से तेल, स्याही, रंजक, औषधि और बन्दूक के कुंदो को तैयार किया जाता है। अखरोट के सूखे मेवे का बहुत अधिक महत्व होता है। यह काफी आसानी से बिक जाता है। अखरोट जुगेलेंडसि परिवार से होता है ,इसलिए इसको जुगलो से प्राप्त किया जाता है। अखरोट दुनिया भर में प्रसिद्ध है ,यह एक अखरोट होता है ,जो पेड़ से प्राप्त होता है। बाजार में अखरोट की कीमत अधिक होती है। हमारे देश में 20 प्रकार की प्रजातिया पाई जाती है। अखरोट के पेड़ की छाल का रंग काला होता है अखरोट के पेड़ की उचाई 70 से 120 फ़ीट होती है। और इसके पेड़ का व्यास 2 से 4 फ़ीट होता है। ऐसा माना जाता है की अखरोट का जीवनकाल 250 वर्ष होता है। अखरोट का ज्यादातर उत्पादन पहाड़ी इलाकों में किया जाता है।
विश्व में अखरोट की खेती भारत, मेक्सिकों, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, इटली, नेपाल, भूटान, श्री लंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि देशों में की जाती है। अधिकतर लोग अखरोट को इसी नाम से जानते है लेकिन इसका वानस्पतिक नाम जग्लान्स निर्गा होता है। जम्मू और कश्मीर अरुणाचल प्रदेश उत्तरांचल हिमाचल प्रदेश इन क्षेत्रों में अखरोट की खेती की जाती है ,इसमें से सबसे अधिक उत्पादन केवल जम्मू कश्मीर में होता है। चीन को अखरोट का सबसे बड़ा उत्पादक देश कहा जाता है ,और अमेरिका अखरोट का निर्यातक देश है। भारत में इनके पोधो की उचाई 50 से 90 फ़ीट पाई जाती है। भारत में अखरोट की खेती पहाड़ी क्षेत्रों में जम्मू और कश्मीर, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश तथा अरुणाचल प्रदेश में किया जाती है।
अखरोट की सबसे पहले खोज ईरान में की गयी थी ,लेकिन आज इसे विश्व के इटली, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी जैसे कई देशो में खाने के अलावा व्यापक रूप में भी उगाया जाने लगा है। अगर आप भी अखरोट की खेती करना चाहते है तो आज हम आपको अखरोट की खेती कैसे की जाती है ,उपयुक्त जलवायु ,मिट्टी ,तापमान और उपज की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
अखरोट खाने के फायदे
- अखरोट का फल पोषक तत्वों से भरपूर होता है. इसमें फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट एवं असंत्रप्त फैटी अम्ल
- विशेषकर लिनोलेनिक एसिड और ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है ,जो ह्रदय के लिए काफी लाभदायक होता है।
- अखरोट का रोजाना सेवन करने से क्त के थक्के बनने की संभावना कम हो जाता है. यह एच० डी० एल० नामक अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढाता है।
- अखरोट रक्तचाप को नियमित रखने में मदद करता है. और इसके अलावा यह हड्डियों एवं दिमाग की शक्ति को बढ़ता है।
- अखरोट में विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, प्रोटीन, फाइबर, फोलेट एवं आवश्यक खनिज तत्व जैसे पोटेशियम, फ़ॉस्फोरस, जिंक, लोहा, सोडियम एवं मैग्नीशियम भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
अख़रोट की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
अखरोट की खेती सामान्य जलवायु वाले क्षेत्रों में की जानी चाहिए। इसकी खेती के लिए अधिक सर्दी और अधिक गर्मी दोनों ही हानिकारक होती है। सर्दियों में गिरने वाला पाला इसकी खेती को नुकसान पहुँचता है। इसकी खेती के लिए अधिक मात्रा में बारिश भी उपयुक्त नहीं होती है। संयमी जलवायु वाले प्रदेशो को अखरोट की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
अख़रोट की खेती के लिए अधिक तापमान की आवश्यकता नहीं होती है। यह गर्मियों के मौसम में अधिकतम 35 डिग्री और सर्दियों में न्यूनतम 5 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। अख़रोट के पौधे के अच्छे विकास के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। यह पौधा अधिकतम 40 डिग्री तापमान को सहन कर सकता है। अधिक तापमान में यह फसल की पैदावार को कम कर देता है।
अखरोट की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
अख़रोट की खेती के लिए भूमि का PH मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए। क्षारीय भूमि को इसकी खेती के लिए हानिकारक होती है। अख़रोट की खेती के लिए खेत में जलभराव की समस्या नहीं होनी चाहिए। इस समस्या से खेती में रोग लग जाता है।
अख़रोट की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
अख़रोट के पोधो को अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं होती है। अख़रोट की पहली सिचाई खेत में पौध रोपाई के समय की जानी चाहिए। अगर खेत में पौध की रोपाई गर्मियों में की है तो पोधो को हफ्ते में एक बार सिचाई की आवश्यकता होती है। और सर्दियों के मौसम 20 से 30 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए। इसके बाद पौध के पूर्ण रूप से तैयार हो जाने पर जरूरत पड़ने पर ही पानी देना चाहिए।
अख़रोट के पोधो में खरपतवार नियंत्रण
अखरोट के पोधो में अधिक खरपतवार होने पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। इसकी पोधो की खरपतवार नियंत्रण निराई -गुड़ाई से करनी चाहिए। इसकी पहली गुड़ाई पौध रोपाई के एक महीने बाद करनी चाहिए। उसके बाद जब भी खरपतवार दिखाई दे तब भी इसकी गुड़ाई कर देनी चाहिए। इसकी खेती में प्राकृतिक तरीका का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
अखरोट की उन्नत किस्मे
ओमेगा 3 किस्म के अखरोट
यह अखरोट की विदेशी किस्म होती है। इस किस्म के पौधे अधिक ऊंचे होते है। इस किस्म को अधिकतर उपयोग औषधीय रूप में रूप में किया जाता है। यह किस्म दिल की बीमारी के लिए अधिक उपयोगी है इस किस्म से लगभग 60 % तेल प्राप्त किया जा सकता है।
कोटखाई सलेक्शन 1 किस्म के पौधे
इस किस्म के पौधे कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है इस किस्म में पोधो से निकलने वाला छिलका पतला होता है। तथा पौधे की उचाई सामान्य पाई जाती है। इस किस्म की गिरी हल्की और हरे रंग की होती है।
लेक इंग्लिश किस्म के अखरोट
यह किस्म अखरोट की विदेशी किस्म है ,इस किस्म के पौधे अधिक लम्बे होते है ,यह किस्म जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशो में अधिक उगाये जाते है यह किस्म समय पर पैदावार देती है।
पूसा किस्म के अखरोट
इस किस्म के पोधो का छिलका बहुत पतला होता है। यह किस्म 3 से 4 वर्ष बाद पैदावार देती है। एस्किसम के पौधे सामान्य उचाई के होते है इस अखरोट को केवल खाने में उपयोग लिया जाता है।
इसके अलावा अखरोट की अन्य किस्म भी होती है ,जिनको अलग -अलग राज्यों में जलवायु के हिसाब से अधिक उत्पादन के लिए उगाई जाती है। जो इस प्रकार है – कश्मीर अंकुरित, एस.आर. 11, K.N. 5, चकराता सिलेक्शन, S.H. 23, 24, K.12, प्लेसेंटिया, ड्रेनोवस्की, विल्सन फ्रैंकुयेफे और ओपक्स कॉलचरी आदि किस्मे मुख्य रूप से पाई जाती है।
अख़रोट के पौधे में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
अखरोट के पौधे में पत्ती खाने वाले कीट रोग
यह रोग पौधे की पत्तियों को खाकर पौधे को नुकसान पहुँचती है और इस रोग के लग जाने से पौधा विकास करना बंद कर देता है। जिससे पैदावार पर काफी प्रभाव पड़ता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए मेलाथियान की उचित मात्रा का पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
गोंदिया रोग
इस रोग से प्रभावित पौधा सूख जाता है यह रोग पौधे पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है ,जिससे पौधा अच्छे से विकास नहीं कर पता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन और व्लाइटाक्स का घोल बना कर उचित मात्रा में पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा रोग होने वाले पौधे की टहनिया और पत्तियों को काट देना चाहिए।
तना बेधक रोग
इस किस्म का रोग पौधे को अधिक प्रभावित करता है। यह रोग पौधे के तनो में घुसकर अंदर से खाकर इसको पूरी तरह नष्ट कर देता है। ,जिससे पौधा नष्ट होकर गिर जाता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए डाईमेथोएट के घोल को उस पौधे के अंदर डाल देना चाहिए,ऐसा करने से रोग अंदर ही मर जाते है।
जड़ गलन रोग
यह रोग खेती में जलभराव होने पर या अधिक नमि होने के कारण पौधे की जड़ो में मिलता है ,इस कारण से पौधे में यह रोग लगने से पौधा मुरझा जाता है। और कुछ समय बाद पौधे की पत्तिया सूखकर गिर जाती है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए खेत में जलभराव की समस्या नहीं होनी चाहिए ।
अखरोट की खेती के लिए खेत की तैयारी
अखरोट की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए उसके लिए खेत की अच्छे से जुताई करनी चाहिए। और पुराणी फसल के अवशेषों को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए। उसके बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ देना चाहिए ताकि मिट्टी को थोड़ी धूप मिल सके। फिर खेती की मिट्टी भुरभुरी करने के लिए खेत में रोटावेटर चलवा देना चाहिए। उसके बाद खेती में पाटा लगवाकर खेत को समतल करना चाहिए जिसे जलभराव की समस्या नहीं हो।
अखरोट के पौधे को खेत में लगाने से पहले खेत में गड्डो की व्यवस्था करनी चाहिए। उसके बाद 5 मीटर की दूरी को रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लेना चाहिए, प्रत्येक पंक्ति में उचित दूरी पर दो फ़ीट चौड़े तथा डेढ़ फ़ीट गहरे गड्डो को तैयार कर लेना चाहिए |
भूमि को तैयार करने के बाद अख़रोट का पौधा अच्छे से विकास करे उसके लिए खेत में गोबर की खाद के साथ 100 से 150 ग्राम रासायनिक उवर्रक की मात्रा को अच्छे से मिट्टी में मिलाकर प्रत्येक गड्डे में भर देना चाहिए। उसके बाद सिचाई कर देनी चाहिए। पौध रोपाई के एक महीने पहले खेत में गड्डो को तैयार कर लेना चाहिए।
अख़रोट के पौधे की रोपाई और सही समय
पौध को तैयार नर्सरी में किया जाता है। लेकिन पौधे को लेने से पहले ध्यान रहे की पौधा बिलकुल स्वस्थ हो। फिर गड्डो को अच्छे से साफ़ कर लेना चाहिए। या बाविस्टीन या गोमूत्र से गड्डो को उपचारित कर लेना चाहिए,ताकि पौधों को आरम्भ में विकास करने में किसी तरह की समस्या न हो सके।
अखरोट की खेती सर्दियों के मौसम में करना उचित होता है ,इसलिए इसको दिसंबर से मार्च तक बोना चाहिए। कुछ किसान इसे बारिश के मौसम मेभी लगते है। सामान्य तापमान में इसका पौधा अच्छे से विकास करता है।
फलो की तुड़ाई और पैदावार
अखरोट के पौधे सामान्य रूप से 20 से 25 वर्ष का समय पैदावार देने में लगा देते है। लेकिन अखरोट की उन्नत किस्मे 3 से 4 साल में ही पैदावार देती है। इसके पौधे की ऊपरी छाल फटने लगे तब इसकी तुड़ाई करनी चाहिए। अखरोट की चमक के लिए इसे एक विशेष प्रकार के घोल में डूबा लिया जाता है।
इसके बाद फल को अच्छे से धूप में सूखा लेना चाहिए। अख़रोट का एक पौधा 40 KG की पैदावार देता है। इसका बाजारी भाव किस्म के आधार पर 500 से 1000 रूपए प्रति किलो होता है। इससे किसानो को अच्छी पैदावार से अच्छी कमाई हो सके।