Brinjal Cultivation : बैगन सोलेनम मैलोंजेना जाति की सब्जी है ,जो की मूल रूप से भारत में उगाई जाती है। यह फसल बाकि फसलों से सख्त होती है। यह विटामिन और खनिजों का अच्छा स्त्रोत है । चीन के बाद भारत में बैगन का उत्पादन अधिक होता है। यह फसल कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है। इसकी खेती साल भर की जाती है। यह फसल एशियाई देशो में सब्जी के तोर पर उगाई जाती है। बैगन की खेती गमले में भी उगाई जा सकती है। यह खेती अधिक उचाई वाले क्षेत्रों में सभी जगहों पर की जाती है बैगन के पौधे 2 से 3 फ़ीट लम्बे होते है। इसके पौधे से कई शखाऍ निकलती है। और इनकी शखाओ में अनेक फलो की उपज होती है। बैगन कई आकर के होते है जैसे –गोल ,लम्बे ,और अंडाकार आदि है। बैगन से सब्जी का प्रयोग ज्यादा किया जाता है ,और इसमें कई पोषक तत्व भी मौजूद होते है। बैगन की पत्तियों में विटामिन C की मात्रा अधिक पाई जाती है।
बैंगन की खेती 2 महीनो में तैयार हो जाती है बैगम की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है। हम आपको बता दे की देश में अगर आलू के बाद किसी सब्जी की मांग होती है वह है बैगन। बैगन की कई किस्मे बाजार में देखने को मिल जाती है। बैगन की कुछ किस्मो से किसानो को अच्छी पैदावार प्राप्त होती ही। पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर इसकी खेती पुरे देश में की जाती है। पेट से सम्बन्धित बीमारियों को यह सब्जी खत्म करती है। इसकी खेती पुरे वर्ष आसानी से की जा सकती है।
भारत के झारखण्ड राज्य में बैंगन सब्जी के कुल क्षेत्र के लगभग 10.1% भाग में उगाई जाती है मिस्र, फरांस, इटली और अमेरिका देसो में भी बैंगन की कहती की जाती है और उत्पादन भी सिमित मात्रा में किया जाता है। इसके अलावा भारत में इसकी खेती पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश आदि प्रदेशो में की जाती है। अगर आप भी बैगन की खेती करना चाहते है तो हम आपको बैगन की खेती कैसे करे ,उसके लिए उपयुक्त जलवायु ,मिट्टी ,तापमान और पैदावार की सम्पूर्ण जानकारों देंगे।
बैंगन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
बैंगन के पौधे को अच्छे विकास के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती पर सर्दियों में गिरने वाला पाला अधिक मात्रा में हानिकारक होता है कम जलवायु में इसके पौधे अच्छे से विकास नहीं कर पाते है। बैगन की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु काफी अच्छी मानी जाती है।
बैंगन के पौधे 30 डिग्री तापमान पर अच्छे से विकास करते है और यह पौधे अधिकतम 35 डिग्री तापमान को सहन कर सकते है। और इसके लिए न्यूनतम तापमान 13 डिग्री आवश्यक होता है। अधिक तापमान इसकी खेती के लिए अच्छा नहीं होता है ,जिससे पौधा अधिक प्रभावित होते है। इसलिए इसके पौधे के लिए सामान्य तापमान होना चाहिए।
बैंगन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
बैंगन की खेती के लिए किसी खास भूमि की आवश्यकता नहीं होती है ,और यह किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है। इसके लिए भूमि अच्छे जल निकास की होनी चाहिए। इसलिए भूमि का PH मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए। इसकी खेती रेतीली दोमट मिट्टी में अच्छी की जाती है जिससे फसल की पैदावार अच्छी होती है। इसके अलावा अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी और अधिक पैदावार के लिए चिकनी मिट्टी व् नमी वाली मिट्टी अच्छी होती है।
बैंगन की उन्नत किस्मे
बैंगन की कई किस्मे पाई जाती है ,इनके रंग ,आकार ,और पैदावार के हिसाब से अलग -अलग किस्मे पाई जाती है। जो इस प्रकार है –
स्वर्ण श्री
इस किस्म का पौधा 2 फ़ीट लम्बा होता है। और इसके पौधे में कई शाखाए निकलती है इस किस्म से प्राप्त सब्जियों का प्रयोग भून कर खाया जाता है। इस किस्म के फलो का रंग अण्डाकार तथा सफेद होता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर एक हिसाब से 600 किवंटल तक पैदावार देती है।
स्वर्ण श्यामली
इस किस्म के पोधो के पत्तियों पर हल्के काटे पाए जाते है। इसका रंग सफेद रंग की धरिया लिए हुए हरे रंग का होता है। इस किस्म के फल खाने में काफी स्वादिस्ट होते है। यह किस्म पौध रोपाई के 40 दिनों बाद पैदावार देती है।
पूसा हाईब्रिड – 5
बैंगन की इस किस्म को अधिक पैदावार देने के लिए उगाया जाता है। इस किस्म में पौध रोपाई के 80 दिन बाद पौधा फल देता है। और इसमें निकलने वाली बैंगन लम्बे और गहरे रंग के होते है। इस किस्म को अधिक खाया जाता है।
स्वर्ण शक्ति
यह संकर किस्म होती है ,इस किस्म के पौधे पर लगने वाले फल आकार में लम्बे तथा बैगनी रंग के होते है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 700 से 800 किवंटल की पैदावार देती है। और इनकी लम्बाई 3 फ़ीट के आसपास होती है।
इसके अलावा बैंगन की अन्य किस्मे भी पाई जाती है जो इस प्रकार है – पंजाब सदाबहार, अर्का नवनीत, पूसा अनमोल, ऋतुराज ,पूसा परपल लाँग, पूसा उत्तम- 31, पूसा उपकार, पूसा बिन्दु और पंत आदि बैंगन की किस्मे है ,जो बाजार में मुख्य रूप से मिल जाती है।
बैंगन की खेती में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
झुलसा रोग
यह रोग मौसम के परिवर्तन होने से होता है ,इस रोग के हो जाने से पौधे की पत्तियों पर पीले और भूरे रंग के धब्बे हो जाते है। इस रोग का प्रकोप अधिक होने पर पत्तिया सिकुड़ जाती है और सूख जाती है ,जिससे पौधा विकास नहीं कर पाता है ,और पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया भी नहीं कर पाता है ,और यह पौधे को हानि पहुंचकर पैदावार को कम करता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर मैन्कोजेब या जाईनेब की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
फल छेदक
यह रोग फलो को अंदर से खाकर खोखला कर देता है। ,जिससे पौधे का फल पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। इस रोग से पौधे की शाखाए सूख जाती है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर साइपरमेथ्रिन या इंडोसल्फान की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
हरा तेला रोग
यह रोग पौधे की पत्तियों पर सीधा आकर्मण करता है यह पौधे की पत्तियों का पूरा रस चूस लेता है। जिस कारण से पौधा नष्ट हो जाता है। इस रोग के होने से पौधा भूरा हो जाता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर मोनोक्रोटोफास, फोस्फेमिडोन या कार्बेरिल की उचित मात्रा का घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
सूखा रोग
यह एक तरह की बीमारी होती है जिसके होने से पोधो से पत्ते सूखकर झड़ जाते है इस रोग से प्रभावित पौधे को काटकर पानी में डुबोया जाये तो पानी सफेद हो जाता है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए खेत में पोधो पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे
करनी चाहिए ,इसके अलावा फसल चक्र को भी अपनाया जाना चाहिए।
बैंगन की खेती के लिए खेत की तैयारी
इसकी खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है ,ऐसी मिट्टी में पैदावार अच्छी होती है ,इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए उसके बाद खेत में पुरानी फसल के अवशेषों को निकलकर नष्ट कर देना चाहिए। उसके बाद खेती को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दे ताकि खेत की मिट्टी को धूप लग सके। उसके बाद फिर खेत में 16 गाड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए। उसके बाद उसको खेत की मिट्टी में अच्छे से मिलाने के लिए खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। खेत में पानी का पलेव कर देना चाहिए। जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये फिर से खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।
इसके साथ आप खेत में रासायनिक खाद का प्रयोग भी कर सकते है ,इसके लिए प्रति हेक्टैयर के खेत में एन.पी.के. की मात्रा को आखरी जुताई के समय देना चाहिए। इसके अतिरिक्त 20 KG यूरिया की मात्रा को सिंचाई के समय पोधो को देनी चाहिए।
पोधो की रोपाई और सही समय
बैंगन के पोधो की रोपाई बीज के रूप न करके पौध के रूप में की जानी चाहिए ताकि पैदावार अच्छी हो सके। इसके लिए पौधों को किसी सरकारी नर्सरी खरीद लेना चाहिए ,पौधा स्वस्थ होना चाहिए। इनके पौध को समतल या मेड दोनों पर रोपाई कर सकते है। संताल भूमि पर क्यारिया बनाकर तैयार करना चाहिए ,क्यारियों में पौधे से पौधे के बीच 2 फ़ीट की दुरी होनी चाहिए। और पोधो को 5 से 6 कम की गहराई पर लगाना चाहिए ,इससे पौधा विकास अच्छा करेगा। पौध को शाम के समय में लगाना अच्छा माना जाता है।
बैगन की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
बैगन की खेती को अधिक पानी की आवश्यकता होती है गर्मी के मौसम में 3 से 4 दिनों में पानी देना चाहिए। सर्दी के मौसम में 12 से 15 दिनों पर पानी देना चाहिए। अधिक समय पर पानी देने से फसल की पैदावार अच्छी होती है। फसल को कोहरे से बचाने के लिए खेत में नमी बनाये रखे और पानी दे। खेत में जलभराव की समस्या इसकी फसल में नुकसानदायक होती है।
बैगन की खेती में खरपतवार नियंत्रण
बैगन की खेती में खरपतवार नियंत्रित आवश्यक होता है। इसके लिए प्राकृतिक तरीके का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए पौध रोपाई के 15 दिन बाद की जनि चाहिए और उसके बाद फिर 15 से 20 दिन के अंतराल पर की जानी चाहिए। बैगन के पौधे भूमि की सतह से कम उचाई पर पाए जाते है। इस लिए इसकी निराई -गुड़ाई आवश्यक होती है।
बैंगन की तुड़ाई और पैदावार
आपको बता दे की किस्मो के आधार पर इनकी तुड़ाई आती है वैसे तो इनके पौधे पौध रोपाई के 70 दिनों के बाद पैदावार देना शुरू हो जाती है। जब इनके पोधो का रंग आकर्षक हो जाये तब इनकी तुड़ाई कर ली जाती है। बैंगन की तुड़ाई शाम के समय में की जानी उपयुक्त होती है।
बैगन उन्नत किस्मो के आधार पर 700 किवंटल के आस -पास पैदावार प्रति हेक्टैयर के हिसाब से देता है। बाजार में बैंगन का भाव 20 रूपये किलो माना जाता है ,इस हिसाब से किसानो को अच्छी पैदावार से अधिक मात्रा में मुनाफा प्राप्त होगा।