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काजू की खेती कब ,कैसे ,और कहाँ होती है , जानिए सम्पूर्ण जानकारी

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Cashew Farming : काजू के फल की उत्पति ब्राजील देश में हुई थी ,ऐसा माना जाता है। सन 1570 में काजू को पुर्तगाल द्वारा भारत में लाया गया। जब से काजू की खेती एक नगदी फसल के रूप में की जाती है। काजू की खेती कम समय में अधिक पैदावार देती है ,विदेशो में काजू की बड़ी स्तर पर मांग होती है। देश के किसान इसकी खेती में करने में बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लेते है। काजू को भी बादाम की तरह ड्राई फ्रूट में नाम लिया जाता है। काजू में मुख्य रूप से आयरन ,सेलेनियम ,ज़िंक ,फास्फोरस आदि पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में मिल जाते है ,जिसका सेवन मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है । काजू से कई प्रकार की मिठाईया और स्वादिस्ट भोजन बनाये जाते है ,काजू में प्रोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है। काजू एक उष्णकटिबंधीय सदाबहार वृक्ष है । काजू बहुत तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है इसमे पौधारोपन के तीन साल बाद फूल आने लगते हैं,और दो महीने में पक भी जाते है। काजू को सूखे मेव के लिए उत्तम माना जाता है। काजू को उपयोग खाने के साथ मिठाई बनाने ,सजावट करने और काजू कतली की मिठाई बनाने में काजू को पीसकर उसमे मिला दिया जाता है ,जिससे मिठाई को स्वाद और अधिक बढ़ जाता है। काजू का प्रयोग मदिरा बनाने में भी किया जाता है ,इसके अलावा काजू की फसल को बड़े पैमाने पर उगाया जाता है ,यह निर्यात करने का बड़ा व्यापार है।

भारत में काजू का उत्पादन 25 % किया जाता है। भारत में काजू की खेती कर्नाटक, तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा एवं पं. बंगाल ,केरल, महाराष्ट्र और गोवा में की जाती है। इसके अलावा बंगाल और उड़ीसा में भी इसकी खेती की जाने लगी है। और उतरप्रदेश में भी काजू की खेती करने की संभावना बढ़ गयी है। काजू के हर एक पेड़ से 10 से 12 नट्स मिल जाते है। काजू की पैकिंग और प्रोसेसिंग में भी किसानो को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है। यह एक ऐसा पदार्थ है ,जिसको सर्दी ,गर्मी और बारिश के मौसम में भी खाया जा सकता है। इस साथ ही काजू को बच्चे से लेकर बूढ़े -बड़े सभी चाव से खाते है। इस फल की डिमांड बाजार में हमेशा बनी रहती है।

काजू का वानस्पतिक नाम एनाकार्डियम आशिडेंटली होता है ,काजू में अनेक पोषक तत्व पाए जाते है ,जिससे खाने पर शरीर में काफी लाभ होता है। काजू के साथ इनके छिलके को भी प्रयोग में लेते है ,इसका उपयोगपेंट और लुब्रिकेंट्स को तैयार करने में किया जाता है। आजकल काजू की खेती अधिक लाभदायक हो रही है। इसलिए अगर आप भी काजू की खेती करने का मन बना रहे है तो हम आप काजू के खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

काजू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान

काजू की खेती के लिए ऊष्णकटिबंधिय जलवायु को सबसे अच्छा माना जाता है, तथा गरम और आद्र जलवायु जैसी जगहों पर इसकी पैदावार काफी अच्छी हो जाती है ,काजू की खेती को पानी की अधिक आवश्यकता होती है। इसके पौधे के अच्छे विकास के लिए
600-4500 मिमी. बारिश की जरूरत होती है। सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती को अधिक प्रभावित करता है ,और इसकी खेती में अधिक गर्मी और अधिक सर्दी भी अच्छी नहीं होती है। इसके लिए सामान्य सर्दी और गर्मी आवश्यक होती है।

काजू की खेती में आरंभ में 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है ,जब पौधे में फूल आने लगे तब इसकी खेती को शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। इसके अलावा जब फल पकने लगे तब 30 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। तापमान के अधिक बढ़ने और घटने पर फलो की पैदावार के साथ गुणवत्ता की कमी होने का भी खतरा होता है। और फल भ्ही टूटकर गिर सकते है।

काजू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

काजू की खेती के लिए समुद्रीय तलीय लाल और लेटराइट मिट्टी को अच्छा माना जाता है। अगर इसकी खेती की देख -रेख अच्छी हुई तो इसे कई तरह की मिट्टी में उगा सकते है ,ऐसी कारण से दक्षिण भारत में समुद्रीय तटीय इलाको में इसकी अधिक पैदावार होती है|
काजू की खेती गहरी ,बलुई दोमट मिट्टी में भी उगा सकते है। और मिट्टी अच्छे निकास वाली भी होनी चाहिए। काजू की खेती के लिए खेत में पानी को नहीं रहने देना चाहिए। यह पौधे की वृद्धि को नुकसान पहुँचता है। इसके साथ ही मिट्टी का PH मान 8 के आस -पास होना चाहिए। काजू उगाने के लिए खनिजों से समृद्ध शुद्ध रेतीली मिट्टी में भी कर सकते है।

काजू की खेती में सिचाई कीआवश्यकता और उर्वरक की मात्रा

काजू की खेती के लिए अधिक सिचाई की आवश्यकता होती है ,काजू की खेती अधिक वर्षा वाले स्थानों पर की जाती है। काजू को 2000 मीटर वर्षा की आवश्यकता होती है। बारिश के मौसम में सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है। सर्दियों में इसकी सिचाई 10 से 12 दिनों के अंतराल पर की जानी चाहिए। और गर्मी के मौसम में तीन से चार दिनों में पौधे की सिचाई की जानी चाहिए। जब पौधे से फूल निकलने पर पानी की मात्र को कम कर देना चाहिए। जिससे पौधे से फूल झड़ने का खतरा होता है।

काजू के पौधे में अच्छे विकास के लिए पोषक तत्वों का होना आवश्यक होता है ,इसलिए काजू के पोधो में उर्वरक की अच्छी मात्रा देनी चाहिए। पोधो को लगाने से पहले खेत में गोबर की खाद डालनी चाहिए उसके बाद आप उसमे आधा किलो N.P.K की मात्रा को भी मिट्टी में डालकर मिला दे| यह सारी प्रक्रिया पौधों को लगाने के एक महीने पहले की जाती है। जिससे खेत की मिट्टी को अच्छे पोषक तत्व प्राप्त हो सके और अच्छी पैदावार से अधिक मुनाफा प्राप्त हो जाये।

काजू की खेती में खरपतवार नियंत्रण

काजू की फसल को पूर्ण रूप से तैयार होने में 4 वर्ष का समय लग जाता है। जब तक काजू की खेती में 3 से 4 गुड़ाई कर देनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए खेती की निराई -गुडाई ही इसकी खेती के विकास के लिए अच्छी होती है। काजू के पौधे की पहली गुड़ाई पौध लगाने के 2 से 3 महीने बाद की जानी चाहिए। इसके अलावा जब भी खेत में खरपतवार दिखाई दे तब भी गुड़ाई करनी चाहिए।

इसके अलाव हम आपको एक बात और बता दे की काजू के अलावा आप और कमाई भी कर सकते है। काजू के पौधे के बीच 4 मीटर की दूरी होती है ,उसमे आप दलहन फसल की खेती कर इसके अलावा कमाई कर सकते हो। वैसे भी काजू की फसल को तैयार होने में 4 वर्ष का समय लगता है तब तक आप और कमाई भी कर सकते है।

काजू की उन्नत किस्मे

काजू की कई किस्मे पाई जाती है इनमे से कुछ अच्छी क्वालिटी की होती है ,जो अच्छी पैदावार देती है ,जो इस प्रकार है –

वेंगुरला 1 – 8

काजू की यह किस्म लगभग 30 वर्ष तक पैदावार देता है ,और इसके पौधे से एक वर्ष में 25 किलो तक काजू प्राप्त होते है। और 30 से 35 % छिलके प्राप्त होते है। यह किस्म
पश्चिमी समुद्र तटीय जगहों पर मुख्य रूप से उगाई जाती है।

V.R.I. 1-3

काजू की इस किस्म को कृषि विश्वविद्यालय तमिलनाडु द्वारा बनाकर तैयार किया गया था। इस किस्म में 25 किलो काजू एक पौधे से प्राप्त होते है। काजू की इस किस्म को मुख्य रूप से तमिलनाडु में उगाया जाता है ,लेकिन इसका उत्पादन अन्य राज्यों में भी होने लगा है।

गोआ-1

यह किस्म पश्चिमी समुद्र तटीय इलाको में उगाई जाती है। यह किस्म एक बार में 25 किलो की पैदावार देती है। इस किस्म से 30 से 35 % छिलके प्राप्त होते है।

BPP 1 किस्म के पौधे

इस किस्म को अधिकतर पूर्वी समुद्र तटीय इलाको में यज्ञ जाता है। इस कसिम को पौधा 15 किलो फलो की पैदावार देता है। इस किस्म का एक बीज 5 ग्राम का होता है। इसका पौधा एक बार लगने के बाद 25 वर्ष तक पैदावार देता है। इसमें 30 % छिलका निकलता है।

BPP 2 किस्म के पौधे

काजू की यह किस्म भी BPP 1 की तरह समुद्री तटीय इलाको में की जाती है ,लेकिन इस किस्म से 20 किलो तक काजू प्राप्त होते है। यह किस्म 26 % छिलका देती है। और अलावा BPP की अन्य किस्मे भी पाई जाती है जैसे –BPP 3 ,BPP 4 ,BPP 5 ,BPP 6 ,आदि किस्मे भी होती है। जिसको सामान्य तापमान के अनुसार उगाया जाता है ,क्योकि किस्मो की पैदावार अलग होती है।

इसके आलावा भी कई तरह की किस्मे पाई जाती है जो इस प्रकार है –प्रियंका, कनका, अनक्कायम-1, बी ल ए 39-4, क 22-1 और एन डी आर 2 ,वी आर आई- 1,2, उलाल- 1, 2, अनकायम 1, मडक्कतरा 1,2, धना आदि किस्मे है।

काजू की खेती के लिए खेत को तैयार कैसे करे ?

काजू की खेती के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई की जानी चाहिए ,उसके बाद खेत में पुरानी फसल के अवशेषो को पूरी तरह से नष्ट करना चाहिए। उसके बाद खेत में पानी देना चाहिए , पानी देने के बाद खेत की मिट्टी थोड़ी सूख जाये तब उसमे गोबर की खाद डालनी चाहिए ताकि खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। और फसल ककी उपज अच्छी होती है ,उसके बाद खेती में जुताई करे और पाटा लगवा देना चाहिए ,जिससे खेत की मिट्टी समतल हो जाये और जिससे जलभराव की समस्या नहीं हो सके।

उसके बाद एक हेक्टैयर के खेत में गड्डो के बीच में 4 मीटर की दूरी रखते हुए लगभग 500 गड्डो को तैयार किया जा सकता है। इसके बाद खेत के गड्डो में गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए उसके अलावा रासायनिक खाद भी मिट्टी में डालकर मिला देना चाहिए और उसके बाद गड्डो की सिचाई कर देनी चाहिए।

पौध को तैयार कैसे करे?

आपको सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से पौधों को खरीदना पड़ता है इसके अलावा आप बीजो को सीधे खेत में भी लगा सकते है ,बीज के पौधे 6 से 7 साल तक पैदावार देते है ,इस कारण ही इनकी पौध को तैयार करके खेत में पौध को लगाया जाता है। इसके पौधों को नर्सरी से खरीद पर समय की बचत होती है।

ग्राफ्टिंग तरीके का इस्तेमाल कर इसके पौधों को घर पर भी तैयार किया जा सकता है। कलम द्वारा लगाया पौधा 3 से 4 वर्ष बाद फल देना शुरू कर देता है। काजू के बीज की ग्राफ्टिंग द्वारा भी तैयार किया जाता है इसके लिए घर पर बीज को लगा देना चाहिए उसके बाद 2 साल तक वैसे ही रहने दे ,2 साल बाद जब पौधे को तोडा जड़ के ऊपर से काटकर जंगली पौधों से लगा दे ,उसके बाद पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए खेत में पौध को लगा देना चाहिए।

काजू की पौध रोपाई का सही तरीका और समय

काजू की पौध को खेत में लगाने से पहले खेत में गड्डो को एक महीने पहले ही तैयार कर लेना चाहिए। पौधे लगाने से पहले खेत में गड्डो की अच्छे से निराई -गुड़ाई करनी चाहिए ,उसके बाद गड्डो में पौध को लगा देना चाहिए, उसके बाद गड्डो को चारो और से ढक देना चाहिए।

काजू के पौधे की रोपाई बारिश के मौसम में की जानी चाहिए। ताकि फसल को पानी की आवश्यकता नहीं होती है। इससे पौधे का विकास अच्छे से हो जाता है और बढ़ भी जल्दी जाते है।

काजू के पौधे में लगने वाले रोग व् रोकथाम के उपाय

टी मास्किटो बग कीट रोग

यह रोग पौधे के लिए एक बड़ी समस्या है। यह रोग पौधे के नरम भाग पर आकर्मण करता है यह रोग नई पत्तियों , शाखाओ और कपोलो का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देता है ,जिससे पौधा वृद्धि नहीं कर पता है

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास का उचित मात्रा में पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।

स्टेम बोरर रोग

इस रोग के लग जाने से फल और फूलो पर काफी हानिकारक प्रभाव होता है। यह रोग पौधे के अंदर उसको खाकर खोखला कर देता है। और पौधा नष्ट हो जाता है

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए जब पौधे पर यह रोग दिखाई दे तब उसमे चिकनी मिट्टी के लैप या केरोसिन में रुई को भिगोकर छिद्रो पर लगा देना चाहिए | इससे इसमें लगने वाला कीट अंदर ही मर जाता है

रूट बोरर कीट रोग

यह रोग पौधे के लिए हानिकारक होता है। यह रोग पौधे की जड़ो को खाकर नष्ट कर देता है। जिससे पौधा मुरझा जाता है और थोड़ी देर बाद पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है।

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर मेटाराइजियम का छिड़काव करना चाहिए।

लीफ माइनर रोग

पौधे पर लगने वाला यह रोग पतितयो को चूसकर उन्हे हानि पहुँचता है ,इस रोग के होने पर पत्तियों पर सफेद रंग की धरिया बन जाती है। कुछ समय बाद पौधे की पत्तिया पीली हो जाती है और खराब हो जाती है।

रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर डूरिवो मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए।

काजू के फल की तुड़ाई

काजू को कैश्यु एप्पल भी कहा जाता है। काजू के फल फूल आने के दो महीने बाद पककर तैयार हो जाते है काजू देखने में किडनी के जैसे आकार का होता है। काजू के फल पकने पर उसकी गिरी के ऊपर लाल पीले रंग के फूल आने लग जाते है। काजू की गिरी जहरीली होती है ,इसलिए तकनीकी प्रक्रिया कर इन्हे खाने योग्य बनाया जाता है। पहले फलो को तोड़कर छाँट कर धूप में अच्छे से सूखा लिया जाता है,उसके बाद उसको प्रोसेसिंग के लिए तैयार किया जाता है।

काजू की खेती में पैदावार

काजू की खेती के लिए पैदावार की बाद करे तो काजू का पौधा एक बार लग जाने से कई वर्षो तक पैदावार देता है। एक हेक्टैयर के क्षेत्र में 500 पोधो को लगाया जा सकता है। एक पौधे में 20 काजू के हिसाब से एक हेक्टैयर के क्षेत्र में 10 टन की पैदावार प्राप्त होती है ,काजू की प्रोसेसिंग में अधिक खर्चा होता है ,लेकिन काजू का बाजारी भाव अधिक होता है जो 700 से 800 रूपये किलो होता है। जिससे किसानो को इसकी फसल में अच्छी कमाई प्राप्त होती है।

Saloni Yadav

मीडिया के क्षेत्र में करीब 3 साल का अनुभव प्राप्त है। सरल हिस्ट्री वेबसाइट से करियर की शुरुआत की, जहां 2 साल कंटेंट राइटिंग का काम किया। अब 1 साल से एन एफ एल स्पाइस वेबसाइट में अपनी सेवा दे रही हूँ। शुरू से ही मेरी रूचि खेती से जुड़े आर्टिकल में रही है इसलिए यहां खेती से जुड़े आर्टिकल लिखती हूँ। कोशिश रहती है की हमेशा सही जानकारी आप तक पहुंचाऊं ताकि आपके काम आ सके।

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