Fenugreek Cultivation: मेथी की खेती करके किसान भाई बहुत ही अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। मेथी की खेती को औषधियें खेती के रूप में भी देखा जाता है साथ में मेथी अपने आप में एक मसाला भी है। मेथी के कई प्रकार होते है जिनकी खेती भारत में की जाती है। मेथी का इस्तेमाल इसके दाने और पौधे दोनों ही रूपों में किया जा सकता है। एक तरफ जहां मेथी के बीज मसलों और दवाइयों में काम आते है तो वहीं दूसरी और मेथी के पौधों को सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
मेथी किसान भाइयों के लिए वरदान से कम नहीं है क्योंकि बाजार में मेथी के भाव हमेशा अधिक रहते है। मेथी के दानों का इस्तेमाल दवाइयों में, खाने में और अचार बनाने में किया जाता है। मेथी के बिना अचार बेसुवाद रहता है या यूँ कहें की मेथी के बिना अचार अच्चार ही नहीं रहता। इस आर्टिकल में आपको मेथी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी आपको देने वाले है। मेथी की खेती कैसे की जाती है और मेथी का इस्तेमाल कहां कहां होता है ये सबकुछ आपको आगे इस आर्टिकल में पढ़ने को मिलेगा। इसलिए आर्टिकल को आखिर तक जरूर पढ़ें।
मेथी के बारे में जानकारी
मेथी भारत में बहुतायत मात्रा में उगाई जाती है और ये ‘लिग्यूमनस’ परिवार से सम्बंधित पौधा है। पुरे देश में इसकी खेती बहुत ही आसानी से की जा सकती है। मेथी को सूखे और हरे दोनों तरफ से भी उपयोग किया जाता है साथ में इसके बीजों को भी इस्तेमाल किया जाता है। मेथी के पौधे और बीजों में बहुत ही अधिक मात्रा में औषधिये गुण पाए जाते है और इसके सवाल से रक्तचाप तथा शरीर में कोलस्ट्रोल को कम करने में भी मदद मिलती है। किसान भाई मेथी के पौधे के सूखे हुए भाग को पशुओं के लिए चारे के रूप में भी इस्तेमाल करते है।
भारत में मेथी की खेती सबसे अधिक राजस्थान राज्य में की जाती है लेकिन इसके अलावा भी देश के अन्य राज्यों में भी इसकी खेती होती है जैसे मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब और गुजरात आदि। मेथी का पौधा आकार में छोटा होता है और झाड़ीनुमा होता है। इसके पत्तों को सुखाकर भी भेचा जाता है जिससे भी किसान अधिक मुनाफा कमाते है। मेथी के लड्डू भी बनाये जाते है जो की शुगर के मरीजो, डायबिटीज के रोगियों और बीपी के रोगियों को खिलाये जाते है जिससे उनको इन बिमारियों में लाभ मिलता है।
इसके अलावा मेथी का इस्तेमाल जोड़ों के दर्द की दवा के रूप में भी किया जाता है जिससे रोगियों को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
मेथी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
वैसे तो देश के कई राज्यों में मेथी की खेती की जाती है और हर जगह की मिट्टी अलग अलग होती है। लेकिन मेथी की खेती के लिए सबसे बढ़िया मिट्टी बलुई दोमट मिट्टी को माना जाता है। इस मिट्टी में जल भराव की समस्या नहीं होती। जिस मिट्टी में जल भराव की समस्या होती है उसमे मेथी की खेती ख़राब हो जाती है। इसके अलावा जिस खेत में मेथी की खेती करनी होती है उस खेत की मिट्टी का पीएच मान भी जरूर चेक करना चाहिए क्योंकि मेथी की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.3 से 8.2 के बीच होना सबसे उत्तम माना जाता है और इसमें मेथी की फसल में अधिक पैदावार भी होती है।
मेथी की खेती करने के लिए जलवायु ठंडी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। जब सर्दी के मौसम में कोहरा गिरता है तो मेथी के पौधे में उसको भी सहने की छमता होती है। लेकिन बारिश का मौसम मेथी के लिए सही नहीं रहता इसलिए मेथी की खेती अधिकतर उन्ही स्थानों पर की जाती है जहां पर बारिश ज्यादा न होती हो। बसंत और सर्द ऋतू में मेथी की खेती सबसे अच्छी होती है। मेथी की खेती में ये भी ध्यान रखना होता है की जल भराव की समस्या नहो होनी चाहिए नहीं तो फसल ख़राब होने की सम्भावना हो जाती है।
मेथी की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करनी चाहिए
जैसा की आपको हमने ऊपर बताया की मेथी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उत्तम माना जाता है इसलिए सबसे पहले आपको खेत की अच्छे से जुताई करनी जरुरी होती है ताकि खेत की साडी मिट्टी भुरभुरी हो जाए। खेत में पर्याप्त मात्रा में गोबर का खाद डालना है और उसके बाद ही आखिरी हटाई को करना चाहिए। आखिरी जुताई के समय मेज या पाटा का इस्तेमाल अच्छे से करें ताकि खेत पूरी तरह से समतल हो जाए और आगे चलकर जल भराव की समस्या ना हो।
आखरी जुताई करने के अगले दिन फिर खेत में मेथी के बीजों की बिजाई करनी चाहिए। वैसे मेथी की बिजाई का उपयुक्त समय अक्तूबर का आखिरी सप्ताह और नवंबर का पहला सप्ताह होता है। बिजाई के दौरान आपको पंक्ति से पंक्ति की दुरी को करीब 22.5 रखनी है और बीज की गहराई की बात करें तो आपको बीज को 3-4 सैं.मी. की गहराई में डालना है। बीज की गहराई अधिक होने के कारण पौधे की कोपल को बहार निकलने में समस्या होगी।
मेथी की खेती के लिए बीज की मात्रा और उसका उपचार
मेथी के खेत में बिजाई करने से पहले आपको कितनी मात्रा में बीज प्रति एकड़ में लगेंगे इसके बारे में भी जानकारी होनी जरुरी है। साथ में बिजाई से पूर्व में बीजों का उपचार करना भी जरुरी होता है। अगर आप एक एकड़ में मेथी मि खेती करना चाहते है तो आपको पार्टी एकड़ में लगभग 12 किलोग्राम बीज का प्रयोग करना है। वैसे मेथी की फसल के साथ साथ आप हरे चारे की फसलों को भी ऊगा सकते है।
बुवाई से लगभग 10 घंटे पहले बीजों को पानी में भिगोकर रख देना चाहिए साथ में थीरम 4 ग्राम और कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयु पी 3 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से आपको इन बीजों का रासायनिक उपचार भी करना होता है ताकि बुवाई के बाद में बीजों का जमीनी कीटों से बचाव किया जा सके। इसके अलावा आप मेथी के बीजों को एजोसपीरीलियम ट्राइकोडरमा के मिश्रित घोल से भी उपचारित कर सकते हो। इससे भी जमीं में मौजूद कीट और फंगस से बीजों को बचाया जा सकता है।
मेथी की खेती के लिए उन्नत किस्मे कौन कौन सी हैं
वैसे तो मेथी में बहुत साड़ी किस्मे होती है जो की अलग अलग जलवायु के हिसाब से बोई जाती है। लेकिन मेथी में कुछ प्रमुख किस्मे भी है जिनके बारे में आपको आगे बताया गया है। देखिये मेथी की प्रमुख किस्मे कौन कौन सी है।
- कसूरी मेथी
- पूसा अर्ली बंचिंग
- लाम सिलेक्शन
- कश्मीरी मेथी
- हिसार सुवर्णा
- हिसार सोनाली
- राजेंद्र क्रांति
मेथी की खेती में सिंचाई कैसे करनी चाहिए
मेथी की खेती में सबसे पहली सिंचाई अंकुरण के बाद जब पौधे 5 इंच के लगभग हो जाएँ तो कर देनी चाहिए। इसके बाद मेथी की खेती में 20 से 25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए ताकि खत में नमी बरक़रार रहे। आपको सबसे ज्यादा ध्यान बीज की बुवाई और अंकुरण के ऊपर देना है ताकि उस समय खेत में नमी बनी रहे। अगर उस समय खेत में नमी चली जाती है तो किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। अंकुरण के बाद आपको खेत में लगभग 4 सिंचाई करनी होती है। जो की आप 30, 75, 85, 105 दिन के हिसाब से कर सकते है।
मेथी की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करना चाहिए
मेथी की फसल में अगर खरपतवार की संशय अधिक है तो आप उससे निपटने के लिए रासायनिक तरीकों का भी इस्तेमाल कर सकते है। इसके लिए फ्लूक्लोरालिन या फिर पैंडीमैथालिन के घोल का छिड़काव किया जाता है जो मेथी के पौधों को नुकसान नहीं करता और खेत से सभी खरपतवार को ख़त्म कर देता है। इसके अलावा अगर आपके खेत में खरपतवार की समस्या अधिक नहीं है तो आप निराई गुड़ाई करके भी उसका निपटारा कर सकते है।
मेथी की फसल में पहली निराई गुड़ाई पौधे के बाहर निकलने के 25वे दिन में करनी चाहिए। इसके बाद जब भी आपको खेत में लगे की खरपतवार की समस्या बढ़ रही है तो उसकी निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए। फ्लूक्लोरालिन या फिर पैंडीमैथालिन के घोल का छिड़काव बिजाई के 2 से 3 दिन के बाद भी कर सकते है। इससे भी फंगस और कीटों से मेथी की फसल को बचाया जा सकता है। मेथी का पौधा झाड़ीनुमा होता है और उसका फैलाव अधिक ना हो इसके लिए पौधों को 10 से 15 सेंटीमीटर का होने पर बांध देना चाहिए और उसको झाड़ीनुमा आकार दे देना चाहिए। इससे पौधा और उसकी टहनियां निचे जमीन पर नहीं गिरेंगी और एक साथ बंधी हुई रहेंगी।
मेथी की फसल की कटाई कब करनी चाहिए
मेथी की फसल को पकने में करीब करीब 135 से 140 दिन का समय लगता है। वैसे मेथी की कटाई करने के लिए आपको ये ध्यान में रखना है की मेथी के पौधे के पत्ते जब पिले होने लगे और फलियां भी हलकी सी पीलेपन पर नजर आने लगे तो कटाई का समय हो चूका है। मेथी की फसल को कटाई करने के बाद सुखना पड़ता है। अगर खेत में खड़े पौधों को आप सुख जाने तक नहीं काटेंगे तो फिर उसकी फलियों से दाने निकलकर बाहर गिरने लगते है।
कटाई के बाद खेत में एक जगह पर एकत्रित करके उनको अच्छे से सूखने के लिए छोड़ दें। उसके बाद जब कटी हुई फसल सूख जाए तो थ्रेसर मशीन से उसके बीजों को और पौधे के बाकि अवशेषों को अलग अलग करवा लें। मेथी की अगर पैदावार की बात करें तो प्रति एकड़ में लगभग 10 से 12 क्विंटल तक की पैदावार किसान भाई आराम से ले सकते हैं। किसान भाई मेथी की फसल से प्रति एकड़ में आराम से 50 से 60 हजार रुपये की पैदावार कर सकते है। मेथी का बाजार में भाव लगभग 5000 से लेकर 5500 रुपए तक बरकरार रहता है।