Groundnut Cultivation : मूँगफली की खेती तिलहनी फसल की रूप में की जाती है। यह उष्ण कटिबंधीय पौधा होता है। मूँगफली का उपयोग ज्यादातर तेल निकलने में किया जाता है। इसके बाद इस खाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। मूँगफली में 25 % प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। वैसे इसकी तुलना प्रोटीन के हिसाब से दूध ,अंडा आदि चीजों से भी की जाती है मूँगफली जमीन के अंदर उगने वाली फसल है,जिसको जमीन से खोदकर निकला जाता है। मूँगफली का इस्तेमाल अनेक चीजों को बनाने में भी किया जाता है।
मूँगफली की खेती खरीब और जायद के समय की जाती है। यह खेती भारत में मुख्य रूप सेआन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक और गुजरात में अधिक उगाई जाती है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान ऐसे राज्य है, जहां पर मुगफली की खेती विशेष रूप से की जाती है। राजस्थान की बात करे तो मूँगफली की खेती 3.47 लाख हैक्टर के क्षेत्र में की जाती है,जिसका कुल उत्पादन लगभग 6.81 लाख टन के आस -पास होता है।
मूँगफली की खेती कर आप अच्छा लाभ कमा सकते है ,अगर आप भी मग्गफली की खेती करने का मन बना रहे है तो हम आप को आज मूँगफली की सम्पूर्ण जानकारी -मूँगफली की खेती कैसे की जाती है ,उन्नत किस्मे ,पैदावार ,और तापमान ,मिट्टी ,जलवायु आदि जानकारी देंगे।
मूँगफली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु ,तापमान
मूँगफली उष्ण कटिबंधी जलवायु में होती है। इसको किसी भी प्रकार की मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। इसकी खेती शुष्क क्षेत्रों में भी की जा सकती है। यह खेती गर्मी और प्रकाश में भी अच्छा विकास करती है। तथा इसके लिए 60 से 130 cm वर्षा की जरूरत होती है।
इसके लिए 20°C – 30°C तापमान की आवश्यकता होती है। इसका पौधे अधिकतम 35 डिग्री और न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को सहन कर सकता है। इसके लिए पौधे को सामान्य तापमान की आवस्यकता होती है।
मूँगफली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
मूँगफली के लिए हल्की दोमट मिट्टी उपयोगी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए उचित जल निकास वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। जल भराव और कठोर मिट्टी में यह खेती अच्छी नहीं होती है। साथ ही मिट्टी का PH मान 6 से 7 खेती के लिए उपयुक्त है। इसकी खेती शुष्क प्रदेशो में की जाती है।
मूँगफली की खेती के लिए सिचाई
मूँगफली खरीब की फसल होती है ,इसलिए इसके पौधे को अधिक पानी के आवश्यकता होती है जब इसकी खेती में फल ,फूल आने लगे तब इसमें पानी की अधिक आवश्यकता होती है। अगर वर्षा नहीं होती है तो आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए। यह फसल वर्षा के समीप की जाती है। इसलिए पानी की अधिक आवश्यक्ता होती है। एस तरह सिचाई करने से अच्छी पैदावार होती है।
मूँगफली की उन्नत किस्मे
आर. जी. 425
इसके पौधे सूखे के प्रति सहनशील होते है। इसको राज दुर्गा नाम से पुकारा जाता है। यह किस्म बीज के 120 से 125 दिनों के बाद पैदावार देना आरंभ करती है। जिसमे बीजो का रंग गुलाबी होता है। यह किस्म लगभग 28 से 36 क्विंटल की पैदावार देती है।
एच.एन.जी.10
यह किस्म अधिक वर्षा वाली जगह पर की जाती है ,जिससे अच्छी पैदावार होती है। इसमें निकलने वाले बीजो का रंग भूरा होता है इनके दानो में 52 % तेल की मात्रा पाई जाती है। यह पौधा 120 से 130 दिनों के बाद पैदावार देता है। साथ ही इसमें प्रति हेक्टैयर के हिसाब से लगभग 20 से 25 किवंटल का उत्पादन होता है।
जी जी 2
एस किस्म का फैलाव अधिक और गुच्छेदार होता है ,जिसमे से सामान्य आकर की फली निकलती है ,जिसकी एक फली में दो दाने होते है। इनके दानो का रंग गुलाबी होता है ,यह मूँगफली की किस्म 120 दिनों के बाद पैदावार देना आरंभ करती है। यह किस्म एक हेक्टेयर के क्षेत्र में 30 क्विंटल का उत्पादन का उत्पादन करती है।
टीजी 37 ए
एस किस्म क्क फैलाव कम होता है। इनके दानो का आकर कम पाया जाता है। इनके दानो में 51 % तेल पाया जाता है तथा यह किस्म 125 दिनों के बाद अच्छी पैदावार देती है। यह प्रति हेक्टैयर के क्षेत्र में लगभग 17 से 20 क्विंटल की पैदावार देती है।
टी.जी.- 37ए
यह किस्म 100 से 105 दिनों के बाद पैदावार देती है। यह एक हेक्टेयर के क्षेत्र में 18 से 20 किवंटल की पैदावार देती है।
जे.एल.- 501
यह किस्म 105 से 110 दिनों के बाद फल देना शुरू करती है यह एक हेक्टेयर के क्षेत्र में 20 से 25 किवंटल की पैदावार करती है।
मूँगफली की खेत की तैयारी व् उर्वरक की मात्रा
मूँगफली की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है इसलिए सबसे पहले खेत की जुताई की जाती है। जुताई करने के बाद उसको धूप लगने के लिए छोड़ दिया जाता है ,फिर उसमे गोबर की खाद डालनी चाहिए ,जिससे पैदावार अच्छी हो। उसके बाद फिर से जुताई की जानी चाहिए और खेत को समतल करे। इसके बाद पानी का प्लेव कर देना चाहिए।। इसके बाद खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देती है जिसके लिए फिर से जुताई की जाती है जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है।
मूँगफली की खेती में अगर आप नीम की खली डाल दे तो उससे पैदावार अच्छी होती है। आप चाहे तो रासायनिक खाद का प्रयोग भी कर सकते है। खेत में आखरी जुताई से पहले एन.पी.के. की 60KG की मात्रा खेत में डाली जाती है इसके अलावा आप 250 KG जिप्सम का फैलाव भी कर सकते है।
बीज उपचार के लिए कार्बेन्डाजिम एवं ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज का उपचार करके बोना चाहिए। और बुआई से पहले राइजोबियम एवं पी.एस.बी. से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज का उपचार करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
इसकी खेती में धुब, सामक मेथा प्याजा नामक खरपतवार हो जाते है जिसके जड़े सामान्य गहरी होती है जिससे ये खरपतवार पोधो को अधिक हानि पहुंचा सकता है। अगर इस फसल में अधिक खरपतवार हो जाते है तो ये 30 % परधवार को कम कर देते है।
इसके नियंत्रण के लिए आप प्राकृतिक और रासायनिक दोनों विधि का इस्तेमाल कर सकते है। प्राकृतिक विधि से आप खेत की निराई -गुड़ाई कर सकते है। और रासायनिक विधि से आप 3 लीटर पेन्डिमेथालिन की मात्रा को 500 लीटर पानी में डाल कर मिला देना चाहिए उसके बाद छिड़काव बीज रोपाई के 2 दिन बाद तक कर सकते है।
मूँगफली में पाई जाने वाली कमी
लोहे की कमी
- इसकी कमी से पत्ते सफेद दिखाई देते है
- यह कमी होने पर इसकी पूर्ति के लिए सल्फेट 5 ग्राम + सिटरिक एसिड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रै करनी चाहिए।
पोटाशियम की कमी
- इस कमी से पौधे के पत्ते विकास नहीं करते है।
- इसमें पके पत्ते पीले हो जाते है।
- इसकी पूर्ति के लिए मिउरेट ऑफ पोटाश 16-20 किलो प्रति एकड़ की मात्रा में डालनी चाहिए।
जिंक की कमी
- इस कमी से पौधे के पत्ते गुच्छो में दिखाई देते है जिनसे ये पौधे बड़े नहीं होते है
- इस कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर 2 से 3 बार स्प्रै करनी चाहिए।
कैल्शियम की कमी
- यह कमी तेजाबी मिट्टी में पाई जाती है।
- इस कमी से पौधे विकास नहीं करते है और मूड जाते है।
- इसकी कमी की पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डाले।
सल्फर की कमी
- इसकी कमी से भी पोधो का विकास रुक जाता है और पौधे छोटे नजर आते है
- यह पौधे देर से पकते है
- इसकी पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ पर बिजाई के समय डाले।
मूँगफली में होने वाले कीट व् रोगथाम
चेपा
इस रोग का हमला वर्षा कम होने पर होता है यह काले रंग के रोग पौधे का रस चूसते है ,जिससे पौधे का विकास रुक जाता है पर पौधा पीला दिखाई देता है। यह रोग चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है ,जो फगस के कारण काला हो जाता है।
इसके रोकथाम के लिए रोगोर 300 मि.ली. या इमीडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल 80 मि.ली., को प्रति एकड़ में स्प्रै केनी चाहिए।
दीमक
यह कीट पौधे के जड़ो और तनो को नष्ट कर देता है इसके हमले से पौधा सुख जाता है। यह कीट फलो में सुराग कर देता है
इसके रोकथाम के लिए गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा बिजाई से पहले 6.5 मि.ली. क्लोरपाइरीफॉस से प्रति किलो बीज का उपचार करे।
बालों वाली सुंडी
यह कीट अधिक होकर हमला करते है जिससे पत्ते गिर जाते है ,इनका रंग लाल -भूरा होता है इनके शरीर पर काली रंग की धारिया और लाल बाल होते है।
खेत में अंडो को नष्ट कर देना चाहिए। खेत में गड्डा खोदकर उसमे जहर की गोली डाल दे और गड्ढे को बंद कर दे। इसके अलावा 200 मि.ली. डाइक्लोरवॉस 100 ई सी को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रै करे।
मूँगफली में लगने वाले रोग व् रोगथाम
झुलस रोग
यह रोग सभी खेती में पाया जाता है यह हल्के भूरे रंग का होता है और यह पत्ते पर लगता है जिससे पत्ते गिर जाते है और पौधा कमजोर हो जाता है।
इसके रोकथाम के लिए मैनकोजेब 3 ग्राम का छिड़काव करे।
टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग
एस रोग से पत्तो पर गोल धब्बे हो जाते है और उसके आस -पास पीले धब्बे भी हो जाते है
इसके रोकथाम के लिए सही बीज का चयन करे। और सेहतमंद बीजो का प्रयोग करे। इसके रोकथाम के लिए फसलों पर कार्बेनडाज़िम (बाविस्टिन, डीरोसोल, एग्रोज़िम) 50 डब्लयू पी 500 ग्राम को पानी में मिलाकर स्प्रै करे
कुंगी
एस रोग से पत्तो पर दाने बन जाते है यह रोग फूल और ऊपर वाले हिस्से को छोड़कर सभी भागो पर होता है।
इसके रोकथाम के लिए क्लोरोथैलोनिल400 ग्राम या घुलनशील सल्फर 100 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रै करे।
मूँगफली की खुदाई व् खुदाई के बाद
यह अप्रैल और मई के महीने में बोई जाती है और अगस्त और सितम्बर के महीने में पक जाती है। इसके बाद आप फसल को खोद सकते है इसको 2-3 दिनों के लिए इसको इकट्ठा करके रोज़ाना 2-3 बार तरंगली से झाड़ते रहे, ताकि पत्तो को पौधे से अलग कर सके। स्टोर करके फली को धुप में सूखते है। जब फली की नमी खत्म हो जाये तब बोरियो में भरकर बाजार में बेच देते है जिससे अधिक मुनाफा होता है।
मूँगफली की खेती में एक हेक्टेयर के क्षेत्र में 20 से 25 क्विंटल की पैदावार हो जाती है। इसका बाजार में भाव 40 रूपए से 60 रूपए तक होता है ,जिससे किसानो को अच्छी पैदावार होती है।