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ईसबगोल की खेती कैसे करें, ईसबगोल की खेती से लाखों में करों कमाई, ये है तरीका

By Vinod Yadav

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Isabgol Ki Kheti

नई दिल्ली. ईसबगोल एक औषधिये पैदा होने के कारन इसकी डिमांड भी बहुत अधिक है और ईसबगोल की खेती को किसानो के लिए नगदी फसल के रूप में भी देखा जाता है। किसान भाई खेती से अपनी आय बढ़ने के लिए परम्परागत खेती तो करते ही हैं साथ में आजकल जागरूकता बढ़ने के बाद से अलग अलग तरह की खेती भी करने लगे हैं। इन्ही में से एक खेती ईसबगोल की भी है जो किसानो को थोड़े से समय में ही लाखों कमाने का मौका देती है। ईसबगोल की भूसी को पेट से सम्बंधित दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है। वैसे देखा जाये तो ईसबगोल के पौधे में भी गेहूं की तरह ही बालियां आती हैं लेकिन इसका पौधा गेहूं की तरह सीधा ना होकर झाड़ी की तरह होता है। चलिए इस पोस्ट में आपको बताते हैं की आखिर ईसबगोल की खेती कैसे करें और ईसबगोल की खेती करने में किन किन बातों का ध्यान रखना होता है।

ईसबगोल को भारत में किन किन नामों से जाना जाता है।

ईसबगोल को भारत में अलग अलग नामों से जाना जाता है। जैसा की आप सब जानते हैं की भारत में अलग अलग संस्कृति मौजूद है और अलग अलग भाषाएँ बोली जाती है तो ऐसे में इस स्थान से दूसरे स्थान पर चीजों का नाम भी बदल जाता है। ईसबगोल को हिंदी में ईसबगोल कहते हैं तो वहीँ इसका अंग्रेजी नाम Psyllium हैं। इसके अलावा ईसबगोल को इंडियन प्लांटैगो, सीमन इस्पघुला, प्लांटैगिनिस ओवेटे सीमेन, फ्ली सीड, सैंड प्लांटैन, स्पोजेल आदि नामों से भी बुलाया जाता है।

भारत के कई राज्यों में ईसबगोल की खेती किसान कर रहे हैं। खासकर भारत के हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, गुजरात, यूपी और राजस्थान के किसान ईसबगोल की खेती बहुतायत कर रहे है। ईसबगोल की खेती में मुनाफा अधिक होने के कारण अब किसानो की रूचि इस और बढ़ गई है और इन राज्यों में इसकी खेती करके किसान माला माल हो रहे है।

ईसबगोल की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी और जलवायु कैसी होनी चाहिए?

जब भी किसान भाई कपङे खेत में कोई भी फसल बुवाई करते हैं तो सबसे पहले ये देखा जाता है की उस खेत की मिटटी बोने वाली फसल के लिए उपयक्त है या नहीं। उसके बाद ही फसल की बुवाई की जाती है। ईसबगोल की खेती के लिए भी आपको सबसे पहले मिटटी के बारे में जानकारी लेना जरुरी होता है। अच्छी मिटटी किसान को अधिक पैदावार देती है। इसबगोल की खेती के लिए खेत की मिटटी बलुई दोमट सबसे अच्छी मानी जाती है।

खेत में जलभराव की समस्या नहीं होनी चाहिए। साथ में मिटटी का pH मान 7.3 से 8.4 के बीच में अगर है तो ये सबसे बेहतर मिटटी मानी जाती है ईसबगोल की खेती के लिए। जहां जलवायु की बात आती है तो ईसबगोल की खेती ठन्डे मौसम में की जाती है क्यंकि इसको पकने के लिए हलकी धुप की जरुरत होती है। वहीं बारिश में भी ये खेती ख़राब हो जाती है और गर्मियों में भी हलके से हवा के झोके से ही इसके बीज झड़ने लगते है। इसलिए ईसबगोल की खेती हमेशा ठण्ड के मौसम में की जाती है जब बारिश भी कम होती है और हवाओं का चलना भी कम होता है।

ईसबगोल की उन्नत किस्मे कौन कौन सी हैं?

ईसबगोल की खेती में भी उन्नत किस्मे होती है जो की किसान भाई अपने एरिया की जलवायु और मिट्टी के प्रकार के हिसाब से चुन सकते है। देखिये ईसबगोल की खेती के लिए उन्नत किस्मे कौन कौन सी होती है।

  • आर.आई. 89 ईसबगोल
  • आर.आई.1 ईसबगोल
  • जवाहर ईसबगोल 4
  • हरियाणा ईसबगोल 5
  • निहारिका
  • ईसी-124345
  • गुजरात -1 और गुजरात 2

इनमे से हरियाणा ईसबगोल किस्म हरियाणा प्रदेश में सबसे ज्यादा बोई जाती है क्योंकि हरियाणा की जलवायु के हिसाब से ये किस्म सही मानी जाती है और ऐसी तरफ से गुजरात के लिए गुजरात -1 और गुजरात 2 किस्म है जिनको खेती वहां पर बहुतायत की जाती है। आमतौर पर ईसबगोल की खेती 110 से लेकर 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ में इसकी लगभग 10 से 12 क्विंटल तक की पैदावार किसान भाई ले सकते है। पैदावार हर किस्म की अलग अलग होती है इसलिए किसान भाई इसका बीज खरीदते समय इसके बारे में जानकारी अवशय लें।

ईसबगोल की खेती – खेत की तैयारी, बोने का समय और बीज की मात्रा

ईसबगोल की खेती के लिए सबसे प[अहले खेती को तैयार करना होता है ताकि बोये गए बीजों से सही से अंकुरण हो सके। इसके लिए किसान भाई सबसे पहले अपने खेत में गोबर का खाद लगभग 15 से 20 टन के लगभग प्रति एकड़ के हिसाब से डाल दें। इस खाद को पुरे खेत में अच्छे से फैलाने के बाद इस खेत की जुताई करनी है। दो जुताई करने के बाद ये देखना है की मिट्टी अगर भुरभुरी हो गई है या नहीं। मिट्टी के भुरभुरी होने के बाद खेत में पाटा मारकर खेत को समतल कर दें।

खेत समतल करने से आपके खेत में जलभराव की समस्या नहीं आएगी। अब खेत में क्यारियों को बनाना है जो की समान साइज में और लाइन से बनानी है जिनके अंदर ईसबगोल का बीज डाला जायेगा। अब आपको बीजों की बुवाई करनी है और इसमें आपको ये ध्यान रखना है की बीज मिट्टी में अच्छे से मिल जाये। बीज ज्यादा निचे भी मिट्टी में नहीं दबने चाहिए। बीजों की बुवाई करने के लिए सीड ड्रिल का इस्तेमाल करें और ध्यान रहे की एक कतार से दूसरी कतार की दूरी आपको लगभग 25 सेमि के आसपास रखनी है। बीज 2 सेमि से अधिक गहराई में नहीं डालने हैं।

ईसबगोल की खेती के लिए इसकी बुवाई का सबसे उत्तम समय अक्टूबर के आखिरी और नवम्बर के शुरुआत में माना जाता है। इन दिनों में बीजों की बुवाई कर देनी चाहिए। प्रति एकड़ में ईसबगोल के लगभग 3 से लेकर 4 किलो बीजों की जरुरत पड़ती है। इससे जयादा बीजों की बुवाई करने से पौधे गहरे हो जायेंगे और उनका विकास सही से नहीं होगा।

ईसबगोल की खेती में सिंचाई – कब करें और तरिका क्या है?

ईसबगोल की खेती में पहली सिंचाई इसके बीजों की बुवाई करने के तुरंत बाद करनी होती है ताकि सभी बीजों का अंकुरण अच्छे ढंग से हो सके। उसके बाद फसल पकने तक आपको तीन से चार सिंचाई करने की जरुरत पड़ेगी। सिंचाई का कोई समय निर्धारित नहीं है इसलिए जब भी आपको लगे की आपके खेत में नमी की कमी आ गई है तो तुरंत सिंचाई कर देनी चाहिए। ठण्ड का मौसम होने के कारण ऐसा बहुत कम होता है। ईसबगोल का बुवाई के बाद फसल के पकने का समय लगभग 110 दिनों से लेकर 125 दिनों का होता है और इस दौरान लगभग चार सिंचाई की जरुरत होती है।

ईसबगोल की कटाई कब करें और कितनी पैदावार होती है?

ईसबगोल की फसल में जब आप बालियों का हाथ लगकर मसलते है तो दाने बहार आने लग जायेंगे। यही इसका सही समय होता है तुड़ाई करने का। इसके अलावा ईसबगोल की बालियों का रंग भी सुनहरा लाल होने लग जाये तो इसको तोड़ने का सही समय हो जाता है। इसकी तुड़ाई ध्यान से करनी होती है क्योंकि जरा से जेक से इसके बीज बाहर निकलने लगते हैं। इसलिए कोशिश करें की सुबह के समय ईसबगोल की बालियों की तुड़ाई करें और सही स्थान पर इनको जमा करें। ईसबगोल के बीजों के अलावा इसकी जो भूसी बचती है उसको पशुओं के लिए जमा कर लें क्योंकि उसको पशुओं के लिए उत्तम चारा माना जाता है।

ईसबगोल की फसल से पैदावार की अगर बात करें तो प्रति एकड़ में 8 से लेकर 12 क्विंटल तक की होती है। ये किस्म और जलवायु पर भी निर्भर करती है साथ में आपके खेत की मिट्टी कितनी उपजाऊ है उस पर भी निर्भर होता है। ईसबगोल का बाजार में भाव हमेशा अच्छा रहता है और आसानी से 8 हजार से ऊपर ऊपर भाव मिल जाता है। लेकिन ईसबगोल की भूसी का भाव हमेशा इसकी डिमांड पर ही निर्भर करता है।

Vinod Yadav

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