Pomegranate Cultivation :अनार की खेती विश्व में फल के रूप में की जाती है। अनार में रस अधिक मात्रा में पाया जाता है ,जिस कारण से इसका इस्तेमाल जूस बनाने में भी किया जाता है। अनार का फल बहुत उपयोगी होता है। अनार के बीज और छिलके का प्रयोग आयुर्वेदिक दवाईयो को बनाने में किया जाता है। अनार का सेवन मानव के शरीर के लिए लाभदायक होता है ,यह मानव शरीर में रक्त की मात्रा को बढ़ाने का कार्य करता है ,अनार का सेवन करने से अनेक प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है। जिस कारण से इसकी मांग बाजार में अधिक होती है। अनार में कार्बोहाइड्रेट,फाइबर, प्रोटीन और विटामिन की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है।
अनार एक बागवानी फसल है। जिसको एक बार लगाने से कई वर्षो तक फल मिलते है अनार का फल पोषक तत्व से भरपूर होता है। अनार को मीठे फल की रूप में खाया जाता है ,इसका जूस भी ताजा और ठंडा होता है। अनार की खेती से अधिक पैदावार होती है। जिससे किसान को अधिक मुनाफा होता है।
भारत में अनार की खेती राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, हरियाणा,कर्नाटक और गुजरात आदि राज्यों में यह फसल मुख्य रूप से की जाती है। भारत में अनार का क्षेत्रफल 113.2 हजार हेक्टेयर, उत्पादन 745 हजार मैट्रिक टन है।
महाराष्ट को अनार का मुख्य उत्पादक राज्य कहा जाता है। अगर आप भी अनार की खेती करना चाहते है तो हम आज आप को अनार की खेती की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
अनार की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
अनार उपोष्ण जलवायु का पौधा होता है। अर्द्ध शुष्क जलवायु में भी अनार की खेती में अच्छी पैदावार होती है। लम्बे समय से तापमान उच्च रहने से फलो में मिठास बढती है।
आर्द्र जलवायु से फलो की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसकी खेती के लिए जल निकास वाली हल्की भूमि के आवश्यकता होती है अधिक सर्दी और नमी वाली जलवायु में ये विकास नहीं कर पाते है
अनार के पौधे अधिक गर्मी में अधिक विकास करते है।इसकी खेती में थोड़ा अधिक तापमान जरूरी होता है। सामान्य ताप की आवश्यकता रोपाई के समय होती है। तथा पौधे को बढ़ने और फल के निकले में अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। तापमान का उच्च होने से फल में अधिक मिठास होती है ,और रंग को भी प्रभावित करता है। अंगूर के पौधे गर्मी में अच्छे से विकास करते है।
अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
अनार की खेती के लिए हल्की उच्च जल निकास भूमि की आवश्यकता होती है। इसके अलावा रेतीली बलुई दोमट मिट्टी स्की खेती के लिए उपयुक्त होती है। खेत में भूमि का ph मान 6.5 के 7.5 के मध्य होना चाहिए। वैसे तो इसको कई प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है। इसकी खेती के लिए काली मिट्टी भी उपयुक्त होती है।
अनार के पौधे की सिचाई
अनार के पौधे को अधिक सिचाई के आवश्यकता होती है। अगर इसकी रोपाई बारिश के मोसम में के जाये तो इसकी सिचाई 4 से 5 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए यदि इसकी रोपाई वर्षा से पहले की जाये तो रोपाई के तुरंत बाद सिचाई के आवश्यकता होती है। बारिश का मोसम खत्म हो जाने के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए।
जब पौधे में फल और फूल आने लगे तब भी सिचाई के आवश्यकता होती है अनार की सिचाई अगर ड्रिप विधि से की जाये तो पानी उचित मात्रा में जड़ो तक पहुंच जाता है जिससे अच्छी पैदावार होगी।
अंगूर की उन्नत किस्मे
फूले अरक्ता
इस किस्म से अधिक उत्पादन किया जा सकता है। इस किस्म को महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ राहुरी महाराष्ट्र में तैयार किया गया था। इस किस्म से निकलने वाले फलो का आकार बड़ा होता है। इसके फलो का रंग गहरा लाल और अत्यधिक आकर्षक होता है। इस किस्म का एक पौधा 25 से 30 KG की पैदावार दे सकता है।
मृदुला
अनार की इस किस्म को संकर के अनुसार तैयार किया जाता है। इसके फलो का आकार सामान्य पाया जाता है। फलो का रंग गहरा लाल और छिलका गुलाबी होता है। इस किस्म के फल के बीज में रस अधिक पाया जाता है। इस किस्म का एक पौधा 15 से 20 KG की पैदावार दे सकता है।
गणेश
इस किस्म को तैयार होने में 160 दिनों का समय लगता है ,यह किस्म अधिक ताप को सहन नहीं कर सकती है। इसके बीज मुलायम होते है। इनके छिलको का रंग गुलाबी व् पीला तथा बीज का रंग गुलाबी होता है। इस किस्म का पौधा 10 से 15 KG की पैदावार दे सकता है। इस किस्म का उत्पादन महाराष्ट में अधिक किया जाता है।
बेदान
यह किस्म शुष्क जलवायु में उगाई जाती है इस किस्म में फलो का आकार सामान्य पाया जाता है। इसके फलो का रंग लाल और बीज हल्के लाल व् रसीले होते है। इस किस्म के एक पौधे से 10 KG की पैदावार हो सकती है।
अरक्ता
इस किस्म की फल आकार में बड़े ,मीठे और मुलायम होते है। यह किस्म अधिक उपज देती है इस किस्म का एक पौधा 25-30 KG की पैदावार दे सकता है। इसके छिलके का रंग लाल होता है।
कंधारी
इस किस्म क फल बड़ा और रसीला होता है। इसके बीज थोड़े से सख्त होते है।
ज्योति
इसके फलो का आकर मध्यम से बड़ा होता है और रंग गहरा लाल होता है। इसके बीज गुलाबी और मीठे होते है।
इसके अलावा अंगूर की अन्य किस्मे भी पाई जाती है जो इस प्रकार है –रूबी, करकई , गुलेशाह , बेदाना , खोग और बीजरहित जालोर आदि किस्मे है।
अनार की खेती के लिए खेत को तैयार करना
अनार का पौधा एक बार तैयार हो जाने पर वर्षो तक फल देता है इसके लिए इसकी खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार कर लेते है सबसे पहले आप खेती की अच्छे से जुताई करे। उसके बाद पुरानी फसल के अवशेष को पूरी तरह नष्ट केर देना चाहिए इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए वैसे ही छोड़ से ताकि मिट्टी को धूप लग सके। इससे मिट्टी में हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते है। फिर से आप खेती के जुताई करे ,और फिर खेत में पेलेव कर देना चाहिए इसके बाद खेत को समतल कर देना चाहिए। इसके बाद आप रासायनिक और प्राकृतिक खड़ा का प्रयोग कर पौध को लगा सकते है जिससे फल में अधिक पैदावार देखने को मिलेगी।
अनार की पौध को तैयार करना
अनार के पौधे को कलम से तैयार किया जाता है। इसके बीजो को नर्सरी में तैयार किया जाता है। कलम विधि से तैयार पौधा अच्छा माना जाता है जो 3 वर्ष में फल देना शुरू कर देता है। कलमों की भी कई विधि होती है जैसे कास्ठ कलम विधि, ग्राफ्टिंग, गूटी बांधना
आदि विधियों का प्रयोग कर भी कलम तैयार की जा सकती है।
इस विधि में गूटी बांधना और ग्राफ्टिंग विधि को उपयुक्त माना जाता है।
अनार की पौध लगाने का सही समय व् तरीका
अनार की पौध की रोपाई के लिए वर्षा का मोसम अच्छा माना जाता है। जिससे पौधे अच्छे से विकास कर पाए। अनार को शुरू से ही अच्छे पोषक तत्वों और जलवायु की आवश्यकता होती है। इनके पोधो की रोपाई बारिश के मौसम में की जानी चाहिए।
अनार के पौधे को खेत में लगाने से पहले क्लोरपाइरीफोस पाउडर से उपचारित कर लेना चाहिए। उसके बाद गड्डा तैयार कर लेना चाहिए फिर उसमे गोबर की खाद का प्रयोग कर सकते है। फिर उसको पौध लगाकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण के लिए आप दोनों विधि का इस्तेमाल कर सकते हो। इसके लिए आप प्राकृतिक विधि से करे तो अच्छा होगा।इसलिए जब खरपतवार अधिक हो जाये तो खेत में निराई -गुड़ाई करनी चाहिए ,ताकि पोधो से फलो की मात्रा अच्छी प्राप्त हो सके। पहली निराई -गुड़ाई पौध रोपाई के एक महीने बाद करनी चाहिए। उसके बाद जब भी आप को लगे की खरपतवार अधिक हो गया है तब भी आप इसकी निराई कर सकते है।
अनार की खेती में लगने वाले रोग व् रोकथाम के उपाय
अनार की तितली
इस किस्म का रोग फल की पैदावार को कम करता है।। इस रोग से 30 %पैदावार कम होती है। इस रोग के लग जाने से पौधा कमजोर व् फल नष्ट हो जाता है
इस रोग के बचाव के लिए इन्डोक्साकार्ब, स्पाइनोसेडकी या ट्रायजोफास की उचित मात्रा में अनार के पौधे पर छिड़काव करे।
माहू
यह रोग पौधे के नाजुक भागो पर वार करता है और उसका रस चूसकर उसे कमजोर बना देता है इस रोग से प्रभावित पौधा काला पड़ जाती है जिससे पत्ते पूरी तरह नष्ट होकर गिर जाते है। और पौधा विकास करना बंद कर देता है
इसके रोकथाम के लिए प्रोफेनोफॉस या डायमिथोएट की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। यह रोग अधिक हो जाये तो इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए।
फल धब्बा
इस आईएसएम का रोग भी पोधो पर अधिक आक्रमण करता है इस रोग से एक फफूंद पैदा होता है जिसका नाम सरकोस्पोरा एसपी.है ,जो पोधो पर छोटे -छोटे और काले -काले धब्बे कर देता है।
इसके रोकथाम के लिए हेक्साकोनाजोल, मैन्कोजेब या क्लोरोथॅलोनील की उचित मात्रा में पोधो पर छिड़काव करना चाहिए।
अनार के फलो की तुड़ाई, पैदावार और कमाई
जब फलो का रंग पीलापन लिए लाल हो जाये तो उस दौरान उसे तोडना चाहिए अनार की किस्मे लगभग 120 से 130 दिनों के बाद पैदावार देना आरम्भ करती है।
अनार के एक पौधे से लगभग 15 से 20 KG की पैदावार होती है। और अनार के एक हेक्टयेर क्षेत्र में 90 से 120 क्विंटल की पैदावार होती है। जिससे किसानो को अधिक मुनाफा प्राप्त हो सकता है।
इससे किसानो को अधिक मुनाफा हो सकता है कम से कम 5 से 6 लाख तक की कमाई कर सकते है।