Spinach Farming : पालक की खेती नगदी फसल के रूप में भी की जाती है। पालक का प्रयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। पालक की उत्पत्ति ईरान में हुई मानी जाती है पालक को अन्य सब्जी फसलों से गुणकारी माना जाता है। पालक में आयरन की मात्रा अधिक पाई जाती है। पालक की खेती मुख्य रूप से सर्दियों में की जाती है। इसकी खेती के लिए भूमि का PH मान सामान्य होना चाहिए। यह फसल सर्दियों के मौसम में अधिक विकास करती है। पालक का इस्तेमाल अधिकतर सब्जी बनाने में किया जाता है पालक की खेती सामान्य रूप से सभी जगहों पर की जाती है। पालक को खाने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है ,पालक की खेती से किसानो को अधिक मुनाफा हो सकता है। पालक शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है पालक पाचन के लिए , त्वचा, बाल, आंखों और दिमाग के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
भारत में पालक की खेती तेलंगना, केरला, तामिलनाडू, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल ,गुजरात और आन्ध्रप्रदेश आदि राज्यों में मुख्य रूप से की जाती है। पालक से कैंसर-रोधक और ऐंटी ऐजिंग दवाइयां भी बनती है। सामान्य रूप से पालक को पुरे वर्ष खाया जाता है ,लेकिन सर्दियों में इसको खाने में इस्तेमाल अधिक किया जाता है। पालक को सरसो की सब्जी के साथ और पनीर की सब्जी के साथ भी इस्तेमाल किया जाता है। किसान पालक की पत्तियों और बीजो को बेच कर भी अच्छी कमाई कर सकते है।
इसके साथ हम आपको बता दे की बहुत प्रकार से किसानो को अच्छी कमाई हो सकती है अगर आप भी पालक की खेती करने का मन बना रहे है तो हम आपको पालक की खेती कैसे करे ,उपयुक्त तापमान ,जलवायु ,मिट्टी और उपज की की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
पालक की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
सर्दियों के मौसम में पालक की खेती उपयुक्त मानी जाती है। सर्दियों में गिरने वाले पाले को इसका पौधा आसानी से सहन कर लेता है। इसके पौधे सामान्य तापमान में अच्छे से विकास करते है। पालक की खेती के लिए जलवायु काफी उपयुक्त होती है। वैसे तो इसकी खेती पूरे साल की जा सकती है।
पालक सामान्य तापमान में अधिक विकास करते है। तथा पौधे को अंकुरित होने में 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। और विकास के समय 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। पालक को अधिकतम 30 डिग्री और न्यूनतम 5 डिग्री तापमान की जरूरत होती है।
पालक की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
पालक की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसके लिए भूमि भी उच्च जल निकास वाली होनी चाहिए ,जिसमे अच्छी पैदावार हो सके। इसके साथ ही मिट्टी का PH मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए। यानि मिट्टी का मान सामान्य होना चाहिए। पालक की खेती में खेत में पानी का जमाव नहीं होने देना चाहिए। पालक की खेती के लिए मिट्टी में जैविक पदार्थ भरपूर मात्रा में होने चाहिए। पोधो को लगने से पहले किसान खेती की मिट्टी का विश्लेषण कर ले।,ताकि फसल में आगे कोई समस्या नहीं आये। वैसे तो पालक को औसत मिट्टी में भी अच्छे से उगाया जा सकता है।
पालक की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
हम आप को बता दे की पालक के पौधे की जड़े अधिक गहरी नहीं होती है इसलिए पालक का पौधा जमीन से पानी के व्यवस्था नहीं कर पाता है ,जिस कारण से पालक के पौधे को कम मात्रा में अधिक सिचाई की आवश्यकता होती है आप को बता दे की बीज को बोन से पहले मिट्टी में नमी का होना जरूरी होता है। मिट्टी को नम रखने में दो तरह की मदद मिलती है। एक तो पौधा आवश्यक पानी सोखने में समर्थ होगा ,और दूसरा मिट्टी का तापमान कम होगा तो पालक का विकास अधिक होगा। किसानो को सिचाई सुबह जल्दी और शाम को देर से करनी चाहिए। पालक ज्यादा गर्म मौसम में बीज देना शुरू कर देता है।
पालक की उन्नत किस्मे
ऑल ग्रीन किस्म
पालक की इस किस्म की कटाई 5 से 7 बार की जा सकती है। इसकी पत्तियों का रंग हरा और ये आकार में चौड़ी और मुलायम होती है। यह किस्म सर्दियों के मौसम में की जाती है ,क्योकि सर्दियों के मौसम में इसकी फसल अधिक विकास करती है। पालक को तैयार होने में 35 से 40 दिनों का समय लग जाता है।
पूसा ज्योति किस्म
इस किस्म का पौधा 45 दिनों के बाद तैयार होकर पैदावार देता है इस किस्म के पालक की पत्तिया लम्बी ,चौड़ी और गहरे हरे रंग की होती है ,यह पालक की अधिक पैदावार देने वाली किस्म है ,जिसको 7 से 10 बार काटा जा सकता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 45 टन की पैदावार देता है। यह किस्म अगेती और पछेती दोनों के लिए उत्पादन किया जाता है।
जोबनेर ग्रीन किस्म
इस किस्म को उगने के लिए हल्की क्षारीय मिट्टी की आवश्यकता होती है। इस किस्म के पालक की पत्तिया हरे रंग की तथा आकार में चौड़ी होती है यह संकर प्रजाति की किस्म होती है। यह किस्म एक हेक्टैयर के हिसाब से 30 से 40 टन का उत्पादन करती है।
अर्का अनुपमा किस्म
यह किस्म 40 दिनों के बाद पैदावार देना शुरू कर देती है इस किस्म में लगने वाली पत्तिया गहरे हरे रंग की और आकार में चौड़ी और बड़ी होती है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 10 टन की पैदावार देती है। और यह किस्म आईआईएचआर – 10 और आईआईएचआर – 8 का संकरण कर तैयार की जाती है।
पालक की फसल के लिए खेत की तैयारी कैसे करे ?
पालक की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक होता है। इसके लिए आरभ्म में खेत की अच्छे से जुताई करनी चाहिए,ताकि पुरानी फसल के अवशेष नष्ट हो जाये। उसके बाद खेत को कुछ देर के लिए खुला छोड़ देना चाहिए ,जिससे खेत की मिट्टी को अच्छे से धूप लग सके। पालक की खेती को कई बार काटा जाता है इसलिए पौधे को अधिक उर्वरक की आवश्यकता होती है। फिर खेत की अच्छे से जुताई करने के बाद खेत में गोबर की खाद भी डालनी चाहिए।
खाद को भी मिट्टी में अच्छे से मिलकर फिर से एक बार जुताई की जानी चाहिए। फिर उसके बाद खेत में पानी का पलेव कर देना चाहिए। जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूख जाये तब खेत की जुताई के साथ पाटा लगवा देना चाहिए। जिससे जलभराव की समस्या नही हो सके। इसके अलावा रासायनिक खाद का प्रयोग भी कर सकते है इसके लिए मिटटी में 40 KG फास्फोरस, 30 KG नाइट्रोजन, और 40 KG पोटाश की मात्रा को आखिरी जुताई के समय खेत में छिड़क कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। और खेत में 20 KG की मात्रा में स्प्रै करनी चाहिए। इससे पौधे का विकास अधिक होता है
पालक के बीजो की रोपाई और समय
पालक के बीजो को भारत के सभी क्षेत्रों में लगाया जाता है। सबसे पहले बीज की रोपाई के लिए बीजो को मेड़ो पर रोपाई की जाती है। जिसमे प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 25 KG बीजो के जरूरत होती है। पालक के बीजो को खेत में रोपने के लिए पहले बीजो पर बाविस्टिन या कैप्टान दवा की उचित मात्रा से उपचारित करना चाहिए। इसके अलावा आप बीजो का गोमूत्र में भिगोकर भी उपचारित कर सकते हो। रोपाई के बाद खेत में क्यारिया और मेड को तैयार कर ली जाती है पालक के बीजो को खेत में 2 से 3 cm गहराई में लगाने चाहिए। बीजो को क्यारियों में छिड़क दिया जाता है ,उसके बाद हाथ से बीजो को भूमि में दबाना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
पालक के पौधे को खरपतवार की अधिक आवश्यकता होती है। खरपतवार से पौधे में कीट लगने का भय होता है। जिससे फसल की पैदावार कम होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक और रासायनिक विधि का उपयोग कर सकते है प्राकृतिक विधि से खेत में निराई -गुड़ाई करनी चाहिए। इसके साथ रासायनिक तरीके से खेत मेंपेंडीमेथिलीन की उचित मात्रा का छिड़काव खेत में बीज रोपाई के तुरंत बाद करना चाहिए। इसके अलावा कभी भी खरपतवार दिखाई दे तो उनकी गुड़ाई करनी चाहिए।
पालक के पौधे में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
पत्ती धब्बा रोग
यह रोग पौधे की पत्तियों पर धब्बे के रूप में दिखाई देता है। यह पत्तियों पर आक्रमण करके उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देता है।
रोकथाम
इसके रोकथाम के लिए बलाईटाक्स के घोल का छिड़काव पौधों की पत्तियों पर करना चाहिए।
लीफ माइनर रोग
इस रोग को पर्ण सुरंगक रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग पौधे की पत्तियों को अधिक हानि पहुँचता है इस रोग के प्रभाव से पौधे की पत्तियों पर नालीनुमा सफेद और भूरे धब्बे हो जाते है ,और पौधे का विकास रुक जाता है। जिससे किसानो को पैदावार कम होती है।
रोकथाम
इसके रोग के रोकथाम के लिए थाडायमेथोएट या एन्डोसल्फान की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
चेपा कीट रोग
यह रोग गर्मियों में देखने को मिलता है। यह रोग पौधे की पत्तियों को चूसकर उसको पूरी तरह नष्ट कर देता है। और पत्तिया कुछ समय के बाद टूटकर गिर जाती है। इस रोग के होने और पत्तिया पीली हो जाती है।
रोकथाम
इसके रोकथाम के लिए मैलाथियान की उचित मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
बालदार सुंडी रोग
यह रोग पौधे पर बारिश के मौसम में आक्रमण करता है। इस रोग की सुंडी लाल ,पीली और काली दिखाई देते है। यह पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है।
रोकथाम
इसके बचाव के लिए पौधे पर नीम के तेल या फिर सर्फ़ के घोल का उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए ,इसके अलावा इंडोसल्फान कीटनाशक की उचित मात्रा का पौधों पर छिड़काव कर रासायनिक तरीके से करना चाहिए।
पालक की कटाई
बीज रोपाई के 30 से 40 दिनों के बाद कटाई करनी चाहिए। और पालक के पत्तिया पूर्ण रूप से पक जाये तब भी आप पालक की कटाई कर सकते है। इसकी कटाई के लिए धारदार हथियार से करनी चाहिए ,और जमीन से कुछ उचाई पर करनी चाहिए। पालक की कटाई 6 से 7 बार की जाती है ,कटाई के बाद बंडल बनाकर रस्सी से बंद दिया जाता है उसके बाद उसको पानी में अच्छे से धोकर बाजार में बेच दिया हजाता है।
पालक की पैदावार और उपज
पालक के 4 से 5 कटाई पर 25 से 30 टन की पैदावार होती है। पालक का बाजारी भाव 10 से 15 रूपये किलो होता है। जिससे किसानो को अधिक मुनाफा प्राप्त होता है। अधिक पैदावार से किसान अधिक कमाई आसानी से कर सकते है .