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टमाटर की खेती की सम्पूर्ण जानकारी : उन्नत किस्मे और पैदावार

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Tomato cultivation : टमाटर भारत की व्यापारिक फसल है। टमाटर का वानस्पतिक नाम लाइकोपोर्सिकान एस्कुलेंटम मिल है वर्तमान में इसे सोलेनम लाइको पोर्सिकान कहा जाता है। आलू ,प्याज के बाद अगर किसी सब्जी का जिक्र किया जाता है तो वह है टमाटर। टमाटर सब्जी है या फल इस बात को लेकर लोगो में भ्र्म होता है वैसे हम आप को बता दे की टमाटर को वैज्ञानिक तौर पर फल कहा जाता है जबकि टमाटर में अन्य फल की अपेक्षा कम शक्कर होती है ,इसलिए ये इतना मीठा नहीं होता है। आमतौर से टमाटर एक तरह की सब्जी माना जाता है

टमाटर में कैरोटीन नामक वर्णक पाया जाता है टमाटर का प्रयोग त्वचा की देखभाल में भी किया जाता है। इसका प्रयोग अन्य सब्जियों के साथ स्वाद बढ़ाने में भी किया जाता है। टमाटर में विटामिन, पोटेशियम के अलावा कई प्रकार के खनिज तत्व पाए जाते है। जो मानव की स्वस्थ के लिए लाभकारी होते है आजकल हर समय बाजार में टमाटर की मांग होती है।टमाटर को आप कच्चा व् पकाकर भी खा सकते है।

पहली बार टमाटर की खेती दक्षिण अमेरिका के पेरू इलाके में की गयी थी। भारत में टमाटर की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, कर्नाटक, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश आदि जिलों में की जाती है पंजाब की बात करे तो रोपड़, जालंधर, होशियारपुर और अमृतसर जिले में इसकी खेती की जाती है। साथ ही कुछ इलाकों में टमाटर की खेती देखी जाती है विश्व में टमाटर उत्पादन में भारत में दूसरा स्थान है। अगर आप भी टमाटर की खेती करने का मन बना रहे है तो हम आप को टमाटर से जुडी सम्पूर्ण जानकारी बतायेगे

टमाटर के लिए उपयुक्त तापमान

टमाटर की खेती के लिए 10-25°स तापमान की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही कम तापमान से टमाटर का विकास रुक जाता है ,टमाटर की खेती पाला सहन नहीं कर सकती है। टमाटर का लाल रंग होने पर 21-24 डिग्री से.ग्रे तापमान होना आवश्यक होता है। इसी कारण से सर्दियों में टमाटर का रंग लाल अधिक होता है। तापमान 38 डिग्री से.ग्रे से से अधिक होने पर टमाटर के फूल व् फल गिरने लगते है जिससे पैदावार अच्छी नहीं होती है।

टमाटर के लिए उपयुक्त मिट्टी

टमाटर की फसल के लिए मिट्टी का PH मान 7-8.5 होना चाहिए। टमाटर की फसल एक ऐसी फसल है जो किसान को अच्छी पैदावार देती है वैसे तो टमाटर को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है जैसे की दोमट, काली, लाल मिट्टी,रेतली मिट्टी, चिकनी आदि मिट्टी है। इन मिट्टी में पानी निकासी अच्छे से हो जाता है इसलिए इन मिट्टी में भी पैदावार अच्छी हो जाती है।

टमाटर की बुआई का सही समय

टमाटर की खेती के लिए सबसे पहले खेत की 2 -4 बार जुताई की जाती है ,खेत की जुताई की बाद गोबर की खाद को डालना चाहिए फिर से खेत को जुताई करके समतल करना चाहिए। इसके बाद 60 -45 cm की दुरी पर रोपाई करनी चाहिए।
टमाटर की बुआई का सही समय सर्दी में होता है अगर आप जनवरी में रोपाई करनी है है तो नवंबर के महीने में नर्सरी में पौध को तैयार करना होगा। अगर गर्मी की बात करे तो दिसंबर और जनवरी में बुआई की जाती है। किसान मार्च में टमाटर की अच्छी पैदावार ले सकता है।

टमाटर की खेती में उर्वरक की मात्रा

हम आप को बता दे की टमाटर की खेती को पोषक तत्वों की जरूरत होती है इसलिए जुताई करते अप्प खेत में प्रति हेक्टैयर के हिसाब से गोबर की खाद को डालनी चाहिए। गोबर की खाद के अलावा आप रासायनिक खाद भी डाल सकते हो किसान जुताई के समय नाइट्रोजन ,पोटास ,फास्फोरस का छिड़काव भी कर सकते है।

खरपतवार नियंत्रण

हम आप को बता दे की कई खेतो में खरपतवार की समस्या अधिक होती है यदि आप एस समस्या से छुटकारा पाना चाहते है तो लासो-2 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर कि दर से पौधे रोपाई से पूर्व डालना चाहिए। इससे इसकी उपज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। और आवश्यकता के अनुसार खेत की निराई -गुड़ाई करनी चाहिए। एक बात को ध्यान रखे की जब फसल में फल ,फूल बनने के अवस्था में निराई -गुड़ाई नहीं करनी चाहिए।

टमाटर की खेती में सिचाई

सिचाई की बात करे तो सर्दियों के मौसम में 6 -7 दिनों के फासले पर सिचाई की जाती है और गर्मियों में 10 से 15 दिनों के फासले पर सिचाई की जाती है। टमाटर की फसल में पानी की अधिक जरूरत होती है। अगर इस समय आप पोधो में पानी नहीं डालेंगे तो फूल झड़ना शुरू ही जाते है। और फल की पैदावार भी कम होती है। इसलिए सिचाई पर ध्यान दे जिससे पैदावार अच्छी हो सकती है।

टमाटर की उन्नत किस्मे

HS 101

यह किस्म सर्दियों में उगाई जाने वाली है इनके टमाटर गोल और रसीले होते है। और इस किस्म का पौधा छोटा होता है। यह किस्म पत्ता मरोड़ बीमारी रोधक है।

पंजाब केसरी

इसमें सुक्रोस की मात्रा 7.6 प्रतिशत होती है। यह किस्म 2016 में जारी की गयी थी। औसतन उपज 405 क्विंटल प्रति एकड़ मानी जाती है। इस किस्म का औसतन भार 11 ग्राम होता है।

पंजाब वरखा

यह 2015 ने जारी की गयी थी। इसकी औसतन उपज 934 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और सुक्रोस की मात्रा 5.5 प्रतिशत होती है।

पंजाब सरताज

यह किस्म 2009 में जारी की गयी थी। यह किस्म बारिश के मौसम के लिए उपयुक्त मानी जाती है। और औसतन उपज 898 क्विंटल प्रति एकड़ मानी जाती है।

पंजाब स्वर्ण

यह किस्म 2018 में जारी की थी। इसके पत्ते हरे रंग की होते है। इस किस्म के फल अंडाकार होते है। इसकी औसतन पैदावार मार्च में 66 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

TH -1

यह 2003 में जारी की थी। इसका भार 85 ग्राम होता है तथा उपज 245 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल का रंग गहरा लाल व् गोल होता है।

पंजाब उपमा

यह किस्म बारिश वाले मानसून के अनुकूल होती है। इस किस्म की टमाटर रसीले होते है। तथा रंग लाल होता है और औसतन पैदावार 220 कि्ंवटल प्रति एकड़ होती है।

पंजाब रट्टा

इसकी पहली तुड़ाई 125 दिनों के बाद की जाती है। औसतन उपज 225 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

पंजाब छुहारा

यह किस्म नाशपती के आकार की होती है। लाल तथा मोटे छिलके की होती है ,यह किस्म 7 दिनों तक मंडी में बिकने योग्य होती है। इसकी औसतन पैदावार 325 क्विंटल प्रति एकड़ मानी जाती है।

पंजाब NR -7

यह जड़ गलन रोधक किस्म मानी जाती है इसके पौधे छोटे होते है। फल रसीले होते है। तथा औसतन पैदावार 175-180 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

इसके अलावा टमाटर की दो किस्मे भी पाई जाती है जो इस प्रकार है –

देसी किस्म

  • पूसा रूबी
  • पूसा-120
  • पूसा शीतल
  • पूसा गौरव
  • अर्का सौरभ
  • अर्का विकास
  • सोनाली

हाइब्रिड किस्मे –

  • पूसा हाइब्रिड-1
  • पूसा हाइब्रिड-2
  • पूसा हाईब्रिड-4
  • अविनाश-2
  • रश्मि

टमाटर में पोषक तत्वों की कमी

हम आप को बता दे की पोधो में पोषक तत्वों की कमी को मतलब ये नहीं है की मिट्टी अच्छी नहीं है पोधो में पोषक तत्व की कमी अन्य कारको से होती है। जो इस प्रकार है –

कैल्शियम की कमी

इस रोग से टमाटर के ऊपर वाले भाग पर एक भूरा धब्बा दिखाई देता है ,जो फल विकास में कभी भी दिखाई दे सकता है इस तरह फलो का मूल्य घट सकता है। ब्लॉसम एन्ड रॉट नामक विकार फलो में कैल्शियम की कमी के कारण दिखाई देता है। इसके प्रमुख कारण ज्यादा पोटैशिय, मैग्नेशियम या सोडियम,मिट्टी के जल स्तरों में तेज उतार-चढ़ाव,छोटी अवधि के दौरान ज्यादा बारिश ,कम पीएच स्तर कैल्शियम की कमी होते है।

नाइट्रोजन की कमी

इस कमी से टमाटर के पौधे की पुरानी पत्तिया पीली हो जाती है। और थोड़े दिन बाद पूरा पौधा पीला पड़ जाता है। और इसका विकास रुक जाता है। यह कमी मिट्टी में ज्याद नमी या पोटेशियम और फास्फोरस का ज्यादा स्तर होने से होती है। जिससे फलो की पैदावार कम होती है।

पोटेशियम की कमी

एस कमी से से पुरानी मुरझाकर भूरी हो सकती है। साथ ही झुलस जाती है। पोटेशियम की कमी से होने वाले कारण एस प्रकार है -मैग्नीशियम या कैल्शियम ,लम्बे समय तक सूखे की स्थिति,पीएच का कम स्तर,ज्यादा जैविक सामग्री की मात्रा कम तापमान और पोटेशियम की कमी आदि कारण है।

टमाटर की फसल में लगने वाले रोग और रोगथाम के उपाय

वर्टिसिलियम विल्ट

 

एस बीमारी में वर्टिसिलियम एल्बो-एट्रम होता है जिससे पौधा मुरझा जाता है। परन्तु पौधे में यह रोग जिन्दा होता है। ह रोग जड़ से पूरे पौधे में फैलता है इसकी शुरुआत में अनेक लक्षण दिखाई देते है। जिस वजह से इसे प्रतिबंधित करना मुश्किल होता है। एस बीमारी से पत्तियो पर धब्बे बन जाते है जिससे पत्तिया मुरझा जाती है। पानी और पोषक तत्व पौधे की ऊपरी भाग में नहीं आ पाते है।

झुलस रोग

यह रोग टमाटर की खेती में आम रूप से पाई जाती है। एस रोग से पत्तो पर धब्बे होते है जो बाद में तने और फल पर भी दिखाई देते है ,धब्बो के बाद फल में छेद भी होने लगते है जिससे फल नष्ट हो जाते है और पैदावार अच्छी नहीं होती हैएस रोग का ज्यादा हमला होने पर पत्ते झड़ने शुरू हो जाते है
इसके रोगथाम की लिए मैनकोज़ेब 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में स्प्रै करनी चाहिए। इसके अलावा क्लोरोथैलोनिल 250 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी की स्प्रै करनी चाहिए।

मुरझाना और पत्तों का झड़ना

यह बीमारी नमी व् पूरे निकास वाली मिट्टी में होती है। इसका तना मुरझना शुरू हो जाता है। इससे पौधे निकलने से पहले ही मर जाते है। आप को बता दे की यदि यह रोग नर्सरी में आ जाये तो यह सभी पोधो को नष्ट कर सकती है।
पौधे को गलने से रोकने के लिए 100 ग्राम यूरिया और कॉपर आक्सी क्लोराइड 250 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलकर मिट्टी में डाल देना चाहिए। पौधे को मुरझाने से बचने के लिए आक्सी क्लोराइड 250,कार्बेनडाज़िम,400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करे।

ऐंथ्राक्नोस

गर्म ताप और ज्यादा नमी की स्थिति में यह बीमारी होती है। एस बीमारी से पौधे पर काले धब्बे हो जाते है। जिन फलो पर ज्यादा धब्बे हो जाते है तो फसल में गिरावट आ जाती है
इसके रोगथाम के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल या हैक्साकोनाज़ोल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रै करे।

पत्तों पर धब्बे

एस बीमारी से पत्तो पर निचले पत्तो पर सफेद धब्बे हो जाते है। जिससे पौधे कमजोर हो जाते है। यह रोग फल बनने के समय हमला करता है। और विकास की समय भी हमला कर सकते है। ज्यादा हमले करने से पौधे की पत्ते झड़ना शुरू हो जाते है।

टमाटर की खेती में लगने वाले कीट

सफेद मक्खी

यह कीट पत्तो को चूसकर पौधे को कमजोर कर देता है। यह पत्तो पर काले धब्बे कर देता है।
इसके रोगथाम के लिए बजाई के बाद बैड को 400 मैस के नाइलोन जाल के साथ पतले सफेद कपड़े से ढक देते है। इसके रोगथाम के लिए एसिटामिप्रिड 20 एस पी 80ग्राम प्रति 200 लीटर पानी या ट्राइज़ोफोस 250 मि.ली.प्रति 200 लीटर या प्रोफैनोफोस 200 मि.ली.प्रति पानी में मिलकर स्प्रै करनी चाहिए।

जूं कीट

यह अत्यधिक कीड़ा होता है। और अधिक से अधिक पैदावार कम कर देते है। यह किसी भी पौधे पर लग सकता है। इसमें पत्ते सूखने और झड़ने लगते है
इसके रोगथाम के लिए जूं पर क्लोफैनापियर 15 मि.ली.प्रति 10 लीटर, एबामैक्टिन 15 मि.ली.10 लीटर या फैनाज़ाकुइन की स्प्रै केनी चाहिए।

थ्रिप्स

यह कीडा टमाटर में आम रूप से पाया जाता है। यह शुष्क मौसम में पाया जाता है। और यह पत्तो को चूसता है जिससे पत्ते मूड जाते है और पत्ते टूटने भी लगते है।
एस कीट को रोकने के लिए इस पर इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 60 मि.ली या फिप्रोनिल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी या फिप्रोनिल 80 प्रतिशत स्पाइनोसैड 80 मि.ली.प्रति एकड़ को पानी में मिलकर छिड़काव करे।

फल छेदक

यह हेलीकोवेरपा के कारण पोधो में पाया जाता है। जिसे सही समय पर नहीं देखा जाये तो फसल को अत्यधिक नुकसान कर सकता है। यह फल,फूल व् पत्ते खाता है तथा उन पर छेद भी कर देता है। शुरू में अगर ये रोग होता है तो नीम के पत्तो का घोल पानी में मिलकर स्प्रै करनी चाहिए। यदि ज्यादा हो जाये तो सपानोसैड 80 मि.ली.+ स्टिकर 400 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करनी चाहिए।

फसल की कटाई

 

पौध को लगाने के 70 से 75 दिनों में फल लगने शुरू हो जाते है। हम आप को बता दे की कटाई एस बात पर निर्भर करती है की फल को दूर लेजाना है या पास के बाजार में बेचना है। बता दे की पास वाले बाजार में लाल टमाटर जो पूरी तरह पक चुके है उन्हे लेजाना चाहिए और दूर वाले बाजार में जिसको कम समय है पकने में वो ले जाना चाहिए।

टमाटरो की कटाई के बाद उनको छांट लिया जाता है ताकि खराब टमाटर अन्य टमाटर को खराब नहीं करे। इसके बाद आप उनको बाजार में भी बेच सकते है। पूरी तरह पके टमाटरों का जूस ,सिरप और केचअप अदि भी बनाकर बेच सकते है।

एस प्रकार किसान लोग टमाटर की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। अच्छी पैदावार तब होगी जब आप उसकी अच्छे से देखभाल करेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Saloni Yadav

मीडिया के क्षेत्र में करीब 3 साल का अनुभव प्राप्त है। सरल हिस्ट्री वेबसाइट से करियर की शुरुआत की, जहां 2 साल कंटेंट राइटिंग का काम किया। अब 1 साल से एन एफ एल स्पाइस वेबसाइट में अपनी सेवा दे रही हूँ। शुरू से ही मेरी रूचि खेती से जुड़े आर्टिकल में रही है इसलिए यहां खेती से जुड़े आर्टिकल लिखती हूँ। कोशिश रहती है की हमेशा सही जानकारी आप तक पहुंचाऊं ताकि आपके काम आ सके।

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