Pigeon Pea Cultivation : अरहर की दाल में प्रोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है। और यह हमारे शरीर के लिए लाभदायक होता है। क्योकि हमारे शरीर में प्रोटीन की सख्त जरूरत होती है। अगर हमारे शरीर को प्रोटीन नहीं मिल पाता है तो शरीर को मानसिक और शारीरिक विकास रुक जाता है। अरहर का जन्म स्थान दक्षिण अफ्रीका को माना जाता है। लगभग सभी के घरो में अरहर की दाल पाई जाती है। अरहर की दाल घर से लेकर होटल, ढ़ाबों तक हर जगह पसंद की जाती है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है जिसमे प्रोटीन प्राप्त मात्रा में मिलता है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह भारत में मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है।इसको तुअर भी कहा जाता है। यह दाल रोगी को दी जाती है ,क्योकि यह दाल सुगमता से पच जाती है। कब्ज ,गैस और साँस से प्रभावित व्यक्तियों को इस दाल का सेवन नहीं करना चाहिए । भारत इस दाल का उत्पादन आवश्यकता के अनुरूप नहीं होता है। इसमें 22 % प्रोटीन पाया जाता है इसका बाजारी भाव काफी अच्छा होता है।
भारत के किसान वर्षो से अरहर की खेती के साथ बाजरा, ज्वार, उर्द और कपास को उगाते चले आ रहे है हमें दाल के साथ-साथ सूखी लकड़ियों का प्रयोग टोकरी, छप्पर, मकान आदि की छत तथा ईंधन के रूप में भी किया जाता है। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में अरहर की खेती को लगभग 20% के क्षेत्र में उगाया जाता है | फतेहपुर, कानपुर, हमीरपुर, जालौन, प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में भी इसकी खेती की जाती है।
अफ्रीका के जंगलों में इसके जंगली पौधे पाये जाते है। इस आधार पर इसका उत्पत्ति स्थल अफ्रीका को माना जाता है। अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे है तो हम आपको इसकी खेती की सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
अरहर दाल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
अरहर की खेती के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है और पौधे की अच्छी पैदावार के लिए इसकी खेती को नम जलवायु की आवश्यकता होती है। नम जलवायु में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं की जा सकती है
इसकी खेती के लिए 30 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। यह फसल अधिकतम 40 डिग्री तापमान को सहन कर सकती है। और न्यूनतम 20 डिग्री तापमान को सहन कर सकती है। इसलिए इसकी खेती सामान्य तापमान में करनी चाहिए।
अरहर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
अरहर की खेती के लिए उचित भूमि का चुनाव करना चाहिए। इसके लिए जीवांश युक्त बलुई दोमट वा दोमट मिट्टी वाली भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। और इसके अलावा उचित जलनिकास वाली ढालू क्षेत्र भी इसकी खेती के लिए उचित होती है। इसके अलावा लवणीय और क्षारीय भूमि को इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। वैसे तो काली मिट्टी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। अरहर की खेती के लिए अधिक फसल उत्पादन के लिए चुने की पर्याप्त मात्रा वाली भूमि में इसकी फसल उचित मानी जाती है।
अरहर की खेती के लिए उपयुक्त सिचाई
अरहर की खेती के लिए अधिक मात्रा में सिचि की आवश्यकता नहीं होती है ,अरहर की खेती में फसल में दाने बनते समय और फूल आते समय इसकी सिचाई आवश्यक होती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए अच्छी जल निकास वाली भूमि को होना जरूरी होता है। इसको असिंचित दशा में भी बोया जा सकता है।
अरहर की खेती में खाद और उर्वरक की मात्रा
अरहर की अच्छी खेती के लिए उसमे खाद और उर्वरक की अच्छी मात्रा देनी चाहिए। इसके लिए 10-15 कि.ग्रा. नत्रजन, 40-45 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्फर की आवश्यकता होती है| फास्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डाई अमोनियम फास्फेट आदि का उपयोग किया जाता है।
अरहर की खेती के लिए खेत की तैयारी
अरहर की खेती के लिए सबसे पहले खेत में अच्छे से जुताई की जानी चाहिए ,उसके बाद पुरानी खेती के अवशेषों को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए। उसके बाद खेत में गोबर की खाद डालनी चाहिए ,गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला देने के लिए खेत में फिर से गहरी जुताई करनी चाहिए। जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये ,और खेती की उपज अधिक हो सके।
अरहर के बीजो को उपचारित कर खेत में बुआई करना
खेत में बीजो को बोन से पहले बीजो को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।
उसके बाद 10 किलो बीजो पर इसके एक पैकेट का छिड़काव करना चाहिए। फिर उसके बाद उपचारित बीजो को खेत में बो देना चाहिए।
बीजो की बुआई से पहले कुछ बातो का खास ध्यान रखना होता है। बीज बोन को मौसम ,समय और दूरी का खास ध्यान रखना होता है। अगर रिज विधि का प्रयोग करे तो फसल में पैदावार अच्छी होती है। खेत में बीज बोन के लिए 12 से 15 किलो ग्राम बीजो ककी मात्र उचित मानी जाती है। बीज से बीज की दुरी 20 cm और रोह से बीच की दुरी 60 cm होनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
खेत में कई दिनों तक खरपतवार का होना इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है। इसलिए खेत की प्राकृतिक तरीके से निराई -गुड़ाई करनी चाहिए। इसकी पहली गुड़ाई पौध रोपाई के 30 दिनों के बाद करनी चाहिए और दूसरी गुड़ाई 60 दिनों के बाद की जानी चाहिए।
इसके अलावा रासायनिक तरीके से भी खेत में खरपतवार को नष्ट कर सकते है। इसके लिए वैसालिन की एक कि0ग्रा0 सक्रिय मात्रा को 800-1000 ली0 पानी में घोलकर या लासो की 3 कि0ग्रा0 की उचित मात्रा को बीजो के अंकुरण से पहले छिड़काव करना चाहिए।
फसल की कटाई और पैदावार
अरहर की फलिया जब 80 % पककर तैयार हो जाये और फली का रंग भूरा हो जाये तब इसकी कटाई करनी चाहिए उसके बाद खेत में ही इसको 5 से 7 दिन तक रहने देना चाहिए उसके बाद जब पौधे सूख जाये तब इनकी लकड़ी को पीटकर अरहर को पोधो से अलग कर लिया जाता है। उसके बाद इसको धूप में सूखकर पेकिंग कर बाजार में बेच देना चाहिए।
अरहर से एक हेक्टैयर के क्षेत्र में 15 से 20 किवंटल अरहर की दाल और 60 से 65 किवंटल लकड़ी और 15 से 20 किवंटल भूसा प्राप्त होता है। वैसे इसका बजरी भाव 100 से 120 रूपये किलो के आस पास होनी चाहिए। इसकी खेती करके किसानो को अधिक मात्रा में मुनाफा प्राप्त होता है।
अरहर की उन्नत किस्मे
पूसा 992
तह किस्म अरहर की अगेती किस्म होती है। इस फसल को 1 जून से 10 जून के मध्य में लगनी चाहिए। इस किस्म की फसल 150 से 160 दिनों में में फसल देना शुरू कर देती है। और प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 20 किवंटल की पैदावार होती है।
UPAS 120
यह किस्म शायद हर जगह पर पाई जाती है इसकी बीज रोपाई जून के पहले सप्ताह में बोनी चाहिए यह किस्म अन्य किस्मो से पहले तैयार होती है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 20 किवंटल की पैदावार होती है।
पारस
यह किस्म अगेती किस्म है। इसकी खेती के लिए पश्चिम क्षेत्र और उतर प्रदेश उपयुक्त माना जाता है। यह किस्म प्रति हेक्टैयर के हिसाब से 2o किवंटल की पैदावार देती है इस किस्म पौध रोपाई के 140 दिनों के बाद फसल देत्ती है
अरहर की कुछ किस्मे देर से पकती है जो इस प्रकार है -बहार , अमर, नरेंद्र अरहर -1, नरेंद्र अरहर -2, पूसा- 9, मालवीय विकास (MA-4) मालवीय चमत्कार (MA-6), PDA-11, आज़ाद, इन किस्मो में बाँझ रोग, उकठा रोग आदि किस्मे होती है।
अरहर की खेती में लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
ब्लिस्टर बीटल
यह एक प्रकार का टिड्डा होता है ,जो फूलो को खाकर नष्ट कर देता है। यह कीट लाल रंग का होता है ,जिसके पखो पर लाल धारिया होती है।
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए पौधे पर लटामैथरीन 2.8 ई.सी. 200 मि.ली. या इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ 100-125 ली. पानी में डाल कर छिड़काव करना चाहिए।
फाइटोपथोरा स्टैम ब्लाईट
यह रोग पत्तो पर शुरुआत में ही लग जाता है जिससे पत्ते मर जाते है ,और तने पर गोल भूरे ध्ब्ब्बे हो जाते है।
रोकथाम
इसके रोकथाम के लिए मैटालैकसीकल 8 % + मैनकोज़ोब 64% 2 ग्राम प्रति लि. का छिड़काव करना चाहिए।
कैंकर
यह रोग बहुत फगस के कारण धिक् होता है इस रोग के होने से टहनियों पर धब्बे बन जाते है ज्यादा जख्मी हिस्से टूट जाता है
रोकथाम
इस रोग के रोकथाम के लिए मैनकोज़ेब 75 डब्लयु पी 2 ग्राम प्रति लीटर का छिडकाव
करना चाहिए।
हम आपको बता दे की अरहर की खेती करके किसानो को अच्छी पैदावार में भी अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है।