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सरसों की खेती कैसे करें | Sarso Ki Kheti in Hindi – सरसो की उन्नत किस्मे और खेती का सही तरीका

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Sarso Ki Kheti – सरसों की खेती का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है। सरसों की खेती का इतिहास करीब 5000 साल पुराना है और सरसों की खेती सबसे पहले एशिया के पश्चिमी भागों में की गई थी। भारत में सरसों की खेती (Mustard Cultivation) की अगर बात की जाए तो भारत में सरसों की खेती सबसे पहले 4000 साल पहले शुरू हुई थी। भारत के प्राचीन साहित्यों और ग्रंथो में सरसों की खेती का उल्लेख देखने को मिलता है। सरसों का उपयोग दैनिक जीवन में कई तरीकों से किया जाता है। सरसों के बीजों से तेल निकला जाता है जिसका उपयोग खाना पकाने में किया जाता है।

इसके अलावा सरसों के तेल (Mustard Oil) का उपयोग दूसरे औद्योगिक कार्यों में भी किया जाता है। सरसों के तेल का उपयोग जैव ईंधन के के रूप में भी किया जाता है। आपको याद होगा की पहले घरों में दिया सरसों के तेल का भी जलाया जाता था लेकिन अब तो इसकी जगह बल्बों ने ले ली है। इसके अलावा सरसों के पत्तों (Mustard Leaf) का उपयोग साग बनाने में किया जाता है। सरसों का साग और बाजरे या फिर मक्के की रोटी पंजाब और हरियाणा में काफी मशहूर है।

सरसों के फूलों (Mustard Flowers) का उपयोग भी बहुत सी अलग अलग तरह की दवाओं को बनाने में किया जाता है। पूरी दुनिया में भारत सरसों की अधिक पैदावार करने के मामले में दूसरे नंबर पर आता है। भारत में बहुत से ऐसे राज्य हैं जहाँ पर सरसों की खेती (Mustard Cultivation) बहुत अधिक मातृ में की जाता है। इन राज्यों में राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात सबसे ऊपर की श्रेणी में आते है।

भारत में पिछले साल की ही अगर हम बात करें तो 2022 में उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक सरसों की पैदावार की गई थी। अकेले उत्तरप्रदेश में 35.8 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ था। ये आंकड़ा पुरे भारत में साल 2022 में सरसों की पैदावार का कुल 30 फीसदी है। इसके बाद दूसरे नंबर पर नाम आता है हरियाणा का जहां पर साल 2022 में 24.1 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ। तीसरे नंबर पर आता है मध्य प्रदेश जिसमे 12.1 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ और इसके बाद कर्म से राजस्थान में 10.2 लाख टन और पश्चिम बंगाल में 6.7 लाख टन सरसों का उत्पादन करने वाले राज्य हैं। पुरे भारत में साल 2022 में लगभग 117.46 लाख टन सरसों की पैदावार हुए थी जो की उससे पिछले साल यानि की साल 2021 की तुलना में 5.3% फीसदी अधिक थी।

सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) के लिए उपयुक्त जलवायु

जैसा की आप सब जानते ही हैं की सरसों की खेती (Mustard Cultivation) हमेशा से ही सर्दियों के मौसम में की जाती है इसलिए ये कहा जा सकता है की सरसों की फसल के लिए ठंडी जलवायु की जरुरत होती है। सरसों की फसल के लिए 26 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान वाली जलवायु सबसे उत्तम मानी जाती है। सरसों के बीजों के अंकुरण के लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस और वही सरसों की कटाई करने के समय तापमान 30 से 35 डिग्री सेल्सियस सबसे उत्तम माना जाता है।

भारत में सरसों की सबसे अधिक खेती की बात करें तो उत्तर भारत के राज्यों में की जाती है जिनमे राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, गुजरात, आसाम, झारखंड, बिहार आदि राज्य शामिल है। इन राज्यों की जलवायु सरसों की खेती करने के लिए बिलकुल अनुकूल होती है और इन राज्यों में किसान सरसों की खेती (Mustard Cultivation) करके अच्छी पैदावार भी करते है।

सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) के लिए उपयुक्त मिट्टी

सरसों की खेती (Mustard Cultivation) के लिए किसान भाइयों को ये ध्यान देना होता है की जिस भी खेत में वो सरसों की खेती करने वाले है उसकी मिट्टी कैसे है। खेत की मिट्टी के अनुसार ही सरसों की फसल में पैदावार भी होती है। इसलिए आपको बता दें की सरसों की खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट, या चिकनी दोमट मिट्टी सबसे सही मानी जाती है लेकिन इसके साथ ही जल निकासी होनी बहुत जरुरी होती है।

खेती की मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 के बीच में सरसों की फसल (Mustard Crops) के लिए सबसे अच्छा होता है और खेत की मिट्टी में अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय गन होना सरसों की फसल के लिए प्रतिकूल असर डालता है। किसान भाइयों को पहले खेत की मिट्टी की जाँच करवानी चाहिए ताकि किसी खेत में अगर अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय गुण पाए जाते है तो उस मिट्टी का उपचार करने के बाद ही सरसों की फसल को बुवाई करनी चाहिए।

सरसों की फसल (Sarso Ki Fasal) के लिए खेत की तैयारी

सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) के लिए खेत की तैयारी किसान भाइयों को अच्छे से करनी जरुरी होती है। सबसे पहले किसान भाइयों को खेत में पलु के मध्यम से एक गहरी जुताई करनी चाहिए जिससे मिट्टी पलट जाए और मिट्टी की सतह पर मौजूद पिछली फसल के अवशेष मिट्टी के निचे चले जायें जो की खाद में बदल जाएंगे और फसल को इसका लाभ मिलेगा।

इसके बाद खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद को अच्छे से फैला देना चाहिए और उसके बाद एक हलकी जुताई देशी हल से कर देनी चाहिए ताकि सड़ी हुई गोबर का खाद मिट्टी में अच्छे से मिक्स हो जाये। इसके बाद एक बार फिर से मिट्टी को पूरी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए जुताई करनी चाइये और इसमें पाता लगाकर खेत को पूरी तरह से समतल कर देना चाहिए।

इसके अलावा किसान भाई खेत में सरसों की पैदावार और गुणवत्ता को बढ़ने के लिए रासायनिक खादों की बुवाई भी कर सकते है। बुवाई से ठीक पहले किसान भाइयों को अपने सरसों वाले खेत में 100 किलोग्राम सिंगल सुपरफॉस्फेट, 35 किलोग्राम यूरिया और 25 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल भी करना चाहिए। इससे सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) की गुणवत्ता बढ़ेगी और पैदावार में भी वृद्धि देखने को मिलेगी।

सरसों की बुवाई का सही समय अक्टूबर का महीना होता है। कई जगहों पर सितम्बर के आखिरी सप्ताह महि बुवाई का काम शुरू हो जाता है और कई राज्य ऐसे भी है जिनमे नवम्बर के पहले सप्ताह में भी सरसों की बुवाई की जाती है। ज्यादातर राज्यों में सरसों की बुवाई खरीफ की फसल के बाद में की जाती है। कई राज्यों में बाजरे की फसल की कटाई के बाद में सरसों की बुवाई की तैयारी शुरू हो जाती है।

खेत की तैयारी (Sarso Ki Kheti) करने से पहले किसान भाइयों को यदि यह लगता है की खेत में नमी की कमी है तो सबसे पहले खेत में पलेव करना चैहिये जिससे खेत में पानी की मातृ बनी रहे और नमी भी आ जाये। इसके बाद ही खेत को सरसों की फसल (Mustard Crops) के लिए तैयार करना चाहिए।

सरसों की उन्नत किस्में (Improved Mustard Varieties) कौन कौन सी हैं

भारत में बहुत से राज्यों में सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) की जाती है और हर राज्य में उसकी जलवायु और मिट्टी की क्वालिटी के आधार पर किस्मों का चुनाव करके ही सरसो की सफल को बुवाई की जाती है। सरसों की सबसे उन्नत किस्मों में पूसा सरसों आर एच 30, पूसा सरसों 27, राज विजय सरसों 2, पूसा बोल्ड, पूसा डबल जीरो सरसों 31,सीएस 54, नरेंद्र राई 1, एनआरसीएचबी 506, डीएमएच 1, पीएसी 432, एनआरसीएचबी 509, एचडी 256, एचडी 270, एचडी 272, एचडी 274, एचडी 278, एचडी 280 आदि प्रमुख हैं।

कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा इन सभी किस्मों को पैदावार छमता, तेल की मात्रा और जलवायु की अनुकूलता के साथ साथ रोगों की प्रतिरोधक छमता के आधार पर विकसित किया गया है। इन किस्मों में पूसा सरसों आर एच 30 सरसों की सबसे लोकप्रिय किस्मों में से एक है जिसकी बुवाई भारत में सबसे अधिक होती है। भारत के हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में इसकी फसल सबसे अधिक होती है और प्रति एकड़ के हिसाब से ये किस्म किसानो को 18 से लेकर 20 क्विंटल तक की पैदावार आसानी से दे देती है। पूसा सरसों आर एच 30 किस्म में तेल की मात्रा भी अधिक होती है और किसानो को इससे 39 फीसदी तक तेल आसानी से मिल जाता है।

वैसे सबसे अधिक तेल की मात्रा वाली किस्म की बात की जाए तो आपको बता दें की पूसा बोल्ड एक इसी किस्म हैं जिसमे 42 फीसदी तक तेल की मात्रा पाई जाती है। पूसा बोल्ड किस्म की फसल को पकने में लगभग 130 दिनों का समय लगता है और किसानो को इस किस्म से आसानी से 22 क्विंटल तक की पैदावार मिल जाती है।

इसके साथ में राज विजय सरसों 2 नामक किस्म को अगेती सरसों की किस्मों (Sarso Ki Ageti Kisme) में गिना जाता है। ये किस्म सबसे अधिक बिहार, मध्यप्रदेश और यूपी के कुछ हिस्सों में बोई जाती है। इस किस्म की फसल को पकने में लगभग 120 से 130 दिनों का समय लगता है और इसमें तेल की मात्रा 40 फीसदी तक प्राप्त की गई है। एक एकड़ में ये किस्म किसानो को आसानी से 20 से लेकर 22 क्विंटल तक की पैदावार दे देती है।

सरसों की बुवाई (Mustard Sowing) करने का तरीका

वैसे एक जमाना था जब बैलों और ऊंटों के पीछे हल लगाकर सरसों की बुवाई (Sarso Ki Buwai) की जाती थी और उसे साथ में लगी नाली के जरिये सरसों के बीजों को जमीन में डाल दिया जाता था। उसमे फसल बहुत अच्छी होती थी। लेकिन अब वो समय नहीं रहा है और खेती करने की उन्नत तकनीकें आ चुकी है जिसने किसानो का हफ़्तों का काम अब घंटों में करना शुरू कर दिया है।

सरसों के बीजों की बुवाई कतारों में की जाती है और एक क़तर से दूसरी कतार की दुरी 30 सेमि के करीब होती है। वहीं एक पौधे से दूसरे पौधे की दुरी लगभग 12 सेमी तक रखी जाती है। इससे सरसों के पौधों का फैलाव अच्छे से हो पाता है और पैदावार अधिक मिलती है। बुवाई के समय सरसों के बीजों को जमीन में 5 सेमी तक की गहराई में डाल जाता है जिससे इनका अंकुरण अच्छे से होता है।

अगर इससे अधिक गहराई में यदि बीजों को डाल दिया जाता है तो अंकुरण में के बाद कलियों को बाहर निकलने में समय लगता है और कई बाद कुछ कलियाँ बाहर निकल ही नहीं पाती। सरसों की बुवाई (Sarso Ki Buwai) के समय ये ध्यान रखना होता है की बीजों को अधिक पास पास बुवाई ना करें। इससे सरसों के पौधे (Mustard Plants) फैलाव नहीं कर पाते और पतले पतले ही रह जाते है।

सरसों के बीजों की बुवाई से पहले किसान भाइयों को बीजों को कीटनाशक दवाओं के जरिये उपचारित कर लेना चाहिए ताकि बीजों को कीटों और अन्य रोगों से बचाया जा सके। सरसों की बुवाई का सही समय अक्टूबर का महीना होता है लेकिन कई जगहों पर पछेती बुवाई भी होती है जो नवम्बर के महीने की शुरुआत में की जाती है। वहीँ कुछ राज्य ऐसे भी यहीं जहां अगेती किस्मों को बोया जाता है जो सितम्बर के महीने के आखिर में ही बुवाई शरू कर देते है।

सरसों की फसल (Mustard Crop) में सिंचाई करने की विधि

सरसों की फसल में सिंचाई (Sarso Ki Fasal Me Sinchai) बहुत जरुरी होती है खासकर तब जब बीज अंकुरण का समय हो और इसके अलावा जब पौधों की वृद्धि और फलियों में दाने बनने का समय हो। सरसों की फसल वीएस ठंडी के मौसम में उगाई जाती है और इसमें नमी की मात्र बनी रहती है। कलेकिन किसान भाइयों को अगर अच्छी पैदावार लेनी है तो सिंचाई सही समय पर करनी होती है।

सरसों की फसल में पहली सिंचाई पौधों के 5 इंच के होने के बाद कर देनी चाहिए। इस सिंचाई से पौधों की वृद्धि बहुत तेजी से होने लगती है। इसके बाद सरसों की फसल में प्रत्येक 2 से 3 सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई कर देनी चाहिए। आपको बता दें की जब सरसों के पौधों में फूल आने का समय होता है तक सिंचाई करना बहुत जरुरी होता है। ऐसा करने से पौधों पर आने वाले फूलों की वृद्धि अच्छे से होती है और फूलों की वृद्धि अच्छे से होने के कारण फलियों की गुणवत्ता और मात्र भी अधिक होती है।

फलियों में जब दाना बनने का समय होता है तब भी सरसों की खेती में सिंचाई करना बहुत जरुरी होता है। इस सिंचाई से फलियों के अंदर दाने बड़े और अच्छी क्वालिटी के बनते है। इसके अलावा दाना पकने के समय भी एक सिंचाई किसान भाइयों कको कर देनी चाहिए जिससे दाने की गुणवत्ता बहुत ही अच्छी रहती है और सरसों के दाने बड़े हो जाते है।

सरसों की फसल में सिंचाई (Sarso Ki Fasal Me Sinchai) के लिए एक एकड़ में लगभग 40 इंचा पानी की जरुरत होती है लेकिन ये मात्र कम या ज्यादा हो सकती है। पानी की ये मात्र जलवायु, सरसों की किस्म और फसल की स्थिति पर निर्भर करती है। सरसों के खेत में सिंचाई करने का सही समय सुबह का या फिर शाम का होता है। दिन में धुप होने के कारण किसान भाइयों को सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) में सिंचाई करने से बचना चाहिए। यदि किसी किसान के पास सिंचाई का पानी अगर खारा है तो सिंचाई के बाद खेत में जिप्सम का छिड़काव करना जरुरी होता है।

सरसों की फसल (Sarso Ki Fasal) में निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण

किसान भाइयों को अगर अपने सरसों के खेत (Sarso Ka Khet) में अधिक पैदावार के साथ साथ गुणवत्ता वाली सरसों की पैदावार करनी है तो सबसे पहले सरसों के खेत में खरपतवार पर ध्यान देना होगा। आपको जानकर हैरानी होगी की खरपतवार की वहज से सरसों की पैदावार में 20 फीसदी तक की कमी आ सकती है। खरपतवार सरसों के खेत में डाले गए पौषक तत्वों के साथ साथ उस खेत्त की मिट्टी के पौषक तत्वों (Nutrients) को भी ख़त्म करने का काम करते है और यदि पौषक तत्वों को खरपतवार के द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा तो फिर आपके सरसों के पौधों का क्या होगा। इसलिए सरसों के खेत में खरपतवार पर नियंत्रण करना बहुत ही जरुरी होता है।

सरसों के खेत में आमतौर पर जंगली सरसों, जंगली ज्वार, चना घास, चौलाई, चिकनी बोटी, सत्यानाशी, जंगली मक्का, बथुआ, दूब घास, कुटकी आदि खरपतवार प्रमुख रूप से पाए जाते है। इसलिए सरसों को बुवाई के 25 दिनों के बाद कसिये की मदद से किसान भाइयों को अपने सरसों के खेत की निराई गुड़ाई (Weeding Hoeing) का कार्य जरूर पूरा करना चाहिए। निराई गुड़ाई करने के दो फायदे होते है जिनमे पहला तो ये की सरसों की फसल में से खरपतवार ख़त्म होते है और दूसरा पुरे खेत में खोदी लग जाती है जिससे मिट्टी पलट होता है जो की आपके सरसों के पौधों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है।

हालांकि आजकल ये भी देखा जाता है की कुछ किसान रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल खेत से खरपतवार ख़त्म करने में करते हैं लेकिन इससे खेत में खरपतवार तो ख़त्म हो जाता है लेकिन खोदी की प्रक्रिया अधूरी रह जाती है। इसलिए खुरपी या फिर कसिये के मध्यम से निराई गुड़ाई (Weeding Hoeing) का काम करना चाहिए। कुछ किसान ये काम ट्रेक्टर के साथ भी करते है लेकिन इसमें एक सीधी कतार में निराई गुड़ाई का काम होता है और जो खरपतवार पौधों की जड़ों के पास में उगते हैं वो रह जाते है।

सरसों के खेत में पहली निराई गुड़ाई का काम फसल के बौने के 20 से 25 दिनों के बाद और दूसरी निराई गुड़ाई (Weeding Hoeing) का काम पहली गुड़ाई के 25 दिनों के बाद फिर से करना चाहिए। ऐसा करने से खेत से खरपतवार (Weed) बिलकुल ख़त्म हो जाते है। इसके साथ ही खरपतवारों के बीजों के बनने से पहले की गई निराई गुड़ाई आगामी फसलों के लिए भी फायदेमंद होती है।

सरसों की फसल (Mustard Crop) में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

सरसों की फसल में बहुत तरह के रोग लगते है और किसान भाइयों को समय रहते उनका उपचार करना चाहिए। अगर समय रहते उनका उपचार नहीं किया जाए तो सरसों की पैदावार पर इसका सीधा सीधा असर होता है। सरसों की फसल में आमतौर पर जो रोग देखे जाते है उनमे सफेद रोली रोग (White Rust), तना गलन रोग (Stem Rot), छाछिया रोग (Powdery Mildew), पत्ती धब्बा रोग (Leaf Spot) और ओरोबंकी रोग (Orobanche Disease) प्रमुख हैं।

सफेद रोली रोग (White Rust): सफेद रोली रोग बहुत ही खतरनाक रोग होता है जिसके कारण सरसों के पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे नजर आने लगते है। ये धब्बे धीरे धीरे बढ़ने लगते है और पुरे पत्तों को घेर लेते है। इसके कारण सरसों के पौधों का विकाश सही से नहीं हो पाता। इसकी रोकथाम के लिए किसान भाइयों को कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 50 डब्ल्यू.पी. या मैन्कोजेब 75 डब्ल्यू.पी. का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर इसका छिड़काव अपनी सरसों की फसल पर करना चाहिए जिससे इस रोग में रोकथाम हो सकती है।

तना गलन रोग (Stem Rot): सरसों की फसल (Sarso Ki Fasal) में इस रोग के कारण पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे नजर आने लगते है लेकिन बाद में ये धीरे धीरे सरसों के पौधों के तने पर भी पहुंच जाते है और फिर तने को गलाना शुरू कर देते है। इससे पौधा कुछ दिनों में ही सूखने लगता है। किसान भाइयों को सरसों में लगने वाले इस तना गलन रोग से छुटकारा पाने के लिए थायरम 40 डब्ल्यू.पी. का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का चिड़वक करना चाहिए।

छाछिया रोग (Powdery Mildew): सरसों की फसल (Sarso Ki Fasal) में छाछिया रोग पौधों की पत्तियों, फूलों और फलियों पर अपनी पकड़ बना लेता है। इसके कारण पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमने लगता है। धीरे धीरे पौधों के वे सभी भाग जहां पर इस रोग ने कब्ज़ा किया है वे सूखने लगते है। छछिया रोग से सरसों की फसल (Sarso Ki Fasal) को बचने के लिए किसान भाइयों को कैराथेन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर इसका छिड़काव करें।

पत्ती धब्बा रोग (Leaf Spot): ये रोग सरसों के पौधों की वृद्धि को रोक देता है और इसका सीधा सीधा असर फसल में पैदावार पर होता है। इस रोग के कारण पौधों पर बड़े बड़े धब्बे बन जाते है और इन धब्बूपन का रंग भूरा और लाल हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

ओरोबंकी रोग (Orobanche Disease): सरसो की फसल (Sarso Ki Fasal) में लगने वाले इस रोग के कारण तो पूरा का पूरा पौधा ही सूख जाता है। इस रोग से रोकथाम करने के लिए किसान भाई पेन्सिलियम ग्लोबोसम (Penicillium globosum) नामक कवक का इस्तेमाल अपनी फसल में कर सकते है जिससे ये रोक वहीं ख़त्म हो जाएगा और आगे इसके कारण सरसो में नुकसान नहीं होगा।

सरसों की फसल की कटाई का सही समय और विधि

जो किसान भाई सरसों की खेती करते हैं वे अच्छे से इस बात को जानते है की आमतौर पर सरसो की कटाई मार्च के महीने में की जाती है लेकिन इसमें अगेती और पछेती फसल के कारण कुछ दिन ऊपर या फिर निचे हो सकते है। सरसों की कटाई किसान भाइयों को तब करनी चाहिए जाव फलियों का रंग पीला होने लगे और दाने सख्त होने लग जाए।

सरसों की कटाई काने का सही समय सुबह का होता है क्योंकि इस समय वातावरण में नमी मौजूद होती है जो सरसों की फसल में फलियों से दानो को बाहर नहीं आने देती। सरसो की कटाई की पारम्परिक विधि तो हाथ से कटाई करना है। इससे पौधों को उचित स्थान से काटा जाता है। इसके अलावा आजकल हाथ से कटाई करने के अलावा कटर और हार्वेस्टर से भी कटाई की जाती है।

कटाई करने के बाद फलियों में से बीजों को अलग किया जाता है जिसमे थ्रेसिंग और हार्वेस्टर दोनों का इस्तेमाल हमारे किसान भाई करते है। हार्वेस्टर में कटाई और बीजों को अलग करना दोनों ही काम एक साथ होते है। हाथ से कटाई के लिए कटाई करने के बाद फसल को एक जगह पर एकत्रित किया जाता है और इसके बाद थ्रेसिंग की मदद से दानो को फलियों के अलग किया जाता है।

आपको बता दें की सरसों को 8 से 10 दिन अच्छे से सूखने के बाद ही थ्रेसिंग का कार्य करना चाहिए। फसल की कटाई हमेशा पालियों के खत्म होने की जगह के पास से किया जाता है।

सरसों की फसल (Mustard Crop) की कटाई करने की मशीन

सरसों की फसल की कटाई करने का पौराणिक तरीका तो हाथ से कटाई करने का है। लेकिन आजकल कंबाइन हार्वेस्टर और रीपर की मदद से भी सरसों की फसल की कटाई की जाती है।

सरसों की फसल में कंबाइन हार्वेस्टर बहुत ही उपयोगी साबित हो रही है जो किसानो का कई दिनों का काम महज चंद घाटों में कर देती है। कंबाइन हार्वेस्टर में कटाई के साथ साथ थ्रेसिंग और मढ़ई का काम भी साथ साथ होता रहता है। इसकी मदद से बहुत सारे क्षेत्रफल में कटाई और कढ़ाई का कार्य बहुत ही काम समय में किया जा सकता है।

सरसों की फसल को काटने के लिए अगर रीपर की बात करें तो ये एक छोटी मशीन होती है जो ट्रेक्टर के पीछे जोड़कर चलाई जाती है। रीपर में फसल को काटने के लिए एक उपकरण लगा होता है जो ट्रेक्टर से संचालित होता है। सरसों की फसल में रीपर का उपयोग छोटे स्तर के किसान भाई बहुतायत करते है और ये उनके लिए उपयोगी भी साबित हो रही है।

हालांकि सरसों की फसल की कटाई किस मशीन से करवाई जाए इसके लिए कई बातों पर विचार किया जाता है। मशीन के चुनाव के लिए सबसे पहले सरसों की फसल के क्षेत्रफल को देखा जाता है की कितने क्षेत्र में सरसों की फसल बोई गई है। इसके अलावा आपके क्षेत्र में उस समय कौन सी मशीन उपलब्ध है ये भी देखना होता है। इसके साथ में फसल की स्थिति कैसे हैं यानि की अगर आपके सरसों के पौधे जमीन पर अगर गिरे हुए है तो फिर आपको उसकी कटाई केवल हाथों से ही करनी होती है क्योंकि मशीन गिरे हुए पौधों को नहीं काट सकती।

सरसों की फसल (Mustard Crop) में उत्पादन कितना होता है

भारत में सासों की फसल का उत्पादन कई चीजों पर निर्भर करता है जिसमे मौसम, फसल की किस्म आदि शामिल है। इस साल की अगर बात करें तो 130 लाख टन के करीब होने की उम्मीद जताई जा रही है। सरसों के उत्पादन को इसके अलावा जलवायु, रोग, खाद और उर्वरक आदि से भी जोड़ा जाता है।

सरसों की फसल (Sarso Ki Fasal) में लगत और कमाई

सरसों की खेती से किसान भाई लाखों में कमाई कर रहे हैं। पिछले साल अचानक से सरसों के के दामों में तेजी दर्ज की गई थी और अब इस साल किसान भाइयों को सरसों के भाव देखकर कोई जायदा खुसी नहीं हो रही है और किसान भाई सरसों के रेट बढ़ने का आज भी इन्तजार कर रहे है।

सरसों की खेती में बीज की कीमत और उर्वरकों के साथ साथ जुताई और किसान की मेहनत की बात अगर की जाए तो ये सब खर्चा निकलने के बाद किसानो को प्रति एकड़ में लगभग 30 से 50 हजार तक की बचत आसानी से हो जाती है। इस समय बाजार में सरसों का आज का भाव देखा तो पता चला की ये भाव 7000 से ऊपर जायेंगे भी या नहीं।

सरसों की फसल (Sarso Ki Fasal) के बारे में पूछे जाने वाले सवाल और उनके जवाब

1. सरसों की फसल कब बोई जाती है?

सरसों की फसल को अक्टूबर और नवंबर के महीनों में बोया जाता है। लेकिन बुवाई का ये समय जिस क्षेत्र में सरसों की फसल बोई जानी है उसके बुवाई का समय क्षेत्र के मौसम और जलवायु पर निर्भर करता है।

2. सरसों की फसल के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त है?

दोमट या बलुई मिट्टी जिसका pH मान 6.5 से 7.5 के बीच में हो सबसे अच्छी मानी जाती है।

3. सरसों की फसल में कौन-कौन से रोग लगते हैं?

सरसों की फसल में आमतौर पर अल्टरनेरिया झुलसा, मृदुरोमिल आसिता, सफेद गेरुई रोग आदि रोग लगते है।

4. सरसों की फसल में कौन-कौन से कीट लगते हैं?

सरसों की फसल में कई तरह के कीटों का प्रकोप देखने को मिल जाता है जिनमे सफेद मक्खी, फल भेदक, थ्रिप्स आदि हैं।

5. सरसों की फसल की कटाई कब करें?

सरसों की कटाई का सही समय तब होता है जब पौधों पर फलियों का रंग पीला होने लगता है और दाने सूखने लग जाते है।

6. सरसों की फसल की उपज कितनी होती है?

सरसों की फसल की उपज की अगर बात करें तो किसान भाई आसानी से एक एकड़ फसल में 10 क्विंटल तक की पैदावार ले सकता है।

 

Vinod Yadav

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