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सोयाबीन की खेती कैसे करें – Soybean Farming in Hindi, सोयाबीन की सबसे उन्नत किस्म कौन सी है

Written By Vinod Yadav
Soybean farming
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Soybean Farming in Hindi – भारत और पूरी दुनिया में सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) की जाती है। सोयाबीन की खेती का इतिहास (History of soybean cultivation) बहुत ही पुराना है। सबसे पहले सोयाबीन की खेती चीन में की गई थी और वहीँ से सोयाबीन की उत्पत्ति (Origin of Soybean) हुई बताई जाती है। सोयाबीन का इस्तेमाल चीन में हजारों सालों से होता आ रहा है। लेकिन भारत में सोयाबीन की खेती पहली बार 19वी शताब्दी में की गई थी और आज के समय में भारत के कई राज्यों में इसकी खेती की जा रही है।

भारत में सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) करने में मध्यप्रदेश सबसे आगे है। इसके अलावा भारत के उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, और आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में इसकी खेती बहुतायत की जाती है। देश के इन राज्यों में मौसम और जलवायु (Weather and Climate) सोयाबीन की खेती के अनुसार बिलकुल सही पाई जाती है।

आपको बता दें की सोयाबीन की खेती से किसानो को कई फायदे भी होते है और सोयाबीन का बाजार हमेशा से अच्छा रहा है इसलिए सोयाबीन को एक मूल्यवान फसल के रूप में भी देखा जाता है। बाजार अच्छा होने की वजह से किसानो को सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) से लाभ भी अधिक प्राप्त होता है। इसके साथ ही जिस खेत में सोयाबीन की खेती की जाती है उस खेत में सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) की वजह से मिट्टी में पौषक तत्वों की भरमार हो जाती है और वो जमीन ो८रवर्क शक्ति के अधिक होने के कारण उपजाऊ बन जाती है।

सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) करने के खेती करने के लिए सरकार की तरफ से भी देश के किसानो को प्रोत्साहित किया जाता है। इसके लिए सरकार किसानो को सोयाबीन की खेती करने के लिए अनुदान देने के साथ साथ उन्नत किस्म के बीज और उर्वरक भी उपलब्ध करवाती है। सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को स्थिर कर देती है जिसकी वजह से जमीन में उर्वरक शक्ति आश्चर्यजनक रूप से बढ़ने लगती है। सोयाबीन के इतने सारे फायदे किसानो को होते है तो फिर इसलिए कारण से आज के इस आर्टिकल में हमने सोयाबीन की खेती कैसे करें (Soybean Ki Kheti Kaise Karen) और सोयाबीन की खेती करने के लिए क्या क्या करना होता है इन सबकी जानकारी दी है।

सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु

किसान भाई अगर सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) करना चाहते है तो सबसे पहले उनको ये देखना होगा की उस एरिया की जलवायु और जिस खेत में सोयाबीन की खेती करनी है उसकी मिट्टी कैसी है। इसके लिए आपको ये जानकारी जरूर काम आएगी। देखिये सोयाबीन की खेती के लिए चिकनी, दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है क्योंकि इस मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम पाया जाता है जो सोयाबीन की फसल के लिए बहुत जरुरी होता है। सोयाबीन की खेती के लिए खेत में मिट्टी का Ph मान 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए।

Suitable soil and climate for soybean cultivation
Suitable soil and climate for soybean cultivation

जलवायु की अगर बात करें तो सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) के लिए गर्म और नमी युक्त जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है। सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) के लिए 22 डिग्री से लेकर 35 डिग्री तापमान बिलकुल सही रहता है। इसके साथ ही सोयाबीन के बीजों को अंकुरित होने के लिए 16 डिग्री का तापमान उचित रहता है। वर्षा की मात्रा की बात करें तो सोयाबीन की खेती 60 से लेकर 100 सेंटीमीटर वर्षा वाली जगह पर सबसे अच्छी पैदावार देती है।

सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) में जलवायु और मिट्टी की गुणवत्ता बहुत ही अहम योगदान निभाती है और इसके बिना सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) से अच्छी पैदावार लेना संभव नहीं है। भारत के अलावा दुनियाभर में अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना, चीन, भारत, मैक्सिको, कनाडा, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया में भी सोयाबीन की खेती बहुतायत की जाती है। इन देशों की जलवायु भी सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) के लिए उपयुक्त है।

सोयाबीन की उन्नत किस्मो के नाम

भारत में बहुत साड़ी उन्नत किस्मे है जिनसे अच्छी पैदावार ली जा सकती है। यहाँ देखिये भारत में पाई जाने वाली सोयाबीन की सबसे उन्नत किस्मों के नाम इस प्रकार से हैं –

जेएस-335जेएस-20-101जेएस-20-69
वीएल.सोया 77जेएस-20-100वीएल.सोया 89
पीके 416जेएस-9339पंत सोयाबीन 1024
पंत सोयाबीन 1042जेएस-335जेएस-9341
पूसा 24पीके-472आर.के.एस 24
जेएस-20-98वीएल.सोया 65जेएस-9305

देश भर में उगाई जाने वाली ये सोयाबीन की किस्मों (Soybean Ki Kisme) को कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा उपज, रोग प्रतिरोधक छमता और कुछ और अलग अलग विशेषताओं के आधार पर विकसित किया गया है। इन किस्मों को अलग अलग तरह की जलवायु और कई प्रकार की मिट्टी में बुवाई करने के लिए तैयार किया गया है। आगे देखिये सोयाबीन की किस्मों (Soybean Ki Kisme) की विशेषताएं क्या क्या है।

सोयाबीन की उन्नत किस्मों की जानकारी

सोयाबीन की किस्मों को कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा कई अलग अलग श्रेणियों और अलग अलग छमताओं के आधार पर विकसित किया जाता है। इनमे से कुछ किस्में पैदावार देने में सबसे आगे है तो कुछ किस्मे ऐसी है जिनमे सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) में लगने वाले रोगों के लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक छमता बहुत अधिक होती है। और कुछ किस्मों को अलग अलग जलवायु और मिट्टी के प्रकार के हिसाब से विकसित किया जाता है।

एमएसीएस 1407 सोयाबीन की ही एक किस्म है जो किसानो को प्रति हैक्टेयर में लगभग 35 से 40 क्विंटल की पैदावार देने में सक्षम है। इसके अलावा ये रोग प्रतिरोधक भी है और कई प्रकार की मिट्टी में इसकी खेती बड़ी ही आसानी से की जा सकती है। ठीक इसी तरफ से जेएस 2034, फुले संगम/केडीएस 726, बीएस 6124, प्रताप सोया-45 (आरकेएस-45), केडीएस 986 और जेएस 335 किस्मे भी है जिनको कृष वैज्ञानिकों के द्वारा इस हिसाब से तैयार किया गया है की ये अलग अलग तरह की जलवायु और अलग अलग तरह की मिट्टी में आसानी से किसानो को अच्छी पैदावार देती है।

सोयाबीन की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें

ये किसान भाइयों के लिए बहुत ही अहम चरण होता है जब सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) के लिए खेत को तैयार करना होता है। क्योंकि खेत की तैयारी करने पर ही इस बात पर ये निर्धारित होता है की खेत में सोयाबीन की फसल कैसी होगी और कितना उत्पादन देगी। इसलिए किसान भाइयों को खेत की तैयारी अच्छे से करनी बहुत जरुरी होती है।

सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) के लिए सबसे पहले खेत में जब रबी की फसल की कटाई हो जाए तो हलकी जुताई कर देनी चाहिए। इससे खेत में मौजूद सभी खरपतवार ख़त्म हो जाएंगे। इस जुताई के बाद खेत की मिट्टी भुरभुरी भी हो जाती है। इसके बाद एक गहरी जुताई भी करनी चाहिए जिसमे जुताई की गहराई कम से कम 20 सेंटीमीटर तक होनी जरुरी होती है क्योंकि ऐसे जुताई से खेत की मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है।

How to prepare the field for soybean cultivation
How to prepare the field for soybean cultivation

इसके अलावा अगर किसान भाइयों को लगता है की खेत में खरपतवार की समस्या अधिक है तो उसको रोटावेटर, हैरो का इस्तेमाल करके ख़त्म किया जा सकता है या फिर हर्बिसाइड का छिड़काव करने भी इस पर नियंत्रण किया जा सकता है। खेत की जुताई के समय इस बात का ध्यान रखना होता है की खेत पूरी तरह से समतल रहे और खेत में पानी की निकासी भी अच्छे से होनी चाहिए।

जुताई और खेत का समतलीकरण करने के बाद किसान भाइयों को खेत में पानी का प्रबंध भी अच्छे से करना है। क्योंकि अगर सिंचाई सही वक्त पर नहीं होगी तो सोयाबीन की फसल में नुक्सान अधिक होगा। इसके लिए किसान भाइयों को सोयाबीन की फसल में सिंचाई की व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए किसान भाई खेत में कुएं, नहर या ट्यूबवेल आदि लगाकार इसका इंतजाम कर सकते है।

सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) के लिए उर्वरक कौन कौन से है

वैसे तो किसान भाई अगर खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद का अगर इस्तेमाल करते है तो बाकि के उर्वरकों की अहमियत कम हो जाती है लेकिन फिर भी आज के समय में कुछ उर्वरक किसानो को सोयाबीन की खेती में डालने जरुरी होते है। इसके लिए किसान भाई नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P), पोटाश (K), सल्फर (S) के इस्तेमाल के साथ साथ कुछ जैविक खाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है।

किसानो को ये बात ध्यान में रहनी है की सोयाबीन की फसल (Soybean Ki Kheti) के लिए नाइट्रोजन सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व होता है और यह पौधों की वृद्धि और विकास के लिए अति आवशयक है। इसको आप अपने सोयाबीन के खेत में बुवाई के समय 20 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ की दर से डाल सकते है। इसके साथ सोयाबीन के पौधों की जड़ों को अच्छे से विकसित करने के लिए किसान भाई फास्फोरस का इस्तेमाल कर सकते है। इसको सोयाबीन की बुवाई के समय में 60 किलोग्राम सिंगल सुपरफॉस्फेट प्रति एकड़ के हिसाब से किसान भाई अपने खेत में इस्तेमाल कर सकते है।

इन उर्वरकों के साथ ही खेत में पोटाश और सल्फर की भी बहुत अहमियत होती है। पोटाश सोयाबीन के पौधों में रोग प्रतिरोधक छमता को बढ़ता है और सोयाबीन की फसल में फलियां बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान देता है। किसान भाइयों को बुवाई के समय में 40 किलोग्राम प्रति एकड़ पोटाश और 20 किलोग्राम सल्फर प्रति एकड़ के हिसाब से डालनी चाहिए।

लेकिन इसके साथ ही किसान भाइयों को अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण अपने पास की ही कृषि अनुसन्धान संसथान में करवानी चाहिए। इससे किसानो को ये पता चल जायेगा की खेत की मिट्टी में किस उर्वरक की कमी है। इसको चेक करवाने के बाद किसान भी बड़े ही आसानी से ये पता लगा सकते है की खेत में किस उर्वरक की सबसे जयादा जरुरत है। इससे किसानो को एपिडवार अधिक लेने में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता और फसल पौषिक और अच्छी गुणवत्ता वाली होती है।

सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) का सही समय क्या है

भारत की बात अगर की जाए तो भारत में सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) आमतौर पर खरीफ की फसल के सीजन में की जाती है। इस मौसम में सोयाबीन के बीओं को अंकुरित होने में आसानी होती है। सोयाबीन की खेती करने का सबसे अच्छा महीना जुलाई का होता है। इस समय सोयाबीन की खेती के अनुकूल ही मौसम का तापमान रहता है।

सबसे अच्छे समय की अगर बात करें तो सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) की बुवाई के लिए जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के मध्य तक का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इस समय अच्छी बारिश होने की वजह से मिट्टी में नमी की मात्रा काफी हद तक सही हो जाती है जो की सोयाबीन की खेती के लिए बहुत जरुरी होती है।

किन्ही कारणों की वजह से अगर मानसून में देरी होती है तो किसान भाई अपने खेतों में सिंचाई करने के बाद भी सोयाबीन की खेती आसानी से कर सकते है। बीजों को हमेशा 2 से 3 इंच की गहराई में जमीन में डालना चाहिए नहीं तो बीजों को अंकुरित होने में काफी समय लग जायेगा और हो सकता है कुछ बीज जमीन से बहार ही ना निकल पाये।

सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) में बीजों की बुवाई कैसे करें

जैसा की हमने सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) के लिए खेत की तैयारी वाले सेक्शन में बताया था की खेत की मिट्टी को जुताई करके अच्छे से भुरभुरी कर देना चाहिए। इसके बाद आपको खेत में बीजों की बुवाई करनी है। बुवाई करने के लिए आप कई अलग अलग विधियों का सहारा ले सकते है। सोयाबीन की खेती में आपको बता दें की अप्रैल महीने के आसपास भी सोयाबीन की उन्नत किस्मों के सहारे खेती की जाती है। सोयाबीन के बीजों की बुवाई के समय बीजों को हमेशा 5-6 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना जरुरी होता है।

How to sow seeds in soybean cultivation
How to sow seeds in soybean cultivation

सोयाबीन की खेती में बुवाई के समय इस बात का भी ध्यान रखना है की एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच की दुरी हमेशा 30-45 सेंटीमीटर रखनी होती है। सोयाबीन की बुवाई के लिए आज के ज़माने में ट्रेक्टर बहुत अच्छा विकल्प है। इसके साथ ही सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) के लिए ट्रेक्टर से चलने वाले बहुत से उपकरण मौजूद है जिनकी मदद से आप सोयाबीन की फसल के लिए बीजों की बुवाई बड़ी ही आसानी से कर सकते हो।

सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) में सिंचाई

सोयाबीन की खेती में सिंचाई बहुत ही जरुरी होती है और इसके लिए किसान भाइयों को पूर्ण ज्ञान होना बहुत जरुरी है। कई बार किसान भाई खेत सूख ना जाये इसके चक्कर में अधिक सिंचाई कर देते है जिसका भी फसल पर प्रतिकूल असर पड़ता है। सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti Me Sinchai) में सिंचाई हमेशा यतो सुबह के समय करें या फिर शाम के समय करें। दिन के समय में धुप होने के कारण की गई सिंचाई से सोयाबीन के पौधों को नुकसान हो सकता है।

सोयाबीन की खेती में सिंचाई ड्रिप विधि या फव्वारा विधि के द्वारा की जाती है। ज्यादातर किसान आजकल सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल कर रहे है क्योंकि इससे पानी की बचत भी होती है और पानी पौधों को सीधे तौर पर मिल जाता है। सिचाई कब करनी चाहिए ये सोयाबीन के खेत की नमी पर निर्भर करता है। खेत में हमेशा नमी की मात्रा को किसानो को चेक करते रहना चाहिए। खेत में नमी की मात्रा 10 से लेकर 15 सेमि तक हमेशा होनी चाहिए और खासकर फलियों में दाना भरने के दौरान तो ये बहुत ही जरुरी होता है की नमी हमेशा बनी रहनी चाहिए।

इसलिए सोयाबीन की खेती (Soybean Ki Kheti) में सिंचाई के लिए किसान भाई हमेशा पानी का प्रबंध रखें और सही सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल करें। इससे फसल को नुकसान भी नहीं होता और पैदावार भी अच्छी होती है।

सोयाबीन की खेती में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

जो भी किसान भाई सोयाबीन की खेती कर रहे है उनको अच्छे से ये बात पता है की सोयाबीन की खेती में खरपतवार को खेत से बाहर करना कितना जरुरी होता है। लेकिन बहुत से किसान ये नहीं जानते की सोयाबीन की फसल में खरपतवार के कारण उत्पादन में 20 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। इसलिए किसान भाइयों को सोयाबीन की खेती में खरपतवार नियंत्रण करने के बारे में पता होना चाहिए।

सोयाबीन की फसल में से खरपतवार को नियंत्रित करने के कई तरीके होते है जिनमे भौतिक तरीके से खरपतवार को नियंत्रित करना, रासायनिक तरीके से और समन्वित विशि से खरपतवार को नियंत्रित करना शामिल है। इनमे से जायदातर किसान इस आखिर वाले तरीके का इस्तेमाल करने हैं और ये काफी हद तक सोयाबीन की फसल से खरपतवार को नियत्रित करने में सहायता करती है।

भौतिक विधि वो है जिसको किसान भाई अपनी मेहनत के जरिये एक एक करके खेत से खरपतवार को निकालते है। इस प्रक्रिया में खर्चा बिलकुल काम होता है लेकिन परिश्रम अधिक होता है। सोयाबीन की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए निराई गुड़ाई की प्रक्रिया सोयाबीन के बीजों की बुवाई के 25 से 30 दिनों के बाद करनी चाहिए और दूसरी बार खेत में निराई गुड़ाई का काम 40 से 45 दिनों के बाद में करना चाहिए।

जो किसान अपने सोयाबीन की फसल में रासायनिक विधि का प्रयोग करके खरपतवार पर नियंत्रण करना चाहते है उनको अपनी सोयाबीन की फसल में कुछ रासायनिक खरपतवार नाशकों का छिड़काव करना होता है। लेकिन यहां हम सभी किसान भाइयों को ये सलाह देंगे की इसके इस्तेमाल से पहले कृषि वैज्ञानिकों से एक बार सलाह जरूर करें। गलत दवाई के छिड़काव से सोयाबीन की फसल को नुकसान हो सकता है। रासायनिक खरपतवार नाशकों में किसान भाई डायक्लोसुलम, एट्राज़िन, प्रोपेज़िन, इमाज़ेथापायर, इमाज़मॉक्स आदि के घोल का छिड़काव अपनी फसल में करते है।

किसान भाइयों को सोयाबीन में खरपतवार को ख़त्म करने के लिए अपने खेत में फसल चक्र विधि को अपनाना चाहिए जैसे सोयाबीन की फसल के बाद में उस खेत में धान, मक्का, मूंग, उड़द की फसल की पैदावार लेनी चाहिए। ऐसा करने से खरपतवार के बीजों का अंकुरण पहले ही हो जायेगा और वे नष्ट हो जायेंगे। किसान भाइयों के हम ये भी सलाह देंगे की खेत में खरपतवारों के बीजों को ना बनने दिया जाए और बीजों के बनने से पहले ही खरपतवार को खेत से बाहर करके जला देना चाहिए। फसल की बुवाई के सही समय पर ही फसल की बुवाई करने से भी खरपतवार पर काफी हद तक नियत्रण पाया जा सकता है।

सोयाबीन की खेती में लगने वाले रोग और रोकथाम

सोयाबीन की फसल में बहुत तरह के रोगों का सामना किसान भाइयों को करना पड़ता है। इनमे कुछ फफूंद जनित रोग होते है और कुछ कीटों से पैदा होने वाले रोग होते है। फफूंद जनित रोगों में एरीअल ब्लाइट, फंगल ब्लाइट, बैक्टीरियल ब्लाइट, ग्रेन ब्लाइट, मोजेक वायरस आदि प्रमुख रोग हैं जिनसे किसान भाइयों की सोयाबीन की फसल को खतरा रहता है।

इसके अलावा सोयाबीन की फसल में तना मक्खी, चक्र भृंग, पत्ता खाने वाली इल्लियाँ, झूलसा रोग (Phomopsis stem canker), मोज़ेक रोग (Soybean mosaic virus), फाइटोफ्थोरा विगलन (Phytophthora blight) आदि रोगों से भी बहुत अधिक खतरा रहता है। किसान भाई बड़ी ही आसानी से समय रहते इनकी रोकथाम के उपाय करके अपनी सोयाबीन की फसल का बचाव कर सकते है।

किसान भाई इन सभी रोगों से अपनी फसल को बचने के लिए रासायनिक दवाओं का उपयोग कर सकते है लेकिन पहले कृषि सलाहकारों से सलाह करने के बाद ही इनका इस्तेमाल करें। इसके अलावा फसल की रोगप्रतिरोधक किस्मों की बुवाई करके भी इन रोगों से बचाव किया जा सकता है।

सोयाबीन की फसल की कटाई कब करें

ये समय किसान भाइयों के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दिन के लिए ही तो किसान भाई इतने दिनों से मेहनत कर रहे थे। सोयाबीन की खेती में फसल की कटाई का सही समय तब होता है जब सोयाबीन की फलियों का रंग कालेपन के साथ भूरा होने लगता है। सोयाबीन की फली के अंदर दानो का रंग भी बदलकर भूरे से काला होने लगता है।

इस समय सोयाबीन की फलियों में बीजों के अंदर नमी की मातृ केवल 15 फीसदी ही होती है। इसलिए इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। यदि सोयाबीन को इसके अलावा और अधिक दिनों के लिए छोड़ दिया जाए तो फिर फलियां फटने लगती है और फसल ख़राब हो जाती है। लेकिन इसके साथ ही ये भी ध्यान रखना है की फलियों के अंदर बीजों में नमी की मातृ अधिक भी नहीं होनी चाहिए। अगर आपको लगता है की नमी अधिक है तो कुछ दिन और इन्तजार करने के बाद ही सोयाबीन की फसल की कटाई करनी चाहिए।

आमतौर पर सोयाबीन की फसल की कटाई का सही समय सितम्बर और अक्टूबर के महीने में होता है। लेकिन कई बार फसल चक्र का ये समय बदल भी जाता है और इसके पीछे मौसम का बदलना भी एक कारण होता है। लेकिन किसान भाई इस बात को अच्छे से जानते होंगे की अगर मौसम शुष्क हो रहा है तो सोयाबीन की फसल को जल्दी काटना पड़ता है और यदि मौसम में नमी बनी हुए है तो सोयाबीन की फसल को पकने में अधिक समय लगता है और इसकी कटाई भी देरी से होती है।

सोयाबीन की कटाई के लिए और बीजों को अलग करने के लिए थ्रेसर का इस्तेमाल आजकल बहुत अधिक किया जा रहा है। थ्रेसर के मध्यम से सोयाबीन की फलियों से बीजों को बड़ी आसानी के साथ अलग किया जाता है और फिर उनको बोरोन में भर दिया जाता है। हालांकि बाद में इन बोरोन में सोयाबीन की फसल को बाहर निकलकर धुप में फैलाया जाता है ताकि अच्छे से सूख जाये और उनमे नमी ना रहे। अगर आप सोयाबीन की फसल का भण्डारण करना चाहते है तो आपको इस बात का ध्यान रखना होगा की भरदारन करने की जगह पर छाव हो और नमी बिलकुल भी ना रहे।

सोयाबीन की खेती में लागत और बचत

सोयाबीन की फसल में लगत और बचत किसान पर निर्भर करती है की वो किस किस्म की सोयाबीन की खेती कर रहा है और खेती के दौरान क्या क्या प्रक्रिया को पूरा कर रहा है। आमतौर पर यही देखा गया है की किसानो को प्रति एकड़ में सोयाबीन की फसल की बुवाई करने में लगभग 20 से 25 हजार रूपए की लगत आसानी से आ जाती है। इस खर्चे में सोयाबीन की फसल में लगने वाले बीज, उर्वरक, सिंचाई, मजदूरी के अलावा कुछ छोटे छोटे अन्य खर्चे भी शामिल हैं।

एक एकड़ में सोयाबीन की फसल का लगभग 15 से 16 क्विंटल का उत्पादन होता है। ऐसे में एक एकड़ से किसानो को लगभग 70 से 80 हजार की आमदनी होती है जिमे से अगर खर्चे को निकल दिया जाए तो लगभग 40 से 50 हजार का मुनाफा होता है।

सोयाबीन की खेती के बारे में सबसे अधिक पूछे जाने वाले सवाल और जवाब

सवाल – सोयाबीन को उगने में कितना समय लगता है?

जवाब – सोयाबीन की खेती में सोयाबीन के बीजों की बुवाई से लेकर फसल की कटाई का काम करने तक लगभग 100-120 दिन लगते हैं।

सवाल – सोयाबीन की खेती के लिए कौन सी मिट्टी उपयुक्त है?

जवाब –सोयाबीन की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली, हल्की से मध्यम दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। इस तरफ की मिट्टी में सोयाबीन की फसल में किसान बम्पर पैदावार ले सकता है।

सवाल – सोयाबीन की खेती के लिए कौन सी जलवायु उपयुक्त है?

जवाब –सोयाबीन की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु को सबसे उपयुक्त माना गया है।

सवाल – सोयाबीन की खेती के लिए कौन से बीज उपयुक्त हैं?

जवाब –सोयाबीन की खेती के लिए किसान भाइयों को हमेशा उन्नत बीजों का ही उपयोग करना चाहिए। उन्नत बीजों की खेती करने से किसानों की सोयाबीन की फसल में उत्पादन क्षमता बढ़ती है और साथ में रोग और कीट प्रतिरोध को रोकने में मदद भी मिलती है।

सवाल – सोयाबीन की खेती के लिए बुवाई की विधि क्या है?

जवाब –सोयाबीन की बुवाई हमेशा किसान भाइयों के द्वारा पंक्तियों में ही की जाती है। पंक्तियों के बीच की दूरी 30-45 सेमी और बीजों के बीच की दूरी 10-15 सेमी होनी चाहिए।

सवाल – सोयाबीन की खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता है या नहीं?

जवाब –सोयाबीन की खेती के लिए नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। विशेष रूप से, फूल आने और फलियों के आने के दौरान सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता होती है।

सवाल – सोयाबीन की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है या नहीं?

जवाब –सोयाबीन की खेती में खरपतवार नियंत्रण करना बहुत ही जरुरी होता है। सोयाबीन की फसल में खरपतवारों की वजह से 15 से 20 फीसदी तक उत्पादन काम हो जाता है।

सवाल – सोयाबीन की खेती के लिए कीट और रोग नियंत्रण आवश्यक है या नहीं?

जवाब –सोयाबीन की खेती के लिए कीट और रोग नियंत्रण आवश्यक है। कीटों और रोगों से सोयाबीन की फसल को नुकसान हो सकता है। इसलिए कीटों और रोगों की रॉथम के समय रहते ही उपाय करने बहुत जरुरी होते है नहीं तो ये फसल को बर्बाद कर देते है।

सवाल – सोयाबीन की फसल की कटाई कैसे की जाती है?

जवाब –सोयाबीन की फसल की कटाई सितम्बर और अक्टूबर के महीने में की जाती है। इसमें किसान भाइयों को जब लग जाये की अब फलियों के अंदर बीजों का रंग काला होना शुरू हो गया है तो फिर फसल की कटाई का काम शुरू कर देना चाहिए।
सोयाबीन की कटाई और फलियों से बीजों को निकलने के लिए थ्रेसर का इस्तेमाल करते है।

सवाल – सोयाबीन की फसल की उपज कितनी होती है?

जवाब –सोयाबीन की फसल की उपज उस खेत की मिट्टी, जलवायु, बीज की गुणवत्ता के साथ साथ खेती की विधि और खरपतवार और कीट नियंत्रण के आधार पर ही होती है। भारत में, सोयाबीन की औसत उपज 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

डिस्क्लेमर: वेबसाइट पर दी गई बिज़नेस, बैंकिंग और अन्य योजनाओं की जानकारी केवल आपके ज्ञान को बढ़ाने मात्र के लिए है और ये किसी भी प्रकार से निवेश की सलाह नहीं है। कोई भी निवेश करने से पहले आप अपने सलाहकार से सलाह जरूर करें। बाजार के जोखिमों के अधिक योजनाओं में निवेश करने से वित्तीय घाटा हो सकता है।

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Vinod Yadav

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